मंगलवार, 29 जून 2021

हमारे पूर्वजों में विश्व बंधुत्व की भावना::अशोकबिन्दु

 #वन्दे_मातृभूमि ! ---जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण करके द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की थी तो उस समय पोलैंड के सैनिको ने अपने 500 महिलाओ और करीब 200 बच्चों को एक शीप में बैठाकर समुद्र में छोड़ दिया और कैप्टन से कहा की इन्हें किसी भी देश में ले जाओ,जहाँ इन्हें शरण मिल सके अगर जिन्दगी रही हम बचे रहे या ये बचे रहे तो दुबारा मिलेंगे। पांच सौ शरणार्थी पोलिस महिलाओ और दो सौ बच्चो से भरा वो जहाज ईरान के सिराफ़ बंदरगाह पहुंचा, वहां किसी को शरण क्या उतरने की अनुमति तक नही मिली,फिर सेशेल्स में भी नही मिली, फिर अदन में भी अनुमति नही मिली।अंत में समुद्र में भटकता-भटकता वो जहाज गुजरात के जामनगर के तट पर आया। जामनगर के तत्कालीन महाराजा "जाम साहब दिग्विजय सिंह" ने न सिर्फ पांच सौ महिलाओ बच्चो के लिए अपना एक राजमहल जिसे हवामहल कहते है वो रहने के लिए दिया बल्कि अपनी रियासत में बालाचढ़ी में सैनिक स्कूल में उन बच्चों की पढाई लिखाई की व्यस्था की।ये शरणार्थी जामनगर में कुल नौ साल रहे। उन्ही शरणार्थी बच्चो में से एक बच्चा बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना आज भी हर साल उन शरणार्थीयो के वंशज जामनगर आते है और अपने पूर्वजों को याद करते है। पोलैंड की राजधानी वारसा में कई सडकों का नाम महराजा जाम साहब के नाम पर है,उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनायें चलती है।हर साल पोलैंड के अखबारों में महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह के बारे में आर्टिकल छपता है। प्राचीन काल से भारत,वसुधैव कुटुम्बकम,सहिष्णुता का पाठ दुनिया को पढ़ाते आया है और आज कल के नवसिखिये नेता आदि लोग,भारत की सहिष्णुता पर प्रश्न चिह्न लगाते फिरते हैं!! जय #जननी ! जय #भारतभूमि !!


सोमवार, 28 जून 2021

दक्षिण गोलार्ध का अतीत एक ही ::अशोकबिन्दु

 एक तथ्य!!#पुरातत्व दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण भारत, जावा, सुमित्रा, इंडोनेशिया आदि की धरती कभी करीब करीब थी ,जिसके मूल निवासी एक ही थे। हम आप से कहते रहे हैं कि हम विश्व की तमाम सभ्यताओं को अलग अलग नजर नहीं देखते।यदि भाषा, रीतिरिवाज, खानपान को नजरअंदाज कर दें। आत्म केंद्रित स्थिति में अध्ययन से हमें इन क्षेत्रों के कबीलों, चरवाहों, पुरातत्विक तथ्यों की सूक्ष्मता की जड़ एक ही दिखती है। इसके लिए संगम साहित्य का अध्ययन काफी मददगार है। दक्षिण अमेरिका में मिले अवशेषों में भारतीयता के लक्षण मिलते है। अमेरिका में सूर्य मंदिर के अवशेष मिलना, एक जंगल के नीचे तहखाने में हनुमान जी जैसी आकृति व मूर्ति मिलना, मूलनिवासियों में समानताएं, संगम साहित्य में माया सुर, मायन का जिक्र जो व उसके वंशज अमेरिका चले गए थे। रावण(र-अवन) की मृत्यु के बाद कुछ वर्ष लंका में शासन करने के बाद विभीषण भी अपने कबीले के साथ पश्चिम में चला गया था। दक्षिण अफ्रीका में सोमाली, पम्पा, पम्पाज आदि भारतिय मुलता के अवशेष मिलते हैं। जहां एक ओर दक्षिणी गोलार्ध में दैत्य, असुर, राक्षस, रावण(रा अवन/ रा यवन) वंशज आदि के अबशेष मिलते हैं।डी एन ए ,आनुवंशिकी जांचों में भी चौकाने वाले रहस्य उजागर होते हैं जो भारतीय नस्लों को उजागर करते हैं। 20 साल पहले से ही हम कश्मीर के मूल निवासी व युरोशलम के मूल निबसियों के महीन, सूक्ष्म अध्ययन में एकरूपता का आभास होता है।जब आगे और अध्ययन किया तो पता चला कि ईसा मसीह के समय भी कश्मीर व युरोशलम के लोग यहां वहां आते जाते थे।कश्मीर में इसके पुरातत्विक तथ्य भी मिले हैं। कश्मीर का पहले नाम था-कश्यप मीर। गुजरात राजस्थान में कुछ यवन,अरब (ओर्ब) के अबशेष मिले हैं।बतातें हैं ओर्ब वहां के एक प्रतापी राजा थे जो आचार्य शुक्र के पौत्र थे।उनका एक नाम काव्य(काबा) भी मिलता है। #शेष


गुरुवार, 17 जून 2021

18,19,20 व 21जून योग दिवस की याद में::अशोकबिन्दु

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मंगलवार, 15 जून 2021

सर्वव्यापकता व धर्मस्थलवाद और सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर की दशा::अशोकबिन्दु

16जून..... 16 जून 1925 - देशबंधु चितरंजन दास - भारतीय स्वाधीनता सेनानी और राजनितिज्ञ एवं नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के राजनैतिक गुरु का देहांत। 16 जून 1606- जहाँगीर ने गुरु अर्जुन देव को लाहौर (पाकिस्तान) में भयंकर यातना देकर मारवा डाला।



हम आज कहना चाहेंगे कि-






जनतंत्र में भी यही भाव जागता है- सागर में कुम्भ कुंभ में सागर!
ऐसे में कौन दुश्मन कौन मित्र?कौन अपना कौन पराया?!

जब बसुधैव कुटुम्बकम.... विश्वन्धुत्व ...... सर्वेभवन्तु ....का भाव तो किससे?द्वेष किससे भेद?! कैसी हिंसा?! सबका अपना अपना स्तर, सबके अंदर चेतना व समझ का स्तर व बिंदु अलग अलग।सबकी ऊर्जा अलग अलग चक्र पर। ऐसे में तन्त्र कैसा खड़ा होना चाहिए?शासन कैसा खड़ा होना चाहिए?


सभी के अंदर दिव्यता की सम्भावनाएं छिपी हैं, उसको अवसर कैसे मिलें। किसी ने कहा है-यदि उपदेश, आदेश आदि महत्वपूर्ण होते तो न जाने कब की दुनिया स्वर्ग हो चुकी होती।


महात्मा गांधी ने कहा था-वातावरण ऐसा होना चाहिए जिसमें कोई गुंडा भी मनमानी न कर सके।

भक्ति, ईश्वर के नाम पर क्या क्या चल रहा है? सर्वव्यापकता, सार्वभौमिकता का मतलब क्या है?धर्मस्थलवाद का।मतलब है कि हम सर्वव्यापकता, सार्वभौमिकता आदि को महत्व नहीं देते।आत्मा, परम् आत्मा के गुणों से कोई मतलब नहीं रखना चाहते। 

मूर्ति व्यबस्था को अभी तक हम समझ नहीं पाए हैं।

प्रकृति अभियान में स्वतः  प्राण प्रतिष्ठित जीवन्त मूर्तियों/जीव जंतुओं, मनुष्यों को प्राण प्रतिष्ठा अर्थात उनमें उपस्थित दिव्यता को अवसर नहीं।

ऐसे में जनतंत्र भी पाखण्ड बन गया है।

" वर्तमान में कोई भी दल व नेता जन हित में नहीं है।" जनतंत्र का मतलब क्या है? जनता का शासन!! लेकिन अभी वास्तव में जनता का शासन नहीं है। जनसमूह, जन भीड़ का शासन रहता है। जब जनतंत्र पैदा भी नहीं हुआ था, प्लेटो ने कह दिया था कि जनतंत्र भीड़ तन्त्र में बदल जाता है। हम अभी देश में जनतंत्र नहीं मानते। जनतंत्र में तो/'सागर में कुंभ कुंभ में सागर'-का भाव होना चाहिए। एक व्यक्ति हो सब व्यक्ति हों-देश हित कानून व्यवस्था सर्वोपरि होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। प्रत्येक क्षेत्र में कुछ जातियों, मजहब की चलती है। जिसमें माफिया, दबंग पल्लवित पोषित होता है। सबका सम्मान जिसमें सुनियोजित नहीं होता। गांव/वार्ड का गुंडा, दबंग, अपराधी आदि किसी न किसी नेता या दल का खास होता है। न सपा न बसपा और न भाजपा आम जनता बनाओ अपनी ही सत्ता... जय किसान-मजदूर-आदिवासी-दलित-छात्र-व्यापारियों की सत्ता... क्षत्रिय ही विभिन्न पदों पर बैठने का हकदार अर्थात जो साहस के साथ जनतंत्र या जनता के हित मे,समाज सेवा में जीता हो। #जनतंत्र


सोमवार, 14 जून 2021

महाभारत युद्ध के प्रभाव से विश्व अब भी नहीं उबर पाया है.....और तुर्क और मंगोल !?::#अशोकबिन्दु

 महाभारत युद्ध के प्रभाव से विश्व अब भी नहीं उबर पाया है.....और तुर्क और मंगोल !?::#अशोकबिन्दु


---------------------------------------------------- महाभारत युद्ध के बाद विश्व में अवन/यवन और मंगोलों ने विश्व को प्रभावित किया है। ईसा पूर्व 2000 हजरत इब्राहिम में धर्म उत्पन्न हुआ, आकाशवाणी,कुर्बानी, (कुल)वाणी,कुर वाणी पैदा हुई । जिस पर उन्होंने अपनी पकड़ बनाई। लेकिन उन्हें इस संसार में काफी कुछ झेलना पड़ा । 


 कृष्ण सागर इधर कृष्णा नदी के तट, भूमध्य सागर के क्षेत्र यवनों के लिए महत्वपूर्ण थे। मंगोलों के लिए उत्तर में बैकाल झील का क्षेत्र महत्वपूर्ण हुआ। यह भी पराए न थे। हालात ऐसे बन गए कि पराए हो गए । सभी के पिता कश्यप ऋषि ही हैं।


 ' आना तो लिया '-का इतिहास क्या है? जिसे आजकल तुर्किस्तान कहा जाता है। लगभग 1700 पूर्व में एशिया माइनर ( तुर्किस्तान) से आय हिट-आ-इटस नामक आक्रमणकारियों ने बाबुल साम्राज्य अर्थात इराक मेसोपोटामिया सभ्यता नष्ट भ्रष्ट कर दी थी। हिट-आ-इट्स के साथ-साथ उस वक्त हाइकसोस खानाबदोश आक्रमणकारी हिट- आ-इटस तो तुर्की थे लेकिन हाइकसोस...?! हाइकसोस खानाबदोशों ने मिस्र सभ्यता को नष्ट करने की कोशिश की थी। लगभग 1200 ई0पु0 में आना तो लिया क्षेत्र में यवनों का प्रभाव हुआ । कृष्ण एवन अर्थात काल यवन जिनका प्रसिद्ध ब्राह्मण शासक था। तुर्वस पुत्र 'भोज यवन'-के वंशज थे-यवन।तुर्वसु ययाति का पुत्र था। इस समय भी पश्चिम में तुर्क महत्वपूर्ण हैं।


