गुरुवार, 10 सितंबर 2020

स्वच्छता ही ईश्वर है::महात्मा गांधी

 जहां सोच है वहां शौंचालय है!

सन्तों ने कहा है-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।

महात्मा गांधी से हमें न बैर है न दोस्ती। हमारा धर्म कहता है, सबका सम्मान करो।जब सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर।

भारतीय स्वच्छता अभियान को गांधी जोड़ने के पीछे जो मंशा है, वहां तक लोग नहीं पहुंचते हैं।

इस पर भी नहीं पहुंचते हैं-जहां सोच है वहां शौचालय है।

हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।हमने इसे महसूस किया है।हम इसे जिए हैं। स्वच्छता ही ईश्वर है, इसे गांधी को क्यों कहना पड़ा?

जब हम सहज हुए हैं, डेढ़ साल के बच्चे की तरह हुए हैं, हमने स्वयं अपने अंदर अनेक जीव जंतुओं के अंदर प्रकाश या चेतना या  जगदीश चन्द्र बसु की सर्वव्याप्त सम्वेदना/आत्मियता/आत्मात्व को देखा है।



स्वच्छता का हर व्यक्ति, हर पन्थ में महत्व रहा है।लेकिन हम देखते हैं, ये स्वच्छता  सिर्फ  स्थूल  तक ही सीमित है। विचारात्मक, भावात्मक, मनस आदि स्तर पर स्वच्छता को महत्व नहीं दिया जाता है। हम स्थूल,सूक्ष्म व कारण स्तर पर हम व हमारा सिस्टम स्वच्छता पर ध्यान नहीं दे रहा है।


स्वच्छता के साथ आत्मा का क्या सम्बन्ध है?स्वच्छता का परम् आत्मा के साथ क्या सम्बन्ध है? 

हमारा अपने व अन्य हाड़ मास शरीरों के साथ क्या भाव, विचार व समझ होनी चाहिए?

हमारा प्रकृति के अन्य वस्तुओं के साथ क्या भाव, विचार व समझ होना चाहिए?

यही भाव, विचार व समझ ही हमारी स्वच्छता या अस्वच्छता को व्यक्त करता है।

यहां पर हमारे अपने व अन्य हाड़ मास शरीरों, प्रकृति की अन्य वस्तुओं के कर्तव्य महत्वपूर्ण करता है न कि उम्मीदें/इच्छाएं/भोग।

हमारी सहज मार्ग प्रार्थना में पंक्तियां आती हैं-

"हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं 

जो हमारी उन्नति में बाधक है।"


ये सहज मार्ग प्रार्थना क्या है?


"हे नाथ!

तू ही मनुष्य जीवन का वास्तविक ध्येय है।

हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं

जो हमारी उन्नति में बाधक है।

तू ही एक मात्र ईश्वर एवं शक्ति है

जो हमे उस लक्ष्य तक ले चल सकता है। "

हम आत्मा व परम् आत्मा से प्रकाशित कब हो सकते हैं?

पवित्रता से ,स्वच्छता से।

ये पवित्रता व स्वच्छता अनेक स्तर पर है। अनेक तरह से है।



रविवार, 6 सितंबर 2020

विज्ञान और आध्यात्मिकता::अशोकबिन्दु

 


पृष्ठ 139,

विज्ञान और आध्यात्मिकता,

पुस्तक-वे, हुक्का और मैं

बाबूजी महाराज!


" आज आधुनिक विश्व में या कहें कि विश्व मंच पर विज्ञान और आध्यात्मिकता पर बहस होती रहती है। क्या विज्ञान ऐसी कोई चीज है। मुझे ठीक से पता नहीं पर शायद शताब्दियों से पुनर्जागरण के समय से विज्ञान पूरी तरह से स्वीकृत हो चुका है। आरंभ में अंधविश्वास माना जाता था। उन दिनों मेरे विचार में विज्ञान और अंधविश्वास दोनों थे। क्या ये सच है कि बारूद से ...!?हां, परीक्षण द्वारा सिद्ध है ।जिस चीज का भी आप परीक्षण कर सकते हैं ।वह प्रमाणित हो जाती थी ।और विज्ञान की मांग यह है कि उसे सिद्ध किया जाए ।एक बार नहीं बार-बार ।चाहे जो भी उस परीक्षण को करें ।विज्ञान की समस्या यही है। मैं ईश्वर को अनुभव करता हूं ।मगर मुझे वह दिखाई नहीं देता । अरे,वह कुर्सी पर बैठे हैं लेकिन मुझे दिखाई नहीं देते ।जबकि विज्ञान में परीक्षा और परिणाम किसी के भी द्वारा और हर एक के द्वारा बार-बार दोहराने लायक होने चाहिए ।  "


पुस्तक'वे, हुक्का और मैं' के इस अध्याय -'विज्ञान और आध्यत्मिकता' की कुछ पंक्तियां हम ये लिख रहे है। ये पुस्तक हम अनेक केंद्रों, आश्रम व यहाँ तक कान्हा में भी तलाश कर चुके हैं लेकिन प्राप्त हुई है।जब हमें ऐसे पढ़ना होता है तो नगर में ही एक अभ्यासी श्री ब्रह्माधार मिश्रा के यहां से पढ़ने के लिए ले आते हैं। हां, तो-

