शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

अमोघ प्रिय आनन्दम! अमोघ प्रिय दर्शनम ! अमोघ प्रिय अंनतम !!#अशोकबिन्दु

किसी ने कहा है - 'समस्या है तो समाधान भी है।समस्या के ही साथ समाधान भी चलता है ।" सहज मार्ग में साधना के तीन स्तर हैं -प्रार्थना ,ध्यान और सफाई ! साल में दो बार गुप्त नवरात्रि होते हैं- आषाढ़ मास ,माघ मास में दोनों माह अमावस्या के बाद । हम कहते रहे हैं -जो हमारे जगत के अंदर गुप्त रूप में है वह के लिए गुप्त में उतरना आवश्यक है ।हमारे अंदर व जगत के अंदर स्वत:, निरंतर ,शाश्वत आदि है ।जो हमें या हमारे चेतना व समझ को अनंत प्रवृत्तियों के का द्वार खोलता है ।स्थूल ,सूक्ष्म व कारण ; इन तीन से हम सदा सम्बद्ध हैं ।जिसे हमें सिर्फ महसूस करना है ,अनुभव में उतारना है ।इसके लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम नास्तिक हैं या आस्तिक यह हमारा वर्तमान व यथार्थ है ।हमारी चेतना व समझ के अनंत बिन्दु या स्तर हैं । समस्या क्या है ?समस्याएं क्या है ?पक्षी जिस डाल पर घोसला में पैदा हुआ उस डाल से हटता ही नहीं ।उड़ने की कोशिश नहीं करता है ।उड़ने की कोशिश भी करता है तो फिर फिर डाल पर आकर ही बैठ जाता है । सन 2016 ई0 फरवरी का पहला सप्ताह !मौनी अमावस्या !! 15 दिन के लिए अल्पाहार के साथ हम संकल्प शक्ति के साथ अंतर साधना में उतर आए । धर्म अंतर्मुखी है !अध्यात्म अंतर्मुखी है! हर पग हर पल धर्म अध्यात्म जीता है ! लेकिन हम नहीं !वह ही जीवन है जीवन का अस्तित्व ही वह है ! धर्म के चरमोत्कर्ष के बाद अध्यात्म ,अध्यात्म के चरमोत्कर्ष के बाद अनंत यात्रा का साक्षी पन!!  समस्या क्या है ? पुराने संस्कार ,आदतें ,पूर्वाग्रह, छाप ,जटिलताएं ,बनावट आदि ! ये सब हटकर कैसे मन निर्मली करण हो ? सहज मार्ग में मन के निर्मली करने की व्यवस्था है ! हम अभ्यासी कहे जाते हैं सहज मार्ग में साधना में। साधना कभी पूर्ण नहीं होती। जहां निरंतरता है वहां विकसित क्या ?निरंतर विकासशील है ! अपने को झकझोर कर असहाय दयनीय मानकर ,समर्पण कर दिया । "सफाई !सफाई!! सफाई!! हूं ...मालिक ,तू ही जाने! हम सिर्फ कोशिश करते हैं मन को निर्मली करण के लिए ..हमसे यह सब नहीं बनता !तू जाने !हम तो बस बताएं रास्ते पर चलने की कोशिश कर सकते हैं !" इन 15 दिन हमने महसूस किया कोई अज्ञात शक्ति सारथी बनने को तैयार है।  श्री मदभागवत गीता में महापुरुष के अनेक गुण दिए गए हैं -तटस्थता, शरणागति ,समर्पण ,निष्काम कर्म ,स्वीकार्य.... आदि आदि ! बाबूजी महाराज ने कहां है कि अपने को जिंदा लाश बना लो !अनंत से पहले प्रलय है!  किसी ने कहा है- आचार्य है मृत्यु! योग का एक अंग -यम है -मृत्यु!  इन 15 दिन हमने अपने को असहाय कर लिया ! बस ,मालिक !बस ,आत्मा.... परम आत्मा !अंतर दिव्य शक्तियां हैं... उनका इंतजार !...उनका सिर्फ इंतजार!  दुनिया की नजर में हम वैसे ही थे जैसे पहले थे लेकिन मन ही मन सब चल रहा था!  शीतलहर के दिन थे! 11.30pm,21फरबरी2016ई0! 12.01am,22 फरबरी2016ई0! 12.30pm,22फरबरी2016ई!! 11.00pm,20फरबरी 2016ई0 से 12.30pm,22फरबरी2016ई0.......... ये 36 घण्टे हमारे सूक्ष्म प्रबन्धन/जगत के लिए चिरस्मरणीय हैं। इन तीन चरणों में हम अज्ञात से आती क्रमशः इन 3 ध्वनियों के साथ दिव्यता में थे -अमोघ प्रिय आनंदम !अमोघ प्रिय दर्शनम् !