शनिवार, 30 जनवरी 2021

पूंजीवाद, सत्तावाद, सामन्तवाद, जन्मजात उच्चवाद आदि के बीच नागरिक जागरण व शिक्षा:::अशोकबिन्दु

 विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य आश्रम इसलिए कहा गया.......अब भी हम देख रहे हैं-जाट व सिक्खों में, मराठों में धरना, आंदोलन आदि में पूरे के पूरे परिवार आकर बैठ जाते हैं?ये क्या है?हम?!अरे,हमें तो परिवार पालने से ही फुर्सत नहीं,हमें तो परिवार को देखने से ही फुर्सत नहीं,हम समाज व राज्य का देखें?जो नेता बने बैठे हैं, समाज हित विभिन्न सस्थाओं के पदाधिकारी बने बैठे हैं वे स्वयं समाज व राज्य के प्रति कितना समर्पित हैं?!और कहते हैं हमें अपना घर देखना है।ऐसे लोग ही पूंजीवाद, सत्तावाद, सामन्तवाद, जन्मजात उच्चवाद, जातिगत पुरोहितवाद आदि के समर्थन में खड़े हैं। ये नहीं चाहते-आम आदमी जाग्रत हो।उसकी अंदुरुनी दिव्यता व शक्तियां जगे।वे हां में हां मिलाने वाले नौकर चाहते हैं।सभी में ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व जगाना नहीं चाहते।

#अशोकबिन्दु

विश्वसरकार ग्रन्थ साहिब:: भूमिका!

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सिकंदर ने अरस्तु को आत्मसात नहीं किया । 


उपनयन संस्कार में कौन है? उपनिषद संस्कार में कौन है ?गुरु का सम्मान वास्तव में क्या है? शालीनता ,सौम्यता, नम्रता, अंतरमुखिता आदि आवश्यक है। जैसे हम मंदिर में किसी मूर्ति के सामने शांत होते हैं ।उसी तरह जैसे हम मस्जिद में होते हैं एक अज्ञात प्रभाव में ।


गुरु एक तत्व है और अभ्यासी या साधक एक प्रयत्न है ।


जीवित गुरु के माध्यम से सांसारिक गुरु के माध्यम से अंतर्निहित तत्व में हो जाना।


 गुरु हो या शिष्य दोनों मन से एक ही हैं। किसी ने कहा है - दो शरीर एक प्राण ।वह प्राण सर्व व्याप्त है। सागर में कुंभ कुंभ में सागर..!!


 सिकंदर ने अरस्तु की उसके जिंदा रहते ही उसकी मूर्तियां खड़ी कर दी लेकिन उससे क्या? लेकिन वास्तव में उसने गुरु का सम्मान किया ? 


जब हम गुरु के समीप उपनयन नहीं, उपनिषद में नहीं, शांति, नम्रता और शालीनता में नहीं।


 आज क्लास का मतलब क्या है? कक्षा का मतलब क्या है ? "अरे, हम क्या फीस नहीं देते? हम यहां क्यों न बैठे ?-ऐसा कहते हुए कुछ लोग , कुछ विद्यार्थी कहते हैं?!


 आश्रम ,धर्म स्थलों में भी अधिक धन संपत्ति आदि दान करने वालों की सोच नजरिया क्या होता है? बे उपनयन में नहीं है, बे उपनिषद में नहीं है ,उपआसन में नहीं है, श्रद्धा नहीं है ,शालीनता नहीं है, नम्रता नहीं है, शांत भाव नहीं है..... काहे का शिष्य ?काहे का विद्यार्थी? काहे का उपासक? साधक ?अभ्यासी आदि ....अब काहे का शिष्य ?काहे का विद्यार्थी?


 विद्यालय में आए हो ?क्लास में बैठे हो? गुरु या शिष्य के पास बैठे हो?.... लेकिन किस भाव किस नजरिया से बैठे हो? उपनयन है क्या ?उपनिषद है क्या?उप आसन है क्या ?


विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य आश्रम क्यों कहा गया ?आज इससे आज के गुरु ही ,आज के शिक्षक ही अपरिचित हैं ?शिक्षा व्यवस्था जटिलता ,दुर्गमता, जोखिम में हो, प्रकृति के बीच हो, वह अरण्यक हो ,जंगल समाज, पशुपालन समाज ,कृषि के बीच हो... जो जीवन का आधार है, प्राथमिकता है ,बुनियाद है वहां से हो।

 राज्य और समाज का प्रत्येक नागरिक ब्राह्मणत्व क्षत्रियतत्व से भर जाए  शिक्षा ऐसी हो ।


सेवा ,व्यापार तो सभी के लिए जीवन यापन, मानवता ,परिवार और समाज प्रबंधन के लिए आवश्यक है ही लेकिन ऐसा नहीं कि- " अरे, हमें तो परिवार पालने से ही फुर्सत नहीं। हमें तो परिवार को देखने से ही फुर्सत नहीं। हम समाज और देश ,राज्य का क्या देखें ? बड़ी निकृष्ट है, नीच, गिरी नीच की है ।


अभी हम देख रहे हैं - जाट और सिखों में , मराठों में धरना, आंदोलन आदि में पूरे के पूरे परिवार आ कर बैठ जाते हैं?!

 क्या है !?


हमने पढ़ा है - वैदिक सभ्यता को? वहां भी सभी का क्षत्रियत्व और ब्राह्मणत्व जगाने की कोशिश के साथ सेवा, सहकारिता, सामूहिकता आदि को जिंदा रखा जाता था।


आज की तारीख में सत्ता वाद, पूंजीवाद ,सामंतवाद, जन्मजात उच्चवाद आदि यह नहीं चाहता। वह प्रत्येक नागरिक की दिव्यता, आंतरिक शक्तियों को जगाने का अवसर नहीं देना चाहता। वह तो हां में हां मिलाने वाला , नौकर आदि की फौज खड़ी करना चाहता है ।



पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा था-" हम चाहते हैं देश का प्रत्येक नागरिक ही परमाणु बंब की तरह हो जाए।" लेकिन ऐसा पूंजीवादी, सत्तावादी, सामन्तवादी लोग क्यों चाहेंगे? जन्मजात उच्चवाद ऐसा क्यों चाहेगा?



विद्यार्थी जीवन को कभी ब्रह्मचर्य आश्रम इसलिए ही कहा जाता था हर व्यक्ति के अंतर्निहित शक्तियां जागे अंदर की दिव्यता जागे हर व्यक्ति के अंदर का दीपक जले।


#अशोकबिन्दु



शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

23जनवरी:पराक्रम दिवस !! नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के मुस्लिम मददगारों की स्मृति के साथ:::अशोकबिन्दु

 पराक्रम दिवस:23 जनवरी पर खास -'सर जी'की कृपा से!!


मिशन का हिस्सा प्रिय की कुर्बानी!!

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ईसा पूर्व 2000! अल्लाह ने संदेश दिया -'प्रिय की कुर्बानी'!

ईसा से 5000 वर्ष पूर्व भी यही संदेश!!गीता में भी यही संदेश!!!

हजरत हुसैन व गुरु गोविंद से भी यही संदेश......

अपना व दूसरे का हाड़ मास शरीर से ज्यादा प्रिय और क्या हो सकता है?!


प्रकृति अभियान उस स्थूलता, उस हाड़मांस शरीर को महान कार्यों के लिए कुर्बान हो जाने को कहता है।

हम आत्मा की ओर यात्रा पर कब बढ़ेंगे?जब हम आत्मा की ओर की यात्रा तय नहीं कर सकते तो परम् आत्मा की ओर की ओर की यात्रा क्या खाक तय करेंगे?

मानव समाज व उसके नजर में जीने वाले मानव की सबसे बड़ी बुराई है जो से परे हो जाना ही प्रकृति व परम् आत्मा का सम्मान है, उसी में हम लीन है ,वही मानव को प्रिय है।


'प्रिय की कुर्बानी'- को समझिए।


कुरआन की शुरुआती सात आयतें भी क्या कहती हैं?

'प्रशंसा'- सिर्फ खुदा के लिए है!

'प्रशंसा'- सिर्फ खुदा की करना है। 


इसकी यात्रा कहाँ से शुरू होती है? स्थूलताओं, पूर्वाग्रहों, अशुद्धियों, छापों, संस्कारों को त्याग से। 


बाबू जी महाराज ने कहा है-इस शरीर के मरने से पूर्व ही इस शरीर को मार लो।ये जिंदा लाश बन जाये। विद्यार्थी जीवन इस लिए ब्रह्मचर्य जीवन है कि अंतर्मुखी होकर, बाह्य जगत में न खोते हुए अन्तरदीप/अंतर्ज्ञान को जगा लें।


योग के आठ अंग हैं-

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि!

