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बुधवार, 2 मई 2012

बुद्ध अनीश्वरवादी कैसे ?

मेरी समझ मेँ नहीँ आरहा कि बुद्ध अनीश्वरवादी कैसे हैँ ?
प्रस्तुतकर्ता ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU' पर 1:21 pm कोई टिप्पणी नहीं:
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मेरे बारे में

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ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'
मैं सिर्फ आत्मा हूँ! आत्मा रूपी किरण जो निरंतर परम् आत्मा से सम्बद्ध है।सन्त परम्परा में ही हमें जीवन दिखता है।धर्म व्यक्ति का होता है भीड़ का नहीं। भीड़ से दूर रह कर आत्म केंद्रित होना भी जरूरी है।आत्मा ही परमआत्मा हो सकता है।हमारे अंदर भगवान होने की भी सम्भावनाएं छिपी है । चंद्रमा ,मंगल आदि पर तुम्हारा भगवान कुछ क्यों नहीं करता .? दरअसल भक्ति है, भक्ति में आत्मा ही परमात्मा है.... कस्तूरी मृग की तरह इधर उधर भटकने की जरूरत नहीं.... mera mun kahata hai- sub jagah GANDHIGIREE chha jaye. koyi aapas me jhhagare na. lekin abhi poori duniya sabhy nahi huyi hai.ese me main bachapan se jhhelata aaya hoon--dansh! दंश .....दंश.... सामाजिकता के दंश ! यानि कि प्रकृति,अध्यात्म,सार्वभौमिक ज्ञान ,आदि पर सामाजिकता की चोट ! वर्तमान सामजिकता का हमें कोई योगदान नहीं दिखता..... लेकिन मन और शरीर....??? BLOG:antaryahoo.blogspot.com :akvashokbindu.blogspot.com :ashokbindu.blogspot.com ओ3म -आमीन! ओम तत सत!सत साहिब!! ॐ तत सत वाहे गुरु जय खालसा महा गुरु.....
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अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' एवं सन्तानेँ .. वाटरमार्क थीम. Blogger द्वारा संचालित.