"   और विज्ञान का दावा है कि वैज्ञानिक सब कुछ जानते हैं ।दार्शनिक अपने अंदाज में दावा करते हैं कि वह बहुत कुछ जानते हैं ।रहस्यवादी कभी-कभी भिखारी जैसे प्रतीत होते हैं ।तभी वे मौजूद होते हैं। कभी गायक ।और अपने बारे में बहुत कम बताते हैं। उनमें से बहुत  से संकोची और गंभीर स्वभाव के होते हैं। लेकिन उनमें असाधारण शक्तियां होती हैं । इससे सवाल उठता है कि क्या ज्ञान और शक्ति दो भिन्न चीजें हैं या जैसा हम समझते हैं या जैसा कि पाश्चात्य विज्ञान कहता है ।विज्ञान से ज्ञान प्राप्त होता है । यदि यह सच है तो फिर रहस्यवाद न होता न संत होते न ही ऋषि। तो फिर वही पुराना सवाल आता है - पहले अंडा हुआ या मुर्गी ? पहले बीज हुआ या वृक्ष? किसी ने मजाक में बाबू जी से पूछा इस बारे में आपका क्या ख्याल है पहले बीज निर्मित हुआ था या पहले वृक्ष बनाया गया था पहले बाबू जी ने कहा ईश्वर मूर्ख नहीं है कि अपने साथ में लेकर चले सैकड़ों हजारों पेड़ । और फिर जहां चाहा वहां लगा दिया। जबकि वह अत्यंत छोटे-छोटे बीज बना सकता था । और वह अपनी जेब में लाखों बीज लेकर चल सकता था । अतः जब हम ईश्वर को बुद्धिमान   मानते हैं जैसा कि पश्चिम के लोग कहते हैं, ईसाई धर्म कहता है। हमें मान लेना चाहिए था कि उन्हें इस सवाल का जवाब मालूम होगा। वास्तव में यह बात सच है । स्पष्ट है स्वत: ही प्रमाणित है कि ऐसे सवाल कभी पूछो ही नहीं जाने चाहिए थे। पर उन्होंने पूछा और मेरे बाबूजी महाराज ने इसका जवाब दिया ईश्वर मूर्ख नहीं है कि वह पेड़ बनाए और उन्हें साथ लिए लिए फिरता रहे। यह तो फ्रांसीसी चित्र कथा एस्ट्रिक्स की तरह है। जिसमें वह पीठ पर भारी भारी पत्थर लेकर चलता है। जो तय करता है कि वह गाल अर्थात फ्रांस देश का प्राचीन नाम को ढूंढ निकालेगा। और गाल को ढूंढ निकालता है । किस किस्म की समझदारी है ।उन्हें पता होता है कि वे क्या खोजने जा रहे हैं जो निहायत बेवकूफी की बात है ।क्योंकि हम किसी चीज के बारे में उसकी खोज ही जाने के बाद ही जानते हैं। फिर एस्ट्रिक्स    की खूब बिक्री होती है। कुछ लोग इसे कला मानते हैं ।कुछ ऐसे साहित्य मानते हैं ।इत्यादि इत्यादि। माइटी माउस , माइटी मैन इस सब चित्र कथाएं.... किसी न किसी प्रकार मानव को अपने पर्यावरण का अधिकार प्राप्त करने की इच्छा दर्शाती हैं। देखिए जब एस्ट्रिक्स के उस आदमी की बात करते हैं जो अपनी पीठ पर क्या कहते हैं उसे ?ओबेलिस्क?  हां - 'मेंहिर' - हम मान लेते हैं कि कुछ ऐसे लोग रहे होंगे जो अपनी पीठ पर 200 टन का बोझ लेकर चल सकते हो तो महान बनने की शक्तिशाली और ताकतवर बनने की मानवी आकांक्षा है। हमारे पुराणों की, शास्त्रों की सारी कहानियां, जो गधे के जबड़े की हड्डी की कहानी या वह गुलेल जिससे डेविड ने गोलियथ को मार डाला। इन सभी में या तो मानवी शक्ति मानवी कल्याण मानवीय श्रेष्ठता प्रदर्शित होती है। या फिर वे दिखाती हैं कि वह एक नरम स्वभाव वाला आदमी है दब्बू किस्म का आदमी है छोटा सा साधारण आदमी है जिसमें स्वयं   परमात्मा की शक्ति मौजूद है  जैसी डेबिट मे थी और जब गोलियथ आया उसने उसके ललाट पर इस तरह चोट की और गोलियां जैसा विशालकाय राक्षस मर गया । यही बात गधों के जबड़े की हड्डी की या फिर शेर की कहानी में है अतः या तो हमें शारीरिक श्रेष्ठता है या फिर मनुष्य में ईश्वर का वास होने के कारण उसे श्रेष्ठता प्रदान की गई है । उसे ईश्वरी सामर्थ्य का वरदान दिया गया है । बाइबिल में बे बार-बार कहते हैं-😢 हे इजराइल के ईश्वर ...! 