कट्टरता कहाँ नहीं है? नगेटिव पॉजीटिव कहाँ नहीं है? लेकिन तब भी संघर्षों के बीच,जमाने के अंधेरों के बीच एक रोशनी होती रही है।'पवित्र रोमन साम्राज्य'-की जड़ में भारतीय आर्यत्व की सिंचाई हैं।दुनिया को तमाम सभ्यताओं को ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि पर चाहें अलग अलग कर देखा जाता हो लेकिन हम अलग अलग कर उसे नहीं देखते।


                   सन 1388ई0...?!
                   सन 1388ई0! 
                  बुखारा नगर, तुर्किस्तान!! 
                 ख्वाजा बहा-अलाद्दीन ने जब अपनी देह छोंड़ दी तो अनेक अंतर्मुखी, उदार/नम्र, शन्ति प्रिय व्यक्ति इकट्ठे हो गए। वह कौन था? जब वह अपने हाड मास शरीर सहित इस जगत में था तो कट्टरपंथी उसके खिलाफ थे । आज जगत की नजर में ही वह अपना शरीर छोड़ चुका था लेकिन वह तो इससे 30 साल पहले ही अपने शरीर को लाश की भांति बना चुका था । इस शरीर के मोह से मुक्त होकर अंदरूनी रूहानी शरीर का गवाह हो चुका था। उसके बाबा के समय में अर्थात पिता के पिता के समय में ' पाक पाटन के आश्रम'- में एक फकीर से खानदान का संपर्क हुआ था।हजरत ख्वाजा फरीदुद्दीन गंजशंकर के वाणीयों को जाना था। 


       'पाक पटन का आश्रम'-हजरत ख्वाजा फरीददुद्दीन गंज शंकर ने स्थापित किया था।सुना जाता है जिन्होंने अपनी देह सन 1265 या 1266ई0 में त्याग दी थी।जिनका वंशज सम्बंध काबुल के बादशाह फर्रुख शाह से था। वे 18वर्ष की अवस्था में मुल्तान आकर के ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी से मिले।और 'चिश्ती सिलसिला'- में उनसे दीक्षा प्राप्त की। जब गुरु नानक देव जी दीपाल पुर से 'पाक पाटन'-पहुंचे थे.... 



 ** सतनाम श्री वाहेगुरु जी ** 


     मेरे सच्चे पातशाह .... हम पर मेहर तू कर दे, 
     अपने बच्चों पर तू अपनी दया भरी नज़र यु कर दे, 
     हम नादान और अनजान हैं इस ज़िन्दगी के सफ़र से, 
    बस तू अपनी रेहमत की हम पर बौछार कर दे ।। 

      ।सतनाम श्री वाहेगुरु। 


         शेख़ ब्रह्मजी ••••• 


      श्री गुरू नानक देव जी दीपालपुर से पाकपटन पहुँचे। वहाँ पर सूफी फ़कीर बाबा फ़रीद जी, जो बारहवीं शताब्दी में हुए हैं, उनका आश्रम था। उन दिनों उनकी गद्दी पर उनके ग्यारहवें उत्तराधिकारी शेख़-ब्रह्म जी बिराजमान थे। गुरुदेव ने नगर की चौपाल में भाई मरदाना जी को कीर्तन प्रारम्भ करने को कहा। कीर्तन की मधुरता के कारण बहुत से श्रोतागण इकट्ठे हो गए। गुरुदेव ने शब्द उच्चारण किया: 


      आपे पटी कलम आपि उपरि लेखु भि तूं ।। 
      एको कहीए नानका दूजा काहे कूं ।। राग मलार, अंग 1291

 अर्थ: हे प्रभू तूँ आप ही पट्टी है, आप ही कलम है, पट्टी के ऊपर सिफत-सलाह का लेख भी तूँ ही है। हे नानक सिफत-सलाह करने, करवाने वाला तो केवल परमात्मा ही है और कोई कैसे हो सकता है (सिफत-सलाह यानि परमात्मा की तारीफ के शब्द या बाणी) 


     भीड़ को देखकर शेख ब्रह्म जी का एक मुरीद भी वहाँ पहुँच गया। उसने गुरुदेव के कलाम को सुनकर, समझने और विचारने लगा कि यह महापुरुष कोई अनुभवी ज्ञानी है। इनकी बाणी का भी तत्वसार उनके प्रथम मुरशद फ़रीद जी की बाणी से मिलता है, कि प्रभु केवल एक है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। जहां-तहां सब कुछ उसीका प्रसार है। जब वह वापिस आश्रम में पहुँचा तो उसने यह बात शेख-ब्रह्म जी को बताई कि उनके नगर में कोई पूर्ण-पुरुष आए हुए हैं जो कि गाकर अपना कलाम पढ़ते हैं, जिसका भावार्थ अपने मुरशद फरीद जी के कलाम से मेल खाता है। यह जानकारी पाते ही शेख बह्म जी रह नहीं पाए, वह स्वयँ दीदार करने की इच्छा लेकर आश्रम से नगर में पहुँचे। गुरुदेव द्वारा गायन किया गया कलाम उन्होंने बहुत ध्यान से सुना और बहुत प्रसन्न हुए तथा गुरुदेव से अपनी शँकाओं का समाधन पाने के लिए कुछ प्रश्न करने लगे।

     प्रश्न: इस मानव समाज में बुद्धिजीवी कौन-कौन हैं ? 
    गुरुदेव जी ने उत्तर दिया: जो व्यक्ति मन से त्यागी हो परन्तु आवश्यकता अनुसार वस्तुओं का भोग करे।
      दूसरा प्रश्न था: सबसे बडा व्यक्ति कौन है ? 
      गुरुदेव ने उत्तर दिया: जो सुख-दुख में एक सम रहे कभी भी विचलित न हो।
      उन का अगला प्रश्न था: सबसे समृद्धि प्राप्त कौन व्यक्ति है ?
      इस के उत्तर में गुरुदेव ने कहा: कि वह व्यक्ति जो तृष्णाओं पर विजय प्राप्त करके सन्तोषी जीवन व्यतीत करे। 
      उनका अन्तिम प्रश्न था: ‘दीन-दुखी कौन है ?’ 
      इसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा: जो आशा और तृष्णा की पूर्ति के लिए दर-दर भटके। 



        तत्पश्चात् गुरुदेव से शेख ब्रह्म जी के अनुयायी कमाल ने प्रश्न किया: कि हमें सम्मान किस युक्ति से मिल सकता है ? 

       तो गुरुदेव ने उत्तर दिया: दीन-दुखियों की निष्काम सेवा करने से आदर मान प्राप्त होगा। 

       उन का दूसरा प्रश्न था: हम सबके मित्र किस प्रकार बन सकते है ?

       उत्तर में गुरुदेव ने कहा: अभिमान त्यागकर, मीठी बाणी बोलो। 


       गुरुदेव कुछ दिन शेख ब्रह्म जी के अनुरोध पर उनके पास पाकपटन में रहे। गुरुदेव वहाँ प्रतिदिन सुबह-शाम कीर्तन करते, अपनी बाणी उनको सुनाते तथा शेख फरीद जी की बाणी उनसे सुनते। गुरुदेव ने इस प्रकार बाणी का आदान-प्रदान किया तथा वहाँ से शेख़ फ़रीद जी की बाणी सँग्रह करके अपनी पोथी में सँकलित की। 

   विदा करते समय शेख़ ब्रह्म जी ने गुरुदेव से प्रार्थना की, कि मुझे ऐसी कैंची प्रदान करें जिससे मेरा आवागमन का रस्सा कट जाए। 

    इस के उत्तर में गुरुदेव ने कहा सच की कैंची सारे बन्धन काट देती है।


            सच की काती सचु सभ सारु ।। 
            घाड़त तिस की उपर अपार ।। राग रामकली, अंग 956

 अर्थ: अगर प्रभू के नाम की कैंची या छूरी हो और प्रभू का नाम का ही उसमें सारा का सारा लोहा हो तो उस छूरी या कैंची की बनावट बहुत सुन्दर होती है।



       ......आखिर हमारी उन्नति क्या है?जगत को अमीरी...?!जाति, मजहब, कर्मकांड, रीतिरिवाज आदि में अमीरी...?!औऱ उस अमीरी में क्या फर्क है?एक फकीर की अमीरी में क्या फर्क है?

