गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

आत्म केन्द्रण!!!स्वार्थपरिता!! खुद से खुदा तक!!!

आत्म केन्द्रण!!!स्वार्थ परिता!!खुद से खुदा तक!!!अशोकबिन्दु का आगाज!!
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

गुरु व शिष्य दो शरीर एक आत्मा होते हैं।

अब शिष्य गुरु परम्परा के दर्शन हमें तो होते नहीं।एक दो अपवाद को छोड़ कर।गुरु व शिष्य तत्व है या कहें कि एक गुरुत्व से जुड़ चुका है दूसरा जुड़ने को लालायित है। एक महसूस करता है-मैं आत्मा है,एक महसूस करने की ओर है -मैं आत्मा हूँ।
विद्यार्थी जीवन को किसी ने कहा-ब्रह्मचर्य जीवन।जिसने ऐसा कहा-वे क्या मूर्ख थे??एक आपकी भक्ति है दूसरी मीरा आदि की भक्ति!मीरा की भक्ति ऐसी कि वे खुद कहती हैं-भक्ति में कुल मर्यादा व लोक मर्यादा का ख्याल ही नहीं रहता।धर्म में भी अपना कोई नहीं होता अधर्म में भी अपना कोई नहीं होता। हम24घण्टे खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे होते हैं।भावनाओं से,विचारों से,आचरण से।कर्तव्य व धर्म के नाम से भी। "अरे हम तो बाली बच्चों वाले हैं।हमें फुर्सत कहाँ....?!"--आदि कहने वाले भी जाने अनजाने अधर्म का ही पलड़ा भारी किए रहते हैं। "अरे, हमें फुर्सत ही नहीं अपने बच्चों को देखने की।सुबह सोते हुए छोड़ जाते हैं और वापसी में देर रात सोते हुए मिलते हैं।"-जीवन को आप किधर ले जा रहे हैं। न अपना जीवन जी रहे हैं। न ही  नई पीढ़ी को जीवन जीने दे रहे हैं।जीवन जीना तो दूर हम जीवन को महसूस ही नहीं कर रहे हैं।बस, वही रुपया, गाड़ी बंगला, सांसारिक चमक दमक!!जो नहीं प्राप्त है उसके लिए जिए जा रहे हैं।जो प्राप्त है उसे खोते जा रहे हैं। हम अपने वर्तमान अर्थात जीवन से काफी दूर होते है पास होकर भी।हम महसूस क्या करते हैं?रुपया पैसा, गाड़ी बंगला, सुंदर चेहरे,ऐंद्रिक मौज आदि.... बस। हमारा हमारा बचपन सन्तों व बुजुर्गो के बीच बीता ओर अब  बच्चों, प्राकृति व किताबों के बीच। जीवन को इनके करीब महसूस करते हैं। रुपया पैसा, गाड़ी, बंगला आदि में नहीं। मन व आत्मा हमारा व्यक्तित्व का निर्धारक है। घर में जब दीपक जलता है तो वह बाहर वाले भी देख लेते हैं। लेकिन निन्यानवे प्रतिशत को दिखता ही नहीं है। ये भूत योनि, पितर योनी के लोग होते है, देव योनि के भी नहीं।देव योनी के सहारे अपनी सांसारिक मागों को पूरा करना चाहते हैं।धर्म स्थलों  में लाइन लगा इस लिए खड़े हैं क्योंकि उन्हें  सांसारिक चाहते हैं  न कि आत्मा, परम् आत्मा से जुड़ाव। वे अपने हाड़ मास शरीर के लिए सारा जीवन गंवा देते हैं और कहते हैं, सोचते है-अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता।अपने को देखो बस। ये कहते कहते जीवन मृत्यु के पड़ाव पर आ जाता है लेकिन हाथ क्या लगता है।कुछ बुजुर्ग बताते थे, जो प्राप्त था वो खोता गया, जो प्राप्त नहीं था उसके लिए जिंदगी भर भागते रहे। वास्तव में सब कुछ पा कर भी अपने को नहीं जी पाया।बचपन से ही कोई अंदर बैठा हमें अहसास तो करता रहा लेकिन उस की न सुन जमाने की नहीं सुनता रहा। चरित्र को जमाने की नजर में जीता रहा लेकिन अपने अर्थात आत्मा परम् आत्मा की नजर में न जिया। हमारा एक शिष्य है-सुनील कुमार गंगवार।वह कहता है-इतना केंद्रित हो जाओ कि लोग क्या कहते हैं क्या करते है?इस पर ध्यान ही न जाए। हमने अनेक बार महसूस किया है यहाँ पर/दो शरीर एक आत्मा। आत्मा ...परम् आत्मा..... आत्मा सूरज की किरण है तो सूरज परम् आत्मा!!लहर यदि आत्मा है तो सागर परम् आत्मा!!!वहां सब एक है।आवाम---हम दो!!चारों ओर जो है/सब प्रकृति अंश व ब्रह्म अंश।।। विविधता सिर्फ प्रकृति में है या हमारे सूक्ष्म शरीर से हमारे संस्कारों के कारण।लेकिन जब हमारा सूक्ष्म जितना साफ होता जाएगा उतना ही आत्मा प्रकाशित होता जाएगा.. फिर वह परम् आत्मा ....ब्रह्म... ब्रह्म अर्थात जो फैला हुआ ...जो विस्तृत!!जिसके लिए चिंतन मनन आवश्यक।इसलिए किसी ने चिंतन मनन को हो स्वाध्याय माना है।।विद्यार्थी जीवन/अभ्यासी जीवन/प्रयत्न पन्थ का मतलब है- ब्रह्मचर्य जीवन। ज्ञान?प्रकाश दो तरह का है-आंतरिक व बाह्य। स्व/आत्मा/आत्मियता से जुड़े बिना ज्ञान अधूरा। यही कारण है कि देश के अंदर विज्ञान के छात्र तो  कम नहीं है ,शिक्षित कम नहीं है लेकिन बैज्ञानिक नहीं।
हम तो कहते आये हैं वर्तमान सामजिकता   मानवता, जीवन, आत्मियता आदि खिलखिला ने में असफल हो चुकी है।मुस्कुराने में असफल हो चुकी है। स्वार्थ भी अब नगेटिव हो चुका है।समाज भूल चुका है-स्व?आत्मा!!!कितना गिर चुका है।।कितना गिर चुका है?खुदा को भी शायद मूर्ख समझता है?जो हम कर रहे हैं वह खुदा नहीं देखता??जब सब खुदा ही करता है,तो तोड़ फोड़ क्यों?खुदा की बनाई दुनिया में अशांति व हिंसा क्यों??? हम इस भावना से ही जीवन की सुंदरता को देख सकते हैं कि हमारे अंदर ईश्वर का प्रकाश है, सभी के अंदर उसका प्रकाश है। उसी के अहसास से ही हम उसके विस्तार को पा सकते है। आत्मा से ही परम् आत्मा की ओर ,जीवन की पूर्णता को पा सकते हैं।।
www.akvashokbindu.blogspot.com
        

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें