शनिवार, 28 मार्च 2020

विभिन्न आध्यत्मिक संस्थाएं :::जो है सो है!!

जब तुम्हारे पैगम्बर/अवतार आते है तो वे भी आध्यत्म व मानवता के सहारे होते हैं।


अनेक सन्तों के पीछे पीछे अनेक अध्यत्मिक संस्थाएं खड़ी होती रही हैं। 100 साल पहले ही सन्तों के द्वारा वर्तमान पर कह दिया गया था। भीड़ तन्त्र का हिस्सा न होकर खास होने की जरूरत है।
मानवता व  आध्यत्म को स्वीकार करने की जरूरत है। बुध्द ने कहा रखा है-अभ्यास व जागरूकता हर पल जरूरी है।हम जिसको समय देते है,वह हो जाते हैं। हमारी कोशिस किधर की है ?ये महत्वपूर्ण है।रोटी कपड़ा मकान की चिंता में जीवन/वक्त गुजार दिया तो फिर इसका परिणाम क्या होगा? ये तो हमारे हाड़ मास शरीर के लिए ही सिर्फ है। ये सिद्ध करता है कि हमारी प्राथमिकता सिर्फ हाड़ मास शरीर तक ही सीमित है। हाड़ मास शरीर ही सिर्फ हमारी सम्पूर्णता नहीं है। इससे परे हमारा सूक्ष्म भी है हमारा कारण भी है।हाड़ मास शरीर को हदें सीमित हैं।हमारे सूक्ष्म की हदें इससे भी आगे हैं।और इससे भी आगे कारण की...अनन्त.... शाश्वत.... निरन्तर.....!!!


              जो है सो है।
हमें अपनी आवश्यकताओं व उनके प्रबन्धन के लिए सिर्फ जीते जाना है। तीनों स्तरों-स्थूल,सूक्ष्म व कारण तीनों स्तरों पर।इसके लिए हमें मानवता, आध्यत्म, सर्वधर्म सद्भावना, सहकारिता, सेवा आदि को स्वीकार करने की जरूरत है।
            वर्तमान क्या है?
शरीर की आवश्यकताएं!इसका मतलब ये नहीं है कि सिर्फ अपने शरीर की आवश्यकताएं।अन्य शरीर की भी आवश्यकताएं । भूख, प्यास, सेक्स पर नियंत्रण के साथ साथ हमें स्वास्थ्य व पास पड़ोस के वातावरण, घर के वातावरण पर ध्यान देना होगा। स्वास्थ्य के अनेक स्तर हैं। तन, मन, विचार, भाव से स्वस्थ।आत्मा का सम्मान, आत्मा प्रतिष्ठा भी...... हमारा वर्तमान है कि हम स्वास ले रहे हैं।ये स्वास लेना बेहतर रहे।इसके लिए वातावरण भी स्वच्छ रहे। जो  कहते हैं-अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता।वे अपने से अभी अनजान है। वे भूल रहे हैं, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर...!!!!


              हर स्वास में ताजगी बड़े!ये मानव का कर्तव्य होना चाहिए था। हर पल आत्मा का अहसास हो,ये होना चाहिए था।हर श्वास दिव्यता का अहसास अपने अंदर होता, ऐसा होना चाहिए था। आप भी 98.08प्रतिशत भ्रम में हैं। रोजी रोटी भी चाहिए लेकिन.....!?रोजी रोटी मिल जाए, तो क्या इससे ही काम चलने वाला है? रोजी रोटी के चक्कर में हम अन्य के जीवन को हस्तक्षेप करते रहे, हम अब भी नहीं समझे।

                      हम को व्यवस्थाओं के लिए सरकार के निर्देशों का भी पालन करना है। इसका मतलब ये नहीं कि सरकार सब कुछ ठीक कर देगी?हर किसी की जिम्मेदारी है। अफसोस है, कुछ जाति, मजहब के लोग अपने जाति - मजहब के नेता,पुरोहित के आदेश का इंतजार करते है। वे अपने व जगत के प्रकृति व चेतना को  समझने की कोशिस अब भी नहीं कर रहे हैं।खुदा व कुदरत को उनकी नजर से देखने को कोशिस तक नहीं कर रहे हैं। अपने अंदर के आत्मा/चेतना/अंतर ऊर्जा/आदि को अवसर नहीं दे रहे हैं।

