गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

प्रकृति में विविधता के बीच एकता/अनेकता में एकता :: सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर/विश्व सरकार

प्रकृति में विविधता है। विविधता विरोध योग्य नहीं है।
इस विविधता के बीच एकता को महसूस किया जा सकता है।
लेकिन ये अहसास भेद, हिंसा, द्वेष आदि से नहीं अनुभव हो सकता।
सन 2014 से 2025 तक का समय मनुष्य समाज व विश्व के लिए महत्वपूर्ण है।
इस बीच कुछ लोग हाहाकार, कुछ लोग हिंसा व कुछ लोग एकता को महसूस करने वाले हैं।

जो बर्दाश्त कर होने का साक्षी होगा, वह शंकर से कम न होगा।
बतादें कि शंकर वह है जो कल्याण(शिव) के खातिर विष भी पीने को तैयार है।

इस लिए हम कहते रहे हैं- विश्व की समस्याओं का निदान अध्यात्म, मानवता व भावी विश्व सरकार से होगा।

पूरी दुनिया में जो कट्टरता उभर रही है। वह एकता महसूस करने वालों को धैर्यवान बना रही है।

ब्राह्मणत्व व क्षत्रियत्व धैर्य, सहनशीलता, संकल्प से जागता है।उतावलापन, खिन्नता, अशांति, हाहाकार, में नहीं।

अपनी आत्मा के अहसास को पकड़ चुके खामोश लोग ही धैर्य के साथ विश्व को बदलने वाले हैं।वही सर्व व्याप्त चेतना ,आत्माओं का साथ पा सकते है। बदले की भावना से अपनी जाति मजहब के बहाने  मानव कल्याण व विश्व शांति की ओर  नहीं बढ़ा जा सकता।


बुद्ध व ईसा के अनुसार हिंसा का पहला कदम उठाना खतरनाक है। कट्टरता कब तक खैर बनाएगी।

विविधता में एकता को महसूस करना आवश्यक है। जो अध्यात्म व मानवता से ही सम्भव है।


दलाई लामा भी कहते हैं-दुनिया के मुसलमानों  को भारत को जगत गुरु बनाना चाहिए।शायद मोहम्मद साहब ने भी कहा है-पूर्व के सन्तों का सम्मान करना। रसखान, रहीम,गुरुनानक आदि से दुनिया के मुसलमानों को प्रेरणा लेनी चाहिए। हर कोई को अपना जीवन जीने का अधिकार है।जिओ और जीने दो।।।आओ हम सब मिलकर अखण्ड भारत/दक्षेस सरकार व संयुक्त राष्ट्र के विस्तार/विश्व सरकार के लिए जिएं व विश्व बंधुत्व, मानवता को स्वीकार करें। मुसलमान भाई दुनिया के मुसलमानों व अल्पसंख्यक के प्रति हमदर्दी को विश्व बंधुत्व व मानवता में बदल दें। मुसलमान होना एक बेहतर घटना है अर्थात ईमान पर पक्का होना एक बेहतर घटना है।जिसको प्रकृति व ब्रह्म की नजर से जीना है न कि जाति, मजहब व बदले की भावना से।
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जय सनातन!!जय इस्लाम!!!जय हिंदुत्व(भारतीयता)!!!

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

आत्म केन्द्रण!!!स्वार्थपरिता!! खुद से खुदा तक!!!

आत्म केन्द्रण!!!स्वार्थ परिता!!खुद से खुदा तक!!!अशोकबिन्दु का आगाज!!
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गुरु व शिष्य दो शरीर एक आत्मा होते हैं।

