शनिवार, 30 मई 2020

मन गति बनाम जुबान गति::अशोक बिंदु

हम किशोरावस्था से ही महसूस कर रहे हैं, मन की गति से काफी कम है जुबान,हाथों एवं अन्य स्थूल अंगों की गति। 
हम कक्षा08 से लेखन कार्य कर रहे हैं। प्रतिदिन जो चिंतन, मनन, कल्पना आदि होती थीं उसको हम एक माह में भी नहीं लिख पाते थे न ही लिख पाते है।हमारे शरीर की जो स्पीड या कार्य क्षमता होती है उससे हजार गुना क्षमता मन की होती है।मन का राजा तो आत्मा है या आत्मा के समकक्ष कोई है, जो अनन्त प्रवृतियाँ रखता है।

वेद व्यास व गणेश के बीच महाभारत लिखने को लेकर जो अनुबंध हुआ वह हमें अब समझ में आता है।उसका मनोविज्ञान हमें अब समझ मे आता है। हमें एक दो अंतर्मुखी ऐसे भी देखे हैं जिनके बोलने की स्पीड इतनी तेज हो जाती है कि वे कम से कम समय में शब्दों को कह जाते हैं और सामने वाले को वह समझ में नहीं आता ।उन शब्दों को वही समझ सकता है जो उसी स्तर का हो। मन की स्पीड से स्थूल शरीर का चलना मुश्किल हो जाता है।इसलिए अंतर्मुखी होने वालों को निरन्तर योगाभ्यास व ध्यान की जरूरत होती ही है।आहार बिहार का भी ख्याल रखने की जरूरत होती है।शरीर में हल्कापन महसूस होना शुरू होता है।शरीर की भी स्पीड बढ़ती है। कुछ अपवादों को छोंड़ कर।


एक सूफी संत हुए हैं-जब्बार। मेडिटेशन करते करते वे इस दशा में पहुंच गए थे कि आम आदमी उनकी भाषा को समझ ही नहीं पाता था।वे इतनी तेज स्पीड में बोलते थे कि सामने वाले को अनर्गल, अनाप शनाप लगता था। लोगों ने उनकी भाषा को नाम दे दिया था- जिबरिश।

मेडिटेशन करते करते हम अंतर उस स्वतः से जुड़ते हैं जो निरन्तर, शाश्वत, अनन्त के द्वार में हमे प्रवेश कराता है। कभी कभी तो ऐसा लगता है अस्वस्थ शरीर में भी हम अस्वस्थता के प्रभावहीनता में जी जाते हैं।कभी जब हम निम्न बिंदु पर ऊर्जा को पाते हैं तो धरती पर अपने को असमर्थ पाते हैं।लेकिन अन्तर्मुख़िता हमें अनन्त से जोड़ कर ऐसा बना देती है कि आश्चर्य होता है,हमसे वो हो जाता है जिस पर ये दुनिया विश्वास नहीं करेगी। कंठ चक्र के ऊपर ब्रह्मांड जगत शुरू होता है, जहां किसी जीवित गुरु का साथ आवश्यक होता है। क्योंकि हमारे दिमाग की प्रवृत्ति सिर्फ चतुर्मुIखी है आत्मा की अनन्त मुखी। ऐसे में हम अपने कुछ मित्रों में शक्ति अहसास पर शारीरिक कम्पन, ऐंठन आदि में देखते हैं। किसी शोधकर्मी का कहना है कि बुद्ध की एक पगड़ी में एक हजार गांठे इस बात का प्रतीक हैं योग से हम सामान्य दशा से हजार गुना अपना समझ व चेतना का विस्तार कर सकते हैं।

कहावत है जहां न पहुंचा रवि वहां पहुंचा कवि। राजयोग मन का विज्ञान है ।मन ही हमें अनन्त से मिला सकता है।इस स्थूल शरीर की उतनी क्षमता कहाँ?हम असीमता को सीमितता से नापने की असफल कोशिस ही कर सकते है। हम तो ये भी कहेंगे कि धर्म, आध्यत्म, आत्मा, बुद्धि ,दिल को हम स्थूल क्रियाकलापों से स्वतंत्र  रूप से नहीं नाप सकते। हमने अनेक विकलांग, मूक ,अंतर्मुखी आदि देखे है जो समाज, संस्थाओं या तक कि उनके अपने परिवार की नजर में भी उपेक्षित होने के बाबजूद दिल दिमाग से ,अंतर से दिव्यता की ओर देखे हैं।किसी न किसी प्रतिभा से युक्त देखे गए हैं।