राजयोग की शुरुआत होती है-प्रत्याहार से।

आज पराक्रम दिवस पर हम आज याद करते है उस शख्सियत की जो हर हाल में नेता जी के साथ रहा।वह मुस्लिम था।नेता जी का ड्राइवर भी एक मुस्लिम था। 

उन दोनों का कहना था-अपने मिशन के लिए हमें इस हाड़ मास शरीर को दांव पर लगा देना चाहिए।

आखिर पराक्रम क्या है?!

प्राण जाएं पर वचन न जाए।


जब आत्मा गर्भ धारण करती है तो -आत्मा के पास अपनी एक योजना होती है, वचन होता है।


फिर कहता-'प्रिय की कुर्बानी'-को समझो।

हाड़ मास शरीर, हाड़ मास शरीरों, हाड़ मास शरीरों के समूहों, जतियों, मजहबों से ऊपर उठ कर किसी बड़े मिशन के लिए जिओ।


आज कल हमारे लिए प्रिय क्या है?

जब कोई कहता है कि हमें सामने कुछ नहीं दिखाई देता, सिवा चिड़िया के आंख के। हम आप भी उसकी मजाक उड़ाएं गे। जिसे संसार का कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है, जाति, मजहब, धर्मस्थलवाद आदि भी.... हम आप आज भी उसकी मजाक उड़ाने को तैयार खड़े हैं। 

हम अब वहां तक नहीं हैं कि हमें आत्मा....परम् आत्मा के सन्देश सुनाई  दें, हमारे अंदर से ही हमारा धर्म जगे।बाहर से नहीं। हम इतना खो चुके है स्वनिर्मित धारणाओं में, जिसे हमने अपना प्रिय मान लिया है।ये भ्रम है।


सहज भी है जिसके अंदर से ज्ञान, धर्म, आचरण पैदा होता है।बाहर से नहीं।मुल्ला मौलबी, पंडित, पादरी आदि की ओर से नहीं।

'सर जी'- ठीक कहते हैं-"शिक्षा क्रांति है'।

'शिक्षा'- को मतलब नहीं अभिवावक क्या कहते हैं?

समाज क्या कहता है?

#सहजमार्ग


बुधवार, 20 जनवरी 2021

The Hon.Mr. joe biden!


 The Hon.Mr. joe biden!





The path of world peace may be kept safe only with the starting of man's peace. For this, self interviewing is needed.Without giving up of partial behaviour and self indulgence, world peace is impussible. Every country is supposed to have an honest and straight forward foreign policy.




On, Human rights day,10th Dece.2010! Indian media wrote in the newspapers that,Meera was humiliated and insulted in America,Through Media,One has been remained aware how the Indians have had been humiliated in America.




WHAT KIND OF SHOULD THE WORLD BE?




......It is evident because of OSHO'S WORLD JOURNEY. Until,there is prepared,right and the man is trained for universal Knowledge-The world can not march towards peace.We will have to live for law and order, giving honour to each country and each man without favouring any country or person.




There is no one friend or enemy in the view of law and order the compaign against terrorism is failed as long as an action is not taken honestty against the shelter gives of terrorists.




The remaining part in the nex letter.



In the awaiting of your letter....


your s




ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'



Kabira punya sadan,

Nagara marg,


MEERANPUR KATRA,


SHAHAJAHANPUR,U .P.,INDIA.

Pin::242301

रविवार, 17 जनवरी 2021

Joe biden के नाम अशोकबिन्दु का पत्र!

 I WANT TO ADDRESS AMERICA



The hon. Joe biden!



   Hope that your presence as American president will sovle all the problems such asterrorirm & violence, prevailing in India, Tibbet,America& in whole world. we all human beings & men of letters should gather together to take immediate actions in support of good health, humanright, women right and happy life on earth by rising beyond castism, racialism,sex and regionalism. in this contect,we happen to remember the statement of an young Buddhist saint named Aagyen Trinley Dorjey 'Karmapa Lama',-that by joining a great nation like America,he would succeed in bringing peace in the world. we should always be ready with heart & soulfor good life, health & world-peace. for which, we should forget our differences and nrrow-mindedness&regionalism.India&whole world has great expectations from you. the terrorists believing jn seperation neither remained silent,nor will evee be. so, we are expected to have control upon them in all ways.

    The remaining part in the next letter.


Your's-

Ashok kumar verma 'bindu'

Kabira punya sadan,

Nagara marg,

Miranpur karta, shahjahanpur, up, India.