इस समय हम भूमध्य सागर, कृष्ण सागर, कश्यप सागर तटीय क्षेत्रों के कबीलों का अध्ययन कर रहे हैं। हम बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि के भाव में जब चिंतन शुरू किए तो पुराने तथ्यों के आधार पर हम एकत्व की भावना, मानवता में और भी पहुँचे हैं।वैसे भी अध्यात्म में एक दशा होती है जो हमें -सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर, विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम आदि भाव की दशा में ले जाती है।दिमागी, तर्क की दशा में नहीं वरन मानसिकता दशा,हालातों में,आभास में, अहसास में। एक वक्त था जब पूरा विश्व ही भारत था। तर्क में तर+क क्या है? पप्राचीन इतिहास में एक शब्द मिलता है, यवन या अवन।उस वक्त भी जब यहूदी, पारसी पन्थ भी नहीं थे, हिन्दू शब्द भी न था।अनेक मनुवंशी राजाओं के दरबार में भी यवन के होने का जिक्र मिलता है।सिंधु के उस पार के सभी मनुष्यों को यवन ही कहा गया।यूरोप हो या अरब(और्ब)....उनको यवन कहा गया।एक शब्द म्लेच्छ भी मिलता है।कश्यप ऋषि की तपस्या स्थली काकेकस पर्वत माना जाता है।कैस्पियन सागर को कश्यप सागर। ब्राह्मणों ने भारत में कहीं शासन नहीं किया है।कश्यप मीर(कश्मीर),सिंधु के उस पार ब्राह्मणों के शासन का जिक्र मिलता है।'पवित्र रोम राज्य'- के पीछे भी ब्राह्मण राज्य की अवधारणा मिलती है।प्रियव्रत का एक कबीला वहां जाकर बसा था।प्राचीन रोम भाषा, लेटिन भाषा और यहां कुमायूं (कूर्माचल का बिगड़ा रूप) भाषा मे अनेक शब्द एक ही हैं। वहां का पुरातत्व आर्यों के इतिहास की ओर इंगित करता है। ययाति के पुत्र थे तुर्बसु।जिससे ही बना तुर् +बसु.... बसु कौन होते थे?पैराणिक कथाओं में स्पष्ट होता है।उत्तानपाद पुत्र तपस्या में सफलता के बाद बसु हो गये थे।जो ब्रह्मांड में भी अपना नियंत्रण प्राप्त कर चुके थे।और उन्हें ध्रुव की पदवी मिली थी । योग का अंतिम आठवाँ अंग-#समाधि ,जिसमें प्रवेश के बाद व्यक्ति अपने क्षेत्र में होने वाली सूक्ष्म घटनाओं के मध्यम से स्थूल घटनाओं में भी नियंत्रण का विधाता से निर्देश व क्षमता पाता है लेकिन इसका आभास समाज सामान्य व सांसारिक व्यक्ति नहीं पाते। धमक शब्द में धम व क की क्या स्थिति है? चालक, पालक, पाठक आदि शब्दों में 'क'-का क्या मतलब है? अश्व में क जोड़ अश्वक हो जाता है।अश्वक का तब अर्थ हो जाता है-बुरा घोड़ा। कोई शब्द भी अनेक अर्थ व अनेक स्थितियां रखता है। स्थूल, सूक्ष्म व कारण भी...?!अनेक दशाएं भी हैं। हिंदी वर्णमाला का पहला व्यंजन, जो भाषा-विज्ञान और व्याकरणकी दृष्टि से कंठ्य, स्पर्शी, अल्पप्राण तथा अघोष माना गया है। तद्वित उपसर्ग के रूप में यह (क) कुछ संस्कृत क्रियाओं के अंत में लगकर उनके कर्ता कारक का सूचक होता है, जैसे—प्रबंध से प्रबंधक, व्यवस्थापन से व्यवस्थापक आदि। (ख) कुछ संस्कृतसंज्ञाओं के अंत में लगकर यह उनके छोटे या बुरे रूप का वाचकहोता है, जैसे—कूप से कूपक (छोटा कुआँ) अश्व से अश्वक (बुरा घोड़ा)। (ग) कहीं-कहीं यह ‘से युक्त’ या ‘वाला’ का भी बोधक होताहै, जैसे—रूपक (रूप से युक्त या रूपवाला)। विशेष—कुछ हिंदीशब्दों में प्रत्यय के रूप में लगकर यह (क) किसी भाव,स्थान,स्थिति आदि का सूचक होता है जैसे—बैठना से बैठक (बैठने की क्रिया, भाव या स्थान)। और (ख) किसी वस्तु के हलके रूप का भी सूचकहोता है, जैसे—ठंढ से ठंढक। हिंदी वर्णमाला का पहला व्यंजन, जो भाषा-विज्ञान और व्याकरणकी दृष्टि से कंठ्य, स्पर्शी, अल्पप्राण तथा अघोष माना गया है। तद्वित उपसर्ग के रूप में यह (क) कुछ संस्कृत क्रियाओं के अंत में लगकर उनके कर्ता कारक का सूचक होता है, जैसे—प्रबंध से प्रबंधक, व्यवस्थापन से व्यवस्थापक आदि। (ख) कुछ संस्कृतसंज्ञाओं के अंत में लगकर यह उनके छोटे या बुरे रूप का वाचकहोता है, जैसे—कूप से कूपक (छोटा कुआँ) अश्व से अश्वक (बुरा घोड़ा)। (ग) कहीं-कहीं यह ‘से युक्त’ या ‘वाला’ का भी बोधक होताहै, जैसे—रूपक (रूप से युक्त या रूपवाला)। विशेष—कुछ हिंदीशब्दों में प्रत्यय के रूप में लगकर यह (क) किसी भाव,स्थान,स्थिति आदि का सूचक होता है जैसे—बैठना से बैठक (बैठने की क्रिया, भाव या स्थान)। और (ख) किसी वस्तु के हलके रूप का भी सूचकहोता है, जैसे—ठंढ से ठंढक। हम आध्यत्मिक दशा में जाकर कट्टरपंथियों से कहते रहे हैं।कुटम्बी भावना में भेद, हिंसा का महत्व है।आखिर विजयनगर के अमात्य, पुरोहित व सेनापति और वेदों के पहले भाष्यकार #सायण को क्यों कहना पड़ा कि एक कूर्मि/कुटम्बी/कुनबी सर्वशक्तिमान होता है। बसुधैव कुटुम्बकम, विश्वबन्धुत्व की भावना।में हिंसा, भेद, द्वेष का क्या महत्व है? आध्यत्म से निकल हम अब जब हम राजनीति व इतिहास के अतीत में भी विश्वबन्धुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम की झलक पाते हैं तो हमें आश्चर्य होता है। कमलेश डी पटेल #दाजी कहते हैं कि हमारे व जगत, प्रत्येक वस्तु, शब्द के के तीन हालात होते हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।इन तीनों स्तरों में भी चेतना के,ऊर्जा के अनन्त बिंदु व स्तर होते है।जब हम स्थूल से सूक्ष्म, सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतर से अति सूक्ष्मतर होते जाते हैं तो हम एक खाली पड़े खेत का अतीत व भविष्य का अहसास कर सकते हैं। विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य आश्रम मानने का मतलब भी क्या था?अन्तरदीप, अंतर्ज्ञान, अंतर स्वतः, निरन्तर के आभास में जीना,आत्मा.. परम् आत्मा के आभास में जीना, अंतर ऊर्जा के अहसास में जीना।इस लिए कमलेश डी पटेल दाजी ने कहा है कि महत्वपूर्ण ये नहीं है कि हम अपने को आस्तिक समझते हैं, ब्राह्मण समझते हैं, अपने को उच्च जाति का मान गर्व करते हैं।महत्वपूर्ण है कि हमारी चेतना,समझ का स्तर क्या है?आभास, अहसास, महसूस करने का स्तर क्या है?


गुरुवार, 10 जून 2021

ब्रह्मचर्य आश्रम व सन्यास आश्रम के बीच के बवाल से उबर::अशोकबिन्दु

 (सम्पादकीय) 25वें साल पर 75वां वर्ष! 

@आशांक बाबू गुप्ता 



 धरती पर मानव एक ऐसा प्राणी है जिसे शिक्षा व विद्यालय शिक्षा के बाद भी निरंतर सीखने की आवश्यकता होती है। हमने कुछ बुजुर्ग देखे हैं ,उनको देखकर लगता है बे जीवन में क्या हुए उन्होंने जीवन में क्या प्राप्त किया आदि। जीवन को हमसे दूर करती हैं सहजजीवन से हमें दूर करती हैं? 12 जून 2017 को गुरुजी अशोक कुमार वर्मा बिन्दु की प्रेरणा से हम प्रशिक्षक श्री कैलाश चंद अग्रवाल पंजाबी कॉलोनी तिलहर शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश से प्रथम प्रणाहूति लेकर श्री राम चंद्र मिशन एवं हार्टफुलनेस से संबंध हुए ।जिसके बाद हमने महसूस किया आदतें हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण हो जाती हैं । महापुरुषों के बताए संदेशों , संदेश, मनन ,अभ्यास नियमित साधना ,स्वाध्याय, सत्संग आदि जीवन में हर पल आवश्यकता होती है ।इस सब के बावजूद मन ,वचन व कर्म से हम प्राकृतिक, संसार ,इंद्रियों आदि से प्रभावित होकर कुछ ऐसा करते जाते हैं जो हमारे जीवन में बड़े गहराई तक घुस जाता है। जिससे हम अंदर ही अंदर संघर्ष करते रह जाते हैं सिर्फ ।जो जटिलताओं को उत्पन्न करता है । हमको सूर्यास्त के समय बस समय-समय पर मन सफाई , निर्मली करण प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है । जिसके बावजूद अंदर गहराई में कुछ ऐसा होता है जो हमारे व्यक्तित्व में भी हावी होता है । हम कोशिश करते ही रह जाते हैं ।बाबूजी महाराज ने इस लिए हमें अभ्यासी शब्द दिया है । शिष्य- गुरु तो दो शरीर एक मन हो ते हैं। 75 वा वर्ष जीवन का सनातन संस्कृति आधार पर सन्यास में प्रवेश का है। संन्यास पर भारतीय ग्रंथों में काफी कुछ कहा गया है  । निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सन्यास आश्रम अर्थात 75 वर्ष के साथ हमें मृत्यु के साक्षात्कार से परे निकलकर अनंत यात्रा का साथी हो ही जाना चाहिए।  हमने कुछ बुजुर्ग देखे हैं हम तो उनके पास इसलिए जाते हैं ताकि हम उनसे प्रेरणा लें उनके अनुभवों से कुछ सीखे लेकिन हमें मायूसी मिलती है ।जीवन जीने का मतलब अतीत में ही जीते रहना नहीं है। हमारे वर्तमान का आधार अतीत अवश्य है । लेकिन हमारा जीवन जीने का लक्ष्य भविष्य है ।पहला कदम हमारे अगले कदम की तैयारी है। हर कदम अगले कदम की तैयारी है। सहज मार्ग में अभी हमारी छोटी समझ यही है कि हमें असल को जीना अति आवश्यक है। क्रांतिकारी भगत सिंह 23 वर्ष की अवस्था में फांसी पर झूल गए । आखरी वक्त समाज की आवश्यकता को अस्वीकार कर यथार्थवाद व सहज ज्ञान को स्वीकार कर चले गए। फांसी पर चलना है तो चलना है ।यह स्थूल यथार्थ है सिर्फ। यह  शरीर मरना ही है इससे आगे भी अर्थात मरना है ही लेकिन इस सोच के साथ। भविष्य के साथ या अतीत के साथ या वर्तमान की स्थितियों , शरीर की परेशानियों , हाड़ मास शरीर की मृत्यु या फांसी पर चिंता करके अनेक बुजुर्ग मिलते हैं ।वे अपने हाल में शरीर की परेशानियां, हाड मास शरीर की मृत्यु के चिंता में उलझे हैं ।वे हमें क्या प्रेरणा देंगे ?



गांधी की आत्मकथा क्या कहे? गांधी की आत्मकथा और भगत सिंह के पत्रों में से आप किसे महत्व देना चाहेंगे? हम किसे महत्व दें? हमारे एक 'सर जी'- का कहना है जीवन के शुरुआती 25 वर्ष जीवन के क्रीम एज हैं। पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी कहते हैं -युवावस्था प्रयास की अवस्था कहा जाता है । शुरुआती 25 वर्ष ब्रह्मचारी जीवन है, ब्रह्मचारी आश्रम है  सनातन संस्कृति के अनुसार जीवन को चार भागों में बांटा गया है ।ब्रह्मचर्य आश्रम ,गृहस्थ आश्रम वानप्रस्थ आश्रम व सन्यास आश्रम । आजकल के दूषित वातावरण में कितना आसान है ? जीवन के शुरुआती 25 वर्ष,  ब्रह्मचारी जीवन है। हम सवरने, बस समझने की कोशिश करते करते भी क्या हो जाते हैं? ऐसे में निरंतर गुरु की शरण ,महापुरुषों के संदेशों ,वानियों के चिंतन मनन स्वाध्याय ने , साधना, नियमित सत्संग में रहना अति आवश्यक है  । अनेक बुजुर्गों के पास करीब जाने से कुछ का अंडरग्राउंड अर्थात अचेतन मन बड़ा जटिल महसूस होता है । वह अभी नींद में वही सपना देख रहे होते हैं जो किशोरावस्था और युवावस्था में देखते थे। कैसा विकास?  विकास यही कि जीवन भर रोटी कपड़ा मकान साहब की चापलूसी में लगे रहे ?अच्छी-अच्छी बातें करते रहे लेकिन अंदर ही अंदर हो क्या रहे थे?



 हमारे वैश्विक आध्यात्मिक मार्गदर्शन श्री कमलेश डी पटेल दा जी ठीक कहते हैं- हम हो क्या रहे हैं यह महत्वपूर्ण है। उम्र बढ़ते बढ़ते हम बौखलाहट, ईर्ष्यालु आदि होते जाएं, हाड़ मास शरीर की ही चिंता से सिर्फ परेशान रहे तो जीवन में क्या किया?


 # ये जो 25 वर्ष # 


' 25 वर्ष पर....' अर्थात विद्यार्थी जीवन पर पूरा जीवन टिका है यह इंसान ।


विद्यार्थी जीवन या 25 वर्ष तक का जीवन कैसा जिया है? इस पर शेष जीवन निर्भर है। किसी को यह महसूस न हो तो अलग बात। परिवार व समाज के वातावरण का प्रभाव, प्रभाव को ग्रहण करने की समझ का असर मानव के व्यक्तित्व पर पड़ता है। हमारे सोचने के तरीके का असर जीवन पर पड़ता है। हमारी असलियत सिर्फ हमारा हाड़ मास शरीर, वस्त्र, गाड़ी, बंगला आदि नहीं है। बोलचाल का ढंग नहीं है। यह हमारा बाहरी व्यक्तित्व है जो उम्र बढ़ने और पदच्युत होने के बाद, गरीबी आने पर या अस्वस्थ होने पर अपनी चमक खो सकता है। हमारे संस्कार, आदतें, समझ चेतना का स्तर ,नजरिया आदि मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते। अपने व्यक्तित्व को पहचानना अति आवश्यक है। पहचान कर उसे जीना।


 वैसे तो सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती है लेकिन किशोरावस्था और युवावस्था में हमारे प्रयास और प्रयत्न के स्तर अति महत्वपूर्ण है । मन, वचन और कर्म में विभिन्न प्रयास में अंतर निर्भर करता है हमारे भविष्य को । एक बात बचपन की हमें जीवन भर याद रहती है एक भूल जाते हैं। इसका कारण क्या है? हमारे रुचि रुझान नजरिया समझ आआदि का स्तर जीवन में महत्वपूर्ण हो जाता है। हमारा जज्बा उत्साह आदि कहां पर टिका होता है? यह विद्यार्थी जीवन में इन 25 वर्ष तक अति महत्वपूर्ण होता है।

 (गुरु जी अशोक कुमार वर्मा'बिंदु' की प्रेरणा से)


 नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के मृत्यु/लापता होने के रहस्य के 75 वर्ष पूर्ण!! 