अब शिष्य गुरु परम्परा के दर्शन हमें तो होते नहीं।एक दो अपवाद को छोड़ कर।गुरु व शिष्य तत्व है या कहें कि एक गुरुत्व से जुड़ चुका है दूसरा जुड़ने को लालायित है। एक महसूस करता है-मैं आत्मा है,एक महसूस करने की ओर है -मैं आत्मा हूँ।
विद्यार्थी जीवन को किसी ने कहा-ब्रह्मचर्य जीवन।जिसने ऐसा कहा-वे क्या मूर्ख थे??एक आपकी भक्ति है दूसरी मीरा आदि की भक्ति!मीरा की भक्ति ऐसी कि वे खुद कहती हैं-भक्ति में कुल मर्यादा व लोक मर्यादा का ख्याल ही नहीं रहता।धर्म में भी अपना कोई नहीं होता अधर्म में भी अपना कोई नहीं होता। हम24घण्टे खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे होते हैं।भावनाओं से,विचारों से,आचरण से।कर्तव्य व धर्म के नाम से भी। "अरे हम तो बाली बच्चों वाले हैं।हमें फुर्सत कहाँ....?!"--आदि कहने वाले भी जाने अनजाने अधर्म का ही पलड़ा भारी किए रहते हैं। "अरे, हमें फुर्सत ही नहीं अपने बच्चों को देखने की।सुबह सोते हुए छोड़ जाते हैं और वापसी में देर रात सोते हुए मिलते हैं।"-जीवन को आप किधर ले जा रहे हैं। न अपना जीवन जी रहे हैं। न ही  नई पीढ़ी को जीवन जीने दे रहे हैं।जीवन जीना तो दूर हम जीवन को महसूस ही नहीं कर रहे हैं।बस, वही रुपया, गाड़ी बंगला, सांसारिक चमक दमक!!जो नहीं प्राप्त है उसके लिए जिए जा रहे हैं।जो प्राप्त है उसे खोते जा रहे हैं। हम अपने वर्तमान अर्थात जीवन से काफी दूर होते है पास होकर भी।हम महसूस क्या करते हैं?रुपया पैसा, गाड़ी बंगला, सुंदर चेहरे,ऐंद्रिक मौज आदि.... बस। हमारा हमारा बचपन सन्तों व बुजुर्गो के बीच बीता ओर अब  बच्चों, प्राकृति व किताबों के बीच। जीवन को इनके करीब महसूस करते हैं। रुपया पैसा, गाड़ी, बंगला आदि में नहीं। मन व आत्मा हमारा व्यक्तित्व का निर्धारक है। घर में जब दीपक जलता है तो वह बाहर वाले भी देख लेते हैं। लेकिन निन्यानवे प्रतिशत को दिखता ही नहीं है। ये भूत योनि, पितर योनी के लोग होते है, देव योनि के भी नहीं।देव योनी के सहारे अपनी सांसारिक मागों को पूरा करना चाहते हैं।धर्म स्थलों  में लाइन लगा इस लिए खड़े हैं क्योंकि उन्हें  सांसारिक चाहते हैं  न कि आत्मा, परम् आत्मा से जुड़ाव। वे अपने हाड़ मास शरीर के लिए सारा जीवन गंवा देते हैं और कहते हैं, सोचते है-अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता।अपने को देखो बस। ये कहते कहते जीवन मृत्यु के पड़ाव पर आ जाता है लेकिन हाथ क्या लगता है।कुछ बुजुर्ग बताते थे, जो प्राप्त था वो खोता गया, जो प्राप्त नहीं था उसके लिए जिंदगी भर भागते रहे। वास्तव में सब कुछ पा कर भी अपने को नहीं जी पाया।बचपन से ही कोई अंदर बैठा हमें अहसास तो करता रहा लेकिन उस की न सुन जमाने की नहीं सुनता रहा। चरित्र को जमाने की नजर में जीता रहा लेकिन अपने अर्थात आत्मा परम् आत्मा की नजर में न जिया। हमारा एक शिष्य है-सुनील कुमार गंगवार।वह कहता है-इतना केंद्रित हो जाओ कि लोग क्या कहते हैं क्या करते है?इस पर ध्यान ही न जाए। हमने अनेक बार महसूस किया है यहाँ पर/दो शरीर एक आत्मा। आत्मा ...परम् आत्मा..... आत्मा सूरज की किरण है तो सूरज परम् आत्मा!!लहर यदि आत्मा है तो सागर परम् आत्मा!!!वहां सब एक है।आवाम---हम दो!!चारों ओर जो है/सब प्रकृति अंश व ब्रह्म अंश।।। विविधता सिर्फ प्रकृति में है या हमारे सूक्ष्म शरीर से हमारे संस्कारों के कारण।लेकिन जब हमारा सूक्ष्म जितना साफ होता जाएगा उतना ही आत्मा प्रकाशित होता जाएगा.. फिर वह परम् आत्मा ....ब्रह्म... ब्रह्म अर्थात जो फैला हुआ ...जो विस्तृत!!जिसके लिए चिंतन मनन आवश्यक।इसलिए किसी ने चिंतन मनन को हो स्वाध्याय माना है।।विद्यार्थी जीवन/अभ्यासी जीवन/प्रयत्न पन्थ का मतलब है- ब्रह्मचर्य जीवन। ज्ञान?प्रकाश दो तरह का है-आंतरिक व बाह्य। स्व/आत्मा/आत्मियता से जुड़े बिना ज्ञान अधूरा। यही कारण है कि देश के अंदर विज्ञान के छात्र तो  कम नहीं है ,शिक्षित कम नहीं है लेकिन बैज्ञानिक नहीं।
हम तो कहते आये हैं वर्तमान सामजिकता   मानवता, जीवन, आत्मियता आदि खिलखिला ने में असफल हो चुकी है।मुस्कुराने में असफल हो चुकी है। स्वार्थ भी अब नगेटिव हो चुका है।समाज भूल चुका है-स्व?आत्मा!!!कितना गिर चुका है।।कितना गिर चुका है?खुदा को भी शायद मूर्ख समझता है?जो हम कर रहे हैं वह खुदा नहीं देखता??जब सब खुदा ही करता है,तो तोड़ फोड़ क्यों?खुदा की बनाई दुनिया में अशांति व हिंसा क्यों??? हम इस भावना से ही जीवन की सुंदरता को देख सकते हैं कि हमारे अंदर ईश्वर का प्रकाश है, सभी के अंदर उसका प्रकाश है। उसी के अहसास से ही हम उसके विस्तार को पा सकते है। आत्मा से ही परम् आत्मा की ओर ,जीवन की पूर्णता को पा सकते हैं।।
www.akvashokbindu.blogspot.com
        