विज्ञान और धर्म के अनुसार हम इनमें से कोई एक  चुन सकते हैं या तो आप धार्मिक हो सकते हैं । पर इससे भी आपको ऐसा व्यक्ति होना पड़ेगा जिसने अपने को भुला दिया हो जो आप अपने लिए नहीं जीता जिसने स्वयं को सर्वशक्तिमान परमात्मा के प्रति समर्पित कर दिया हो और सब परमात्मा एक प्रकार से उस में प्रवेश कर जाता है । वह आवेशित हो जाता है किसी दुष्ट आत्मा से नहीं बल्कि स्वयं परमात्मा से । तब हम आध्यात्मिक व्यक्ति की सामर्थय देखते हैं। जो अपने समय  के महानतम शासकों से भी विरुद्ध खड़े हुए चाहे वह हिरोद हो या फिर सीजर हो। यही बात हम अपनी हिंदू परंपरा हिंदू धर्म में भी देखते हैं नन्हा प्रहलाद और उसका पिता राक्षस सम्राट । एक और दो सामान्य मनुष्य राम और लक्ष्मण दूसरी ओर रावण एक राजा । अपनी पूरी ताकत के साथ जिसमें तपस्या से प्राप्त किए गए , ऐसे वरदान की शक्तियां भी शामिल थी जिन्हें उनकी तपस्या के फलस्वरूप प्रसन्न होकर भगवान ने स्वयं प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा और उन्होंने जो भी वरदान माला उसके लिए कह दिया - तथास्तु । लेकिन जब उन्होंने मागा तो वे भूल गए तो वे भूल कर गए। प्रहलाद के पिता हिरण्य कश्यप ने कहा , न मैं घर के के अंदर मरूं न  बाहर ना जमीन पर न आसमान में न ठोस वस्तु से न तरल वस्तु से, न दिन में न रात में , न आदमी से और न ही जानवर से मारा जाऊं ," इत्यादि । और परमात्मा ने स्वयं नरसिंह रूप धारण कर यह संभव कर दिखाया । न आदमी न जानवर , उन्होंने उसे संध्या के समय मारा। जब न दिन था न रात । उन्होंने उसे देहरी पर मारा न । घर के अंदर न बाहर । उन्होंने उसे अपनी गोद में मारा न जमीन पर न आसमान में । अतः ईश्वर क्या कर सकता है ? हम सोच भी नहीं सकते । इसी प्रकार रावण ने भी कहा था- मैं न देवता से मारा जाऊं न असुर से, लेकिन नर और वानर जो इतनी मामूली और कमजोर थे कि उनके विषय में सोचना भी उसकी शान के खिलाफ था इसलिए मैं उसने उसे शामिल नहीं किया मैं नया वानर द्वारा ना मारा जाऊं और बे ही उसकी मृत्यु का कारण बने अतः यह परंपराएं रही हैं वह ताकतवर रावण वेदांती वेदों का ज्ञाता फिर भी ज्ञान उसके काम नहीं आया एक प्रकार से आप यहां ज्ञान और भक्ति साथ-साथ पाते हैं ज्ञान व्रत है उसे संपूर्ण ज्ञान था उसके पास भक्ति नहीं थी हालांकि उसके पास पृथ्वी की बड़ी से बड़ी शक्ति थी परंतु वह भी उसे अपने स्वयं के बिना से नहीं बचा सके दूसरी ओर हरियाणा कश्यप आप जो कुछ चाहा सकते हैं वे सारी शक्तियां उसके पास ही मगर जब उसके पुत्र ने कहा आपको नारायण से प्रार्थना करनी चाहिए उनकी शरण में जाइए तो उसने अपने पुत्र को अनेक बार मारने की चेष्टा की किंतु असफल ही रहा उसने उसे पहाड़ की चोटी से समुद्र में टिकवा दिया परमात्मा ने उसे अपने हाथों में आमलिया उसे महल के एक दुष्ट हाथों से कुछ अल्वा ने की कोशिश की गई अपनी सूंड उठाकर हाथी चिंघाड़ा और चला गया। तो,ऐसा विश्वास रक्षा करता है।"मेरा मालिक मेरी रक्षा करेगा"-क्या हममे वह विश्वास है? या की यह केवल एक मानसिक विचार भर है जो मौका आने पर अपना विश्वास सिद्ध करेगा लेकिन हम उसे मौका नहीं देना चाहते मैं एक व्यक्ति को जानता हूं जो यहां मद्रास में था जिसे दिल की कोई बीमारी हो गई थी और जिसने सेटिंग देना बंद कर दिया उसने बताया की उसके डॉक्टर ने कहा है तुम्हें दिल की बीमारी है तुम्हें सेटिंग नहीं देनी चाहिए तुम्हें ध्यान नहीं करना चाहिए और बाबू जी ने कहा देखो उसे पता है कि उसकी रक्षा करने के लिए मैं हूं मगर उसे विश्वास नहीं है मान लो मैदान के दौरान मर भी जाए तो इंसान के लिए क्या इससे बेहतर और कोई मृत्यु हो सकती है लोग मरने के लिए समाधि लगाते हैं ,और  वह ध्यान करने से डरता है कहीं मर ना जाए जबकि यदि वह ध्यान के दौरान मरता तो सीधे लक्ष्य पर पहुंचता देखिए व्यक्ति के ऐसे डर भी होते हैं हमें विश्वास होना चाहिए हम मुंह से बोलते तो हैं कि हमें विश्वास है मजा हमारे दिल में जरा भी विश्वास नहीं होता हमारे पास ताकत है मगर हम इसे इस्तेमाल नहीं कर पाते क्योंकि हम डरते हैं इस सामने वाले के पास हमसे ज्यादा ताकत है जबकि ईश्वर के सामने तो कुछ भी ठहर नहीं सकता अतः हम सब एक प्रकार से'सी-सॉ' की दुनिया में रह रहे हैं, जहां पर ना यह सच है ना वह कभी कभी वह और हम एक प्रकार से विज्ञान और अध्यात्म के बीच उलझे हैं आज आधुनिक विश्व में या कहें की विश्व मंच पर विज्ञान और आध्यात्मिकता पर बहस होती रहती है क्या विज्ञान जैसी कोई चीज है मुझे ठीक से पता नहीं पर शायद शताब्दियों से पुनर्जागरण के समय से विज्ञान पूरी तरह से स्वीकृत हो चुका है आरंभ में अंधविश्वास माना जाता था उन दिनों मेरे विचार से विज्ञान और अंधविश्वास दोनों थे क्या यह सच है बारूद से हां परीक्षण द्वारा सिद्ध है जिस चीज का भी आप परीक्षा कर सकते हैं वह प्रमाणित हो जाती थी और विज्ञान की मांग यह है कि उसे सिद्ध किया जाए एक बार नहीं बार-बार चाहे जो भी उस परीक्षण को करें विज्ञान की समस्या यही है मैं ईश्वर को अनुभव करता हूं मगर मुझे वह दिखाई नहीं देता अरे देवा कुर्सी पर बैठे हैं लेकिन मुझे दिखाई नहीं देते जबकि विज्ञान में परीक्षण और परिणाम  किसी के द्वारा भी और हर एक के द्वारा बार-बार दोहराने लायक होने चाहिए तो इस तरह की लड़ाई चलती आ रही है लेकिन अब ऐसे कहीं अधिक प्रमाण सुलभ हैं तथाकथित वैज्ञानिकों के द्वारा भी काफी हद तक स्वीकार किए जाते हैं और फिल्म  -"व्हाट द ब्लिप डू वी नो?' जिसमें क्वांटम विश्व, क्वांटम भौतिक विज्ञान की चर्चा की गयी है, उन्हीं सबके बारे में  है। उसमें कुछ बहुत सुंदर घटनाएं हैं; कैसे कोई चीज दो स्थानों पर या कई स्थानों पर हो सकती है आप देखते हैं एक लड़का फर्श पर एक बड़ी गेम को टप्पा मार्कर उछलता है और जब यह सब देखने वाली महिला ने निघा घुमाई तो देखा चारों ओर असंख्य में उछल रही हैं और बे कहते हैं की क्वांटम जगत है और वह क्वांटम वास्तविकता है यह कहीं भी हो सकता है हर जगह हो सकता है लेकिन जब हम गौर करते हैं हम गौर करने से उस वस्तु को एक जगह पर स्थिर कर देते हैं अब जैसे कि आज सुबह मैं अपने कुछ साथियों से बात कर रहा था इस विषय पर मैंने एक बात गौर की क्वांटम के क्षेत्र में चीजें हर जगह मौजूद मालूम पड़ती है हर जगह हो सकती हैं मगर ध्यान से एक जगह पर स्थिर कर देता है मुझे एक विचार आया ईश्वर भी हर जगह है सभी जगह है जब मैं उस पर गौर करता हूं तो मैं उसे वहीं पर स्थिर कर देता हूं जहां मैं उनकी मौजूदगी चाहता हूं लेकिन तब क्वांटम क्षेत्र भंग हो जाता है और दिखाई देने वाली वास्तविकता का क्षेत्र बन जाता है और सब कुछ मिलकर वही बन जाता है जो हम देखना चाहते हैं जबकि ईश्वर तो हर समय हर जगह मौजूद है बात सिर्फ इतनी है कि यदि मुझ में विश्वास हो और उसे वहां स्थित करने की क्षमता हो तो मैं उसे वही देख सकता हूं वही देख सकता हूं जहां मैं देखना चाहता हूं।"



