शुक्रवार, 16 मई 2025

श्रीमद्भगवद्गीता की वर्तमान में प्रासंगिकता ?!

श्रीमद्भागद्वगीता का विश्व व्यापी अध्ययन से पता चलता है कि हांगकांग में गीता के आधार पर मैनेजमेंट का सेलेब्स तैयार किया गया है। अमेरिका की एक विशेष सैन्य टीम को गीता का अध्ययन अनिवार्य है ।उस टीम के ही सैनिकों ने ओसामा बिन लादेन आतंकवादी को मारा।आज से ढाई हजार वर्ष पहले दुनिया के सन्तों को यही ग्रन्थ आकर्षित करता था। जब सिकन्दर अपने विश्व विजेता बनने के आखिरी पड़ाव में भारत की ओर आया और आने से पहले अपने गुरु अरस्तु से मिला तो अरस्तु ने कहा -हमने तो तुझे विश्व विजेता बनने की तेरी महत्वाकांक्षी योजना का विरोध किया था।जब तू नहीं माना तो हमने कहा था कि इसकी शुरुआत तू पूर्व से कर लेकिन तूने नहीं कि अब तू पूर्व जा रहा है तो मेरे लिए एक गीता पुस्तक व एक साधु लेते आना। उस समय गीता विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखती थी। श्रीमद्भगवद्गीता की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी प्राचीन काल में थी, क्योंकि यह जीवन के मूलभूत प्रश्नों, नैतिकता, कर्तव्य, और आत्म-साक्षात्कार पर गहन दार्शनिक और व्यावहारिक मार्गदर्शन प्रदान करती है। इसका महत्व निम्नलिखित बिंदुओं में देखा जा सकता है:नैतिक और कर्तव्यपरक मार्गदर्शन: गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोग के माध्यम से निष्काम कर्म (बिना फल की इच्छा के कर्तव्य पालन) का उपदेश देते हैं। यह आज के समय में भी प्रासंगिक है, जब लोग व्यक्तिगत लाभ और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन खोजते हैं। उदाहरण के लिए, कार्यस्थल पर ईमानदारी और समर्पण जैसे मूल्य गीता से प्रेरित हो सकते हैं।मन का नियंत्रण और मानसिक शांति: गीता में ध्यान, आत्म-नियंत्रण, और समभाव (स्थितप्रज्ञता) पर जोर दिया गया है। आधुनिक जीवन की तनावपूर्ण और प्रतिस्पर्धी प्रकृति में, यह मन को शांत रखने और सही निर्णय लेने में मदद करती है। योग और माइंडफुलनेस की अवधारणाएँ गीता के ज्ञानयोग और ध्यानयोग से जुड़ी हैं।आध्यात्मिक और दार्शनिक गहराई: गीता विभिन्न योगों (कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, और ध्यानयोग) के माध्यम से जीवन के उद्देश्य और आत्मा की अमरता को समझाती है। यह व्यक्ति को यह समझने में मदद करती है कि सच्चा सुख भौतिक उपलब्धियों में नहीं, बल्कि आत्म-जागरूकता और ईश्वर से एकता में है। यह आज के भौतिकवादी युग में विशेष रूप से प्रासंगिक है।सामाजिक और वैश्विक सद्भाव: गीता सभी प्राणियों के प्रति करुणा, समानता, और प्रेम का संदेश देती है। यह सामाजिक समरसता और वैश्विक एकता को बढ़ावा देती है, जो आज के विभाजित विश्व में अत्यंत आवश्यक है।संकटों का सामना: अर्जुन की तरह, जो युद्ध के मैदान में नैतिक और भावनात्मक संकट का सामना करता है, गीता हमें जीवन के कठिन क्षणों में धैर्य, साहस, और सही मार्ग चुनने की प्रेरणा देती है। यह व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में निर्णय लेने में सहायक है।वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक प्रासंगिकता: गीता के कई सिद्धांत, जैसे कर्म और मन के नियंत्रण, आधुनिक मनोविज्ञान और व्यवहार विज्ञान से मेल खाते हैं। उदाहरण के लिए, "कर्म कर, फल की चिंता मत कर" का सिद्धांत तनाव प्रबंधन और उत्पादकता बढ़ाने में सहायक है।निष्कर्ष: गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक सार्वभौमिक जीवन दर्शन है, जो समय, स्थान, और संस्कृति की सीमाओं से परे है। यह व्यक्तिगत विकास, सामाजिक कल्याण, और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक शाश्वत मार्गदर्शक है। चाहे कोई किसी भी पृष्ठभूमि का हो, गीता के उपदेश जीवन को अर्थपूर्ण और संतुलित बनाने में सहायता करते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता की वर्तमान में प्रसंगिकता ?! वर्तमान में मानव, मानव समाज, देश व विश्व में अनेक समस्याएं है जिनका समाधान हमें श्रीमद्भगवद्गीता में मिलता है। धर्म का मतलब यह नहीं है कि जाति-मजहब ,देश में मानवता,बंधुत्व व अपने संघर्ष को सीमित कर देना। वरन धर्म का मतलब है -अत्याचार, शोषण, अपराध, अन्याय आदि के खिलाफ संघर्ष करना। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि दुनिया के धर्मों को त्याग मेरे शरण में आ । इसका मतलब है कि उस वक्त अर्जुन के लिए उसके जीवन में महापुरुष थे श्रीकृष्ण। जब अर्जुन श्री कृष्ण से मदद मांगने द्वारिका गये थे तो उन्होंने श्री कृष्ण को ही उनसे मांगा था। ऐसे में हमारे लिए वर्तमान में हमारे जो महापुरुष हैं हमें दुनिया के धर्मों को त्याग उनके शरण में जाना ही चाहिए।वर्तमान में जिससे हम आगे बढ़ सकते हैं, हमें उनके शरण में रहना ही चाहिए। इसी तरह श्रीकृष्ण कहते हैं कि तू भूतों को भेजेगा तो भूतों को प्राप्त होगा, पितरों को भेजेगा तो पितरों को प्राप्त होगा, देवों को भेजेगा तो देवों को प्राप्त होगा लेकिन हमें भजेगा तो हमें प्राप्त होगा।हमारी नजर में इसका मतलब है कि हमारे जिंदा रहते हमारे समीप जो जीवंत महापुरुष हैं हम उनको भजें अर्थात उनके सन्देशों के आधार पर हम अपना नजरिया, भाव व सोंच बना कर कर्म करें।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