जब्बार सन्त को हम उस दशा में पहुंचा हुआ मानते थे जहां पर उन्हें वह गति प्राप्त थी जहां पर उनकी जुबान की गति शब्दो को काफी कम समय लेती थी ।जिसे आम आदमी समझ नहीं पाते थे।एक शब्द आम आदमी जितने समय में बोलता है, उस समय का हजारवां अंश को ये समाज समझना तो दूर पागलपन ही कहेगा।


#शेष





शुक्रवार, 29 मई 2020

बेईमान लोकतंत्र?अन्यथा फिर सरकारों की आड़ में पूंजीपति, जातिबल, मजहब बल, माफिया, ठेकेदार आदि क्यों खड़े:::अशोक बिंदु

लोकतन्त्र के घटक हैं-सामाजिक लोकतंत्र,आर्थिक लोकतंत्र,सभी समुदायों जातियों की सत्ता में भागीदारी, सभी समुदायों व जातियों की नौकरियों में भागीदारी, निरपेक्ष-सम्विधान प्रेमी व मानवता वादियों की सत्ता व नौकरियों में अलग से भागीदारी ! लोकतंत्र/जनतंत्र में नागरिक केंद्रित योजनाएं होनी चाहिए न कि पूंजीपतियों, विभिन्न विभागों, संस्थाओं केंद्रित।केन्द्रियों व राज्य सरकार की नीतियां प्रत्येक नागरिक व प्रत्येक परिवार से सीधे जुड़ी होनी चाहिए।विभिन्न विभागों, जन प्रतिनिधियों   ,संस्थाओं आदि का सम्बंध सिर्फ वार्ड, गांव, नगर, जनपद की सार्वजिनक व्यवस्थाओं के लिए होनी चाहिए।  जनहित के लिए केंद्र व राज्य सरकारों के द्वारा अरबों - खरबों रुपये आवंटित किए जाते हैं वे सरकारों से नागरिकों व परिवारों तक क्यों नहीं?नागरिकों व परिवारों की सेवाओं, व्यापार, कुटीर व लघु उद्योग,आर्थिक स्थितियों आदि को सीधे नागरिकों व परिवारों के द्वारा जनसेवा केंद्रों पर आवेदन के  साथ सरकार से सीधे नागरिकों व परिवारों को सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए।

वर्तमान में लॉक डाउन के समय अरबों रुपये सरकार के द्वारा आवंटित किए गए हैं लेकिन वह पूंजीपतियों, संस्थाओं, विभागों को दिए गए है।इससे आम आदमी आत्मनिर्भर, स्वाबलंबी होने को रहा। एक बार पूर्ब प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा था - परमाणु बम विस्फोटों से आम आदमी आत्मनिर्भर, स्वाबलम्बी नहीं हो जाता। व्यवस्थाएं व वातावरण ऐसा होना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक व परिवार आत्मनिर्भर व स्वबलम्बी हो।देश तव मजबूत होगा।सरकारों के पीछे जन प्रतिनिधियों के पीछे पूंजीपति नहीं, माफिया नहीं, ठेकेदार नहीं, जाति बल नहीं, मजहब बल नहीं, पुरोहित नहीं वरन नागरिक खड़ा होना चाहिए। परिवार खड़े होने चाहिए।तब देश में लोकतंत्र स्थापित होगा।



मंगलवार, 26 मई 2020

बदलाव को स्वीकार न करने वाला मनुष्य सिवा विश्व में कोई समस्या नहीं::अशोकबिन्दु

 विश्व स्वयं क्या है?उसकी अपनी क्या समस्या है?समस्या तो वह प्राणी है तो जो इंसान माना जाता है लेकिन इंसानियत है नहीं।
यदि कुछ वर्षों के लिए मनुष्य को निष्क्रिय कर दिया जाए तो विश्व की सभी समस्याएं हल। इंसान को स्वयं बदलने की जरूरत है।मनुष्य बदलेगा तो विश्व में सब बदलाव में होगा।बदलाव को स्वीकार न करने वाला व्यक्ति विश्व व विश्व में जी स्वतः है उसका दुश्मन है। विश्व सरकार व विश्व सम्विधान को समझने की जरूरत है।

