शुक्रवार, 27 मार्च 2020

सब जगह शांति शांति है ::: इंसान के विकास ने कब से छोड़ दिया था वह?

इंसान के जीवन में कोहराम है।

क्योकि उसने कुदरत को शांति व सम्मान न दिया।

अब..?

कुदरत शांत इंसान अशान्त!!

किसी सन्त ने कहा है कि दुनिया में न कोई मित्र है न शत्रु। हमारा आत्मा ही शत्रु व मित्र है।आत्मा कब मित्र है कब शत्रु? हम तो इसे महसूस कर रहे हैं ,आप कब?


हमने सदा महसूस किया । रट कर परीक्षा पास करने के लिए, समाज में अपनी ऊंची हांकने के लिए,सांसारिक चमक दमक के लिए नहीं पढ़ा। हमने जिज्ञासा के लिए पढा।

लोग दुर्योधन व उसके सहयोगियों से कम नहीं।

'सदा सत्य बोलो'-पाठ को सबने दूसरे दिन सुना दिया लेकिन युधिष्ठर न सुना पाए।उनकी माजक ही बनी। इतिहास गवाह है जिनकी माजक बनी जो पागल सनकी हुए उनमें से भी अनेक महापुरुष हुए। युधिष्ठर ने सात दिन बाद सुनाया। संख्या सात का बड़ा महत्व है।

साहित्य में कहीं पर विभीषण व रावण संवाद में आता है, वहां पर आता है-अधर्म में भी अपना कोई नहीं होता, धर्म में भी कोई नहीं ।
हर स्तर पर अपनी आत्मा/निजता/आत्मा सम्मान व प्रकृति सम्मान महत्वपूर्ण है।यही अपना प्रेम है। लोभ, मोह,काम आदि में लिप्त व्यक्ति प्रेम व भक्ति में नहीं होता।

इंसान शांति के लिए कितना समय दिया है?इंसान शांति के लिए रिश्ता कब निभाया है? बुध्द कह गये -संसार में दुख है, दुख का कारण तृष्णा है।हम ये कक्षा छह में आते आते पढ़ लिए, पढ़ डाला -ऐसा नहीं।हमने कभी स्मरण शक्ति का इस्तेमाल नहीं किया।जो हो सहज हो।जबरदस्ती नहीं।जबरदस्ती भी हिंसा है।

22 मार्च 2020 : जनता कर्फ्यू से हम और सहज होने की ओर हैं।हम जमाने की भीड़ में अपनी आत्मा/आत्मियता/निजता/आत्मा सम्मान(हम आत्म सम्मान को आत्मा सम्मान मानते रहे है इसलिए हम समाज व संस्थाओं में खामोशी से बर्दास्त करते रहे है।ईसा, सुकरात, मीरा, अंगुलिमान आदि को याद कर) आदि को कब तक नजरअंदाज कर सकते।अब आज....???कुदरत कब तक आने अंदर की आत्मा/आत्मीयता /आदि को कब तक नजरअंदाज कर सकती? ये कोरो-ना प्रकरण के लिए चाहें कोई भी देश व देश का सत्तावाद, पूंजीवाद दोषी हो लेकिन हम कुदरत तो सारी मनुष्य जाति को दोषी मानेगी उनके सिवा जो कुदरत से मेल खाते हैं। अभी आप heartfuless को नहीं समझ पा रहे हैं।अब भी कहते है न,दिमाग से काम  लो । जगदीश चन्द्र बसु ने तो पेड़ पौधों में तक सम्वेदना महसूस की। पेड़पौधों में स्थूल दिल नहीं होता लेकिन सम्वेदना होती है। ये सम्वेदना दिल का मामला नहीं आत्मा/आत्मियता/निजता/आत्मा सम्मान का मामला है।इसलिए देवरहा बाबा कहते थे-ये बच्चा तू जिसे पेंड कहता है।उससे तो हम रात में बतियाते हैं।आप क्या समझो इसे।अशोकबिन्दु भैया तो चूतिया है।तुम्हारे ठेकेदारों के सामने भी। लेकिन जो आपको दिखता है उससे आगे भी बहुत कुछ है.... अनन्त है.....शाश्वत है......निरन्तर है......... हमारे अंदर भी,जगत व ब्रह्मांड के अंदर भी। आप व आपके जमाने ने कब ऋषियों ,सन्तों,ऋषभ देव, जड़ भरत, बुद्ध ,कबीर, नानक, रैदास,श्रीरामचन्द्र फतेहगढ़, राजा राममोहन राय, ज्योतिबाफुले, दयानन्द सरस्वती आदि को अपने नजरिया में जिया?लेकिन अपनी आत्मा/आत्मियता/आत्मा सम्मान/आदि को  कब तक नजर अंदाज करोगे?जहाँ से अनन्त का  द्वार खुलता है।

सम्भलो,नहीं तो इंसान अशांत होगा कुदरत ......
वर्तमान में कुदरत को शांति में शायद ही महसूस कर रहे होंगे ?शायद ही सहज महसूस कर रहे होंगे?अचानक कभी महसूस नहीं  होता।कभी अपने को महसूस करने को वक्त न दिया कुदरत को कब महसूस करोगे? ऐसे में वर्तमान में कुदरत से प्रेरणा क्या महसूस करोगे?

शांति अंदर है।स्वत:में है।शाश्वत में है।

ताजुब्ब है जो देश, इंसान, प्रकृति से बढ़ कर खुदा को मानते है ।
वे खुदा पर भरोसा नहीं करते।यदि खुदा पर भरोसा करते होते तो... सड़क पर उतर कर हिंसा मनमानी नहीं करते होते। हम राम से ज्यादा मोहम्मद साहब को स्वीकार करते हैं। उन पर कूड़ा डालने वाली और का भी वे सम्मान करते थे।खुद से ही खुदा की ओर बड़ा जा सकता है अर्थातइंसानियत के लिए भी खबरें मिल रही है ।
धन्यबाद.... आत्मा सम्मान से ही परम् आत्मा के सम्मान की और प्रेम की ओर बढ़ा जा सकता है। जो सर्व व्याप्त है।सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर..... हमें बार बार अनेकइंसानियत के लिए भी खबरें मिल रही है ।
धन्यबाद.... बातें दोहरानी होती है। ऐसे में हम कुदरत के खिलाफ कैसे का सकते है??

सब जगह शांति शांति है।लेकिन.........?????






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