शनिवार, 28 मार्च 2020

विभिन्न आध्यत्मिक संस्थाएं :::जो है सो है!!

जब तुम्हारे पैगम्बर/अवतार आते है तो वे भी आध्यत्म व मानवता के सहारे होते हैं।


अनेक सन्तों के पीछे पीछे अनेक अध्यत्मिक संस्थाएं खड़ी होती रही हैं। 100 साल पहले ही सन्तों के द्वारा वर्तमान पर कह दिया गया था। भीड़ तन्त्र का हिस्सा न होकर खास होने की जरूरत है।
मानवता व  आध्यत्म को स्वीकार करने की जरूरत है। बुध्द ने कहा रखा है-अभ्यास व जागरूकता हर पल जरूरी है।हम जिसको समय देते है,वह हो जाते हैं। हमारी कोशिस किधर की है ?ये महत्वपूर्ण है।रोटी कपड़ा मकान की चिंता में जीवन/वक्त गुजार दिया तो फिर इसका परिणाम क्या होगा? ये तो हमारे हाड़ मास शरीर के लिए ही सिर्फ है। ये सिद्ध करता है कि हमारी प्राथमिकता सिर्फ हाड़ मास शरीर तक ही सीमित है। हाड़ मास शरीर ही सिर्फ हमारी सम्पूर्णता नहीं है। इससे परे हमारा सूक्ष्म भी है हमारा कारण भी है।हाड़ मास शरीर को हदें सीमित हैं।हमारे सूक्ष्म की हदें इससे भी आगे हैं।और इससे भी आगे कारण की...अनन्त.... शाश्वत.... निरन्तर.....!!!


              जो है सो है।
हमें अपनी आवश्यकताओं व उनके प्रबन्धन के लिए सिर्फ जीते जाना है। तीनों स्तरों-स्थूल,सूक्ष्म व कारण तीनों स्तरों पर।इसके लिए हमें मानवता, आध्यत्म, सर्वधर्म सद्भावना, सहकारिता, सेवा आदि को स्वीकार करने की जरूरत है।
            वर्तमान क्या है?
शरीर की आवश्यकताएं!इसका मतलब ये नहीं है कि सिर्फ अपने शरीर की आवश्यकताएं।अन्य शरीर की भी आवश्यकताएं । भूख, प्यास, सेक्स पर नियंत्रण के साथ साथ हमें स्वास्थ्य व पास पड़ोस के वातावरण, घर के वातावरण पर ध्यान देना होगा। स्वास्थ्य के अनेक स्तर हैं। तन, मन, विचार, भाव से स्वस्थ।आत्मा का सम्मान, आत्मा प्रतिष्ठा भी...... हमारा वर्तमान है कि हम स्वास ले रहे हैं।ये स्वास लेना बेहतर रहे।इसके लिए वातावरण भी स्वच्छ रहे। जो  कहते हैं-अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता।वे अपने से अभी अनजान है। वे भूल रहे हैं, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर...!!!!


              हर स्वास में ताजगी बड़े!ये मानव का कर्तव्य होना चाहिए था। हर पल आत्मा का अहसास हो,ये होना चाहिए था।हर श्वास दिव्यता का अहसास अपने अंदर होता, ऐसा होना चाहिए था। आप भी 98.08प्रतिशत भ्रम में हैं। रोजी रोटी भी चाहिए लेकिन.....!?रोजी रोटी मिल जाए, तो क्या इससे ही काम चलने वाला है? रोजी रोटी के चक्कर में हम अन्य के जीवन को हस्तक्षेप करते रहे, हम अब भी नहीं समझे।

                      हम को व्यवस्थाओं के लिए सरकार के निर्देशों का भी पालन करना है। इसका मतलब ये नहीं कि सरकार सब कुछ ठीक कर देगी?हर किसी की जिम्मेदारी है। अफसोस है, कुछ जाति, मजहब के लोग अपने जाति - मजहब के नेता,पुरोहित के आदेश का इंतजार करते है। वे अपने व जगत के प्रकृति व चेतना को  समझने की कोशिस अब भी नहीं कर रहे हैं।खुदा व कुदरत को उनकी नजर से देखने को कोशिस तक नहीं कर रहे हैं। अपने अंदर के आत्मा/चेतना/अंतर ऊर्जा/आदि को अवसर नहीं दे रहे हैं।

ओशो ने कहा है-हमारा वर्तमान कदम भविष्य है।उपआवास,व्रत, रोजा, प्रकृति के बीच कुछ दिन तम्बू में बिताना, जंगल के बीच अभाव में आश्रम आदि में कुछ समय बिताना भी भविष्य की तैयारी व प्रकृति अभियान से जुड़े रहने का अभ्यास है। मानव जीवन के प्रथम चौथाई समय को ब्रह्मचर्य जीवन के रूप में जीने का हेतु भी भविष्य की तैयारी था।


सत्य के उदय में बाबू जी महाराज ने अध्याय10 के अंतर्गत मेरी दृष्टि को स्पष्ट किया है।
     







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