ओशो ने कहा है-हमारा वर्तमान कदम भविष्य है।उपआवास,व्रत, रोजा, प्रकृति के बीच कुछ दिन तम्बू में बिताना, जंगल के बीच अभाव में आश्रम आदि में कुछ समय बिताना भी भविष्य की तैयारी व प्रकृति अभियान से जुड़े रहने का अभ्यास है। मानव जीवन के प्रथम चौथाई समय को ब्रह्मचर्य जीवन के रूप में जीने का हेतु भी भविष्य की तैयारी था।


सत्य के उदय में बाबू जी महाराज ने अध्याय10 के अंतर्गत मेरी दृष्टि को स्पष्ट किया है।
     







शुक्रवार, 27 मार्च 2020

राज्य भी एक आवश्यकता है जैसे परिवार।
राज्य के आबश्यक।निर्देशों।का पालन करें।दुनिया भारत की ओर उम्मीद लगाए देख रही है।आज सुबह 7.00am से 9.00pm तक  सहज रह घर पर ही रहें।
अपने स्तर के आधार पर मालिक से प्रार्थना में रहे।

निम्न उपाय हम ये भी अपना सकते है...

(1) अंतर्मुखी हो आंख बंद कर बैठे औऱ सिर से लेकर नीचे तक अपने शरीर का मन ही मन अहसास करते हुए कल्पना करें कि हमारे सारे विकार,अशुद्धियां, जटिलताएं आदि धुआं बन कर बाहर जा रहे हैं। इसे कम से कम 10 मिनट तक करें । जब शरीर में हल्कापन महसूस होने लगें तो भाव लें अंतरिक्ष के किसी छोर से दूधिया रंग का  प्रकाश नीचे आकर हमारे शरीर पर पड़ रहा है । पूरा शरीर अंदर बाहर दूधिया रंग से नहा गया है।रोम रोम साफ हो रहा है ओर जिसके प्रभाव से बचा खुचा विकार, अशुद्धियां, जटिलताएं आदि भी धुआं बन कर बाहर जा रही हैं।धीरे धीरे कर हम बिल्कुल दुधिया प्रकाश से सराबोर हो चुके हैं।हमारे विकार, अशुद्धियां, जटिलताएं आदि खत्म हो चुके हैं।

(2)इससे आगे-मैं आत्मा हूँ, जो परमात्मा रूपी सूरज की किरण है।हम सब एक ही हैं।इस भाव के साथ-हम सब, हमारा मकान, हमारा आसपड़ोस, हमारा गाँव व नगर, देश, पूरा विश्व दिव्य प्रकाश से भर रहा है।उसके विकार, अशुद्धियां धुआं बन कर खत्म हो रहे हैं।सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर।हम सब चेतना के सागर की लहरें हैं।

(3)उपर्युक्त भाव में रहें।बीच बीच में अपनी दैनिक चर्या अपनाएं। अध्यत्मिक पुस्तकें पढ़ें।परिवार के सदस्यों को साथ बैठा कर सत्संग करें।आंख बंद कर अपने शरीर का अहसास करें, उसमें दिव्यता का अनुभव करें।आदि आदि...

(4) पेट भर कर भोजन न करें।सुपाच्य भोजन, जलपान ही ग्रहण करें।इन प्रक्रियाओं के तुरंत बाद पानी न पिएं।

(5)सांयकाल 05.00pm पर सेवाकर्मियों, चिकित्सक टीम आदि को धन्यवाद दें, उनके लिए प्रार्थना करें।उनके लिए थाली, ताली बजाएं।ये बहुत पुरानी परंपरा रही है। विदेश में भी लॉक डाउन के बीच लोग ऐसा कर रहे हैं।इसके पीछे भी बैज्ञानिक कारण हैं।साउंड थेरेपी है।