हम बदलाव पर विश्वास रखते हैं।हम विकसित नहीं विकासशील हैं।हमारे व विश्व के अंदर कुछ है जो स्वतः है निरन्तर है.... उसके लिए वक्त देना महत्वपूर्ण है।वक्त जीवन का महत्वपूर्ण अंग है।वक्त हम जिसके साथ गुजरेंगे ,उसका ही वर्चस्व हम अपने साथ प्रभावित पायेगे ही ,भविष्य की पीढ़ियों व भविष्य के विश्व को भी प्रभावित करेंगे।हम जो सोंचते है, करते हैं, बोलते है उसका असर भविष्य को प्रभावित करता है। हम मेडिटेशन में इस बदलाव के साक्षी होने का प्रयत्न करते हैं। हम समझ व चेतना की जो समझ व स्तर रखते हैं, उससे आगे भी समझ व स्तर के अनन्त बिंदु हैं। आओ, हम अपने व विश्व के अंदर के स्वतः व निरन्तर को उसके ही स्तर पर होने दें।हम से सम्पर्क बनाए रखें।
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Yog Sadhak Sushil Ji
Nishant Das Parth
Priyank Kumar




शनिवार, 23 मई 2020

23 मई 1969 ई0 परमहंस महाप्रयाण चित्रकूट :: अशोकबिन्दु

यथार्थ गीता!! पुस्तक के साथ हमारी आध्यत्मिकता!!
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12.14pm!शनिवार!!
रोहिणी व्रत!
23मई2020ई0!

कुंडलिनी जागरण व सात शरीर,श्री अर्द्ध नारीश्वर अवधारणा, अनन्त की ओर पुस्तकों को पढ़ते पढ़ते ही हमने एक दशा प्राप्त की थी जो आध्यत्म के लिए आवश्यक है। लेकिन यथार्थ गीता के प्रति तो अलग ही कुछ है।  कुछ साल पहले जब ये #यथार्थगीता पुस्तक हाथ आयी थी तो हाथ आते आते हम रोमांचित हो उठे थे।बिना कुछ पढ़े, बिना खोले।पूरे शरीर  के रोएं खड़े हो गए थे। तब हम  इसे पढ़ कर सुनील वाजपेयी को वापस करना पड़ा था। लेकिन तभी से हमें इसकी तलाश थी।हालांकि कक्षा 5 से श्रीमद्भगवतगीता के अनेक भाष्य हम पढ़ चुके हैं।#ओशो के गीता भाष्य, #विनोवाभावे के गीता भाष्य के बाद सबसे अधिक हमें प्रभावित करने वाला भाष्य #यथार्थगीता के रूप में हममें बेहतरी लाया।

आज अभी हम फिर रोमांचित हो उठे। जब डाकिया हमें पैकिंग में ये पुस्तक दे गया।पैकिंग को खोले बिना ही हम अभी फिर रोमांचित हो गए।सब प्रभु मर्जी।

उप्र, इलाहाबाद के बिगहना, सिरसा से हमारे एक शुभेच्छु ने इसे हमें भेजा।उनको बहुत बहुत धन्यवाद!!!


अब से लगभग 13 वर्ष पूर्व जब हम मोहल्ला कायस्थान में थे।
एक छोटा सा भूखण्ड हम अब भी वहां रखते हैं।उन दिनों हमें महसूस होता था कि चित्रकूट से हमें कोई सन्त निर्देशित कर रहे हैं और हमें बुला रहे हैं। अब हमारी दृष्टि से धूल हट चुकी है।



"परमहंस आश्रम अनुसुइया, चित्रकूट"- !!!सत सत नमन!!! स्वेत  वस्त्रों में वह सन्त ......



आज 23 मई......


हम कुछ देर याद में रहकर आंख बंद कर बैठ गए।


अमोघ प्रिय अंनतम!! सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!!