अमोघ प्रिय अनंतम!!!  इसके साथ इसमें छिपी स्थिति को- दशा को हम साक्षी !  अब हम आज आप सब भाइयों को बहनों को ये प्रकट क्यों कर रहे हैं ? अभी तक इसे प्रकट करने का विचार नहीं आया था । वर्तमान में कोरो ना संक्रमण की वैश्विक महामारी के दौरान लॉकडाउन में सहज मार्ग श्री रामचंद्र मिशन ,हार्टफुलनेस, श्री कमलेश डी पटेल दा जी.... के साधना नियमों निर्देशों के अतिरिक्त 24 घंटे सतत स्मरण में रहने के अभ्यास में रहे हैं । जिसे हमने नाम दिया है -  'पूर्णता के साथ ध्यान '।  हमने देखा है- पूर्णता की कल्पना ,भाव ,विचार ....के साथ बैठने पर नेगेटिव विचार आते ही नहीं !मन निर्मली करण में हम!  हम आंख बंद कर बैठ जाते हैं! आंख बंद कर हम सांस प्रक्रिया को ध्यान देते हुए पूरे शरीर का एहसास करते हैं और कल्पना करते हैं - रोम रोम दिव्यता से भर गया है । जिसके प्रभाव में सभी रोग और सभी विकार खत्म हो गए हैं । इसके बाद हम अपना ध्यान गले पर ले जाते हैं और मन ही मन कहते हैं -अमोघ प्रिय आनंदम !इसे हम पांच बार कहते हैं और कल्पना करते हैं सागर में कुंभ कुंभ में सागर । इसके बाद हम अपना ध्यान माथे पर ले जाते हैं और कहते हैं -अमोघ प्रिय दर्शनम् !ऐसा 5 बार कहते हैं । इसके बाद पुनः कल्पना करते हैं -सागर में कुंभ कुंभ में सागर ! इसके बाद हम अपना ध्यान सिर पर शिखा के स्थान पर ले जाते हैं। और कहते हैं- अमोघ प्रिय अनंतम !इसे भी हम पांच बार कहते हैं और कल्पना करते हैं -सागर में कुंभ कुंभ में सागर ! चारों ओर अंदर और बाहर प्रकाश ही प्रकाश ! प्रकाश की लहरें हमारे अंदर भी और बाहर भी ! हमारा रोम रोम संसार के सभी प्राणी सभी वस्तुएं सभी वनस्पति जीव जंतु सारा ब्रह्मांड प्रकाश ही प्रकाश प्रकाश में । हम प्रकाश में डूबे हुए। हम प्रकाश में प्रकाश हमारे अंदर । सागर में कुंभ कुंभ में सागर... ऐसे में हमारे सभी रोग सभी विकार खत्म हो चुके हैं ....हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है... हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है ! अब हम अपना ध्यान ह्रदय पर ले आते हैं । हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है -इस भाव में आकर हम 20:30 मिनट बैठते हैं । इसके बाद पुनः - हमारा रोम रोम दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है .।अंदर-बाहर सब जगह प्रकाश ही प्रकाश ! सागर में कुंभ कुंभ में सागर.।।। इसी भाव में हम 24 घंटा रहने की कोशिश करते हैं ।हमारे अंदर ,सब के अंदर ,पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश ही प्रकाश। हम सब एक हैं। जगत में जो भी स्त्री पुरुष हैं ,हमारा परिवार है.... हमारा मकान है.... हमारा पास पड़ोस है ....हमारा शहर ...हमारा गांव.... पूरी पृथ्वी ...पूरा ब्रह्मांड..... हम सब प्रकाश में लबालब हैं ....सागर में कुंभ कुंभ में सागर....!!! इस तरह रहने से हमको अनेक विविध विचारों नेगेटिव एनर्जी का ख्याल नहीं आता! सुबह शाम रात्रि में हम सहज मार्ग के साधना पद्धति को समय देते हैं ! शेष समय हम इसी ख्याल में रहते हैं !इसी ध्यान में रहते हैं ...सागर में कुंभ कुंभ में सागर !पूर्णता के साथ ध्यान ! आखिर पूर्णता है क्या? ऑल !ए डबल एल .।।ऑल .।अल .।संपूर्णता ...!!अल्लाह शब्द भी इसी से बना है ! भाषा विज्ञान में अल्लाह शब्द अल : ही रूप है!!