(6)रात्रि 09.00pm हम सभी साथी/अभ्यासी पूरे विश्व में इस भाव में बैठते है कि जगत में जो भी स्त्री पुरूष है, भाई बहिन हैं।उनमें मालिक की रोशनी मौजूद है।सभी लोग शांत भाव में बैठ कर विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण के लिए भाव ला कर प्रार्थना करें। सर्वेभवन्तु सुखिनः... जिओ और जीने दो...सर्वधर्म समभाव... आदि का भाव रखें।

(7)ये भाव रखे कि सारे जगत में , ब्राह्मांड में, जगत के सभी प्राणियो में दिव्य प्रकाश मौजूद है।सब विकारों से दिव्यता की ओर बढ़ रहे हैं, स्वस्थ हो रहे हैं।स्व(आत्मा) में स्थित हो रहे हैं।सदाचरण को प्राप्त हो रहे हैं।
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""हमारे वैश्विक प्रमुख श्री कमलेश डी पटेल 'दाजी' विश्व बन्धितव,विश्व कल्याण हेतु कार्यों में लगें हुए हैं।

#कान्हाशांतिवनमहैदराबाद

#heartfulnesskatra

#कबीरापुण्यसदन

सब जगह शांति शांति है ::: इंसान के विकास ने कब से छोड़ दिया था वह?

इंसान के जीवन में कोहराम है।

क्योकि उसने कुदरत को शांति व सम्मान न दिया।

अब..?

कुदरत शांत इंसान अशान्त!!

किसी सन्त ने कहा है कि दुनिया में न कोई मित्र है न शत्रु। हमारा आत्मा ही शत्रु व मित्र है।आत्मा कब मित्र है कब शत्रु? हम तो इसे महसूस कर रहे हैं ,आप कब?


हमने सदा महसूस किया । रट कर परीक्षा पास करने के लिए, समाज में अपनी ऊंची हांकने के लिए,सांसारिक चमक दमक के लिए नहीं पढ़ा। हमने जिज्ञासा के लिए पढा।

लोग दुर्योधन व उसके सहयोगियों से कम नहीं।

'सदा सत्य बोलो'-पाठ को सबने दूसरे दिन सुना दिया लेकिन युधिष्ठर न सुना पाए।उनकी माजक ही बनी। इतिहास गवाह है जिनकी माजक बनी जो पागल सनकी हुए उनमें से भी अनेक महापुरुष हुए। युधिष्ठर ने सात दिन बाद सुनाया। संख्या सात का बड़ा महत्व है।

साहित्य में कहीं पर विभीषण व रावण संवाद में आता है, वहां पर आता है-अधर्म में भी अपना कोई नहीं होता, धर्म में भी कोई नहीं ।
हर स्तर पर अपनी आत्मा/निजता/आत्मा सम्मान व प्रकृति सम्मान महत्वपूर्ण है।यही अपना प्रेम है। लोभ, मोह,काम आदि में लिप्त व्यक्ति प्रेम व भक्ति में नहीं होता।

इंसान शांति के लिए कितना समय दिया है?इंसान शांति के लिए रिश्ता कब निभाया है? बुध्द कह गये -संसार में दुख है, दुख का कारण तृष्णा है।हम ये कक्षा छह में आते आते पढ़ लिए, पढ़ डाला -ऐसा नहीं।हमने कभी स्मरण शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया।जो हो सहज हो।जबरदस्ती नहीं।जबरदस्ती भी हिंसा है।