सर्वव्याप्त प्राण शक्ति में लय होने को वो ही सिर्फ सहयोगी!!

विश्वदानीं सुमनस: स्याम पश्येम नु सूर्यमुच्चरन्तम् । तथा करत् वसुपतिर्वसूनां देवां ओहान: अवसा आगमिष्ठ: ।। अर्थात : (विश्वदानीं सुमनस: स्याम) सदा ही हम उत्तम विचार करने वाले हों। (सूर्य उच्चरन्त पश्येम नु ) आकाश में ऊपर संचार करने वाले सूर्य को हम देखें । (वसूनाम् वसुपति: तथा करत् ) घनों का घनपति देव वैसा प्रयत्न करें कि जिससे (देवान् ओहान: अवसा आगमिश्ठ: ) ज्ञानियों को बुलाने वाला देव आपनी रक्षण की शक्ति से हमारे पास आ जाए। (ऋग्वेद : 6.52.5)
👍अशोकबिन्दु के विचार !👌 जो हमारे अंदर बाहर, सर्वत्र अंतर्निहित है हम सदा उसकेउत्तम विचार में रहें।उसी से हम स्वस्थ हैं देह से अर्थात स्व में स्थित हैं अर्थात स्व में स्थित दशा के अहसास में हम सदा रहें जो ही वास्तव में जीवन है।उसके बिना ये देह तो देहान्त है। पंच तत्वों में एक है आकाश तत्व जिसमें हमारी आत्मा रूपी सूरज प्रकाशित है जैसे कि इस आकाश में सूरज को हम देखें वैसे ही हम अपने अंदर के आकाश तत्व में सन्देशों व अहसास रूपी ज्ञान व आत्मा रूपी सूरज को देखें। सर्वव्याप्त सघन चेतना जैसे कि सागर की गतिशीलता और उस गतिशीलता में हमसे आगे जो स्थिति को समझने व नियंत्रित करने वाले हम पर वैसा प्रयत्न करें जो ज्ञानियों, ज्ञान प्रेमियों को बुलाने वाले ,उनसे प्रेम करने वाले अपने रक्षण शक्ति, प्राण शक्ति या प्राणाहुति से हमारे समीप आयें या वे हमारे समीप रहें। चेतना के सागर में जैसे उच्च लहरें छोटी छोटी लहरों ,बूंदों को अपने में समेट लें। एक शिक्षक, ऋषि, वसु,ईश्वर ज्ञान प्रेमी या अपने प्रेमी पर ही विशेष कृपा बरसाता है।

सोमवार, 1 जुलाई 2024

अशोकबिन्दु : दैट इज ..?!

01 जुलाई 2024 ई0!!👌 सोमवार !!👌 अशोक कुमार वर्मा ' बिंदु ' की एक और पुस्तक का लोकार्पण ♥️ कटरा /बीसलपुर /पीलीभीत /शाहजह *Watch Breaking News on Shuru App* https://shuru.page.link/xZRBrATki6aSwrQh7 अमेजान पर हम !! रुहेलखंड क्षेत्र से एक आगाज !! अशोक कुमार वर्मा ' बिंदु ' की लेखनी व आवाज !! योग : यानि कि …!? / Yog : yaani ki ? https://amzn.in/d/0doTf1ZG अशोकबिन्दु :: दैट इज..?! https://amzn.in/d/6vkrHz9 ऐतिहासिक सूक्ष्मवाद !! एक भविष्य कथांश https://amzn.eu/d/axllwIV बुजुर्ग / Bujurg https://amzn.in/d/6zwqn7N अग्निनाश ! / Aganinaash https://amzn.eu/d/3yYPtAZ जाम - ए -हुलास नगरा https://amzn.eu/d/aqXJx2G शिक्षा / Shiksha https://amzn.eu/d/7LuaZHl लव जेहाद / Love Jehaad https://amzn.eu/d/02YuFmH स्त्रैण आँसुओं के सागर से! https://amzn.eu/d/d9HgS9I ❤️❤️❤️____________________________❤️❤️❤️ www.ashokbindu.blogspot.com www.akvashokbindu.blogspot.com

रविवार, 23 जून 2024

सबसे बड़ी समाज सेवा : शांति!!

विश्व शांति इसलिए यह अति आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर शांति और संतुष्टि की स्थिति विकसित करने के साधनों का पता लगाया जाए। इस प्रकार, विश्व शांति की प्राप्ति के लिए हमें यह करना है कि, व्यक्तिगत रूप से लोगों की मानसिक प्रवृत्तियों को बदला जाए। इसका मतलब है कि दिमाग का उचित नियमन ताकि इसे संयम की स्थिति में पेश किया जा सके। दुनिया में शांति लाने का यही एकमात्र तरीका है। इसलिए हम सभी को अपने भीतर मन की शांति विकसित करना आवश्यक है। लेकिन यह विशेष रूप से आध्यात्मिकता का दायरा है, इस उद्देश्य के लिए हम सबको आवश्यक रूप से आध्यात्मिक साधनों का सहारा लेना चाहिए। विश्व शांति, पूज्य बाबू जी🌿💐

शुक्रवार, 15 मार्च 2024

सपने साकार होने की ओर!!

14-17 मार्च 2024 : विश्व आध्यत्म सम्मेलन 2024 ई0! किशोरावस्था से मेरा ख्वाब था सभी सभी रूहानी आंदोलनों को एक मंच पर देखना। इसके साथ ही विश्व सरकार, विश्व सरकार ग्रन्थ साहिब की स्थापना। जब बसुधैब कुटुम्बकम तो किससे नफरत किससे मोहब्बत!? गीता में भी श्रीकृष्ण कहते हैं कि दुनिया के धर्म छोंड़ मेरी शरण
में आ। अर्थात जीवंत महापुरुष को स्वीकार। अतीत में जो महापुरुष हुए, अवतार हुए उन्हें भी उस वक्त के महापुरुषों को स्वीकार करना पड़ा। मनुष्य प्रकृति अभियान का अंग है। प्रकृति अभियान में ही सहयोगी होना होगा। प्रकृति अभियान, मानवता ,रूहानी आंदोलन का कोई मजहब नहीं कोई जाति नहीं, कोई देश नहीं वरन बसुधैब कुटुम्बकम।