@सुजाता देवी पटेल


 भारत देश अपना स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को प्रतिवर्ष बनाता है लेकिन अनेक लोग इस आजादी को सिर्फ सत्ता हस्तांतरण मानते हैं ।एक विचारक का तो मानना है कि अंग्रेजों ने भारत को छोड़ दिया इसका ठीक जवाब अंग्रेज ही जानते हैं। कोई तो यहां तक कहता है कि उनका भारत छोड़ने का कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद सरकार है । जिसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1947 को हुई और जिसे विश्व के अनेक देशों ने मान्यता प्रदान की। नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वितीय विश्व युद्ध में दक्षिण पूर्व एशिया के महानायक बन के उभरे। उस समय वह और उनके समर्थक देश जीत पर जीत हासिल करते जा रहे थे। जिससे पश्चिम देश बौखला गए ।अमेरिका ने बौखला कर परमाणु बम का इस्तेमाल कर दिया। जिससे उनको और उनकी सेना को वापस लौटना पड़ा ।उनकी मजाक भी बनाई गई कि दिल्ली चलो का नारा लगाने वाले वापस लौटे। लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि फरवरी 1946 का इंतजार कीजिए। 


 विश्वयुद्ध की शुरुआत के साथ उन्होंने कहा था दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है। इस वक्त आजादी के लिए अच्छा अवसर है। ब्रिटिश सरकार में जो भारतीय कर्मचारी सैनिक आदि थे उन पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषणों का बड़ा प्रभाव पड़ा। जिससे भारत में ब्रिटिश शासन के स्तंभ कमजोर पड़ गए । फरवरी 1946 से नौसेना विद्रोह के साथ-साथ अन्य विभागों के कर्मचारी भी विद्रोह में आ गए । जो भारतीय सैनिक ब्रिटिश सरकार के लिए लड़ रहे थे। उनका झुकाव नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ओर हुआ। जापान पर परमाणु बम आक्रमण के बाद उनके समर्थकों व जापान आदि देश में उन को सुरक्षित स्थान पर पहुंचने का विचार दिया। तब वे रूस पहुंचे लेकिन पश्चिमी देशों को भ्रम में रखने के लिए फर्जी विमान दुर्घटना की योजना बनाई गई ऐसा सुना जाता है।


 10 जनवरी 1975!!पहला विश्व हिंदी सम्मेलन!! 


 10 जनवरी 1975 को पहला विश्व हिंदी सम्मेलन नागपुर में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के द्वारा आयोजित किया गया था। जो 4 वर्षीय था इसमें 30 देशों  122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। सन 2006 में 10 जनवरी को विश्व हिंदी सम्मेलन बनाने की घोषणा हुई ।हम सबको प्रसन्नता हुई हमने इसे पहले से ही अर्थात 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में स्वीकार कर चुके थे। वर्तमान में लगभग 137 देशों में हिंदीभाषी अथवा हिंदी प्रेमी लोग मौजूद हैं। सन 2011 -14 से हम सब इस क्षेत्र में काफी तेजी से आगे बढ़े हैं। अनेक देशों के विश्वविद्यालय तक हिंदी पहुंची है ।अब हिंदी ही नहीं हार्टफुलनेस, आयुर्वेद ,योग की पहुंच विश्व तक हुई है। विश्व की निगाहें भारत की ओर हैं । सिर्फ भारत ही ऐसा देश है -जहां धार्मिक अनुष्ठानों में अब भी जयघोष लगते हैं- जगत का कल्याण हो ।भारत ही वह देश है जहां लोग मिल जाते हैं जो वसुधैव कुटुंबकम, विश्व बंधुत्व ,सागर में कुंभ कुंभ में सागर आदि संकल्पना में जीते हैं। संभवतः यह सोच हमारी ठीक है।


श्रीरामचन्द्र मिशन के 75 वर्ष::अशोकबिन्दु

 श्रीरामचन्द्र मिशन के 75 वर्ष!! ----------------------------------------- हमारे अंदर और जगत में कुछ तो है जो सोता है निरंतर है अनंत यात्रा का साक्षी है उसे चाहे कोई नाम दो या कोई नाम ना दो हम यह मात्रा में प्रणाहूति को बड़ा महत्व देते हैं एक राणा होती निरंतर हो रही है सूफी संतों में ए दम भरने के नाम पर थी हजरत केबला मौलवी फैज अहमद खान साहब रायपुरी के माध्यम से यह प्रक्रिया श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ के पास आई और फिर उन के माध्यम से शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश के बाबूजी महाराज के पास बाबूजी महाराज ने श्री रामचंद्र महाराज फतेहगढ़ की याद में श्री राम चंद्र मिशन शाहजहांपुर की स्थापना 1945 में की 75 वर्ष पूर्व 1945 में स्थापित श्री राम चंद्र मिशन शाहजहांपुर की पंजीकृत प्रक्रिया देश के कानून के अनुसार की गई इसके उद्देश्य मात्र आर्टिकल्स आफ एसोसिएशन के अनुसार इसके उद्देश्य निम्नलिखित हैं- (1) लोगों में आधुनिक काल की प्रस्तुतियों और आवश्यकताओं के अनुरूप योग की कला और विज्ञान की शिक्षा शिक्षा प्रदान करना और उसका प्रचार प्रसार करना (2)जाति संप्रदाय और बाण आज के भेद से रहित परस्पर प्रेम और विश्व बंधुत्व की भावना का संवर्धन करना है (3) योग के क्षेत्र में शोध करना और उस उद्देश्य से शोध संस्थाओं की स्थापना करना (4) योग में शोध को प्रोत्साहित करना तथा इस कार्य में रुचि रखने वाले व्यक्तियों को सहायता प्रदान करना। श्री राम चंद्र मिशन के माध्यम से हम लगभग 200 देशों तक पहुंच चुके हैं सन 2014 ईस्वी से इसके माध्यम से हमारे वैश्विक मार्गदर्शक श्री कमलेश जी पटेल दास जी हम को तो हल में हैं एकांत में हैं हम जो चिंतन मनन अपने अन्य बा जगत के लिए कर रहे हैं उसका नेतृत्व वह कर रहे हैं वह हार्टफुलनेस माइंडफूलनेस ब्राइट माइंड आज के नाम से एवं उनके अनेक संदेशों और आचरण के माध्यम से समाज और विश्व में आ रहे हैं। हम सब चेतना के सागर की लहरें हैं हम आत्मा रूपी किरण हैं जो अनंत प्रवृतियां रखता है ऐसे में हम एकता सद्भावना विश्व बंधुत्व अद्वैत अभेद, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर आदि जैसी स्थिति को महसूस करते हुए सनातन आचरण में लय होने की ओर प्रयत्नशील है। हम उस प्राण आहूत के गवाह हो रहे हैं जो सर्वत्र व्याप्त है पेड़ पौधों में हाड़ मांस हृदय नहीं होने के बावजूद संवेदनाएं हैं वह सर्वत्र व्याप्त संवेदना ही प्रेम है पी है राम है हमारा राम वेदों का राम है कबीर का राम है सिर्फ दशरथ पुत्र राम नहीं। श्री रामचंद्र महाराज फतेहगढ़ कहते थे कि हम ऐसी जमात चाहते हैं जिसका परस्पर रोजी रोटी और बेटी का संबंध हो हम पशु मानव से मानव और मानव से देव मानव बने यही हमारे और जगत निहित वेद स्तुति का हेतु है। कोई संस्था के उद्देश्य और उस संस्था के सदस्यों का नजरिया जब एक हो जाता है तब संस्था समाज और विश्व में अपना स्थान और सम्मान पाती है वर्तमान में हो सकता है उसके साथ भीड़ या फिर तंत्र ना खड़ा हो लेकिन इतिहास उसी का बनता है। वर्तमान में हम हैदराबाद तेलंगाना में कान्हा शांति वनम के माध्यम से उस व्यवस्था सहकारिता शांति बस तुम कम विश्व बंधुत्व वातावरण हेतु प्रेरणा देने का प्रयत्न कर रहे हैं जो वर्तमान और भविष्य में मानवता और प्रकृति संरक्षण के लिए आवश्यक है जो मानवता की इन आवश्यकता ओं को बढ़ावा देता है इसमें हमारी इच्छाएं शून्य होती हैं जिंदगी मुस्कुराती है श्री राम चंद्र मिशन शाहजहांपुर के इस वैश्विक मुख्यालय से विश्व को यह प्रेरणा मिलती है कि अब इसी तरह से नए स्थानों आवासों आश्रमों की आ सकता है।