शुक्रवार, 22 मई 2020

जो आदतों से दब कर अपनी निजता से दूर हो जाते है:भूपेंद्र योगी जी

डोपामिन उपवास (Dopamine fast) का प्रयोग उन लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है जो अपनी आदतों (एडिक्शन) के नीचे बिल्कुल दब गए हैं।
सच कहा जाए तो यह एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक प्रयोग है जिसे नए नाम से दुनिया के सामने लाया गया है।
डोपामिन उपवास "समत्व भाव" में रहने का एक प्रयोग है। स्वयं को पुनः प्राकृतिक अवस्था में लाने का एक प्रयोग है अथवा यह कह लें स्वयं को रीसेट करने का एक प्रयोग है। भीतर जितनी गड़बड़ियां हो रखी हैं उन्हें ठीक करने का एक प्रयोग है। यह एक प्रकार से डोपामिन को उत्तेजित करने वाले क्रियाकलापों से उपवास (डोपामिन फ्री डे) लेने का प्रयोग है।
दिनभर हमारे द्वारा किए जाने वाले कृत्यों से असामान्य हार्मोनल उतार - चढ़ाव होता है जिसके कारण भीतर बहुत असंतुलन पैदा हो जाता है। डोपामिन विशेष रूप से खुशी, उत्साह, आनंद एवं रोमांच को पैदा एवं इन भावों को संतुलित करने का कार्य करता है। लेकिन गलत दिनचर्या और आहार - विहार से सब गड़बड़ हो जाता है जिसके कारण जीवन में आप करना तो बहुत कुछ चाहते हैं परन्तु अपनी आदतों से विवश होकर दिन भर, सप्ताह भर या उम्रभर कुछ और ही करते रहते हैं।
जिन्हें भी उनकी आदतों ने पूरा जकड़ रखा है ऐसे लोगों के लिए, ऐसे बच्चों के लिए, ऐसे छात्र छात्राओं के लिए यह अभ्यास किसी वरदान के समान है।
डोपामिन उपवास ऐसे लोगों के लिए एक अद्भुत प्रयोग है ..
* जिनका संकल्प बल बहुत कमजोर है।
* जिनकी पूरी दिनचर्या अव्यवस्थित है।
* जिनका शरीर बहुत विषाक्त है ।
* जिनका शरीर अनेकानेक रोगों का घर बन चुका है।
* जो परिवार की, बच्चों की, काम की चिंता में घुले जा रहे हैं।
* जो मानसिक और भावनात्मक रूप से बहुत टूट चुके हैं।
* जो तनाव, अवसाद और अनिद्रा से जूझ रहे हैं।
* जिनका अपने काम पर ध्यान केंद्रित नहीं होता हैं।
* जिनकी यादाश्त बहुत कमजोर हो चुकी हैं।
* जो बहुत क्रोधी, चिड़चिड़े और विचलित हैं।
* जिनका आत्मविश्वास समाप्त हो चुका है।
* जो अपने भीतर हमेशा एक अपरिचित डर का अनुभव करते हैं।
* जिनके मस्तिष्क में विचारों का भयंकर शोर बना रहता है।
* जो लगातार बस भूत की यादों अथवा भविष्य की व्यर्थ योजनाओं में ही डूबे रहते हैं।
* जो अकेलेपन के शिकार हो गए हैं और जिन्हें दूसरे लोगों से डर लगता है।

साथ ही यह उन लोगों के लिए भी महत्वपूर्ण है जो स्वयं के जीवन का अवलोकन करना चाहते हैं एवं मूलभूत परिवर्तन करके जीवन को नई दिशा देना चाहते हैं।

•डोपामिन उपवास क्या है और इसके कितने चरण (लेवल) हैं?
जैसा कि नाम से पता चलता है कि यह एक शरीर के रासायनिक क्रियान्वयन एवं संतुलन ( हार्मोनल बैलेंस ) से सम्बन्धित अभ्यास है।
इस प्रयोग को हम प्रमुख रूप से तीन चरणों में कराते हैं, जो कि सामने वाले व्यक्ति की आयु, शारीरिक एवं मानसिक स्थिति और उद्देश्य को देखकर सुनिश्चित किया जाता है कि यह कितने दिन, कितने चरणों का अभ्यास करेंगे।
हालांकि सामान्य रूप से चौबीस घंटे का डोपामिन फास्ट लिया जाता है लेकिन इसके कुछ दुष्प्रभावों को देखते हुए उन्हें चरणों में करना उत्तम रहता है।
इन सभी चरणों का आरम्भ सदैव प्रातःकाल से ही होता है चाहे वह बारह, चौबीस अथवा छत्तीस घंटे वाले चरण क्यों न हों।
प्रथम चरण - बारह घंटे का होता है।
द्वितीय चरण - चौबीस घंटे का होता है।
तृतीय चरण- छत्तीस घंटे का होता है।
( आरम्भ प्रथम चरण से ही करना चाहिए।)