रविवार, 4 जून 2023

हमारे सहज मार्ग में मानसिक सफाई :अशोकबिन्दु

सफाई::अतीत से मुक्ति!!आत्मिक वर्तमान से जुड़ाव की तैयारी। ---------------------------------------------------
आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं! और मन में भाव लाएं कि पहले के इकठ्ठे विकार, अशुद्धियां, छापें आदि हटायी जा रही हैं। आंखें बंद करें और स्वयं को ढीला छोंड़ दें। अपने मन में अब भाव लाएं कि सारी जटिलताएं और अशुद्धियां आपके शरीर से बाहर को जा रही हैं। अपने सिर के पिछले हिस्से व पीठ पर ध्यान दें। महसूस करें अपने सिर के पिछले हिस्से व पीठ को। सिर से नीचे होते हुए पीठ से गुजरते हुए सारे विकार, अशुद्धियां व जटिलताएं धुआं बन कर कमर के नीचे से बाहर जा रही हैं। बार बार यही। ऐसा बार बार हो रहा है।हमारे सारे विकार,अशुद्धियां व जटिलताएं धुआं बन कर बाहर जा रही हैं। ये प्रक्रिया तेज हो रही है। तेज और तेज! और तेज!! सिर के पीछे व पीठ को ध्यान में रखते हुए मन में भाव रखें - सारे विकार, अशुद्धियां व जटिलताएं धुआं बन कर बाहर जा रही हैं। ये कार्य अब तेजी के साथ होने लगा है। बड़ी तेजी से, बहुत ही तेजी से। और तेजी से । बहुत ही तेजी से हमारे अंदर के सारे विकार, अशुद्धियां, जटिलताएं धुआं बन कर बाहर जा रहे हैं। अपने आत्मविश्वास एवं संकल्प शक्ति के साथ इस प्रक्रिया को तेज करें। तेज और तेज। बड़ी तेजी के साथ हमारे अंदर के विकार, अशुद्धियां, जटिलताएं धुआं बन कर बाहर जा रही हैं। यदि आपका ध्यान भटकता है और अन्य विचार मन में आतें है तो धीमे से फिर से सफाई की ओर ध्यान दें कि हमारे अंदर के सारे विकार, अशुद्धियां, जटिलताएं धुंआ बन कर बाहर जा रहे हैं। इसे बीस तीस मिनट तक करें। हमारा मन, हृदय व शरीर अब हल्का होने लगा है। जब हल्कापन महसूस हो तो सफाई पूर्ण समझें। इसके बाद भाव लाएं कि अंतरिक्ष में तारों, प्रकाशीय तरंगों के बीच से किसी छोर से दुधिया रंग की एक पवित्र धारा हमारे अंदर प्रवेश कर रही है। शेष बची अशुद्धियां, जटिलताएं, विकार को वह बाहर ले जा रही है। अंदर दिव्य प्रकाश, बाहर दिव्य प्रकाश! अंतरिक्ष के किसी छोर से आता दिव्य दूधिया प्रकाश हमारे अंदर प्रवेश कर हमारे रोम रोम को पवित्र कर रहा है।बची खुची जटिलताएं, अशुद्धियां, विकार बाहर जा रहे हैं। अब हम सभी जटिलताओं, अशुद्धियों, विकारों से मुक्त हो चुके हैं। अंदर बाहर प्रकाश ही प्रकाश। दिल ! दिल में दिव्य प्रकाश।दिल में दिव्य प्रकाश मौजूद है।

शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

अमोघ प्रिय आनन्दम! अमोघ प्रिय दर्शनम ! अमोघ प्रिय अंनतम !!#अशोकबिन्दु

किसी ने कहा है - 'समस्या है तो समाधान भी है।समस्या के ही साथ समाधान भी चलता है ।" सहज मार्ग में साधना के तीन स्तर हैं -प्रार्थना ,ध्यान और सफाई ! साल में दो बार गुप्त नवरात्रि होते हैं- आषाढ़ मास ,माघ मास में दोनों माह अमावस्या के बाद । हम कहते रहे हैं -जो हमारे जगत के अंदर गुप्त रूप में है वह के लिए गुप्त में उतरना आवश्यक है ।हमारे अंदर व जगत के अंदर स्वत:, निरंतर ,शाश्वत आदि है ।जो हमें या हमारे चेतना व समझ को अनंत प्रवृत्तियों के का द्वार खोलता है ।स्थूल ,सूक्ष्म व कारण ; इन तीन से हम सदा सम्बद्ध हैं ।जिसे हमें सिर्फ महसूस करना है ,अनुभव में उतारना है ।इसके लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम नास्तिक हैं या आस्तिक यह हमारा वर्तमान व यथार्थ है ।हमारी चेतना व समझ के अनंत बिन्दु या स्तर हैं । समस्या क्या है ?समस्याएं क्या है ?पक्षी जिस डाल पर घोसला में पैदा हुआ उस डाल से हटता ही नहीं ।उड़ने की कोशिश नहीं करता है ।उड़ने की कोशिश भी करता है तो फिर फिर डाल पर आकर ही बैठ जाता है । सन 2016 ई0 फरवरी का पहला सप्ताह !मौनी अमावस्या !! 15 दिन के लिए अल्पाहार के साथ हम संकल्प शक्ति के साथ अंतर साधना में उतर आए । धर्म अंतर्मुखी है !अध्यात्म अंतर्मुखी है! हर पग हर पल धर्म अध्यात्म जीता है ! लेकिन हम नहीं !वह ही जीवन है जीवन का अस्तित्व ही वह है ! धर्म के चरमोत्कर्ष के बाद अध्यात्म ,अध्यात्म के चरमोत्कर्ष के बाद अनंत यात्रा का साक्षी पन!!  समस्या क्या है ? पुराने संस्कार ,आदतें ,पूर्वाग्रह, छाप ,जटिलताएं ,बनावट आदि ! ये सब हटकर कैसे मन निर्मली करण हो ? सहज मार्ग में मन के निर्मली करने की व्यवस्था है ! हम अभ्यासी कहे जाते हैं सहज मार्ग में साधना में। साधना कभी पूर्ण नहीं होती। जहां निरंतरता है वहां विकसित क्या ?निरंतर विकासशील है ! अपने को झकझोर कर असहाय दयनीय मानकर ,समर्पण कर दिया । "सफाई !सफाई!! सफाई!! हूं ...मालिक ,तू ही जाने! हम सिर्फ कोशिश करते हैं मन को निर्मली करण के लिए ..हमसे यह सब नहीं बनता !तू जाने !हम तो बस बताएं रास्ते पर चलने की कोशिश कर सकते हैं !" इन 15 दिन हमने महसूस किया कोई अज्ञात शक्ति सारथी बनने को तैयार है।  श्री मदभागवत गीता में महापुरुष के अनेक गुण दिए गए हैं -तटस्थता, शरणागति ,समर्पण ,निष्काम कर्म ,स्वीकार्य.... आदि आदि ! बाबूजी महाराज ने कहां है कि अपने को जिंदा लाश बना लो !अनंत से पहले प्रलय है!  किसी ने कहा है- आचार्य है मृत्यु! योग का एक अंग -यम है -मृत्यु!  इन 15 दिन हमने अपने को असहाय कर लिया ! बस ,मालिक !बस ,आत्मा.... परम आत्मा !अंतर दिव्य शक्तियां हैं... उनका इंतजार !...उनका सिर्फ इंतजार!  दुनिया की नजर में हम वैसे ही थे जैसे पहले थे लेकिन मन ही मन सब चल रहा था!  शीतलहर के दिन थे!