संयुक्त राष्ट्र संघ के 75 वर्ष::अशोकबिन्दु

 संयुक्त राष्ट्र संघ के 75 वर्ष!! ---------------------------------------




 चारों ओर जिधर भी निगाह पड़ती है सब प्रकृति है इस प्रकृति में अदृश्य भी है गुप्त भी है कंप्यूटर की तरह हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर हम जीवन रूपी कार्यक्रम या व्यवस्था की पूर्णता संपूर्णता या आल(all) से तब जुड़ सकते हैं जब उसके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर पर संतुलित रूप से कार्य करेंगे प्रयोग करेंगे उसे अपने अनुभव में चिंतन मनन में उसे शामिल करेंगे संतुलन ही स्वास्थ्य है शांत की ओर जाने का पद है असंतुलन ही अस्वस्थ है अशांत की ओर जाने का पथ है श्री अर्धनारीश्वर अवधारणा से हमने काफी कुछ सीखा है बाम और दक्षिण में संतुलन को जाना है प्रकृति और ब्राह्मण के संतुलन को जाना है रण आत्मक था और धना तक धनात्मक ता के संतुलन को जाना है उपवन को गुलाब के महक से भरने के लिए गुलाब के पौधे में गुलाब पुष्प को ही नहीं संपूर्णता का ख्याल आवश्यक है। अनुशासन और शांति अंदर से आती है बाहर से नहीं हमारे और जगत के अंदर जो है कुछ तो है जो सोता है निरंतर है सर्वत्र है अनंत यात्रा में साक्षी है वही शांति और अनुशासन भी है वह के लिए वातावरण प्रश्न जागरण साहस त्याग आदि आवश्यक है। ब्रह्मांड में मनुष्य के अलावा सब नियमित है वह सहेज है मनुष्य आज अपनी कक्षा से बाहर हो चुका है सृष्टि के समय वह जिस सहजता में था उससे दूर जा चुका है जिसे हम असभ्य मानते हैं उन वनवासियों का जब अध्ययन किया गया तो वे प्रकृति के समीप अवश्य इस तंत्र में देखे गए उनको नुकसान हमारे विकास नहीं पहुंचाया है हमारे बुद्धि आधारित विकास ने विश्व बा और प्रकृति को क्या दिया है ब्राह्मण विश्व और प्रकृति के हम एक कड़ी हैं जैसे जंजीर में एक कड़ी बुद्धि कड़ियां देखती है विविधता और भिन्नता देखती है भेद देखती है। वह यह नहीं देखती कि हम सब में और जगत में कुछ है जो सोता है और निरंतर है हम अपने को महसूस नहीं करते कर रहे हैं जब हम अपने को ही महसूस नहीं कर रहे हैं तो जगत में अनियंत्रित चेतना तरंगों आत्माओं को क्या देखें ए आत्मीयता संवेदना क्या है यही तो हमारी नेता है चेतना का प्रभाव है जीव जंतु प्रकृति और हम परस्पर एक दूसरे की चेतना को अनुभव में एहसास में ही सकते हैं जो ही जीवन है जो ही प्रेम है जो के लिए विज्ञान अति अभी गुरुत्वाकर्षण तक या ऊर्जा या आभामंडल तक पहुंची है शिक्षा सुधार परिवर्तन विकास हिलता अपनी इसी अंतर चेतना को अग्रिम बिन्दु तक ले जाना निरंतर अभ्यास और अभ्यास हेतु वातावरण इस अभ्यास और अभ्यास हेतु वातावरण के लिए स्वयं व्यक्ति कुल मोहल्ला या वार्ड गांव और नगर जनपद प्रांत राष्ट्र और विश्व स्तर पर अनुशासन व्यवस्था प्रशासन आवाज की आवश्यकता रहती है अब हमें परिवर्तन को स्वीकार करने की जरूरत है हर मिनट पर परिवर्तन को स्वीकार करने की जरूरत है। सन 1945 से विश्व ने अपने को बदलते देखा है द्वितीय विश्व युद्ध ने मानवता का गला घोटा है अनेक देशों ने स्वतंत्रता की सास सिर्फ राजनीतिक स्तर पर ही ली है शक्तावत पूंजीवाद पुरोहित बाद और जातिवाद में नए ढंग से अपना स्वरूप सजाया है इस सबके बीच मानवता और उसकी चेतना को अग्रिम बिंदुओं और स्तरों पर ले जाने प्रश्न करने नए सिरे से प्रारंभ हो जाने चाहिए प्रारंभ होगी गए हैं प्रणाहूति व्यवस्था जो राजा दशरथ बार आया जनक के बाद लुप्त सी हो गई थी उसे सूफी संत हजरत की ब्लॉक मौलवी फजल अहमद खान साहब रायपुरी ने श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ को सौंपी जिसकी सूरत में सन 1945 में उत्तर प्रदेश के ही शाहजहांपुर में बाबू जी महाराज के द्वारा श्री रामचंद्र मिशन की स्थापना की गई विश्व शांति और विश्व कल्याण के लिए संयुक्त राष्ट्र की भी रूपए का खड़ी हुई है 24 अक्टूबर 1920 ईस्वी को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं इन वर्षों में विश्व शांति और मानवता के अनेक प्रश्न हुए हैं इसके बावजूद आर्थिक पूर्ण विश्वास शीत युद्ध कट्टरता अलगाववाद आतंकवाद सांप्रदायिकता आज को विश्व खेलता रहा है संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को अमेरिका के प्रसिद्ध नगर सैन फ्रांसिस्को में की गई थी यहां पर हम संयुक्त राष्ट्र संघ की विशिष्ट संस्था यूनेस्को अर्थात संयुक्त राष्ट्रीय शैक्षणिक वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन के दो महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख करना चाहेंगे नंबर एक नए अनुसंधान और द्वारा विभिन्न देशों की जनता का जीवन स्तर ऊंचा उठाना नंबर दो विभिन्न देशों के बीच संपर्क और संबंधों की स्थापना करना इस संगठन का कार्यालय पेरिस फ्रांस में है उन्हें स्कोर ने विश्व के सभी देशों में मूल्य आधारित शिक्षा की वकालत की है। हम चाहते हैं संयुक्त राष्ट्र संघ का विस्तार हो भारत इसका स्थाई सदस्य बने विभिन्न देशों की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के संरक्षण और आम जनता को विभिन्न देशों की जनता से परस्पर संबंधों की स्वतंत्रता आज पर विचार करने की आवश्यकता है भाभी भी सरकार के लिए भी तैयारियां आवश्यक हैं कट्टरवाद जातिवाद सांप्रदायिकता आतंकवाद हादसे निष्पक्षता से निपटने की जरूरत है इसके लिए मनुष्य का स्तर उच्च बनाने का वातावरण तैयार करने की भी आवश्यकता है प्रत्येक मनुष्य को विश्व बंधुत्व मानवता आज से जोड़ने के कार्यक्रमों की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ को सभी देशों की सरकारों से वार्ता करके एक भी सुना रुता एक विश्व सरकार की भावी योजना पर शिक्षा के पाठ्यक्रमों को शामिल करने के साथ-साथ विश्व के देशों के शासकों प्रशासकों कर्मचारियों मानता प्राप्त संस्थाओं में सदस्यों और कर्मचारियों की नियुक्तियों हेतु शिक्षिका ने वार्ता में विश्व बंधुत्व विश्व भाईचारा मानव कल्याण आज को अनिवार्य करने की आवश्यकता है कक्षा 3 और 4 से ही शैक्षिक पाठ्यक्रम में मानवता का रोड़ा अहिंसा विश्व बंधुत्व वसुदेव कुटुंबकम सुपर बंधन अनुशासन प्रकृति संरक्षण आज पर कक्षाओं के आधार पर विषय सामग्री तैयार करने की आवश्यकता है

भारत, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व शांति की भावी सम्भावनाएं!:::अशोकबिन्दु

 भारत, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व शांति की भावी सम्भावनाएं! ---------------------------------------