22 मार्च 2020 : जनता कर्फ्यू से हम और सहज होने की ओर हैं।हम जमाने की भीड़ में अपनी आत्मा/आत्मियता/निजता/आत्मा सम्मान(हम आत्म सम्मान को आत्मा सम्मान मानते रहे है इसलिए हम समाज व संस्थाओं में खामोशी से बर्दास्त करते रहे है।ईसा, सुकरात, मीरा, अंगुलिमान आदि को याद कर) आदि को कब तक नजरअंदाज कर सकते।अब आज....???कुदरत कब तक आने अंदर की आत्मा/आत्मीयता /आदि को कब तक नजरअंदाज कर सकती? ये कोरो-ना प्रकरण के लिए चाहें कोई भी देश व देश का सत्तावाद, पूंजीवाद दोषी हो लेकिन हम कुदरत तो सारी मनुष्य जाति को दोषी मानेगी उनके सिवा जो कुदरत से मेल खाते हैं। अभी आप heartfuless को नहीं समझ पा रहे हैं।अब भी कहते है न,दिमाग से काम  लो । जगदीश चन्द्र बसु ने तो पेड़ पौधों में तक सम्वेदना महसूस की। पेड़पौधों में स्थूल दिल नहीं होता लेकिन सम्वेदना होती है। ये सम्वेदना दिल का मामला नहीं आत्मा/आत्मियता/निजता/आत्मा सम्मान का मामला है।इसलिए देवरहा बाबा कहते थे-ये बच्चा तू जिसे पेंड कहता है।उससे तो हम रात में बतियाते हैं।आप क्या समझो इसे।अशोकबिन्दु भैया तो चूतिया है।तुम्हारे ठेकेदारों के सामने भी। लेकिन जो आपको दिखता है उससे आगे भी बहुत कुछ है.... अनन्त है.....शाश्वत है......निरन्तर है......... हमारे अंदर भी,जगत व ब्रह्मांड के अंदर भी। आप व आपके जमाने ने कब ऋषियों ,सन्तों,ऋषभ देव, जड़ भरत, बुद्ध ,कबीर, नानक, रैदास,श्रीरामचन्द्र फतेहगढ़, राजा राममोहन राय, ज्योतिबाफुले, दयानन्द सरस्वती आदि को अपने नजरिया में जिया?लेकिन अपनी आत्मा/आत्मियता/आत्मा सम्मान/आदि को  कब तक नजर अंदाज करोगे?जहाँ से अनन्त का  द्वार खुलता है।

सम्भलो,नहीं तो इंसान अशांत होगा कुदरत ......
वर्तमान में कुदरत को शांति में शायद ही महसूस कर रहे होंगे ?शायद ही सहज महसूस कर रहे होंगे?अचानक कभी महसूस नहीं  होता।कभी अपने को महसूस करने को वक्त न दिया कुदरत को कब महसूस करोगे? ऐसे में वर्तमान में कुदरत से प्रेरणा क्या महसूस करोगे?

शांति अंदर है।स्वत:में है।शाश्वत में है।

ताजुब्ब है जो देश, इंसान, प्रकृति से बढ़ कर खुदा को मानते है ।
वे खुदा पर भरोसा नहीं करते।यदि खुदा पर भरोसा करते होते तो... सड़क पर उतर कर हिंसा मनमानी नहीं करते होते। हम राम से ज्यादा मोहम्मद साहब को स्वीकार करते हैं। उन पर कूड़ा डालने वाली और का भी वे सम्मान करते थे।खुद से ही खुदा की ओर बड़ा जा सकता है अर्थातइंसानियत के लिए भी खबरें मिल रही है ।
धन्यबाद.... आत्मा सम्मान से ही परम् आत्मा के सम्मान की और प्रेम की ओर बढ़ा जा सकता है। जो सर्व व्याप्त है।सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर..... हमें बार बार अनेकइंसानियत के लिए भी खबरें मिल रही है ।
धन्यबाद.... बातें दोहरानी होती है। ऐसे में हम कुदरत के खिलाफ कैसे का सकते है??

सब जगह शांति शांति है।लेकिन.........?????






गुरुवार, 26 मार्च 2020

अपने को बचाने का अवसर धरती पर मानव का भविष्य बचाने का अवसर!!