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

शाहजहांपुर से श्री रामचन्द्र जी महाराज!!

अन्तरनमन!! 30 अप्रैल 1899ई0::बाबूजी महाराज को सत सत नमन::अशोकबिन्दु भईया 30 अप्रैल 1899 ई0 को अवतरित श्री रामचन्द्र जी महाराज शाहजहांपुरी को अंतरनमन!! """"''''''''''""""""""""अशोकबिन्दु भईया कटरा, शाहजहाँपुर,उप्र!शाहजहाँपुर का सौभाग्य है कि यहां पर 30 अप्रैल 1899ई को श्रीरामचन्द्र जी महाराज का पुनीत अवतरण हुआ।जिन्हें प्यार से सभी बाबूजी महाराज कहा करते थे।उन्हें बचपन से ही आध्यत्म व रहस्यवाद में रुझान था।उन्होंने सन1945ई0 को शाहजहाँपुर की धरती पर हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खान साहब रायपुरी के शिष्य श्रीरामचन्द्र जी महाराज फतेहगढ़ वालों की याद में श्रीरामचन्द्र मिशन, शाहजहाँपुर की स्थापना की।जिसकी विश्व भर के 165 देशों से भी ज्यादा देशों में शाखाएं हैं ही और अनेक नाम से अन्य संस्थाएं संचालित है।जहां योग ,सूक्ष्म जगत, चेतना व समझ के विभिन्न बिंदुओं व विस्तार आदि पर शोध, प्रयोग आदि चल रहे हैं।#हार्टफुलनेस #माइंडफुलनेस #ब्राइटमाइंड #योगा के विभिन्न अंगों आदि पर कार्य हो रहे हैं। हैदराबाद, तेलंगना में वैश्विक स्तरीय कान्हा शांति वनम एक गांव/आश्रम के रूप में स्थापित हो चुका है, जहां विभिन्न जीवन विषयों ,पर्यवरण, आयुर्वेद आदि पर कार्य चल रहे हैं।अन्य भी भावी वैश्विक प्रॉजेक्ट पर कार्य होना शुरू है। हमें खुशी है ,हम ऐसे दिव्य आत्मा के अवतरण जनपद शाहजहांपुर के निवासी हैं।सम्भवतः पिछले जन्म में भी हम उनसे सम्बद्ध थे। पहली सिटिंग से पूर्व ही हम लाला जी को स्वप्न में महसूस कर चुके थे। उनके पैतृक आवास पर हमें सदा अपनापन ही लगा है और दिव्य प्रकाश को महसूस किया है। चारी जी कहते हैं-"वह आये,उन्होंने देखा और उन मनुष्यों के आकुल हृदयों को जीत लिया जिन्हें उनमें, उनकी क्षीण काया मे , सर्वशक्तिमान को साकार देखने की क्षमता और सौभाग्य का वरदान मिला था।उनका महान और पूर्ण व्यक्तित्व,उनकी विनम्रता और सादगी, उनकी अलौकिक दिव्यता और उनका सर्वग्राही विश्वव्यापी प्रेम उनसे विकरित होकर मानवता को अपनी मूल आध्यात्मिक दशा में वापस ले जाने का आश्वासन देने के लिए दिग्दिगन्त में फैल गए थे। उन्होंने 'सत्य का उदय'में उद्भाषित किया; उन्होंने'सहज मार्ग के परिप्रेक्ष्य में राजयोग की प्रभावोत्पादकता' सिखाई; मानवता को आत्म रूपांतरण का सादा और सरल मार्ग दिखाने के लिए उन्होंने 'सहज मार्ग के दस नियम' अपने जीवन में अनुपालन करके दिखाए। वे 'ऋतवाणी' बोले और अपनी करुणामयी कृपा से तथा सब के लिए अपने असीम दिव्य प्रेम से उन्होंने हमारे गलत मार्ग पर चलने वाले कदमों को 'अनन्त की ओर'जाने वाले महिमामण्डित मार्ग पर वापस मोड़ने का मार्गदर्शन किया।