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

वे कभी सेक्युलर सपना नहीं देख सकते!!!वे तब तक सेक्युलर के नाम पर चल रहे हैं जब तक वे बहुमत में नहीं आते!!

समाज, देश व विश्व में कुछ लोग ऐसे होते रहे हैं,जिन्हें सबकी सुधि नहीं रही है।। उन्हें इससे मतलब नही होता कि सबको साथ लेकर आगे बढ़ने वाले हों।इससे मतलब नहीं कि समाज में कोई किसी कर्मकांड रीतिरिवाजों को मानने वाला हो, है तो सब खुदा का ही बने हुए, खुदा की बनाई हर चीज का सम्मान होना या करना उनका मकसद नहीं।वे गजबा हिन्द का सपना देखने वाले या वे जहां50 प्रतिशत से ज्यादा है,वहां देख लो वे अन्यों को कम आवादी वालों के साथ क्या सुलूक करते हैं?उन्हें सारी दुनिया में व8भिन्न स्थानों पर रहने वाले कम आवादी वालों पर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ कुछ नहीं करना।वे मजहबी हैं।मजहबी अन्य भी हो सकते है लेकिन... सबको लेकर चलने की बात कौन करता है??बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व  बंधुत्व आदि की बात किनके मंच पर से होती है।वे जहां जहां बहुमत में हैं,वहां कम आवादी वालों के साथ क्या हो रहा है??हम मोहम्मद साहब की उस घटना से प्रेरणा लेते हैं,कि हम पर कूड़ा फेंकने वाली औरत से भी हम घृणा न करें।गांधी की अहिँसा व हमारी अहिँसा में अंतर है!हमारी अहिँसा कहती है/सभी के अंदर ईश्वर की रोशनी है अतः किसी से घृणा न करो, किसी से नफरत न करो।।
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https://www.facebook.com/groups/1025404947641650/permalink/1396428563872618/

सबका साथ सबका विकास सबकी भागीदारी का मतलब जाति मजहब, मतलब के आधार पर नहीं!!

सबका साथ सबका विकास सबकी भागीदारी!!
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 मानव समाज, सत्ता व तन्त्र गड़बड़झाला हो गया है,अराजक होगया है।शायद ऐसा वैदिक काल से ही था, इसलिए वेदों को कहना पड़ा-मनुष्य बनो फिर आर्य/देव मानव बनो।हमें तो ये लगता है-अभी मनुष्य पशु मानव ही है।सुबह से शाम तक, शाम से सुबह तक हम आप सब वह करते आते हैं जो वास्तव में नहीं करना चाहिए। हर स्तर पर हमें इससे मतलब नहीं है कि क्या होना चाहिए, होने से मतलब नहीं है।हम जी कर रहे हैं-ठीक है।हम अपनी व जगत की पूर्णता (योग/आल/अल/all/आदि) के आधार पर कुछ बहु नहीं देखते।इसलिए आदिकाल से ही दुनिया आतंकवाद, असुरत्व,मनमानी, चापलूसी, लोभ लालच आदि व इसके लिए जाति, मजहब,अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, देशी विदेशी आदि के नाम पर विश्व व समाज को अशान्ति, अविश्वास ,हिंसा आदि में धकेलते रहते हैं।
हम प्रकृति अंश ब्रह्म अंश, प्रकृति अभियान/नियम /सुप्रबन्धन के आधार पर नहीं करते। ब्राह्मंड व जगत में सब कुछ नियम से है,चन्द तारे, जन्तु वनस्पति आदि सब नियम से हैं,सिर्फ मनुष्य की छोड़ कर।