------------------------------------ सन2020ई0में संयुक्त राष्ट्र संघ अपने स्थापना की 75 वीं वर्षगांठ माना रहा था। संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य है युद्ध और हिंसा रहित विश्व की स्थापना और विश्व शांति हम श्री रामचंद्र मिशन की भी 85 वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं हजरत की ब्लॉक मौलवी फजल अहमद खान साहब रायपुरी के शिष्य श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ की याद में स्थापित श्री रामचंद्र मिशन का उद्देश्य विश्व बंधुत्व के साथ-साथ योग का प्रचार प्रसार है अनुसंधान है वैश्विक चुनौतियों पर हम ध्यान नहीं चाहते हैं हम संत गुरु नानक की याद करते हुए बड़ी लकीर पेश कर देना चाहते हैं जिसे जिस लकीर को हमें छोटा करना है उस लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच देना है।हमें महानताओं को चुनना है। हमें अपने कर्तव्यों को ले आगे बढ़ते रहना है इसके लिए जो बाधाएं हैं चुनौतियां हैं उन्हें नजरअंदाज करना है भारत का शासन जनकल्याण करते-करते विश्व कल्याण की ओर बढ़ना है। ehsan qazi, institute of peace! हमें प्रकृति अभियान को समझना होगा हमें जातीय मजे भी खुराफात ओं से निकलना होगा हमारा शरीर और यह दुनिया और खुदा ना हिंदू है ना मुसलमान यह हम क्यों नहीं समझते आज विश्व के सामने समस्याएं हैं आज समाज अनेक समस्याओं से ग्रस्त है इसका कारण है इंसान सिर्फ इंसान । जब तक वह अपनी नजरिया को बदलने की कोशिश नहीं करेगा समाज में शांति सूत्र बंधन अहिंसा का वातावरण नहीं बनेगा जब इंसान अनेक जातियों में बंट कर अन्य इंसानों के साथ पेश होता रहेगा।समाज में अमनचैन नहीं आ सकता। विश्व शांति की भावी संभावनाएं दिल खुलने के साथ ही संभव है ।हृदय क्षेत्र में दिव्य प्रकाश का फैलाव ही तो।अशान्ति, हिंसा मुक्त वातावरण कब खड़ा हो सकता है?हृदय क्षेत्र में दिव्य प्रकाश के अनुभव के साथ साथ रात्रि नौ बजे की साधना हमें विश्वबन्धुत्व, विश्व शांति, विश्व सरकार आदि के भाव से भरती है। पहले राष्ट्रसंघ फिर उसकी असफलता के बाद सन 1945 ई0 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का उद्देश्य था-विश्व को युद्ध के होड़ से बचना।स्पष्ट रूप से ईमानदारी से समीक्षा करने का अवसर किसके पास है? हम ये नहीं कहते हैं कि कोई अपने परिजनों के बीच अपने जातिगत अंतर्गत कर्मकांड रीति-रिवाज आज को छोड़ दें लेकिन यह किसी की व्यक्तिगत घरेलू व्यवस्था हो सकती है लेकिन की बाध्यता जबरदस्ती बंधक मजदूरी आदि के रूप में व घर से बाहर सड़क एवं सार्वजनिक स्थलों पर नहीं मानवता अध्यात्म संविधान हमारी सामाजिकता सार्वजनिक कार्य क्षेत्र आदमी हमारा आचरण और व्यवहार होना आवश्यक है इस हेतु ही संयुक्त राष्ट्र संघ की सब को सक्रिय होना आवश्यक है सन 1947 में भारत को अपना संविधान और शासन हित अवसर मिला 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। अहिंसा ही परम धर्म है ऐसा भारतीय दर्शन में कहा गया है दया सेवा पर उपकार ,नम्रता, मानवता, ज्ञान आदि हमारा व्यवहारिक धर्म है।आचरणात्मक धर्म है।सनातन हमारा सार्वभौमिक व अन्तर्यामी धर्म है।संघवाद व पंथवाद को अपने में समेटने की इसमें कला है।'अनेकता में एकता'- इसकी प्रमुख विशेषता है। संविधान द्वारा सरकार के विभिन्न भागों के कर्तव्य और अधिकार निश्चित किए जाते है।यह शासकों व शासितों के पारस्परिक सम्बन्धों को सुनिश्चित करता है।भारत में जिसके लिए भारतीय संविधान सभा की मांग एक प्रकार से ' राष्ट्र की स्वाधीनता' की मांग थी।संविधान सभा के सिद्धांत का दर्शन सर्वप्रथम सन 1895 के स्वराज विधेयक में होता है। एक बेहद बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार हुआ था सन 1924 ईस्वी में पंडित मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के सम्मुख संविधान सभा के गठन की मांग प्रस्तुत की थी सन 1936 ईस्वी तक सन 1938 के कांग्रेस अधिवेशन में संविधान सभा के गठन की मांग को दोहराया गया था अंत में सन 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत भारतीय संविधान सभा के प्रस्ताव को स्वीकार कर इसे व्यावहारिक रूप प्रदान किया गया अब हम आगे इतिहास पर नहीं जाना चाहेंगे इस वक्त हम भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मूल पाठ पर चिंतन कर रहे हैं। हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26नवम्बर 1949 ई0( मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, सम्वत दो हजार छह विक्रमी)को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। @ @ @ @ @ @ अरविंद घोष ने कहा था-'आत्मा ही स्वतंत्रता है। इसपर पहुंचे बिना हम अपूर्ण हैं। आत्मा अपने में अनंत प्रवृत्तियों का द्वार छुपाए हुए हैं स्वामी विवेकानंद के अनुसार अंतर शक्तियों का विकास उसको अवसर सभी देशवासियों को ही नहीं वरन विश्व के सभी मनुष्यों को मिलना चाहिए मनुष्य स्वयं अपना भाग विधाता है उसे वह बताना मिलना ही चाहिए जिससे वह अपना आत्मसम्मान आत्मविश्वास ,स्वाभिमान आत्म गुण आदि जगा सके।श्री मद्भागवत गीता का स्वधर्म है-अंतरस्थित दिव्यता को सम्मान व जगाना।शांति हमारे अंदर स्थित है।बाहर नहीं।जहां अहिंसा ही अहिंसा है अर्थात किसी से कोई भेद न करना।वहां तो अनन्त यात्रा व प्रेम की शाश्वतता है।'सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर'- की दशा है।वहां हिंसा अर्थात भेद,द्वेष, घृणा आदि को कोई स्थान नहीं है। विश्व व जगत में शांति का मतलब जानते हो? शांति तो मनुष्य को अपने अंदर तलाश में होगी इस धरती से यदि मनुष्य को उठाकर अंतरिक्ष की किसी अन्य धरती पर धकेलना संभव हो यदि तो इस पर सभी समस्याएं खत्म समस्या विश्व में नहीं है मनु मनुष्य और उसके समाज में है जिस दिन मनुष्य अपने को पहचान जाएगा उस दिन वह समझेगा हमारे जीवन में तो कोई समस्या ही नहीं । हमारी मनुष्यता, आध्यात्मिकता, हृदयता में सभी समस्याओं, अशांति, दुखों का हल है। हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खां साहब रायपुरी के शिष्य श्रीरामचन्द्र महाराज फतेहगढ़ वाले की याद में श्रीरामचन्द्र मिशन की स्थापना करने वाले शाहजहांपुर के बाबुजी महाराज कहा करते थे-" चिंताएं व तकलीफें तभी उत्तपन्न होती हैं जब हमारी मर्जी और ईश्वर की मर्जी में द्वंद होता है।द्वंद होना इसबात का प्रमाण है कि सच्ची भक्ति की कमी है।" विनोवा भावे की पुस्तक ' टाक्स आन गीता'में कहा गया है-"यदि जमीन पथरीली एवं ऊबड़ खाबड़ होगी तो जीवन की नैया को खींचना अत्यंत कठिन होगा।पानी की तरह ही भक्ति तत्व हमारे जीवन की यात्रा को सुलभ बना देता है।" हमारा रुझान,नजरिया,ऋद्धा, संकल्प, कर्म, प्रयत्न(अभ्यास या शिष्य) पन्थ आदि हमें शांति में ले जाता है। मीरा बाई की भक्ति लोकमर्यादा व कुलमर्यादा को भी भूल जाती है। ईसा मसीह की शांति उन्हें 'सूली की कीलों की चुभन' का अहसास नहीं करती। जरूरत है हर व्यक्ति के बुद्धत्व को जगाने की अंगुली वालों की गलियों में समाज और धर्म के ठेकेदार दबंग सेनापति राजा आज भी जाने से घबराते हैं और भेद रखते हैं यह भी हिंसा है अहिंसा है मन से किसी प्रति द्वेष ना होना भेजना होना समाज और विश्व में अभी अंगुली मानो की कमी नहीं है अंगुली मानव के गलियों की कमी नहीं है लेकिन बुद्ध अंगुलिमाल को बदल सकता है बुद्ध तो ही अंगुली मानो की गलियों में रौनक ला सकता है उपदेश आदेश तो चोर उचक्के माफिया आज भी देना जानते हैं परिवार कुल लोक संस्थाओं के तंत्र को कौन जगह बैठे हैं किसी ने कहा है सरकारें गलत हाथों में रही हैं सताए गलत हाथों में रही हैं सत्ता बाद पूंजीवाद जन्म बाद पुरोहित बाद जन्मजात उच्च बाद जन्मजात निम्न बाद में ईमान को सामने नहीं रखा है गांव और बाढ़ के माफिया दबंग धनबल जाति बल्ला आदि सब किसी नेता के खास दिखे हैं किसी दल के खास देखे हैं सीधे-साधे कानूनी व्यवस्था मानवता आदमी जीने वालों को किस का समर्थन मिलता है उन्हें स्वयं अपने से ही गुजर ना होता है उन्हें कोई पंथ नहीं मिलता आश्रय को किसी ने कहा है भीड़ का धर्म नहीं होता पंथ होते हैं सब प्रकार होते हैं उन्माद होता है जात पात भेदभाव होता है संत परंपरा ही ऋषि मुनियों के संदेश ही ऐसे में हमें विकसित करते हैं कमलेश डी पटेल दास जी कहते हैं वैश्या को भी इंसान समझो कौन क्या कर रहा है कौन क्या कह रहा है यह ना देखकर स्वयं को देखो कि हमें क्या करना है हम क्या कर रहे हैं आचार्य बनो आचार्य बनने से मतलब है जो होना चाहिए वह स्वयं व हम बने सभी के अंतर अंदर ईश्वर की रोशनी महसूस कर सभी उसे प्रेम उदारता नम्रता सेवा भाव के साथ पेश हो । उपदेश आदेश सिर्फ महत्वपूर्ण नहीं ।वातावरण, सत्संग, समीपता आदि महत्वपूर्ण है। सरकारों, जनप्रतिनिधियों, समाजसुधारकों, सेवा समितियों आदि को ऐसा तन्त्र खड़ा करना चाहिए, ऐसे कार्यक्रम तय करने चाहिए ताकि हर जाति मजहब व देश के लोग समीप आना शुरू करें। उपदेशभावेश नहीं आदेश नहीं वरन कार्यक्रम है साथ ही सुकून के लिए विश्व बंधुत्व भाईचारा के लिए साथ साथ रहने के लिए मतभेद और देश के जो विषय हैं वे नजरअंदाज किए हैं। सकारा सकारात्मकता ही बाहर आए श्रीनाथ मुक्ता ही बाहर आए ऐसे कार्यक्रम हूं बड़ी लकीर के सामने सतह बड़ी लकीर खींच ली जाए पहले से मौजूद लकीर मतभेद देश की छोटी पड़ जाए हम प्राइमरी जूनियर क्लासेज में देखते हैं हर जाति मजहब के बच्चे साथ साथ खेलते हैं आचरण करते हैं यह एक अवसर है नई पीढ़ी को मानवता विश्व बंधुत्व की ओर ले जाने का लेकिन हमारे शिक्षक अभिभावक समाज के ठेकेदार इसे खो देते हैं जातिवाद सप्ताह बाद पुरोहित बाद पूंजीवाद माफिया बाद आज नई पीढ़ी की संभावनाओं को कुचल देते हैं। कमलेश डी पटेल 'दाजी' व कुछ अन्य महापुरुष जो समाज को मानवता व विश्व बंधुत्व, विश्व शांति व मानव कल्याण की ओर ले जाना चाहते हैं। बे अब स्कूल और विद्यार्थियों से संपर्क बढ़ा रहे हैं नई दिल्ली के लिए स्कूल ही ऐसे हैं जो मानवता विश्व बंधुत्व विश्व शांति की ओर जाने की संभावनाएं खड़ी कर सकते हैं नई पीढ़ी को हम कैसे कार्यक्रम जीवनशैली कार्यपद्धती आज उत्सव पर इसका निर्धारण अब 'वाद' को ना करने का कानून हर देश में संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव में आकर होना अति आवश्यक है। हम जिएं सब जिएं!! सबका साथ सबकी भागीदारी!! सबकी भागीदारी सबका विकास!! मैं नहीं हम सब!! जय मानवता!जय विश्व बंधुत्व!! जय प्रकृति! जय ब्रह्म!! इच्छाएं नहीं वरन आवश्यकताएं!! 'वाद' नहीं वरन वसुधैव कुटुम्बकम!! क्षेत्रवाद नहीं वरन विश्वबन्धुत्व!! हम और हम सबको अब प्रकृति अंश और ब्राह्मण के आधार पर विचार करना होगा। मानवता और विश्व बंधुत्व के आधार पर विचार करना होगा। अपने घर को सुरक्षित रखने के लिए पास पड़ोस ,पास पड़ोस के लिए वार्ड और गांव को,वार्ड और गांव के लिए जनपद को । जनपद के लिए राज्य को, राज्य के लिए देश या क्षेत्र को, देश या क्षेत्र के लिए विश्व को ध्यान में लाना ही होगा ।इस निमित्त हम सभी रात 9:00 बजे और अन्य समय भी वसुधैव कुटुंबकम, सर्वे भवंतु सुखिनः ,सागर में कुंभ कुंभ में सागर, सभी में ईश्वरीय प्रकाश आदि के भाव आ कर प्रार्थनामय रहते ही हैं इस आधार पर आचरण लाने का प्रयत्न भी करते रहते हैं । किसी ने कहा है भविष्य भारतीयों का ही होगा । विदेशी भी अब भारत की ओर देखने लगे हैं । भारत स्वयं एक विश्व है। भारत है -भा + रत अर्थात प्रकाश मे रत। अनेक जातियों ,पंथ्ओ, भाषाओं के बावजूद उसमें सब को एक साथ रखने की क्षमता है। जिन्हें भारत में डर लगता है वह भी भारत को खोना नहीं चाहते।

सोमवार, 7 जून 2021

सहज मार्ग में मानसिक स्वछता की एक प्रक्रिया::अशोकबिन्दु

 सफाई::अतीत से मुक्ति!!आत्मिक वर्तमान से जुड़ाव की तैयारी। --------------------------------------------------- आरामदायक स्थिति में बैठ जाएं! और मन में भाव लाएं कि पहले के इकठ्ठे विकार, अशुद्धियां, छापें आदि हटायी जा रही हैं। आंखें बंद करें और स्वयं को ढीला छोंड़ दें। अपने मन में अब भाव लाएं कि सारी जटिलताएं और अशुद्धियां आपके शरीर से बाहर को जा रही हैं। अपने सिर के पिछले हिस्से व पीठ पर ध्यान दें। महसूस करें अपने सिर के पिछले हिस्से व पीठ को। सिर से नीचे होते हुए पीठ से गुजरते हुए सारे विकार, अशुद्धियां व जटिलताएं धुआं बन कर कमर के नीचे से बाहर जा रही हैं। बार बार यही। ऐसा बार बार हो रहा है।हमारे सारे विकार,अशुद्धियां व जटिलताएं धुआं बन कर बाहर जा रही हैं। ये प्रक्रिया तेज हो रही है। तेज और तेज! और तेज!! सिर के पीछे व पीठ को ध्यान में रखते हुए मन में भाव रखें - सारे विकार, अशुद्धियां व जटिलताएं धुआं बन कर बाहर जा रही हैं। ये कार्य अब तेजी के साथ होने लगा है। बड़ी तेजी से, बहुत ही तेजी से। और तेजी से । बहुत ही तेजी से हमारे अंदर के सारे विकार, अशुद्धियां, जटिलताएं धुआं बन कर बाहर जा रहे हैं। अपने आत्मविश्वास एवं संकल्प शक्ति के साथ इस प्रक्रिया को तेज करें। तेज और तेज। बड़ी तेजी के साथ हमारे अंदर के विकार, अशुद्धियां, जटिलताएं धुआं बन कर बाहर जा रही हैं। यदि आपका ध्यान भटकता है और अन्य विचार मन में आतें है तो धीमे से फिर से सफाई की ओर ध्यान दें कि हमारे अंदर के सारे विकार, अशुद्धियां, जटिलताएं धुंआ बन कर बाहर जा रहे हैं। इसे बीस तीस मिनट तक करें। हमारा मन, हृदय व शरीर अब हल्का होने लगा है। जब हल्कापन महसूस हो तो सफाई पूर्ण समझें। इसके बाद भाव लाएं कि अंतरिक्ष में तारों, प्रकाशीय तरंगों के बीच से किसी छोर से दुधिया रंग की एक पवित्र धारा हमारे अंदर प्रवेश कर रही है। शेष बची अशुद्धियां, जटिलताएं, विकार को वह बाहर ले जा रही है। अंदर दिव्य प्रकाश, बाहर दिव्य प्रकाश! अंतरिक्ष के किसी छोर से आता दिव्य दूधिया प्रकाश हमारे अंदर प्रवेश कर हमारे रोम रोम को पवित्र कर रहा है।बची खुची जटिलताएं, अशुद्धियां, विकार बाहर जा रहे हैं। अब हम सभी जटिलताओं, अशुद्धियों, विकारों से मुक्त हो चुके हैं। अंदर बाहर प्रकाश ही प्रकाश। दिल ! दिल में दिव्य प्रकाश।दिल में दिव्य प्रकाश मौजूद है।