• इस डोपामिन उपवास में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय चरण में कब - कब, क्या - क्या खा - पी सकते हैं?
* पहला चरण:- डोपामिन उपवास के प्रथम चरण (लेवल) में "बारह घंटे" का समय निश्चित किया जाता है। जैसे सुबह छ: बजे से यह अभ्यास आरम्भ होगा तो शाम छ: बजे तक चलेगा इसमें पूरे दिन केवल जल, नारियल पानी, नींबू पानी अथवा बहुत आवश्यक होने पर फलों का रस लेते हैं। इस बीच आपको कुछ भी अन्य खाद्य अथवा पेय पदार्थ नहीं लेना है। प्रथम चरण का प्रयोग आप प्रत्येक सप्ताह में एक बार कर सकते हैं।
* द्वितीय चरण :- डोपामिन उपवास के द्वितीय चरण में "चौबीस घंटे" का समय निश्चित होता है। जैसे सुबह छ: बजे से लेकर अगले दिन सुबह छ: बजे तक । इसमें पूरे दिन आप जल,नारियल पानी, नींबू पानी, फलों का रस लेते हैं और बहुत भूख लगने पर सलाद खाते हैं जिसमें खीरा, ककड़ी, टमाटर, गाजर आदि सम्मिलित है। द्वितीय चरण का प्रयोग आप तीन सप्ताह में एक बार कर सकते हैं।
* तृतीय चरण:- डोपामिन उपवास के तृतीय चरण में "छत्तीस घंटे" का समय निश्चित होता है, यह सबसे कठिन चरण है और इसका अभ्यास पूर्व के दोनों चरणों के कुशलता पूर्वक अभ्यास संपन्न होने के बाद ही करना होता है। इसमें पहले बारह घण्टे में आपको वही सब पीना है जो आप प्रथम चरण के प्रयोग में लेते हैं। बारह घंटे के पश्चात रात्रि में आप हल्का सुपाच्य एक बार भोजन कर सकते हैं एवं फिर अगले दिन सुबह से शाम छ: बजे तक आप वही सब ले सकते हैं जो द्वितीय चरण के प्रयोग में लेते हैं जैसे तरल पदार्थ एवं सलाद। तृतीय चरण का प्रयोग आप छ: सप्ताह में एक बार कर सकते हैं।

• डोपामिन उपवास के नियम एवं सावधानियां :-

°क्या नहीं करना है-: डोपामिन उपवास के प्रयोग के दौरान किसी भी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप, कम्प्य़ूटर और टीवी आदि का प्रयोग नहीं करना है।
न संगीत, न कोई वीडियो गेम, न सोशल मीडिया का प्रयोग, न गिटार, न पुस्तकें पढ़ना, न पेंटिंग्स, न इस प्रकार की कोई अन्य गतिविधि।
बस अपातकाल के लिए फोन को चालू रख सकते हैं यदि बहुत ही आवश्यक हुआ तो ही अन्यथा फोन को दूर रखें तो अच्छा है। इंटरनेट का उपयोग बिल्कुल प्रतिबंधित रहेगा। दिनभर ऐसे कृत्यों को बिल्कुल नहीं करना जो आपको उत्तेजित करते हों इसलिए संगीत, नृत्य, गायन प्रतिबंधित है। आपको झूमने वाले और वर्तमान से दूर ले जाने वाले कोई भी कृत्य नहीं करना है।

