जहां सोच है वहां शौंचालय है!
सन्तों ने कहा है-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर।
महात्मा गांधी से हमें न बैर है न दोस्ती। हमारा धर्म कहता है, सबका सम्मान करो।जब सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर।
भारतीय स्वच्छता अभियान को गांधी जोड़ने के पीछे जो मंशा है, वहां तक लोग नहीं पहुंचते हैं।
इस पर भी नहीं पहुंचते हैं-जहां सोच है वहां शौचालय है।
हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।हमने इसे महसूस किया है।हम इसे जिए हैं। स्वच्छता ही ईश्वर है, इसे गांधी को क्यों कहना पड़ा?
जब हम सहज हुए हैं, डेढ़ साल के बच्चे की तरह हुए हैं, हमने स्वयं अपने अंदर अनेक जीव जंतुओं के अंदर प्रकाश या चेतना या जगदीश चन्द्र बसु की सर्वव्याप्त सम्वेदना/आत्मियता/आत्मात्व को देखा है।
स्वच्छता का हर व्यक्ति, हर पन्थ में महत्व रहा है।लेकिन हम देखते हैं, ये स्वच्छता सिर्फ स्थूल तक ही सीमित है। विचारात्मक, भावात्मक, मनस आदि स्तर पर स्वच्छता को महत्व नहीं दिया जाता है। हम स्थूल,सूक्ष्म व कारण स्तर पर हम व हमारा सिस्टम स्वच्छता पर ध्यान नहीं दे रहा है।
स्वच्छता के साथ आत्मा का क्या सम्बन्ध है?स्वच्छता का परम् आत्मा के साथ क्या सम्बन्ध है?
हमारा अपने व अन्य हाड़ मास शरीरों के साथ क्या भाव, विचार व समझ होनी चाहिए?
हमारा प्रकृति के अन्य वस्तुओं के साथ क्या भाव, विचार व समझ होना चाहिए?
यही भाव, विचार व समझ ही हमारी स्वच्छता या अस्वच्छता को व्यक्त करता है।
यहां पर हमारे अपने व अन्य हाड़ मास शरीरों, प्रकृति की अन्य वस्तुओं के कर्तव्य महत्वपूर्ण करता है न कि उम्मीदें/इच्छाएं/भोग।
हमारी सहज मार्ग प्रार्थना में पंक्तियां आती हैं-
"हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं
जो हमारी उन्नति में बाधक है।"
ये सहज मार्ग प्रार्थना क्या है?
"हे नाथ!
तू ही मनुष्य जीवन का वास्तविक ध्येय है।
हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं
जो हमारी उन्नति में बाधक है।
तू ही एक मात्र ईश्वर एवं शक्ति है
जो हमे उस लक्ष्य तक ले चल सकता है। "
हम आत्मा व परम् आत्मा से प्रकाशित कब हो सकते हैं?
पवित्रता से ,स्वच्छता से।
ये पवित्रता व स्वच्छता अनेक स्तर पर है। अनेक तरह से है।
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