शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2023

शाहजहांपुर से श्री रामचन्द्र जी महाराज!!

अन्तरनमन!! 30 अप्रैल 1899ई0::बाबूजी महाराज को सत सत नमन::अशोकबिन्दु भईया 30 अप्रैल 1899 ई0 को अवतरित श्री रामचन्द्र जी महाराज शाहजहांपुरी को अंतरनमन!! """"''''''''''""""""""""अशोकबिन्दु भईया कटरा, शाहजहाँपुर,उप्र!शाहजहाँपुर का सौभाग्य है कि यहां पर 30 अप्रैल 1899ई को श्रीरामचन्द्र जी महाराज का पुनीत अवतरण हुआ।जिन्हें प्यार से सभी बाबूजी महाराज कहा करते थे।उन्हें बचपन से ही आध्यत्म व रहस्यवाद में रुझान था।उन्होंने सन1945ई0 को शाहजहाँपुर की धरती पर हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खान साहब रायपुरी के शिष्य श्रीरामचन्द्र जी महाराज फतेहगढ़ वालों की याद में श्रीरामचन्द्र मिशन, शाहजहाँपुर की स्थापना की।जिसकी विश्व भर के 165 देशों से भी ज्यादा देशों में शाखाएं हैं ही और अनेक नाम से अन्य संस्थाएं संचालित है।जहां योग ,सूक्ष्म जगत, चेतना व समझ के विभिन्न बिंदुओं व विस्तार आदि पर शोध, प्रयोग आदि चल रहे हैं।#हार्टफुलनेस #माइंडफुलनेस #ब्राइटमाइंड #योगा के विभिन्न अंगों आदि पर कार्य हो रहे हैं। हैदराबाद, तेलंगना में वैश्विक स्तरीय कान्हा शांति वनम एक गांव/आश्रम के रूप में स्थापित हो चुका है, जहां विभिन्न जीवन विषयों ,पर्यवरण, आयुर्वेद आदि पर कार्य चल रहे हैं।अन्य भी भावी वैश्विक प्रॉजेक्ट पर कार्य होना शुरू है। हमें खुशी है ,हम ऐसे दिव्य आत्मा के अवतरण जनपद शाहजहांपुर के निवासी हैं।सम्भवतः पिछले जन्म में भी हम उनसे सम्बद्ध थे। पहली सिटिंग से पूर्व ही हम लाला जी को स्वप्न में महसूस कर चुके थे। उनके पैतृक आवास पर हमें सदा अपनापन ही लगा है और दिव्य प्रकाश को महसूस किया है। चारी जी कहते हैं-"वह आये,उन्होंने देखा और उन मनुष्यों के आकुल हृदयों को जीत लिया जिन्हें उनमें, उनकी क्षीण काया मे , सर्वशक्तिमान को साकार देखने की क्षमता और सौभाग्य का वरदान मिला था।उनका महान और पूर्ण व्यक्तित्व,उनकी विनम्रता और सादगी, उनकी अलौकिक दिव्यता और उनका सर्वग्राही विश्वव्यापी प्रेम उनसे विकरित होकर मानवता को अपनी मूल आध्यात्मिक दशा में वापस ले जाने का आश्वासन देने के लिए दिग्दिगन्त में फैल गए थे। उन्होंने 'सत्य का उदय'में उद्भाषित किया; उन्होंने'सहज मार्ग के परिप्रेक्ष्य में राजयोग की प्रभावोत्पादकता' सिखाई; मानवता को आत्म रूपांतरण का सादा और सरल मार्ग दिखाने के लिए उन्होंने 'सहज मार्ग के दस नियम' अपने जीवन में अनुपालन करके दिखाए। वे 'ऋतवाणी' बोले और अपनी करुणामयी कृपा से तथा सब के लिए अपने असीम दिव्य प्रेम से उन्होंने हमारे गलत मार्ग पर चलने वाले कदमों को 'अनन्त की ओर'जाने वाले महिमामण्डित मार्ग पर वापस मोड़ने का मार्गदर्शन किया।(सत्य का उदय,प्रस्तावना, चारी जी).." पिछले जन्मों के संस्कार होंगे जो कि स्तर दर स्तर चलकर अब हम यहां तक आये।आ तो गए लेकिन अभी हमें स्वयं में काफी सुधार/सफाई, नियमितीकरण आदि, निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है।इस हाड़ मास शरीर, प्रकृति, जगत में तो हर कदम पर हर पल पर प्रतिकूलताएँ है, जिसे बाबू जी ने जंगल से ही तुलना की है।हमें सहज मार्ग की साधना में डटे ही नहीं रहना है, उसे अपने में आदत या सतत स्मरण बना लेना है।हां, एक बात और सुनी हुई याद आ गई।बाबू जी के पास कोई आकर बहसबाजी करता था तो वे कह देते थे कि हम बहस करने नहीं जानते।हां, आप हमारे साथ आंख बंद कर बैठ सकते हो। इससे हमें सीख मिलती है कि हमें भी बहस बाजी में नहीं पड़ना है। जिंदगी में ऐसे लोग हमें भी मिलते रहते है जिन्हें हमारी बातों को आचरण में तो नहीं उतारना, दिल में नहीं लाना लेकिन बहस बाजी करते है।दिमागी उधेड़ बुन में रहते हैं ।लेकिन आध्यत्म तो बहसबाजी का विषय नहीं, महसूस करने का विषय है।आत्मा के अध्ययन का विषय है।जिसका माध्यम सिर्फ मेडिटेशन है।बहस बाजी नहीं। इन दिनों विश्व में मानव वतावरण, मानव प्रबन्धन आदिआदि अनेक विकारों,अशुद्धियों,जटिलताओं, छापों आदि से ग्रस्त है।कुछ तो वर्तमान में कोरो-ना संक्रमण की वैश्विक समस्या के बीच भी मानवीय, अध्यत्मिक, सुप्रबन्धनिक ,संवैधानिक, विश्व बन्धुत्विक आदि प्रेरणा नहीं लेना चाहते हैं।जातीय, मजहबी,कु राजनीति आदि में ही लिप्त है। किसी ने कहा भी है-पानी बढ़ता जाता है, कमल की नार बढ़ती जाती है लेकिन पानी जब सूख जाता है तो नार तो बड़ी की बड़ी ही रहती है। हमारे लिए जीवन ही पर्व है, जीवन ही उत्सब है।लेकिन कब?तब ही जब हम सिर्फ वर्तमान में जिएं।यथार्थ को स्वीकार कर अपने कर्तव्यों में लीन रहे।अधिकार, कोई अधिकार नहीं।बाबू जी से कोई शिक्षित के सम्बंध में पूछता था, तो वह कहते थे- शिक्षित के सिर्फ कर्तव्य ही कर्तव्य होते हैं। आज बाबू जी के जन्म दिन के अवसर पर हम कहना चाहेंगे कि क्या अच्छा है क्या बुरा, क्या अनुकूल है क्या प्रतिकूल, कौन शत्रु है कौन मित्र...... आदि पर ध्यान न देकर हम सिर्फ अपने कर्तव्य निभाते चलें।जो भी हो,वह मालिक का प्रसाद ग्रहण कर स्वीकारते चलें।जीवन है जीने का नाम, जीते रहो सुबह शाम। कोशिशे जारी है कोशिशे जारी रहेगी।निरन्तरता के पथ पर,शाश्वतता के पथ पर है कभी विश्राम नहीं।अनन्तता का कोई छोर नहीं... बाबू जी महाराज को सत सत नमन!!

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