गुरुवार, 3 सितंबर 2020

बाबू जी महाराज ,क्रमिक विकास व पल्ला झड़ना :अशोकबिन्दु


 पृष्ठ - 295-296,

रामचन्द्र की आत्मकथा भाग-2,

रामचन्द्र की सम्पूर्ण कृतियाँ!

" अपने को इस तरह प्रदर्शित करो कि लोग तुम्हारा आदर करने लगे । तुम्हारे अनादर का अर्थ सारे संतो और मुक्त आत्माओं का अनादर है। तुम्हारी अवज्ञा करने वालों को प्रकृति दंड दे सकती है। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम्हारी ऊंची उपलब्धियां लोगों के सामने उजागर रहे ।तुम्हारे अंदर दिव्य शक्तियों की भीड़ लगनी शुरू हो गई है ।खुश रहो।"



पृष्ठ 295 - 296 पर जो दिया गया है, वह यहाँ कह रहे हैं।

"08जून1945: पूज्य लालाजी ने जनसाधारण को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने की विधि बताइए हिंदुओं के धार्मिक इतिहास के अंधकार कोण युग में विधि विस्मृत हो गई थी ऐसा कहा जाता है जी भगवान श्री कृष्ण इस विधि के आविष्कारक हैं बी है दूसरे के फूट शरीर का विचार उसके शरीर के कणों को बरकरार रखते हुए धारण करना चाहिए तब जिन्हें नैतिक गुणों की किसी भी व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है उनको उस शरीर के अंदर प्रणाहूति से ठेल देना चाहिए परंतु पहली पूजा में ही ऐसा ना करके कुछ समय बाद जब अंदर से प्रकाश का संकेत मिलने लगे तब करना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण द्वारा एक आदेश दिया गया जो स्पष्ट नहीं था। लालाजी: " अब तुम्हारे अपने रुतबे के हिसाब से अपने को थोड़ा बदल लेना चाहिए। अपने को इस तरह प्रदर्शित करो कि लोग तुम्हारा आदर करने लगें ।तुम्हारे अनादर का अर्थ सारे संतो और मुक्त आत्माओं का अनादर है । तुम्हारी अवज्ञा करने वालों को प्रकृति दंड दे सकती है । इसलिए मैं चाहता हूं की तुम्हारी ऊंची उपलब्धियां लोगों के सामने उजागर रहे । तुम्हारे अंदर दिव्य शक्तियों की भीड़ लगनी हो गई है ।खुश रहो ।" इसके बाद स्वामी विवेकानंद:.........!"



अब हम(अशोकबिन्दु) कुछ वर्षों से हम कुछ घटनाएँ महसूस कर रहे हैं। जिसके लिए हमने ऊपर की पंक्तियों को लिखा है ताकि समाज में अपनी बात को मजबूती दिला सकें।हमारा एक स्तर होता है।दुनिया हमारे को जिस स्तर से आंकती है, उससे हट कर हमारा स्तर होता है।कोई ये भी कहता है-"हो कौन?क्या कोई अधिकारी, विधायक बगैरा हो?उच्च जाति से हो? " यदि ऐसा नहीं है तो भी क्या बड़े पूंजीपति हो,हमारा काम निकलने वाले हो?जमाने में जो जितना ऊंची हांकने वाला,अपनी उल्लू सीधा करने वाला, हां में हां मिलने वाला, हमारी बिरादरी, सम्प्रदाय, सोच, आचरण आदि में साथ खड़ा होने वाला। यदि ये सब नहीं तो ,मतलब ओर अरे, गधे को भी बाप बना लिया जाता है। ये सब सिर्फ हाड़ मास शरीर,हाड़ मास शरीरों ,बोलचाल तक,आवश्यकताओं तक। हम इससे आगे भी हैं?सामने वाला इससे भी आगे है... सच्ची नियति, सच्चा सौदा,पारदर्शीता, स्प्ष्ट छवि....आदि आदि ,इससे मतलब नहीं।अरे, चूतिया है।.....इससे आगे भी एके विचार धारा, भावना.... इससे भी आगे,और भी।लेकिन इससे मतलब नहीं। स्थूल, सूक्ष्म व कारण...... इसमें भी अनेक स्तर।स्तर में भी अनेक स्तर।चेतना व समझ के अग्रिम अनेक अनन्त स्तर ।अरे, उसकी कोई बात नहीं।टिकाऊ नहीं।स्थूल जगत में भी अनेक स्तर हैं।ऊर्जा या चेतना कभी इस बिंदु पर तो कभी उस बिंदु पर,कभी इस स्तर पर कभी उस स्तर पर, कभी उस चक्र पर,कभी उस चक्र पर। भीड़ में,अन्य के बीच अकेला खड़ा,कोई साथ नहीं।अकेले में लाड़ दिखते फिरते हैं?समाज में समाज की हां में हां, तब अकेला छोड़ दिया।चाहे उस अकेला व्यक्ति के साथ मानवता का, ईमानदारी का स्तर कितना भी उच्च हो? 