Pin:242301


गुरुवार, 14 जनवरी 2021

विद्यार्थी/साधक, शिक्षक व शिक्षित होने का औचित्य::: अशोकबिन्दु

 वातावरण!

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शिक्षित होने का औचित्य क्या है?हम कहते रहे हैं शिक्षा स्वयं एक क्रांति है। हमें आज की तारीख में कोई विद्यार्थी, शिक्षक, शिक्षित आदि नजर नहीं आता।शिक्षा, शिक्षण के लिए वातावरण होना आवश्यक है।क्लास का होना आवश्यक है।क्लास भी एक वातावरण है।जो कि मनोवैज्ञानिक है।स्थूल नहीं। शिक्षा व सीखना एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है। शिक्षा लेना व देना एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है।वह द्विपक्षीय है, उसमें तीसरा का हस्तक्षेप बेईमानी है। तीसरे का कार्य वातावरण बनाना है।पाठ्य सहगामी क्रियाओं, वस्तुओं, वातावरण में सहयोग करना है।

पॉप संगीतज्ञ माइकेल जैक्सन से जब पूछा गया दुनिया कैसी होनी चाहिए।तो उसका जबाब था-एक अच्छे स्कूल की तरह। 

चोर भी जनता है, चोरी करना गलत है।वह उपदेश भी दे लेता हैं।एक वैज्ञानिक कहानी में एक एलियन कहता है-दुनिया जिसके हाथ में होनी चाहिए, उसके हाथ में नहीं है। वातावरण महत्वपूर्ण है, सुप्रबन्धन महत्वपूर्ण है।


हमारे नबियों, ऋषियों, सन्तों, सूफी संतों ने विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन कहा था। इसका मतलव था-अंतर्ज्ञान में डूबना।महापुरुषों, गुरुओं की बातों को मन में धारण करवाना, चिंतन मनन से उसे जोड़ना, उसे नजरिया में बनाना।इसलिए शिक्षा की शुरुआत अपने को पहचान के साथ शुरू होती थी।


हमारे अंतर स्वतः उपस्थित है,जो हमें स्वतः ज्ञान से जोड़ता है। हम गड़बड़ में पड़ जाते हैं।होना कुछ और चाहते हैं, हो कुछ और रहे होते हैं।पढ़ कुछ और रहे हैं चिंतन मनन कुछ और रहे हैं। यहीं पर गड़बड़ है। 

जब हम अपने अंतर heartfulness के माध्यम से ज्ञान से जुड़ते हैं, चिंतन मनन आदि के माध्यम से जुड़ते है तो हालत दूसरी बनती है। उसके लिए वातावरण महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रयोगशाला में वैज्ञानिक एक धुन heartfulness से जुड़ा होता है वह अपनी सगाई में तक घर जाना का विचार ही नहीं लाता। प्रयोग, चिंतन मनन में लगा रहता है। कुछ देश हैं जिनमे हर दस पर तीन वैज्ञानिक हैं,और यहाँ विज्ञान की डिग्रियां लिए घूमते है लेकिन वैज्ञानिक छोड़ो, शिक्षित ही नजर नहीं आते। समाज में अनेक लोग ऐसे नजर आते है,जो ऐसे वैसे ही लगते है,समाज की नजर में खास नहीं होते।उनके सामने ऐसा वातावरण आता है जब वे शिक्षितों में भी बेहतर दशा में होते है,अपने द्वारा कोई प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं।

विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य आश्रम है। वह जीवन व भविष्य का आधार है। हमारा अब तक का जीवन शिक्षा जगत से ही बीता है।

सन 1996-1997ई0

सरस्वती शिशु मंदिर, भुता, बरेली, उप्र!

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सन1999ई0-2000ई0!

सरस्वती शिशु मंदिर, पुवायां, शाहजहांपुर, उप्र!! 

मकर सक्रांति..... 