रविवार, 6 जून 2021

'भूत' का भ्रम व डर में प्रेम?!....अशोकबिन्दु

 'प्रेम' से ये डर खत्म होता है।हृदय क्षेत्र पर इस भाव से ध्यान -' हमारे हृदय में दिव्य प्रकाश उपस्थित है' आंख बंद कर आवश्यक समझते हैं हम।सूफी संतों,सन्तों,ऋषियों मुनियों आदि के सन्देश,जो हमें सनातन ज्ञान की स्थिति में ले जाते हैं-उस पर चिंतन मनन आवश्यक है।हृदय का रुझान ही चेतना जगत ,सूक्ष्म से सूक्ष्म,सूक्ष्मतर से सूक्ष्मतर की ओर हमें ले जा कर 'जीवन अस्तित्व' की ओर ले जा 'डर' से मुक्त कर देता है। संवेदना का जगत सब दीवारें ढा देता है जब हम हार्टफुलनेस ध्यान के माध्यम से अंतर दिव्यता से जोड़ते हैं तो अपनी चेतना को विस्तार का समय देते हैं अवसर देते हैं यह अवसर हमें पास पड़ोस की चेतना फिर जगत की चेतना के अवसर खड़ा करता है ऐसे में हमारी अन्तरत: जगत की मुश्किलों हाड मास शरीर के कष्टों अन्य शरीरों के डर से मुक्त करता है। हमारी रात्रि 9:00 बजे की प्रार्थना हम में विश्व बंधुत्व विश्व शांति अन्य प्राणियों के सम्मान हेतु अवसर देती है ।ये प्रार्थना हाड़ मास शरीर त्याग चुके लेकिन सूक्ष्म शरीर से जीवित प्राणियों को भी शांति सम्मान का अवसर देती है ऐसे में डर का सूक्ष्म वातावरण खत्म होता है और साहसी होने की ओर बढ़ते हैं।जितना हम अपनी आत्मा के प्रकाश को अवसर देंगे, हम साहसी होने को उतना अवसर देंगे।


भेद किधर से आता है?!.....अशोकबिन्दु

 भेद किधर से आता है? एक ब्राह्मण परिवार, समाज की नजर में 'ब्राह्मण परिवार'..?! "तथाकथित ब्राह्मण परिवार"?!मुखिया भंगड़ी अर्थात भांग के नशे में व्यस्त। बड़ा लड़का धीरे-धीरे बड़ा हुआ ,उसने लैबरी, साइकिल पिक्चर मरम्मत आदि के सहारे गृहस्थी को आगे बढ़ाना शुरू किया।उसके छोटे-छोटे अन्य पांच भाई, बड़ी बहने, जैसे-जैसे बहनों की शादी निपटा दी। भाइयों को लिख पढ़ लेने भर तक का पढ़ाकर शादियां कर दी। लेकिन अब सभी भाइयों की पत्नी?! उसके पत्नी नहीं उसकी शादी नहीं। रिश्ते आए थे तो कुल देखना, ऊंच-नीच देखना। अब कोई कुल नहीं, कोई ऊंच-नीच नहीं ।बस ,कोई मिल जाए जो घर में टिक जाए ।खाना बनाकर खिला दे। ऊंच-नीच कब नहीं? कुल मर्यादा कब नहीं ?और हिंदू भी यार मुस्लिम भी यार... व्यापार,दारु मीठ, मतलब ...आदि,न हिंदू न मुस्लिम ....लँगोटी यार..?!मौका लगे तो एक दूसरे की बिरादरी की लड़कियों और औरतों से शारीरिक मतलब निकालने की भी कोई कसर न छूटे। लेकिन मजहबी करण कहां पर? और क्यों मानवता के लिए एक नहीं हो सकते? प्रकृति संरक्षण और धरती को बचाने के लिए, विश्व बंधुत्व के लिए एक नहीं हो सकते? भेद क्यों? जब दुनिया को खुदा ने बनाया है तो खुदा की बनाई दुनिया में नफरत, भेद ,हिंसा क्यों? हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला में कोई लोक और कुल मर्यादा नहीं ।न जात पात न छुआछूत । भक्त मीरा की भक्ति में न कोई कुल मर्यादा न ही लोक मर्यादा। सूरा 01,अल-फातिहा (मक्का में उतरी-आयतें 07) अल्लाह के नाम से; जो बड़ा कृपा शील, अत्यंत दयावान है। 01.प्रशंसा अल्लाह ही के लिए जो सारे संसार का रब(प्रभु, पालनकर्ता)है। 02.बड़ा कृपाशील,अत्यंत दयावान है। 03.बदला दिए जाने के दिन का मालिक है। 04.हम तेरी ही बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं। 05.हमें सीधे मार्ग पर चला। 06.उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए। 07.जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथ भ्रष्ट। इस साथ आयतों से हमें क्या संदेश मिलता है ? हमारी वर्तमान समझ( समझ के भी अनेक स्तर हैं वर्तमान समझ से पहले हमारी समझ के अनेक स्तर थे भविष्य में भी अनेक होंगे) से हमें इन सात आयतों से संदेश मिलता है। सिर्फ ईश्वर ही प्रशंसा के योग्य है,इसके सिवा कोई नहीं। वही बड़ा कृपाशील, अत्यंत दयावान है।अर्थात हमें सदा उसी की शरण में रहना चाहिए। समाज और समाज में किसी व्यक्ति स्त्री आदि से कोई उम्मीद नहीं रखना चाहिए । बरन सुप्रबंधन और कर्तव्य निष्ठा के लिए जीवन जीते रहना चाहिए। वह ईश्वर ही बदला लेने वाला है, बदला लेने का मालिक है, वही ही बदला दिए जाने के दिन का मालिक है। इसकी प्रेरणा हमें मोहम्मद साहब के जीवन के उस घटना से मिलती है, जिसमें उनपर कूड़ा फेंकने वाली औरत का वर्णन है। यह संसार तो कर्म भूमि है, संसाधन और माध्यम है। हम तो उस ईश्वर से ही मांग सकते हैं। परम + आत्मा = परम आत्मा ! हम अपने अंदर की दिव्य शक्तियों को अवसर देंगे । हे ईश्वर ! हम तेरी ही बंदगी सिर्फ करने का संकल्प लेते हैं ।तुझसे ही हम सिर्फ प्रार्थना कर सकते हैं। जीवन पथ सहज है ,सरल है ,शाश्वत है। जो सीधा है। नैसर्गिक है ।जगत और ब्रह्मांड में हम मनुष्य को छोड़कर सभी नियम पर हैं । हमें भी उसी सीधे मार्ग पर चला जो स्वतः, निरंतर है ,सदा है । जिस पर चलकर जो तेरे कृपा के पात्र हुए ,हमें उस मार्ग पर चला । उस मार्ग पर चलने वाले किसी भी प्रकोप के भागी नहीं होते और न ही पथभ्रष्ट ।हमारे हाड मास शरीर में स्थित अल्लाह का नूर....!! कुर आन में अल-बकरा की 8वीं आयत में जो कहा गया है, उसका हिंदी में मतलब है- " कुछ लोग ऐसे है जो कहते हैं कि हम ईश्वर और अंतिम दिन पर ईमान रखते हैं हालांकि वे ईमान नहीं रखते हैं ।" आगे नवमी आयत में -"वे ईश्वर और इमान वालों के साथ धोखेबाजी कर रहे हैं । हालांकि धोखा वे स्वयं अपने आप को ही दे रहे हैं परंतु वे इसको महसूस नहीं करते ।" 16 वीं आयत कहती है-" यहीं वे लोग हैं जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली किंतु उनके इस व्यापार ने न कोई लाभ पहुंचाया और न ही वे सीधा मार्ग पा सके ।" इन आयतों को पढ़ने के बाद हम में चिंतन आया- आज हम वह नहीं हैं जो सृष्टि के वक्त थे अंतिम दिन अर्थात मृत्यु के वक्त या कयामत के समय पर हम क्या होंगे? गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि मृत्यु (हाड मास शरीर की मृत्यु) वक्त हम नजरिया से और दिल से जो होते हैं वही के आधार पर हमारा अगली यात्रा का या अगले जीवन का फैसला होगा ।हम अपने इस शरीर में स्थित आत्मा और आत्मा के गुणों से कितने दूर हो चुके हैं? ऐसे में ये हाड़ मास शरीर की मृत्यु के बाद भी अपने सूक्ष्म शरीर के माध्यम से नरक योनि, भूत योनि, पितर योनि आदि भोगते हैं। मोक्ष की लालसा रखने के बावजूद भी तब मोक्ष नहीं पाया क्योंकि उन्होंने सृष्टि के वक्त की अपनी मूल अनंत प्रवृत्तियों से संबंध को तोड़ इंद्रियों, हाड मास शरीरों,कामनाओं में अपने को लगा दिया।अनेक तो कहते हैं कि बुढ़ापे पर ईश्वर को याद कर लेंगे लेकिन बुढ़ापा आने से पहले ही आदतें मन में इतनी गहरी हो गई कि छोड़ें छुट्टी नहीं जो आंख बंद कर या कैसे भी ईश्वर की याद में रहकर कार्य करते हैं ,आचरण करते हैं, उनकी मजाक करते रहे ।घर बार छोड़ सन्यासी होने का उपदेश देते रहे। लेकिन अब बुढ़ापे पर वही अच्छे लगने लगे जो जवानी में ही और किशोरावस्था में ध्यान ,योग आदि करने लगे थे मालिक की याद में रहने लगे थे । अब बुढ़ापे पर महसूस होता है कि हम स्वयं अपने को धोखा देते हैं। उनको हम ढोंगी पाखंडी मांगते रहे जो ईश्वर की याद में जीते थे या मेडिटेशन आदि करते थे ।जाति मजहब को नहीं मानते थे। कुल और लोक मर्यादा को भक्त मीरा की भांति भूल गए। वे सारा संसार,हर प्राणी और वनस्पति में ईश्वर का प्रकाश, संवेदना,चेतना महसूस करने की ओर बढ़ चले थे। प्रकृति और ब्रह्म दो रूप में ही उनका सिर्फ द्वैतवाद था ।आगे चलकर - सागर में कुंभ कुंभ में सागर का भाव। कैसी हिंसा? कैसा भेद? कैसी नफरत? जब दुनिया को बनाने वाला है कोई या हमारे और दुनिया के अस्तित्व का कारण है कोई तो उसके सामने हमारी क्या औकात? हम कौन होते हैं? अपने स्वार्थ ,इच्छाओं के लिए हिंसा, द्वेष, भेद फैलाने वाले हम कौन होते हैं? सबका अलग-अलग स्तर है। हर कोई अपने स्तर के आधार पर आचरण करता है। हम उनके आचरणों में खो कर अपने विकास को क्या अवरुद्ध नहीं कर लेते ?ऑल (अल,all,सम्पूर्णता) से जुड़ने का अवसर क्या खो नहीं देते?अपनी चेतना के विस्तार का अवसर क्या खो नहीं देते?