कुछ वर्ष पहले हम स्वप्न देख रहे थे, "वह लड़का कुछ ब्राह्मणों के खिलाफ खड़ा था, कुछ सच्चों के खिलाफ खड़ा था। हम अलग खड़े थे, एक समूह और था जो अलग खड़ा था।हम उस समूह द्वारा उस लड़के को कहीं लेजाते देख रहे थे।आगे जाकर उस लड़के का एक्सीडेंट हो जाता है।" इस स्वप्न को देखने के दूसरे दिन ही पता चलता है कि रेलवे लाइन पार करते वक्त वह एक ट्रेन से कट कर मर जाता है। 

इस घटना के एक साल बाद उन्हीं दिनों हम फिर स्वप्न देखते हैं, "गब्बरसिंह के मकान के पीछे दो यम दूत आते हैं और हमसे कहते हैं, चलो आओ। एक बालक हमें दूसरी जगह चलने को कहता है लेकिन हम उन दोनों यमदूतों के साथ चल देते हैं।एक यमदूत का फरसा हम अपने हाथ में ले लेते है।(www.ashokbindu.blogspot.com/अशोकबिन्दु भईया:दैट इज...?!पार्ट10/...) हम पश्चिम-पूरब की ओर कालोनी मध्य चल देते हैं।एक गली में पहुंच कर एक लड़के को पुकारते हैं।वह लड़का जब अपने घर से बाहर निकलता है तो हम उसे फरसा से काट डालते हैं।" इसी तरह के अन्य स्वप्न भी... पॉजीटिव स्वप्न भी।अभी कल भी एक स्वप्न्न। .....ये सब क्या है?

जो हम देखते हैं, सोंचतेहै, करते हैं.... वही सिर्फ दुनिया नहीं है। एक बार एक अखण्ड ज्योति पत्रिका में लिखा था, व्यक्ति अकेला नहीं होता, उसके साथ पूरा एक ग्रुप होता है। पन्द्रह साल पहले एक बार हम सुमित त्रिपाठी के साथ स्टेशन रोड पर निकले थे,फटकीया तक गए थे।हम सुमित से दूर, लोगों से दूर चलने लगे थे।हमें अपने साथ अतिरिक्त शक्ति नजर आ रही थी।हमने मालिक को धन्यवाद दिया।एक दुकान पर पहुंचे तो भी हम लोगों से दूर ही थे। "पास आ जाओ।"ठीक है।इसी क्षण हम कहीं पर बोले थे, व्यक्ति अकेला नहीं होता। एक साधक ने लिखा है कि साधना में सफलता के साथ जीवन यात्रा का मतलब है- सूक्ष्म यात्रा,सूक्ष्मतर से सूक्ष्म तर यात्रा की ओर बढ़ना... आगे बढ़ना।आत्मा जब गर्भ धारण करती है, तो उसके पास उस वक्त, उससे पूर्व व बाद की उसके पास योजना होती है। लेकिन शरीर धारण करने के बाद उन योजनाओं के साथ नहीं, उन योजनाओं के नीचे के स्तर की योजनाओं रूपी चादर से अपने/आत्मा को ढकते जाते हैं। गीता में-कर्म क्या है? कर्म है-यज्ञ।हर स्तर पर यज्ञ अलग अलग है।

"अजगर करे न चाकरी......!" एक कर्म ऐसा भी है, जो कर्म है भी नहीं।कर्म हो कर भी कर्म नहीं है।एक नेटवर्क है-आत्माओं का।आगे और.... अनन्त यात्रा का साक्षी...!! दुःख, सुख कब है?जब हम इंद्रियों में हैं, इच्छाओं में हैं।चेतना के सागर में...अनन्त यात्रा में तो हम सिर्फ कठपुतली है।"हमारा एक शुभेछु... हमारा लाडला... एक कोचिंग खोलता है, हम उद्घाटन में पहुंचते हैं.... हमारा मन फीका हो जाता है।पता चलता है कि वे चेयरमैन से उदघाटन करने को हैं?हम नेताओं के ज्यादा पीछे पड़ने के खिलाफ रहे हैं।अनेक सन्तों ने राजनीतिज्ञों से,राजनीति से अलग रहने को कहा है।हमें वहां रुकना चाहिए था, ये भी अभी आबश्यक है लेकिन हम नहीं रुके वहां।


पल्ला झाड़ना?!.....अरे, उससे पल्ला झाड़ लिया ठीक रहा।उसने उससे तलाक ले लिया, अरे ठीक रहा।उसे संस्था से आफिस से निकल दिया या ट्रान्सफर करवा दिया ठीक रहा।अरे, वह करता भी क्या?कब तक बर्दाश्त करता?मजबूरी थी उसकी उसका मर्डर करना।....लेकिन क्या ठीक रहा?!जीवन किस काल खंड तक ठीक?कब तक ठीक? भविष्य में इसका परिणाम?सूक्ष्म जगत, कारण जगत अभी शेष बचा है।

02अक्टूबर सन1869 ई0 को जन्मे मोहन दास बैरिस्टरी पास करने के लिए इंग्लैंड गए।और वहां माता के बताए हुए आदर्शों और निर्दशों का पालन किया।उनमें धार्मिक आस्था व सादगी का गहरा प्रभाव था। सन 1857 की क्रांति व अंग्रेजी, सामंती, जातीय अत्याचार एवं 1931 तक का समय....!? वर्तमान में जो है वह अतीत का परिणाम है।भविष्य में जो होगा वह हमारे वर्तमान का परिणाम होगा। वर्तमान में जो है वैसा भविष्य नहीं होगा।



