जब भी हम रामचरितमानस उठाते हैं, तो उत्तर कांड को खोलते हैं।जिसमें स्पष्ट है कि रोग व दुःख का कारण क्या है?सगुण व निर्गुण कोई न भेदा..... ?!
एक समय वह भी था जब विज्ञान पदार्थवाद पर केंद्रित था। अब विज्ञान काफी आगे निकल चुका है और सुप्रीम साइंस आत्मा विज्ञान की ओर आ गया है, आध्यत्म की ओर आ गया है। एक वैज्ञानिक तो कहता है कि हमें तो ईंट पत्थर में भी रोशनी दिखाई देती है। कोई कहता है कि जो दिख रहा है वह ही सच नहीं है।सारा जगत, ब्रह्मण्ड प्रकाश, ऊर्जा, कम्पन, स्पंदन आदि में है। सहज मार्ग में जो रहस्य उजागर किया गया था, वह की ओर अब साइंस भी बढ़ चला है।
हमारा वैदिक ज्ञान सुप्रीम साइंस है।वेद मात्र पुस्तक नहीं हैं। श्री रामचन्द्र जी महाराज कहते हैं कि वेद एक वह शाश्वत व अनन्त व्यवस्था है जो ऋषियों -नबियों में पहले उतरी।जिन्होंने देखा कि सृष्टि व प्रलय, वर्तमान में हमारे अंदर व जगत- ब्रह्मण्ड के अंदर क्या दशा है?जो स्वतः है, निरन्तर है, अनन्त है।जिसका केंद्र हमारा हृदय है।जहां स्पंदन, कम्पन है, अनन्तता है।
जगत में जो भी दिख रहा है,वह अनन्त यात्रा का हिस्सा है। गीता का विराट रूप भी यही सन्देश देता है।कुंडलिनी जागरण व सात शरीर का अध्ययन या कल्पना भी हमें यही संदेश देता है। अनन्त यात्रा का अध्ययन, सहज मार्ग का दिग्दर्शन का अध्ययन ,कल्पना भी हमें यही सन्देश देता है। हम किशोरावस्था से ही कुछ अद्भुत सन्देश प्राप्त होते रहे हैं।हमारे अंदर जो आकाश तत्व है, वहां हमें निरन्तर सन्देश प्राप्त होते रहते हैं।लेकिन हम उसे जगत व बनावटों की चकाचौंध में नजरअंदाज कर दें ,यह अलग बात।
हमारे वर्तमान वैश्विक मार्गदर्शक कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हम आस्तिक हैं कि नास्तिक, महत्वपूर्ण यह है कि हम महसूस क्या करते हैं?अहसास क्या करते हैं? अमेरिका में सहज मार्ग में एक अभ्यासी कहते हैं कि साधना में सफलता का मतलब है कि हमें अपने आस पास सूक्ष्म शक्तियां, चेतना का आभास होने लगे।मूर्ति पूजा का मतलब यह भी है कि हमें सिर्फ पदार्थ, शक्ल सूरत, व्यक्ति की स्थूल क्रियाएं ही हमें सिर्फ दिखती हैं।
हम बचपन से ही बाला जी की मढ़ी आदि पर आखँ बंद कर,ब्रह्म नाद करते वक्त अपने अंदर व आस पास अतिरिक्त ऊर्जा,कम्पन, स्पंदन आदि महसूस करते रहे हैं।
वास्तव में प्रेम भी क्या है?सर्वव्यापकता।।
सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर......
(अपूर्ण)