  हमारा पूरा जीवन शिक्षा जगत में हो गया।जिनमे से 25 से वर्ष शिक्षण कार्य करते हो गए। हमने देखा है- अध्यापक, विद्यार्थी, अभिवावक, शिक्षा कमेटियों आदि के माध्यम से शिक्षा जगत, विद्यालय के तो सम्पर्क में है लेकिन मतलब अपनी सोंच से ही है।शैक्षिक मूल्यों से नहीं।उन्हें इससे मतलब नहीं क्या होना है?बस, जो हम चाहते हैं वह ठीक है।। कुर वाणी है-त्याग, नजरअंदाज करना वह जो हमेंव जगत को भविष्य में अराजक बनाने वाला है,दूसरे को कष्ट देने वाला है।

समाज, देश व विश्व में अनेक ऐसे हैं उन्हें सारी मनुष्यता, सारे विश्व से मतलब नहीं।सुर से सुरत्व से मतलब नहीं।वास्तव में धर्म व अध्यात्म से मतलब नहीं।ईश्वर से मतलब नहीं।सब,ढोंग!!!!जव सारी दुनिया सारे मनुष्य ईश्वर की देन है,तो भेद क्यों??सभी के अंदर ईश्वर की रोशनी मान कर सबका मन ही मन सम्मान नहीं। अहिंसा क्या है?यही अहिंसा है,मन मे किसी से भेद, द्वेष न रखना। हम जब तक इस दशा को प्राप्त नहीं हो जाते कि सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर तो ईश्वर के प्रेमी कैसे??

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

मूल्य आधारित शिक्षा की जरूरत!!

https://m.facebook.com/groups/126555337741836?view=permalink&id=963135787417116

मूल्य आधारित शिक्षा : यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र संघ का आगाज!!
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सन 2002 ई0 में यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र संघ ने मूल्य आधारित शिक्षा का प्रस्ताव पारित किया।जिसका अनुशरण अनेक देश कर चुके है।अफसोस भारत अभी ऐसा करने में असमर्थ रहा है।दक्षिण के कुछ राज्यों, दिल्ली व हिमाचल प्रदेश में इस पर काम चल रहा है।

हमें उम्मीद थी कि मोदी सरकार आएगी तो वह शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन करेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।।।

हार्टफुलनेस एजुकेशन ट्रस्ट इस पर तेजी से कार्य कर रहा है। जिससे अनेक राज्यों की सरकारी शिक्षा में भी परिवर्तन का दौर प्रारम्भ हुआ है।

#हार्टफुलनेस #माइंडफुलनेस #ब्राइटमाइंड आदि के नाम से ये ट्रस्ट कार्य कर रहा है। इसके अंतर्गत देश में 3000 से अधिक अध्यापकों को ट्रेंड किया जा चुका है।
हम सी बी एस सी को इस पर मान्यता के लिए फाइल लगा चुके है।अनेक राज्यों में सरकार के साथ मिल कर  इस पर कार्य चल रहा है।
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हार्टफुलनेस एजुकेशन ट्रस्ट!!

www.heartfulness.org/education

रविवार, 2 फ़रवरी 2020

कान्हां शांति वनम से::2फरबरी2020

https://m.facebook.com/groups/126555337741836?view=permalink&id=962346070829421







कान्हां शांति वनम, हैदराबाद!

हजरत क़िब्ला मौलवी अजमेर फ़ज़्ल अहमद खान साहब रायपुरी
 के शिष्य श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ उर्फ लाला जी महाराज की याद में शाहजहांपुर की धरती पर सन 1945 में बाबूजी महाराज द्वारा स्थापित श्री रामचंद्र मिशन का वैश्विक मुख्यालय कान्हा शांति वनम हैदराबाद जिसकी वर्तमान वैश्विक प्रमुख हैं कमलेश डी पटेल दाजी ।
पूरे विश्व भर में लगभग 130 देशों में जिसके आश्रम या सेंटर उपस्थित हैं ।
दुनिया में हार्टफुलनेस के नाम से अनेक संस्थाएं उपस्थित हैं ।
जिसका प्रमुख उद्देश्य है ह्रदय आधारित मेडिटेशन, हमारे अंदर उपस्थित दिव्य शक्तियों का विकास, विस्तार आदि।