ईसामसीह को सूली पर लटका दिया गया, सुकरात को जहर देकर मार डाला गया, गांव के उस ईमानदार ,सज्जन व्यक्ति को मार दिया गया........ आदि आदि?!क्या पल्ला झाड़ लिया?सुकून मिल गया?चैन मिल गया क्या? अमुख अमुख इंजीनियर, ठेकेदार, पत्रकार आदि मार दिया गया, आप समझते हो कि सुकून मिल गया?चैन मिल गया?पल्ला झड़ गया?जनता हितैषी डीएम ,एस डी एम,तहसीलदार आदि का ट्रांसफर करा दिया गया?बस, हो गया काम?जीवन कोई विशेष काल खंड तक ही सीमित नहीं है।जिससे हमारी सांसारिक इच्छाएं पूरी होती हैं,आवश्यक नहीं कि वही जगत, व्यवस्था, समूह के अलावा कुछ भी हमें प्रभावित करने वाला नहीं? आत्मा जब गर्भ धारण करती है तो उस वक्त व उससे पहले व बाद में उसकी अपनी योजना होती है।हम दुनिया की चकाचौंध में उस योजना को भूल जाते हैं।


दस साल पहले पूर्व में एक युवक को फांसी दे दी गयी।उसकी अंतिम इच्छा थी कि अगला जन्म मैं भारत में न लूं।उसे निर्दोष फंसा दिया गया था, मर्डर व रेप में। वास्तविक अपराधी क्या मौज में होंगे? हमें ध्यान है पिता जी के चाचा जी की मृत्यु हो गयी।पिताजी #प्रेमराज ने कहा था- चाचा गांव के अमुख अमुख परिवार में जन्म लेंगे।अब वह परिवार तबाह हो जाएगा। उस परिवार में चाचा पैदा हुए.... हालात ऐसे बने, वह परिवार बर्बाद हुआ।वह परिवार ने चाचा को काफी परेशान किया था, प्रताड़ित किया था।गांव के अन्य लोग भी। पल्ला झड़ता नहीं।हमारे साथ जो होता है, हम जो अन्य संग करते हैं-असर बहुत दूर तक जाता है।हम जो सिर्फ सोंचते है उस तक का असर दूर तक जाता है।


योगांग में पहला अंग-यम दूसरा अंग -नियम।यम दूत-सत्य, अहिँसा,अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य। नियम- पवित्रता, सन्तुष्टि, तपस्या, अध्ययन, समर्पण। इसका असर भी दूर तक जाता है। हम जो कर रहे हैं, उसका भी असर दूर तक जाएगा। अतीत से हम जो अपना सूक्ष्म ढोह कर लाएं हैं उसका असर वर्तमान में और जो हम वर्तमान में सूक्ष्म बना रहे हैं, उसका असर भविष्य में जाएगा। सूक्ष्म व कारण वर्तमान में भी कार्य कर रहा होता है लेकिन हमें होश नहीं  शारीरिक,इंद्रिक लालसाओं की चकाचौंध में।

बाबू जी महाराज ने कहा है कि ये हमारी भूल है कि जैविक क्रमिक विकास की पराकाष्ठा मानव है।हम यहां पर मानव के स्थान पर मानव के वर्तमान स्थूल, हाड़ मास शरीर, उसके लिए ही सिर्फ व्यवस्था हमारी पराकाष्ठा नहीं है।




यहां पर....



 पृष्ठ - 295-296,

रामचन्द्र की आत्मकथा भाग-2,

रामचन्द्र की सम्पूर्ण कृतियाँ!

" अपने को इस तरह प्रदर्शित करो कि लोग तुम्हारा आदर करने लगे । तुम्हारे अनादर का अर्थ सारे संतो और मुक्त आत्माओं का अनादर है। तुम्हारी अवज्ञा करने वालों को प्रकृति दंड दे सकती है। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम्हारी ऊंची उपलब्धियां लोगों के सामने उजागर रहे ।तुम्हारे अंदर दिव्य शक्तियों की भीड़ लगनी शुरू हो गई है ।खुश रहो।"

यहां पर हमें क्या प्रेरणा मिलती है? हम स्वयं ऐसा कार्य करे जिससे हमारा सम्मान हो। 'हमारा'....?! ये हमारा क्या है?इसके साथ ही हम जो कर देख रहे हैं, कर रहे हैं,हमारी इंद्रियों की जहां तक पहुंच है, हाड़ मास शरीर की जहां तक पहुंच है.......उससे आगे की यात्रा का साक्षी हुए बिना हम अपनेपन/आत्मियता की ही अपूर्णता में हैं। हम ये भी न समझे कि सामने वाले की अमुख अमुख की हमारे सामने क्या औकात?आप हम अपनी औकात को किस पैमाने से नाप रहे हैं?जन्मजात तथाकथित उच्चता,कुल की सम्पन्नता, धन बल, दबंग बल, माफियागिरी, पद, जातिबल, सत्ताबल, जनबल...... आदि आदि?!



बुधवार, 2 सितंबर 2020

चलो ठीक है घर में माचिस,मोमबत्ती रखी जाती है लेकिन इससे व वर्तमान शिक्षा से मानवता मुस्कुराने वाली नहीं:अशोकबिन्दु

 ये माचिस, तीलियां, मोमबत्तियां क्या...?!

बाबू जी ने कहा था कि.......हमारी हर योजना दुर्घटना बन सकती है::श्री पार्थसारथी राजगोपालाचारी


पृष्ठ 46,

 लाला जी महाराज

पुस्तक-"वे, हुक्का और मैं"!