हमने महसूस किया है विद्यार्थी जीवन वास्तव में ब्रह्मचर्य आश्रम है जो कि नैसर्गिक है। इस अवस्था में कुदरत हमारी ओर दोनों हाथ उठाए हमारे स्वागत के लिए खड़ी होती है।

हमारे लिए मध्य नवम्बर से मध्य अप्रैल तक का समय विशेष समय है।इस बीच हम अनेक पर्व, उत्सव से होकर गुजरते हैं। 

ये अवस्था प्रयास, प्रयत्न, उत्साह, अंतर्चेतना आदि के लिए बेहतर अवसर है।युवा चिर युवा चेतना ,अंतर चेतना, चेतनाओं के बीच समद्ध आत्मियता/सम्वेदना ,सर्वव्यापकता, सार्वभौमिकता का, सत्यं शिवं सुंदरं... आदि के साथ सहज पर्व है।


अपने को पहचाने बिना शिक्षा अधूरी है। हमें अफसोस है शिक्षितों की अपनी पहचान के प्रति सोंच पर। हम व जगत के तीन स्तर हैं- स्थूल, सूक्ष्म व कारण।हम अपना जीवन तभी जी सकते हैं जब हम अपनी सम्पूर्ण स्थितियों, स्तर के लिए आवश्यकताओं व सुप्रबन्धन के लिए जीवन जिएंगे। जो हम जीते हैं, आदतें डालते हैं, नजरिया रखते हैं वही हमारी असलियत वही हमारा भविष्य होता है।


बाबूजी महाराज कहते हैं -अनन्त से पहले प्रलय है।मृत्यु पूर्व मर जाओ ,लाश हो जाओ।यही समाधि है।तब कोई और आप का सारथी होगा।वो आपका सारथी होगा।जिंदगी भर, अनेक जिंदगी आप स्थूल पर अटके हो।मूलाधार पर हो बड़ी बड़ी बातें करते हो?  मूलाधार पर अटके हो। हृदय से नीचे ध्यान न करें। हृदय पर ध्यान दें। अपनी आत्मियता/आत्मा की ओर बढ़ेंगे। ये आत्मियता क्या हैं?यही चेतनाओं के बीच का सम्बंध है जो हमें चेतनाओं के कुम्भ से जोड़ता है। निरन्तर अभ्यास में रहेंगे तो आगे ये कुम्भ बढ़ता जाएगा। हमारा ये जीवन शिक्षा जगत में बीता है।पहले विद्यार्थी के रूप में अब शिक्षक के रूप में।हमने अनुभव किया है शिक्षा अभी हमसबके पूर्णत्व विकास से काफी दूर है।

                    शिक्षा

                       !

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    !                   !                  !

स्थूल            सूक्ष्म               कारण


ऋषियों नबियों का कहना है - 21 साल में ये शिक्षा पूर्ण हो ही जाना चाहिए। लेकिन पूरा जीवन हो जाता है-हम स्थूल में ही उलझे रहते हैं। 

                वेद

                 !

              ऋषि/नबी/सन्त

                !

             आचार्य

               !

             शिष्य/साधक

किसी ने आचार्य का मतलब मृत्यु कहा  है।किसी ने योग के पहले अंग यम को मृत्यु कहा है।किसी ने योग की शुरुआत को मृत्यु कहा है।अर्थात स्थूल से परे सूक्ष्म से जुड़ना। कोई कहता है-संख्या।

           संगणक

              !

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!                               !

हार्डवेयर                  साफ्टवेयर

(प्रकृति)                   (ब्रह्म)

!                              !

!                             !

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             !

             !

      सन्तुलन/योग

    (श्री अर्द्ध नारीश्वर स्थिति)

भौतिकवाद व आध्यत्म में सन्तुलन!


इस स्थिति के बाद आगे की साधना ऐसी हो जाए कि देहांत के  बाद देह से मुक्ति ही हो जाये, सांसारिकता से मुक्ति ही हो जाए।


दुनिया व समाज में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का कारण शिक्षित ,शिक्षा/विद्यालय कमेटीज/शिक्षा विभाग है।


हमारी नजर में लाखों में एक दो ही शिक्षित होते हैं ।

लाखों में एक दो ही ज्ञानी होते ।

शिक्षित वही ज्ञानी वही है जो ज्ञान के आधार पर किताबी पाठ्यक्रमों के आधार पर चिंतन मनन में जीता है नजरिया में जीता है भाव और आचरण में जीता है।

 वेद या ज्ञान जिसका एहसास जो करता है , जिसका अवतार जिसके दिल में होता है वह ऋषि मुनि नवी होता है।

 इसके बाद सनातन में आचार्य महत्वपूर्ण होता है ।

आचार्य का मतलब होता है आचरण से जो प्रेरित करें ।

किसी ने तो यहां तक कह दिया आचार है मृत्यु ।

चारी जी ने अपनी पुस्तक प्यार और मृत्यु मे कहा है लोगों को ताज्जुब होगा प्यार और मृत्यु को एक साथ जोड़ने पर लेकिन प्यार और मृत का घनिष्ठ संबंध है ।