11.30pm,21फरबरी2016ई0! 12.01am,22 फरबरी2016ई0! 12.30pm,22फरबरी2016ई!! 11.00pm,20फरबरी 2016ई0 से 12.30pm,22फरबरी2016ई0.......... ये 36 घण्टे हमारे सूक्ष्म प्रबन्धन/जगत के लिए चिरस्मरणीय हैं। इन तीन चरणों में हम अज्ञात से आती क्रमशः इन 3 ध्वनियों के साथ दिव्यता में थे -अमोघ प्रिय आनंदम !अमोघ प्रिय दर्शनम् !अमोघ प्रिय अनंतम!!!  इसके साथ इसमें छिपी स्थिति को- दशा को हम साक्षी !  अब हम आज आप सब भाइयों को बहनों को ये प्रकट क्यों कर रहे हैं ? अभी तक इसे प्रकट करने का विचार नहीं आया था । वर्तमान में कोरो ना संक्रमण की वैश्विक महामारी के दौरान लॉकडाउन में सहज मार्ग श्री रामचंद्र मिशन ,हार्टफुलनेस, श्री कमलेश डी पटेल दा जी.... के साधना नियमों निर्देशों के अतिरिक्त 24 घंटे सतत स्मरण में रहने के अभ्यास में रहे हैं । जिसे हमने नाम दिया है -  'पूर्णता के साथ ध्यान '।  हमने देखा है- पूर्णता की कल्पना ,भाव ,विचार ....के साथ बैठने पर नेगेटिव विचार आते ही नहीं !मन निर्मली करण में हम!  हम आंख बंद कर बैठ जाते हैं! आंख बंद कर हम सांस प्रक्रिया को ध्यान देते हुए पूरे शरीर का एहसास करते हैं और कल्पना करते हैं - रोम रोम दिव्यता से भर गया है । जिसके प्रभाव में सभी रोग और सभी विकार खत्म हो गए हैं । इसके बाद हम अपना ध्यान गले पर ले जाते हैं और मन ही मन कहते हैं -अमोघ प्रिय आनंदम !इसे हम पांच बार कहते हैं और कल्पना करते हैं सागर में कुंभ कुंभ में सागर । इसके बाद हम अपना ध्यान माथे पर ले जाते हैं और कहते हैं -अमोघ प्रिय दर्शनम् !ऐसा 5 बार कहते हैं । इसके बाद पुनः कल्पना करते हैं -सागर में कुंभ कुंभ में सागर ! इसके बाद हम अपना ध्यान सिर पर शिखा के स्थान पर ले जाते हैं। और कहते हैं- अमोघ प्रिय अनंतम !इसे भी हम पांच बार कहते हैं और कल्पना करते हैं -सागर में कुंभ कुंभ में सागर ! चारों ओर अंदर और बाहर प्रकाश ही प्रकाश ! प्रकाश की लहरें हमारे अंदर भी और बाहर भी ! हमारा रोम रोम संसार के सभी प्राणी सभी वस्तुएं सभी वनस्पति जीव जंतु सारा ब्रह्मांड प्रकाश ही प्रकाश प्रकाश में । हम प्रकाश में डूबे हुए। हम प्रकाश में प्रकाश हमारे अंदर । सागर में कुंभ कुंभ में सागर... ऐसे में हमारे सभी रोग सभी विकार खत्म हो चुके हैं ....हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है... हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है ! अब हम अपना ध्यान ह्रदय पर ले आते हैं । हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है -इस भाव में आकर हम 20:30 मिनट बैठते हैं । इसके बाद पुनः - हमारा रोम रोम दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है .।अंदर-बाहर सब जगह प्रकाश ही प्रकाश ! सागर में कुंभ कुंभ में सागर.।।। इसी भाव में हम 24 घंटा रहने की कोशिश करते हैं ।हमारे अंदर ,सब के अंदर ,पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश ही प्रकाश। हम सब एक हैं। जगत में जो भी स्त्री पुरुष हैं ,हमारा परिवार है.... हमारा मकान है.... हमारा पास पड़ोस है ....हमारा शहर ...हमारा गांव.... पूरी पृथ्वी ...पूरा ब्रह्मांड..... हम सब प्रकाश में लबालब हैं ....सागर में कुंभ कुंभ में सागर....!!! इस तरह रहने से हमको अनेक विविध विचारों नेगेटिव एनर्जी का ख्याल नहीं आता! सुबह शाम रात्रि में हम सहज मार्ग के साधना पद्धति को समय देते हैं ! शेष समय हम इसी ख्याल में रहते हैं !इसी ध्यान में रहते हैं ...सागर में कुंभ कुंभ में सागर !पूर्णता के साथ ध्यान ! आखिर पूर्णता है क्या? ऑल !ए डबल एल .।।ऑल .।अल .।संपूर्णता ...!!अल्लाह शब्द भी इसी से बना है ! भाषा विज्ञान में अल्लाह शब्द अल : ही रूप है!!