"बाबू जीने एक बार मुझसे कहा था कि सारी अप्रत्याशित घटनाएं, ईश्वरीय योजना के अनुरूप होती हैं, जबकि हमारी हर  योजना दुर्घटना बन सकती है।"-श्री पार्थ सारथी राजोपलाचारी।



 आदि शंकराचार्य ने  ऐसी तीन बातों के बारे में बताया है इनकी कुछ लोग कल्पना भी नहीं कर सकते पहली बार इस भूलोक में मानव लोक में जन्म लेना और मोच केवल इसी लोक में संभव है किसी अन्य लोक में नहीं साथ ही ऐसे समय पर जन्म हो जब कोई महान गुरु इस धरती पर विद्यमान हो अर्थात समर्थ सद्गुरु हमारे बीच मौजूद हो यह दूसरा आशीर्वाद है क्योंकि हो सकता है आप तब पैदा हो जब कोई गुरु उपलब्ध ही ना हो ऐसी कोई हस्ती उपलब्ध ना हो ऐसी सहायता उपलब्ध ना हो और तीसरी सबसे महत्वपूर्ण बात है की वे धरती पर विद्यमान हो और आप भी हो साथ ही आप उन तक पहुंचने में सक्षम हो पाए उन्हें गुरु के रूप में स्वीकार करें और उन्हें समर्पण कर दें ए तीन सबसे बड़े आशीर्वाद है जो एक आत्मा को एक आकांक्षी आत्मा को ईश्वर के द्वारा प्रदान की जा सकते हैं।



बाबू जी ने एकदम शुरू से ही कहा है अगर तुम आध्यात्मिक बनना चाहते हो तो बुद्धि को दरकिनार कर दो बाबूजी ने एक बार मुझसे कहा था की सारी अप्रत्याशित घटनाएं 30 योजना के अनुरूप होती हैं जबकि हमारी हर योजना दुर्घटना बन सकती है जैसे कोई कहीं से माना अर्जेंटीना से पेरू जाने का निश्चय करता है और अचानक उसका हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है जैसे 2 दिन पहले वहां भयंकर विमान दुर्घटना हुई थी क्या हुआ उनकी योजना धरी की धरी रह गई जैसा के अंग्रेजी साहित्य में कहा जाता है छोटे से छोटे जीव से लेकर मनुष्य तक की अच्छी से अच्छी योजना भी अक्सर तहस-नहस हो जाती है चूहे से लेकर इंसान तक किसी भी जीव की तो अपनी योजनाओं पर भरोसा मत करो इसीलिए कई बार खास तौर पर विदेशियों द्वारा मेरी आलोचना हुई है कि आप अपनी योजनाओं के अनुसार काम नहीं करते मैंने अपनी योजनाओं पर हमेशा अमल किया है लेकिन उन लोगों का मानना है भारत की हमेशा देरी से आते हैं भारतीय समय विलंब का पर्याय बन गया है जबकि वास्तव में इसका उल्टा है। आप जर्मनी जाते हैं और जहाज ढाई घंटे लेट हो जाता है ओहो फ्रैंकफर्ट में तूफान रहा होगा अर्पणा हर कोई अपना सेब और सॉसेज लेता है और मुस्कुराते हुए हवाई जहाज में जाकर बैठ जाता है क्योंकि जर्मनी में हवाई जहाज कभी देरी से नहीं उड़ते अब अगर वहां तूफान आया हो तो आप कर भी क्या सकते हैं अगर पैसा मौसम भारत में हो और हवाई जहाज लेट हो जाए ,"भारत में ,हा ! इम्मर ,इम्मर "जर्मन भाषा में जिसका अर्थ है," भारत में हमेशा हमेशा ही ।" यह गोरों का अहंकार ही है कि यूरोप में ट्रेन भले ही लेट आए, फिर भी वह सही समय पर ही होती है ।"क्योंकि एक ट्रेन की गलती नहीं है, कहीं, कोई अड़चन आ गई होगी ।" आप समझे?



हम(अशोकबिन्दु)उपरोक्त को पढ़ते पढ़ते ,हमें ध्यान आया कि-हम पुरानी बात ही दोहराते हैं। आत्मा गर्भ धारण करते वक्त व इससे पहले ही अपनी योजना लेकर आती है।हमने यहां पर कुरु आन के शुरुआती सात आयतों "अल-फातिहा"सम्बंधित पृष्ठ की भी तश्वीर डाली है।इसको आदि शंकराचार्य की उल्लखित उपरोक्त बात को ध्यान में रख कर देखने की कृपा करें। हां, आत्मा जब गर्भ धारण करती है तो उस वक्त व उससे पहले ही उसकी योजना तय होती है।



दोष अपना ही होता है हम औरों को दोष देते हैं।





मंगलवार, 1 सितंबर 2020

बाबूजी ने कहा है कि विज्ञान में धर्म से अधिक अंधविश्वास हैं:: पार्थसारथी राजगोपालाचारीजी

 

एट पुस्तक है -'वे, हुक्का और मैं'।

" जिसमें श्री पार्थ सारथी राजगोपालाचारी द्वारा दिए गए भाषण संकलित हैं । जिसके पृष्ठ 45 पर कहा गया है बाबूजी महाराज के साथ हुई मेरी शुरू की वार्ताओं में से एक में उन्होंने इसका खंडन किया था उन्होंने कहा विज्ञान में धर्म से अधिक अंधविश्वास है।"


हम (अशोकबिन्दु) किशोरावस्था से ही जितना पढ़े है न उससे ज्यादा चिंतन मनन किए है। किसी ने कहा है विद्यार्थी वही है जिसकी समझ, नजरिया शिक्षा व पाठ्यक्रम के विषयों पर चिंतन मनन की ओर अग्रसर होती है न कि सिर्फ रटना। हम इन दिनों 'वे, हुक्का और मैं' का दूसरी बार अध्ययन कर रहे हैं।


 पृष्ठ 45-46 पर का जो है, उसे अपने हिसाब से हम लिख रहे हैं।

फ्रायड जिसने विज्ञान को आधार बनाया और कहा धर्म बहुत सारी बातों की व्याख्या उस प्रकार नहीं कर सकता जिस प्रकार विज्ञान कर सकता है एक प्रसिद्ध कहावत है जिसके अनुसार विज्ञान केवल यह बता सकता है चीजें कैसे घटित होती हैं परंतु इस प्रश्न क्यों का उत्तर वह नहीं दे सकता क्लोरो क्लोरोफिल हरा होता है क्लोरोफिल हरा क्यों होता है विज्ञान इसका उत्तर नहीं दे सकता तीन टांगे क्यों नहीं तीन टांगों वाली किसी चीज से हमारा सामना नहीं हुआ है शिवाय स्टूल के दो टांगे चार टांगे खेता में 1000 टांगों वाला जिओ कनखजूरा लेकिन तीन टांगे नहीं शिवाय वैज्ञानिक काल्पनिक उपन्यासों के तो देखिए हम तो यह कहेंगे यह धारणा रखना अपने आप में एक प्रकार का अंधविश्वास है विज्ञान सारे प्रश्नों के उत्तर दे दे देगा मुझे याद है एक बार डॉ वरदाचारी अंधविश्वास की व्याख्या कर रहे थे जो दो शब्द सूपर और स्टीशिया से बना है:कोई चीज जो किसी अन्य चीज के आधार पर खड़ी है,और जिस आधार पर खड़ी है, उसी पर अपना प्रभुत्व प्रदर्शित कर रही है। तो हम विज्ञान का आधार ले कर खड़े हैं और दावा करते हैं कि विज्ञान में कोई अंधविश्वास नहीं हैं।बाबू जी के साथ हुई मेरी शुरू की वार्ताओं में से एक में उन्होंने इसका खंडन किया था,उन्होंने कहा, " विज्ञान में धर्म से अधिक अंधविश्वास है।"