हम कहते रहे हैं सन2011 से 2025 तक का समय काफी महत्वपूर्ण है।जय गुरुदेव /सन्त तुलसी दास ने इस समय के शुरुआत के साथ कहा था-दयाल का कार्य समाप्त हो गया है अब महाकाल का समय शुरू हो गया है। इस समय में फूंक फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। अपने को बचाना होगा।अपने को बचाने का मतलब क्या है? हमारा हाड़ मास शरीर में तो बैसे भी गिरावट होना है।बात है स्वस्थ जीवन, मानव जीवन को बचाने की।
हम अपनी पूर्णता को समझें -स्थूल, सूक्ष्म व कारण।हम सिर्फ हाड़ मास शरीर  नहीं है।
            अभी तक अधिकतर व्यकित स्थूल समाधान व व्यवस्था में रहे हैं। हमारी शिक्षा भी स्थूल प्रबन्धन तक ही सीमित रही है।अब वक्त आ गया है कि हम सूक्ष्म प्रबन्धन की ओर भी बढ़ें।सूक्ष्म विज्ञान की ओर बढ़ें। विज्ञान की माने तो स्थूल जगत के सूक्ष्म प्रति प्रबन्धन के सम्बंध में ही हम अनजान हैं।विज्ञान कहता है-विषाणु व जीवाणु इतने छोटे होते हैं कि एक सुई की नोक पर तीन लाख संख्या आ जाती है। हम अनजान हैं कि हम जहां पर हैं वहां करोड़ो ये सूक्ष्म कण होते हैं।  जो सूक्ष्म ऋणात्मकता है उससे हम सूक्ष्म प्रबन्धन से ही निपट सकते हैं। स्थूल उपाय तो करने ही हैं।अस्वस्थता क्या है?असन्तुलन।हमारे अंदर असन्तुलन खड़ा होना। बुद्ध ने कहा है-अति ही विष है।असन्तुलन या अस्वस्थता का मतलब है-किसी की अति और किसी की न्यूनता। अभी तो हम अपनी सम्पूर्णता से ही जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

               कमलेश डी पटेल कहते है - अपने सूक्ष्म जगत के प्रबन्धन के लिए हमें प्रशिक्षित होना है। वर्तमान शिक्षा मानव को सूक्ष्म प्रबन्धन की योग्यता नहीं सिखाती। हार्टफुलनेस एजुकेशन हमें स्थूल, सूक्ष्म व कारण तीनों के योग/ सम्पूर्णता को सिखाती ही नहीं उस दशा में ले जाती है जो धीरे धीरे हमारा व्यक्तित्व बदलने में सहायक होती है।वह हमारे चेतना व समझ को चेतना के अग्रिम बिंदु की ओर निरन्तर रखती है। आत्मा अनन्त प्रवृतियां रखती है है।ऐसे में गिनती लायक प्रवृतियां रखने वाले घटकों से हम उबरते हैं।सूक्ष्म से सूक्ष्म, सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतर से सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतर से और सूक्ष्मतर में जाने की ओर बढ़ते हैं।जहां विकासशीलता है विकसितता नहीं, निरन्तरता है। ऐसे में हम स्थूल समस्याओ से ऊपर उठते है।स्थूल की जो प्रकृति है ,उसे हमे स्वीकार करना ही होगा।कोई बीज अंकुरित हो पौधा बनेगा ही, पेंड बनेगा ही,बूढा होगा ही।लेकिन उसकी चेतना यात्रा आगे तक जाती है।


                  जहां पवित्रता है वहां आत्मा का प्रकाश है, मौन में उसका साक्षात्कार है। जगत मूल से जुड़ने के बाद हम स्वयं अपने शरीर प्रकृति के ही नहीं जगत प्रकृति के राजा होने की संभावनाएं तैयार कर सकते हैं। बाबू जी महाराज में कहा था-आध्यत्म व्यक्ति को शेर बनाता है।गीता में श्रीकृष्णमध्यम महाकाल सन्देश क्या हैं?
हे अर्जुन(अनुरागी) उठ।दुनिया के धर्मो को छोंड़ मेरी शरण आ जा।तू भूतों को भजेगा तो भूतों को प्राप्त होगा, पितरों को भजेगा तो पितरों को प्राप्त होगा, देवों को भजेगा तो देवों को प्राप्त होगा, मुझे भजेगा तो मुझे प्राप्त होगा। हमें अपने अंदर ही परम् आत्मा को पाना है।आत्मा को परम् आत्मा होना है।यही अनुशासन है।अपने प्रकृति पर नियंत्रण, यात्रा जारी रहना चाहिए.... सब ठीक होगा।