° क्या करना है -: आप सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर अच्छे से सादे पानी से स्नान करें। सुबह ग्रीन टी ले सकते हैं यदि आवश्यक लगे तो अन्यथा गर्म पानी में थोड़ी हल्दी, तुलसी एवं शहद मिलाकर ले लें। सुबह योग के आसनों का, प्राणायाम का और ध्यान का अभ्यास करें। सुबह ताजी हवा में घूमने निकल जाएं।
पार्क में टहलें। स्वयं का अवलोकन करें। अपनी समस्याओं को समझें और उन्हें दूर करने के सम्बन्ध में चिंतन करें।
ध्यान के अन्य गहरे प्रयोग आप दिन भर में कर सकते हैं। बाग - बगीचा, खेत - खलिहान घूमने चले जाएं। अच्छी नींद लें। लोगों के बीच बैठें, बातें करें।
हां इस समय आपको अपने साथ केवल खाली कॉपी और पेन प्रयोग करने की अनुमति होगी। आप अपने वर्तमान के अनुभव, भविष्य के उद्देश्य एवं अन्य बातें लिख सकते हैं।

इस प्रयोग को कौन कर सकता है?:- यह प्रयोग सोलह वर्ष से ऊपर की आयु का कोई भी व्यक्ति कर सकता है। स्त्री - पुरुष सभी इस प्रयोग को कर सकते हैं। परंतु बच्चे एवं गंभीर रोग ग्रस्त व्यक्ति को विशेष मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।
जिन बच्चों को फोन, टीवी एवं इंटरनेट की बुरी लत लग गई है यदि सही मार्गदर्शन में रखकर उन बच्चों को विशेष सावधानी के साथ, लगातार परामर्श देते हुए यह प्रयोग कराएं तो शीघ्र ही वह सामान्य हो जायेगा।

• सारांश :- डोपामिन उपवास का मूल उद्देश्य हमारे भीतर आने वाले लगातार उतार - चढ़ाव को सम करना है। कम से कम सप्ताह में एक दिन ऐसा बिताना है जिसमें डोपामिन हार्मोन को उत्तेजित करने वाले सभी कृत्यों से मुक्त रहा जाए। न अति उत्साह और न ही गहरा अवसाद।
कुल मिलाकर इस प्रयोग के समय ऐसे जीना है जैसे आप कोई जंगल में काबिले में रह रहे हों जहां आधुनिकता की चकाचौंध नहीं है। न इंटरनेट, न सोशल मीडिया, न टीवी, न फोन और न ही कोई संगीत, नृत्य, पार्टी, न फास्ट फूड, न शॉपिंग और न ही अतिव्यस्त दिनचर्या आदि।
ज्यादातर पानी पीना है और फलों का रस । बाकी भोजन नहीं करना है। आवश्यक होने पर सलाद ले सकते हैं।
अच्छी बुरी किसी भी प्रकार का किसी और के द्वारा कुछ लिखा हुआ नहीं पढ़ना। कोई भी पुस्तक नहीं। अपने पास पानी, ग्रीन टी, जरूरी वस्त्र , एक कॉपी और पेन रख सकते हैं बाकी कुछ भी नहीं।
दिनभर बिल्कुल सम भाव में समय बिताना है, बस शांत और सौम्य अवस्था में रहना है।

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#भूपेंद्र

www.heartfulness.org/education

गुरुवार, 21 मई 2020

ये तिकोना आकार प्राकृतिक पहाड़ नहीं वरन एक पिरामिड है::रूसी वैज्ञानिकों की टीम(1999ई0)!

ये तिकोना आकार प्राकृतिक पहाड़ नहीं वरन एक पिरामिड है जिस पर बर्फ जमी रहती है-रूसी वैज्ञानिकों की एक टीम(1999)
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कैलाश पर्वत पर आज तक कोई क्यों नहीं चढ़ पाया है?
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हिंदू धर्म में कैलाश पर्वत का बहुत महत्व है, क्योंकि यह भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। लेकिन इसमें सोचने वाली बात ये है कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को अभी तक 7000 से ज्यादा लोग फतह कर चुके हैं, जिसकी ऊंचाई 8848 मीटर है, लेकिन कैलाश पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया, जबकि इसकी ऊंचाई एवरेस्ट से लगभग 2000 मीटर कम यानी 6638 मीटर है। यह अब तक रहस्य ही बना हुआ है।
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मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक पर्वतारोही ने अपनी किताब में लिखा था कि उसने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन इस पर्वत पर रहना असंभव था, क्योंकि वहां शरीर के बाल और नाखून तेजी से बढ़ने लगते हैं। इसके अलावा कैलाश पर्वत बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव भी है।
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कैलाश पर्वत पर कभी किसी के नहीं चढ़ पाने के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर शिव जी निवास करते हैं और इसीलिए कोई जीवित इंसान वहां ऊपर नहीं पहुंच सकता। मरने के बाद या वह जिसने कभी कोई पाप न किया हो, केवल वही कैलाश फतह कर सकता है।

कैलाश पर्वत - फोटो : Social media

ऐसा भी माना जाता है कि कैलाश पर्वत पर थोड़ा सा ऊपर चढ़ते ही व्यक्ति दिशाहीन हो जाता है। चूंकि बिना दिशा के चढ़ाई करना मतलब मौत को दावत देना है, इसीलिए कोई भी इंसान आज तक कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ पाया।
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सन 1999 में रूस के वैज्ञानिकों की टीम एक महीने तक माउंट कैलाश के नीचे रही और इसके आकार के बारे में शोध करती रही। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पहाड़ की तिकोने आकार की चोटी प्राकृतिक नहीं, बल्कि एक पिरामिड है जो बर्फ से ढका रहता है। माउंट कैलाश को "शिव पिरामिड" के नाम से भी जाना जाता है।
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जो भी इस पहाड़ को चढ़ने निकला, या तो मारा गया, या बिना चढ़े वापिस लौट आया।
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सन 2007 में रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव ने अपनी टीम के साथ माउंट कैलाश पर चढ़ने की कोशिश की। सर्गे ने अपना खुद का अनुभव बताते हुए कहा : 'कुछ दूर चढ़ने पर मेरी और पूरी टीम के सिर में भयंकर दर्द होने लगा। फिर हमारे पैरों ने जवाब दे दिया। मेरे जबड़े की मांसपेशियाँ खिंचने लगी, और जीभ जम गयी। मुँह से आवाज़ निकलना बंद हो गयी। चढ़ते हुए मुझे महसूस हुआ कि मैं इस पर्वत पर चढ़ने लायक नहीं हूँ। मैं फ़ौरन मुड़ कर उतरने लगा, तब जाकर मुझे आराम मिला।
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"कर्नल विल्सन ने भी कैलाश चढ़ने की कोशिश की थी। बताते हैं : "जैसे ही मुझे शिखर तक पहुँचने का थोड़ा-बहुत रास्ता दिखता, कि बर्फ़बारी शुरू हो जाती। और हर बार मुझे बेस कैम्प लौटना पड़ता। "चीनी सरकार ने फिर कुछ पर्वतारोहियों को कैलाश पर चढ़ने को कहा। मगर इस बार पूरी दुनिया ने चीन की इन हरकतों का इतना विरोध किया कि हार कर चीनी सरकार को इस पहाड़ पर चढ़ने से रोक लगानी पड़ी।कहते हैं जो भी इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश करता है, वो आगे नहीं चढ़ पाता, उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है।यहाँ की हवा में कुछ अलग बात है। आपके बाल और नाखून 2 दिन में ही इतने बढ़ जाते हैं, जितने 2 हफ्ते में बढ़ने चाहिए। शरीर मुरझाने लगता है। चेहरे पर बुढ़ापा दिखने लगता है।कैलाश पर चढ़ना कोई खेल नहीं

29,000 फ़ीट ऊँचा होने के बाद भी एवरेस्ट पर चढ़ना तकनीकी रूप से आसान है। मगर कैलाश पर्वत पर चढ़ने का कोई रास्ता नहीं है। चारों ओर खड़ी चट्टानों और हिमखंडों से बने कैलाश पर्वत तक पहुँचने का कोई रास्ता ही नहीं है। ऐसी मुश्किल चट्टानें चढ़ने में बड़े-से-बड़ा पर्वतारोही भी घुटने तक दे।हर साल लाखों लोग कैलाश पर्वत के चारों ओर परिक्रमा लगाने आते हैं। रास्ते में मानसरोवर झील के दर्शन भी करते हैं।लेकिन एक बात आज तक रहस्य बनी हुई है। अगर ये पहाड़ इतना जाना जाता है तो आज तक इस पर कोई चढ़ाई क्यों नहीं कर पाया।