धर्म में जो अंधविश्वास है बे कम से कम न्याय संगत तो हैं जो हमारी सहायता करते हैं जैसे आप ईश्वर से प्रार्थना करते हैं आपको कुछ राहत मिलती है लेकिन विज्ञान में कभी कोई राहत नहीं है कोई आदमी पागल हो जाता है और वहां कोई राहत नहीं है विज्ञान बताता है वह पागल कैसे हो गया मेरा मतलब है विज्ञान स्पष्ट करने का प्रश्न करता है वह सदमे में था वह उस सदमे में था लेकिन उससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकता तो हमें बहुत सतर्क रहना होगा हम विज्ञान का उपयोग किस प्रकार करते हैं और इसीलिए बाबू जी ने एकदम शुरू से ही कहां है अगर तुम आध्यात्मिक बनना चाहते हो तो बुद्धि को दरकिनार कर दो अभ्यासी कि जीवन में बुद्धि का कोई स्थान नहीं है आपकी सांसारिक जरूरतों के लिए क्या मैं आलू खरीदो या पनीर क्या मैं इस लड़की से शादी करूं या उस लड़की से क्या नौकरी के लिए मैं जर्मनी जाऊं या टोक्यो इन सब के लिए जहां तक संभव हो सके आपको अपनी मानसिक शक्ति का उपयोग करना चाहिए क्योंकि वहां भी भाग्य कहां जाने वाला घटक आड़े आता है और वह उनकी योजना होती है जो आप की योजना के विरुद्ध हो सकती है या शायद आप की योजना के अनुरूप हो सकती है इसलिए बाबूजी महाराज में एक बार मुझसे कहा था सारी अप्रत्याशित घटनाएं ईश्वरी योजनाओं के अनुरूप होती हैं जबकि हमारी हर योजना दुर्घटना बन सकती है ।



हमें एक बात अवश्य समझ लेनी चाहिए हमारी हर गतिविधि नियंत्रित होती है चाहे हम समर्पण करें या ना करें इस प्रकार के जीवन के अनुरूप सबसे बढ़िया उदाहरण अंतरिक्ष यात्री का जीवन है।




 हम भारतीय ईश्वरी आदेश का पालन करने के लिए मानव आदेश पर संदेह करने के आदि होते हैं क्योंकि मानवी आदेश निश्चित रूप से मानवीय सोच मानवी अभिलाषा ओं मानवी उत्कंठा ओं और अधिकार करने की मानवी इच्छाओं पर साथ ही लूटने की चुराने की जन्मजात मानवीय प्रवृत्ति पर भी आधारित होते हैं।



पृष्ठ 334 पर कहा गया है--" हम यहां भौतिक संसार की बात नहीं कर रहे हैं । हम यहां आध्यात्मिक क्षेत्र के बात कर रहे हैं ।ईश्वर का क्षेत्र - जो आकाश और काल के परे होता है ,जहां आइंस्टीन का असीमितता का सिद्धांत लागू होता है। ठीक है , और आत्माओं को ले आओ ,आत्माएं दूसरे अनगिनत स्थानों पर चली जाएंगी और आपके पास असंख्य आत्माओं के लिए फिर भी स्थान उपलब्ध रहेगा। "


आध्यात्मिकता कहती है," आपका कुछ नहीं है । आपकी कोई इच्छाएं नहीं है। आपसे इच्छाएं रखने की अपेक्षा नहीं की जाती । आपसे अभिलाषा रखने की अपेक्षा की जाती है।" इच्छा संग्रह के लिए होती है जबकि अभिलाषा विकास के लिए होती है । आप विकास करते हैं, नियम इसकी अनुमति देता है।" जैसा  पोर्शिया ने कहा," कानून इसकी इजाजत देता है , अदालत इसे प्रदान करती है।"और ईश्वरी अदालत कहती है, " हां, मेरे पुत्र, विकास करो, तुम्हें इस का हक है । हर सीमा से आगे विकास करो क्योंकि विकास की कोई सीमा नहीं होती।" अर्थशास्त्र में एक पुस्तक है,जिसका नाम है ' विकास की सीमाएं '। परंतु इसलिए कानून के अंतर्गत ऐसा नहीं है। वहां विकास की कोई सीमा नहीं होती। जितना भी विकास कर सकते हो,करो।" " लेकिन, क्या वह इसके लिए स्थान होगा?" मेरे पुत्र, पृथ्वी पर अगर 40 लाख आबादी और बढ़ जाए तो आप एक दूसरे को समुद्र में धकेलने लगेंगे,हम यहां भौतिक संसार की बात नहीं कर रहे हैं यहां हम आध्यात्मिक क्षेत्र की बात कर रहे हैं। यहाँ हम आध्यत्मिक क्षेत्र की बात कर रहे हैं,ईश्वर का क्षेत्र - जो आकाश और काल के परे होता है, जहां आइंस्टीन का असीमितता का सिद्धांत लागू होता है । ठीक है ,और असंख्य आत्माओं को ले आओ , अन्य आत्माएं दूसरे अनगिनत स्थानों पर चली जाएंगी और आपके पास असंख्य आत्माओं के लिए फिर भी स्थान उपलब्ध रहेगा ।" तो आज सुबह मुझे बस इतना ही कहना है।




श्री पार्थसारथी राजगोपालाचारी