  हमें अपनी निजता/आत्मा के लिए अवसर देना ही होगा। अपने को अहसास करने को वक्त देना होगा।

गुरुवार, 19 मार्च 2020

आदि काल से सन्त परम्परा रही है, जिसको हमने जीना पसंद नहीं किया::अब तो सँभलो!!आकस्मिक योग के मैसेज को पकड़ो!१

कभी आकस्मिक योग को समझा है। कुदरत हमें मैसेज दे रही है, क्या समझ रहे हो?हम कहते रहे हैं-वर्तमान तन्त्र,बनाबटों, पूर्वग्रहो आदि के रहते बदलाव नहीं हो रहे हैं, सुधार नहीं हो रहे हैं।हमारे वर्तमान तन्त्र कुदरत, जीवन को उसके ही भांति नहीं देख रहे हैं।वर्तमान में हम जिस व्यवस्था व नजरिया में यदि सन्तुष्ट, शांत नहीं हो रहे हैं और तब भी बदल नहीं रहे हैं तो इसका मतलब क्या है?हम कुदरत को कब तक असन्तुलित करेंगे? वर्तमान से जो कुदरत मैसेज देना चाह रही है,वह क्यों नहीं पकड़ते?कुदरत जब सन्तुलन करने चली तो तो तुम असन्तुलित होंगे ही।सन्त, महापुरुष को आचरण में कितना उतरते हो?अपनी आत्मा के गुण(धर्म) को कब पकड़ते हो...एक  कोरो-ना से आपकी व्यवस्थाएं चौपट हो रही हैं,मैसेज मिल रहा है---पकड़ो।हम जो नजरिया, आस्था, विचार, भाव आदि में जीते हैं......हम कहते रहे है:तुम्हारे ये जिस स्तर पर हैं उस स्तर से ऊपर भी अनेक स्तर हैं... अनन्त.... तुम्हारी बुद्धि सिर्फ चतुर्मुखी है, चतुरप्रवृति है...आत्मा अनन्त प्रवृति है.... अब भी समय है, सम्भल लो।जाति मजहब, धर्म स्थलों की राजनीति, सोच से ऊपर उठो..... हम देख रहे हैं आकस्मिक योग!!हम तीस साल
पहले भी वही थे जो आज थे।आप अपने को नहीं जानते ,हमें क्या जानोगे? हम मालिक को धन्यवाद देते हैं ,कुछ लोग कहने लगे है अब हमें आपकी कुछ कुछ समझ आ रही है..... विश्व बंधुत्व, विश्व सरकार...कुम्भ में सागर सागर में कुम्भ..... आदि आदि!!सदियों से संत परम्परा रही है।जिनका आपके पैगम्बरों/अवतारों/भगवानों ने भी सम्मान किया है।इतना न गिरो की जो सही है उसका हम सम्मान ही न कर पाएं.... उठो, अब भी वक्त है.....
#अशोकबिन्दु भैया

बुधवार, 18 मार्च 2020

भीड़ तन्त्र से परे आत्म केन्द्रण, प्राण प्रतिष्ठा, आत्म प्रतिष्ठा, आत्मसम्मान, प्राणाहुति व संक्रमण.......#अशोकबिन्दु/कबीरा पुण्य सदन

भीड़तन्त्र से परे... आत्म केन्द्रण,प्राणप्रतिष्ठा,आत्मसम्मान व संक्रमण .......