भेद में जीना हमारी नास्तिकता ही::अशोकबिन्दु

 हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, देशी, विदेशी आदि की भावना में रहकर समाज व कुदरत को अनेक खेमों में मत बांटों।सदियों पुराना ये विभाजन अब भी बर्दाश्त कर रहे हो,अन्यथा इसे आगे भी बर्दाश्त करोगे।इसकी सजा कुदरत देगी। हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खां साहब रायपुरी ने कहा है-कुदरत हर वक्त हम पर मेहरबान है।हम उसके बन्दे हैं।लेकिन जब बन्दों से खिलबाड़ होने लगता है तब कुदरत चुप नहीं बैठती। वेदों में 'हमें मनुष्य होने', मनुष्य होने के बाद'श्रेष्ठ' होने की बात कही गयी है।इसका मतलब है-हम अभी 'मनुष्य' नहीं हुए हैं।हम अपनी 'श्रेष्ठता' किसकी नजर में साबित करना चाहते हैं?अपने'स्व' को समझो।अपने आत्मीयता, आत्मा को समझो।अपने आत्म सम्मान, आत्मविश्वास को समझो।पाकिस्तान में कोई वह व्यक्ति शोषित होता है, उसकी बेटियों के संग दुराचार होता है तो उसके प्रति आत्मीयता क्यों नहीं जगती?आपके समाज में'कम आबादी वाला'-या -'अकेला व्यक्ति'-परेशान होता है, तो उसके प्रति आत्मीयता क्यों नहीं उठती?कैसी आस्था?कैसी आत्मीयता?आस्था को समझो, आत्मीयता को समझो। जगदीश चंद्र बोस क्या कहते हैं ?पेड़ पौधों में स्थूल दिल नहीं होता लेकिन संवेदना होती है ।हम अपने को महसूस नहीं करते, अपनी चेतना को महसूस नहीं करते ,हम अपनी आत्मा को महसूस नहीं करते, हम अपना अस्तित्व महसूस नहीं करते हम जगत मूल, परम आत्मा को क्या महसूस करेंगे? अन्य प्राणियों और वनस्पतियों की चेतना और संवेदना को क्या महसूस करेंगे ?यह महसूस करना ही हमें सार्वभौमिक ज्ञान की ओर ले जाता है, सनातन स्थिति की ओर ले जाता है, वेद की स्थिति की ओर ले जाता है। वेदों का जब बुद्ध ने विरोध किया और जनता को 'स्व' को महसूस करने का रास्ता दिया तो आपके पूर्वजों ने उन्हें अनीश्वरवादी कह डाला। आज आप सनातन की बात कितना भी करते हो आपके आचरण, सोच ,कथन क्या वैदिक हैं?


शुक्रवार, 4 जून 2021

05जून :: विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष::अशोकबिन्दु

 05जून::विश्व पर्यावरण दिवस!! . . #अशोकबिंदु " ऋषि परम्परा के बाद आचार्य परम्परा महत्वपूर्ण है।आचार्य का मतलब है-ऋषियों की परंपरा के आधार पर आचरण करने वाला।कहने को तो सभी ऋषियों की संतानें हैं लेकिन तब भी कोई असुर हुआ कोई सुर.....आखिर क्यों?!" आज 05 जून, अनेक संस्थाएं विश्व पर्यावरण दिवस मना रही हैं। हमें चारों और जो भी दिखाई दे रहा है सब प्रकृति है हमारा इस शरीर शरीर के लिए आवश्यक तत्व हमें प्रकृति से ही प्राप्त होते हैं प्रकृति और ब्रह्मांड में सब कुछ नियम से बंधा हुआ है मानव मानव के समाज ही सरल सहज नैसर्गिक ता प्रकृति अभियान यज्ञ से हटकर भौतिक बनावट में उलझ गए है। अपने इस शरीर में अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रकृति से दिव्य संबंध भाव ही आचरण ही मंगलकारी हैं। मैं हूं क्योंकि हम सब हैं यह प्रकृति है मानवता है सहकारिता है आदि आदि बेहतर वातावरण के लिए आवश्यक है कि हम हमारा मनुष्य जीव जंतुओं पेड़ पौधों धरती के प्रति सद्भावना हो सम्मान हो इसके लिए अध्यात्म को स्वीकार करना आवश्यक है हमें सार्वभौमिक ज्ञान को हर वक्त चिंतन मनन कल्पना स्वप्न में रखना आवश्यक है यही हमारी हमारे लिए बेहतर उप आसना है उप आसन है हमारे लिए उप आसन है मन को दिव्यता सार्वभौमिक ज्ञान और सार्वभौमिक प्रार्थना में रखना । हम इन विचारों को हर वक्त अपने चिंतन मनन कल्पनाओं सतत स्मरण में रखकर ही महानता दिव्यता इस भक्ति को सिद्ध कर सकते हैं कि- " हम सब में ईश्वर की रोशनी मौजूद है अल्लाह का नूर मौजूद है हम सब आत्माओं के रूप में अनंत यात्रा में परस्पर साहचर्य हैं जैसे सागर में परस्पर लहरें हम सब एक प्रकार से अनंत व्यवस्था प्रकृति अभियान यज्ञ का परिणाम है जगत में जो भी स्त्री पुरुष हैं सब भाई बहन है सब एक ही मिशन से जुड़ रहे हैं सभी के दिल में धर्म दया सेवा प्रेम वसुधैव कुटुंबकम विश्व बंधुत्व परस्पर सहयोग की भावना मौजूद है । " सारा जगत और ब्राह्मण एक तंत्र का हिस्सा है जिसकी एक इकाई हम भी हैं जिससे हम हम से प्रभावित होता है बीमारी क्या है बी अर्थात प्रकृति में असंतुलन हमारा शरीर भी प्रकृति है जिसमें असंतुलन ही बीमारी है स्वास्थ्य है संतुलन। प्रकृति, अपने शरीर, अन्य शरीर शरीरों से सम्मानजनक व्यवहार रखकर ही हम अपने में स्व में स्थित रह सकते हैं स्वस्थ रह सकते हैं प्रकृति जगत की हो या अपनी यदि हम उससे लोग लालच भोग विलास के लिए संबंध रखें रखेंगे तो हम वास्तव में असुर संस्कृति बेड संस्कृति को ही प्रतिष्ठित कर रहे हैं हमारी और जगत की प्रकृति जब तक संतुलित है संरक्षित है तब तक ही हम स्वस्थ हैं हम जीवित हैं हम जीवंत हैं ऐसे में हमें ऋषभदेव जड़ भरत आदि ही याद आते हैं जिन्होंने सत्य अहिंसा अस्तेय अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य को ही सिर्फ महाव्रत बताया है जिसके माध्यम से ही हम अपनी और जगत की प्रकृति को सुरक्षित रख सकते हैं हमें रक्ष संस्कृति को भी समझने की जरूरत है दुर्ग संस्कृति को भी समझने की जरूरत है। वर्तमान विकास विकास नहीं है बरन विनाश है मन आत्मा और अनंत वैभव तो निरंतर हैं गतिशील है बाहर का वक्त नहीं विकसित नहीं बरन विकास शीलता है निरंतर अभ्यास है निरंतर गतिशीलता है जीवन भर रोटी कपड़ा मकान जातिवाद मजहब बाद धर्म स्थल बाद आदमी लगे रहना प्रकृति की नजर में प्रकृति अभियान की नजर में रुकावट है जहां रुकावट है वहां निरंतरता नहीं है सनातन नहीं है। हाड़ मास शरीर, शरीरों की प्रकृति बदलती रहती है। लेकिन हमारे और जगत की प्रकृति के अंदर कुछ है जो स्वतः है, निरन्तर है, जैविक घड़ी है।वह हमें अनन्त, शाश्वत व सनातन से जोड़ता है।इसके लिए हमे सबका सम्मान आवश्यक है।सबका साथ सबका विकास आवश्यक है।सभी के अंदर दिव्य सम्भावनाएं है, उनको अवसर आवश्यक है। "यथा राजा तथा प्रजा!" सहज मार्ग राजयोग में हमारा मन ही राजा है जैसा मन होगा जैसा हमारा नजरिया होगा जैसा हमारा अचेतन मन होगा जैसा हमारा चिंतन मनन स्वप्न होगा वैसा ही हमारा भविष्य होगा। इस कोरोना संक्रमण काल ने हमें एक प्रमाण पत्र दे दिया है अब उसे हम ना समझ पाए तो अलग बात। लगभग 1 साल पहले 22- 25 मार्च 2020 को यदि आप प्रकृति में शांति सुकून नहीं किए हैं तो समझो अभी आप की समझ और चेतना का स्तर क्या है आपका आपकी और जगत की प्रकृति से कैसा और क्या संबंध है? श्री अर्धनारीश्वर शक्ति पीठ, बरेली के संस्थापक श्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह भैया जी कहते हैं- " हम सबका धर्म सिर्फ संबंध है प्रकृति से संबंध जीव-जंतुओं वनस्पतियों से संबंध अध्यात्म है सभी के अंदर ईश्वर के प्रकाश को देखना। मानवता है सभी मनुष्यों के बीच परस्पर प्रेम भाव सहकारिता सहयोग भाव आदि यह सब मिलकर ही हम सनातन होते हैं।" हम तो कहेंगे अन्यथा यह सीखने से कोई फायदा नहीं कि हम सनातनी हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में चीखने से काम नहीं होगा सिर्फ,..... जगत का कल्याण हो .....सर्वे भवंतू सुखिना.... वसुधैव कुटुंबकम .....आदि आदि। ऋषि परंपरा के बाद आचार्य परंपरा ही महान है। आचार्य का मतलब है -ऋषि यों की परंपरा के आधार पर आचरण। कहने को सभी ऋषियों की संताने हैं लेकिन तब भी कोई असुर हुआ कोई सुर..... आखिर क्यों? 22- 25 मार्च 2020 को प्रथम बार लॉक डाउन ने हमें प्रेरणा दी कि हम सब चाहे तो धरती को सुंदर बना सकते हैं। 22- 25 मार्च 2020 को हमने प्रकृति की ओर से महसूस किया कि प्रकृति कितनी प्रसन्न है? हम तो यही कहेंगे कि सप्ताह में 2 दिन लॉक डाउन हमेशा के लिए सरकारों के द्वारा तय हो ही जाना चाहिए । प्रकृत में कोई समस्या नहीं है। समस्या स्वयं मानव और मानव समाज की विभिन्न आदतों के कारण है।किसी ने कहा है कि यदि कुछ वर्षों के लिए धरती के सभी मानवों को आकाश की अन्य धरती पर भेज दिया जाए तो इस धरती की सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। इस धरती के लिए सबसे बड़ा खतरा अब मानव सत्ता ही है । इस धरती के लिए ही नहीं वरन ऐसा ही रहा तो पूरी आकाशगंगा के लिए । इजरायल के प्रधानमंत्री ने अभी जल्द महीनों ही कहा है कि अमेरिका का संबंध एलियन से हो चुका है, हम तो 10 साल पहले से ही ताल ठोक कर यह कहते आए हैं। एक देश के विदेश मंत्री का यहां तक कहना है कि भविष्य में एलियंस इस धरती पर आकार आक्रमण कर सकते हैं। कारण यह है कि इस धरती की मानव सत्ता ने अंतरिक्ष की प्रकृति को भी प्रभावित कर दिया है। "बड़े भाग्य मानुष तन पावा??" हम समझते हैं कि हम से बढ़कर कोई नहीं लेकिन ऐसा नहीं है। हम भी प्रकृति का हिस्सा है । इन शरीरों के रूप में प्रकृति की मार में हमारे यह शरीर कब तक धरती पर विचरण कर पाएंगे? पूंजीवाद ,सत्ता वाद, अब एलोपैथी चिकित्सा प्रकृति और प्राकृतिक चिकित्सा के खिलाफ ही खड़ी है। कोरोना संक्रमण प्रकृति में हमारी प्रकृति का प्रमाण पत्र है 1 साल में ऐसे अनेक प्रमाण मिले हैं जो आयुर्वेद,योगा ,प्राकृतिक जीवन से जुड़े हैं कोरोना उन्हें छू कर आगे निकल गया है। हमें प्रसन्नता है इन दिनों योगा ,ध्यान , आयुर्वेद का प्रसार और तेज हुआ है । जब जागो तभी सवेरा! हम प्राकृतिक सहजता के संरक्षण में आगे आए।प्रकृति को बचाएं। जय प्रकृति!! #अशोकबिन्दु #अशोकबिन्दु