शुक्रवार, 16 मई 2025

श्रीमद्भगवद्गीता की वर्तमान में प्रासंगिकता ?!

श्रीमद्भागद्वगीता का विश्व व्यापी अध्ययन से पता चलता है कि हांगकांग में गीता के आधार पर मैनेजमेंट का सेलेब्स तैयार किया गया है। अमेरिका की एक विशेष सैन्य टीम को गीता का अध्ययन अनिवार्य है ।उस टीम के ही सैनिकों ने ओसामा बिन लादेन आतंकवादी को मारा।आज से ढाई हजार वर्ष पहले दुनिया के सन्तों को यही ग्रन्थ आकर्षित करता था। जब सिकन्दर अपने विश्व विजेता बनने के आखिरी पड़ाव में भारत की ओर आया और आने से पहले अपने गुरु अरस्तु से मिला तो अरस्तु ने कहा -हमने तो तुझे विश्व विजेता बनने की तेरी महत्वाकांक्षी योजना का विरोध किया था।जब तू नहीं माना तो हमने कहा था कि इसकी शुरुआत तू पूर्व से कर लेकिन तूने नहीं कि अब तू पूर्व जा रहा है तो मेरे लिए एक गीता पुस्तक व एक साधु लेते आना। उस समय गीता विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। श्रीमद्भगवद्गीता की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी प्राचीन काल में थी, क्योंकि यह जीवन के मूलभूत प्रश्नों, नैतिकता, कर्तव्य, और आत्म-साक्षात्कार पर गहन दार्शनिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती है। इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में देखा जा सकता है:नैतिक और कर्तव्यपरक मार्गदर्शन: गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग के माध्यम से निष्काम कर्म (बिना फल की इच्छा के कर्तव्य पालन) का उपदेश देते हैं। यह आज के समय में भी प्रासंगिक है, जब लोग व्यक्तिगत लाभ और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन खोजते हैं। उदाहरण के लिए, कार्यस्थल पर ईमानदारी और समर्पण जैसे मूल्य गीता से प्रेरित हो सकते हैं।मन का नियंत्रण और मानसिक शांति: गीता में ध्यान, आत्म-नियंत्रण, और समभाव (स्थितप्रज्ञता) पर जोर दिया गया है। आधुनिक जीवन की तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धी प्रकृति में, यह मन को शांत रखने और सही निर्णय लेने में मदद करती है। योग और माइंडफुलनेस की अवधारणाएँ गीता के ज्ञानयोग और ध्यानयोग से जुड़ी हैं।आध्यात्मिक और दार्शनिक गहराई: गीता विभिन्न योगों (कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, और ध्यानयोग) के माध्यम से जीवन के उद्देश्य और आत्मा की अमरता को समझाती है। यह व्यक्ति को यह समझने में मदद करती है कि सच्चा सुख भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आत्म-जागरूकता और ईश्वर से एकता में है। यह आज के भौतिकवादी युग में विशेष रूप से प्रासंगिक है।सामाजिक और वैश्विक सद्भाव: गीता सभी प्राणियों के प्रति करुणा, समानता, और प्रेम का संदेश देती है। यह सामाजिक समरसता और वैश्विक एकता को बढ़ावा देती है, जो आज के विभाजित विश्व में अत्यंत आवश्यक है।संकटों का सामना: अर्जुन की तरह, जो युद्ध के मैदान में नैतिक और भावनात्मक संकट का सामना करता है, गीता हमें जीवन के कठिन क्षणों में धैर्य, साहस, और सही मार्ग चुनने की प्रेरणा देती है। यह व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में निर्णय लेने में सहायक है।वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक प्रासंगिकता: गीता के कई सिद्धांत, जैसे कर्म और मन के नियंत्रण, आधुनिक मनोविज्ञान और व्यवहार विज्ञान से मेल खाते हैं। उदाहरण के लिए, "कर्म कर, फल की चिंता मत कर" का सिद्धांत तनाव प्रबंधन और उत्पादकता बढ़ाने में सहायक है।निष्कर्ष: गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक जीवन दर्शन है, जो समय, स्थान, और संस्कृति की सीमाओं से परे है। यह व्यक्तिगत विकास, सामाजिक कल्याण, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक शाश्वत मार्गदर्शक है। चाहे कोई किसी भी पृष्ठभूमि का हो, गीता के उपदेश जीवन को अर्थपूर्ण और संतुलित बनाने में सहायता करते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता की वर्तमान में प्रसंगिकता ?! वर्तमान में मानव, मानव समाज, देश व विश्व में अनेक समस्याएं है जिनका समाधान हमें श्रीमद्भगवद्गीता में मिलता है। धर्म का मतलब यह नहीं है कि जाति-मजहब ,देश में मानवता,बंधुत्व व अपने संघर्ष को सीमित कर देना। वरन धर्म का मतलब है -अत्याचार, शोषण, अपराध, अन्याय आदि के खिलाफ संघर्ष करना। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि दुनिया के धर्मों को त्याग मेरे शरण में आ । इसका मतलब है कि उस वक्त अर्जुन के लिए उसके जीवन में महापुरुष थे श्रीकृष्ण। जब अर्जुन श्री कृष्ण से मदद मांगने द्वारिका गये थे तो उन्होंने श्री कृष्ण को ही उनसे मांगा था। ऐसे में हमारे लिए वर्तमान में हमारे जो महापुरुष हैं हमें दुनिया के धर्मों को त्याग उनके शरण में जाना ही चाहिए।वर्तमान में जिससे हम आगे बढ़ सकते हैं, हमें उनके शरण में रहना ही चाहिए। इसी तरह श्रीकृष्ण कहते हैं कि तू भूतों को भेजेगा तो भूतों को प्राप्त होगा, पितरों को भेजेगा तो पितरों को प्राप्त होगा, देवों को भेजेगा तो देवों को प्राप्त होगा लेकिन हमें भजेगा तो हमें प्राप्त होगा।हमारी नजर में इसका मतलब है कि हमारे जिंदा रहते हमारे समीप जो जीवंत महापुरुष हैं हम उनको भजें अर्थात उनके सन्देशों के आधार पर हम अपना नजरिया, भाव व सोंच बना कर कर्म करें।

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