""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""#अशोकबिन्दु कटरा

नगेटिव में भी पॉजीटिव है।

श्री अर्द्धनारीश्वर अवधारणा, गीता के विराट रूप, कुंडलिनी जागरण व सात शरीर.,अनन्त यात्रा पर पुस्तकों...... आदि को भी समझना आबश्यक है।

हमारे अंदर, जगत व ब्राह्मांड एक अंदर कुछ है जो महत्वपूर्ण है।
हम कहीं मेडिटेशन करने जाते हैं तो शुरुआत यहीं से करते हैं-हमारे अंदर भी कुछ है जो निकल जाता है तो ये शरीर लाश है।
उसके लिए हम क्या करते हैं। ईश्वर/खुदा को मानो या मानों ये महत्वपूर्ण नहीं है।महत्वपूर्ण है-आत्मा की याद में रहना, प्रकृति का सम्मान करना।सुप्रबन्धन में जीना।

वर्तमान में हम कोरो-ना के चक्कर में जो उपाय, व्यवस्था, सजगता आदि कर रहे है,कोशिस कर रहे है.... वह एक पायदान मानव व मानवता को अग्रिम स्तर पर लेजाना है।ये आकस्मिक योग है।
जागरूकता व अभ्यास में तो निरंतर रहना चाहिए। हमें भीड़ से बचना चाहिए।योग व आचरण, योगी व आचार्य का जीवन अंदर ही अंदर बिताना चाहिए।उसका समाज व भीड़ में प्रदर्शन नहीं।
भीड़ तन्त्र को नजरअंदाज कर महापुरुषों ,सन्तों के लिए जीवन को स्वीकार करने की जरूरत है।

आपके पैगम्बर, अवतार, भगवान भी संतों के सम्मान में खड़े दिखे हैं।चलो ठीक है हम भटके हुए हैं लेकिन जो शान्त प्रिय, सहज, सत्य में जीना चाहते है, उनके लिए क्या हम व्यवधान बनें?


जीवन को जीवन की दृष्टि से देखिए।अपनी इच्छाओं, शारिरिक लालसाओं, जातीय मजहबी मकसदों आदि के आधार पर नहीं।
हम अपने को जाने।अपने आत्मा से जुड़े।आत्मा के सम्मान की कोशिश करें।



            जो भी जगत में है,वह तीन  स्तर रखता है-स्थूल, सूक्ष्म व कारण। हमें अभी सही रूप से स्थूल ही दिखाई नहीं देता, उस पर पूर्वाग्रह, बनाबटों, संस्कारों ,जटिलताओं आदि का प्रभाव आड़े आ जाता है।हम स्थूल को स्थूल की नजर से नहीं देख पा रहे हैं।प्राचीन जितनी सभ्यताएं है,उनमें पांच तत्व, चन्दमा, सूरज, ग्राम देवता, नगर देवता का जिक्र मिलता। जो कुल मिला कर प्रकृति के सम्मान की ओर संकेत करता था। पुरोहितवाद ने हमें भटका दिया।दरवाजे पर कोई साधु आता है, पूछता है घर में कितनी मूर्ति हैं?मतलब उस घर के व्यक्तियों से होता है।हम सब, जगत आदि सब अनन्त यात्रा, प्रकृति अभियान की यात्रा में मूर्ति ही हैं। ऋषि मुनि, सन्तों ने अपने अंदर जो वेद(दर्शन) अवतरित देखा उसको अपने करीबियों महसूस करने का प्रयत्न किया। ये परम्परा राजा जनक व दशरथ तक चलती रही।फिर गुप्त हो गयी।जिसे सूफी संतों ने स्वीकार किया। सूफी संत हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खां साहब रायपुरी से वह फिर श्रीरामचन्द्र महाराज फतेहगढ़ में आया। योग व आचरण, योगी व आचार्य हमारी मूल परम्परा का खास हिस्सा है। प्राण प्रतिष्ठा मूर्तियों(पत्थर की मूर्ति)तक सीमित रह गयी थी। उसे प्राणाहुति के नाम से फिर प्रबंधित किया गया। आखिर प्राणाहुति क्या है? प्राणाहुति संक्रमण का अपोजिट है। हमें आधा गिलास खाली तो दिखाई दे रहा है लेकिन आधा गिलास भरा हुआ नहीं दिखाई देता।
आओ हम सब प्राणाहुति में डूबे।ये डूब जीवन है।
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