(सत्य का उदय,प्रस्तावना, चारी जी).." पिछले जन्मों के संस्कार होंगे जो कि स्तर दर स्तर चलकर अब हम यहां तक आये।आ तो गए लेकिन अभी हमें स्वयं में काफी सुधार/सफाई, नियमितीकरण आदि, निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है।इस हाड़ मास शरीर, प्रकृति, जगत में तो हर कदम पर हर पल पर प्रतिकूलताएँ है, जिसे बाबू जी ने जंगल से ही तुलना की है।हमें सहज मार्ग की साधना में डटे ही नहीं रहना है, उसे अपने में आदत या सतत स्मरण बना लेना है।हां, एक बात और सुनी हुई याद आ गई।बाबू जी के पास कोई आकर बहसबाजी करता था तो वे कह देते थे कि हम बहस करने नहीं जानते।हां, आप हमारे साथ आंख बंद कर बैठ सकते हो। इससे हमें सीख मिलती है कि हमें भी बहस बाजी में नहीं पड़ना है। जिंदगी में ऐसे लोग हमें भी मिलते रहते है जिन्हें हमारी बातों को आचरण में तो नहीं उतारना, दिल में नहीं लाना लेकिन बहस बाजी करते है।दिमागी उधेड़ बुन में रहते हैं ।लेकिन आध्यत्म तो बहसबाजी का विषय नहीं, महसूस करने का विषय है।आत्मा के अध्ययन का विषय है।जिसका माध्यम सिर्फ मेडिटेशन है।बहस बाजी नहीं। इन दिनों विश्व में मानव वतावरण, मानव प्रबन्धन आदिआदि अनेक विकारों,अशुद्धियों,जटिलताओं, छापों आदि से ग्रस्त है।कुछ तो वर्तमान में कोरो-ना संक्रमण की वैश्विक समस्या के बीच भी मानवीय, अध्यत्मिक, सुप्रबन्धनिक ,संवैधानिक, विश्व बन्धुत्विक आदि प्रेरणा नहीं लेना चाहते हैं।जातीय, मजहबी,कु राजनीति आदि में ही लिप्त है। किसी ने कहा भी है-पानी बढ़ता जाता है, कमल की नार बढ़ती जाती है लेकिन पानी जब सूख जाता है तो नार तो बड़ी की बड़ी ही रहती है। हमारे लिए जीवन ही पर्व है, जीवन ही उत्सब है।लेकिन कब?तब ही जब हम सिर्फ वर्तमान में जिएं।यथार्थ को स्वीकार कर अपने कर्तव्यों में लीन रहे।अधिकार, कोई अधिकार नहीं।बाबू जी से कोई शिक्षित के सम्बंध में पूछता था, तो वह कहते थे- शिक्षित के सिर्फ कर्तव्य ही कर्तव्य होते हैं। आज बाबू जी के जन्म दिन के अवसर पर हम कहना चाहेंगे कि क्या अच्छा है क्या बुरा, क्या अनुकूल है क्या प्रतिकूल, कौन शत्रु है कौन मित्र...... आदि पर ध्यान न देकर हम सिर्फ अपने कर्तव्य निभाते चलें।जो भी हो,वह मालिक का प्रसाद ग्रहण कर स्वीकारते चलें।जीवन है जीने का नाम, जीते रहो सुबह शाम। कोशिशे जारी है कोशिशे जारी रहेगी।निरन्तरता के पथ पर,शाश्वतता के पथ पर है कभी विश्राम नहीं।अनन्तता का कोई छोर नहीं... बाबू जी महाराज को सत सत नमन!!