बाबू महाराज ने भी कहा है अनंत से पहले प्रलय है ।

खास बात लाखों में कोई एक शिक्षित होता है लाखों में कोई एक ज्ञानी होता है।

अफसोस आज का शिक्षक पर ज्ञानी नहीं है।

 उसका आचरण एक आम आदमी से भी विपरीत हो सकता है ज्ञान के खिलाफ हो सकता है।

इसलिए हम कहते रहे हैं विद्यार्थी होना शिक्षित होना शिक्षक होना एक क्रांति महान क्रांति।।

देश के अंदर सबसे बड़ा पाखण्ड::शिक्षा!!

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यदि कोई कहता है कि शिक्षा अब ढोंग बन चुकी है तो इस पर क्या चिंतन होगा?


किसी ने कहा सच्चाई तो नजरिया, चाहत है।

वास्तव में हम जो हैं वह हार्टफुलनेस है ।

वास्तव में  यदि हम विद्यार्थी तो हम हार्टफुलनेस स्टूडेंट।

 यदि हम वास्तव में टीचर तो हार्टफुलनेस टीचर।

 दरअसल हम वो वास्तव में हैं जो हमारी  चाहत है ।

 यदि वास्तव में हमारी चाहत टीचर है तो हम हार्टफुलनेस टीचर हैं ।

यदि हमारी चाहत वास्तव में विद्यार्थी जैसी है तो हम हार्टफुलनेस स्टूडेंट है।

हमारी चाहत, रुचि, लगन, तड़फ ही हमारी असलियत है।


जब कोई कहता है कि शिक्षा ढोंग बन चुकी है तो इसमें कितनी सच्चाई है?


जब बड़ा से बड़ा लफ़ंगा मंदिर में जाता है,तो वह वहां कम से कम दिखावा तो करता है वहां की मर्यादा में बंधने का।


जब बड़ा से बड़ा अनुशासन हीन किसी के मरे पर जाता है तो वहां उस वक्त जरूरी मर्यादा में रहता है।


लेकिन अब एक क्लास की मर्यादा?अब एक स्कूल की मर्यादा??


एक विद्यार्थी होने की मर्यादा??


एक शिक्षक की मर्यादा?


एक शिक्षा व्यवस्थापक की मर्यादा??


एक शिक्षण, सहज शिक्षण की मर्यादा??

ये सब का मनोविज्ञान क्या है?


हमारा सनातन क्या है?हम मुसलमान हो सकते हैं, पाकिस्तानी ,चीनी हो सकते हैं लेकिन हमारा धर्म क्या है?आज इसे शिक्षित ही भूल गया है। हमारा धर्म भेद से अभेद में कूदना है।छलांग है।

खुद से खुदा की ओर!!आत्मा से परम्आत्मा की ओर!!

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पुरोहितवाद,जातिवाद, पंथवाद, पूंजीवाद, सत्तावाद,सामन्तवाद आदि ने हमें आगे नहीं बढ़ने दिया है।हमारी अज्ञानता, रुचि, नजरिया, प्राथमिकता आदि भी इसमें सहायक रही है।


हम कहते रहे है..हम आत्मा से ही परम् आत्मा की ओर हो सकते हैं।हमारे तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।स्थूल का विकास तो संसार में कुछ निश्चित समय तक होता है लेकिन हमारे सूक्ष्म का विकास निरन्तर होता रहता है।यदि वह संकुचित हो गया तो हम नरक योनि, भूत योनि आदि की सम्भावनाओं में जीने लगते है ,यदि विस्तृत तो पितर योनि, देव योनि, सन्त योनि की ओर अग्रसर हो आत्मा की ओर,जगतमूल की ओर,अनन्त की ओर अग्रसर हो जाते हैं।


धर्म व आध्यत्म को लेकर व्यक्ति भ्रम में है।हमारा धर्म बड़ा है,हमारा देवता बड़ा है,हमारा महापुरुष बड़ा है,हमारी जाति बड़ी हैआदि आदि ......इससे हम बड़े नहीं हो जाते हम आर्य नहीं हो जाते हम इंसान नहीं हो जाते।सदियों से हम अपने सूक्ष्म को किस स्तर पर ले जा पाए?हमारे ग्रन्थों का हेतु रहा है-आत्म प्रबन्धन व समाज प्रबन्धन।दोनों में हम असफल हुए हैं।


एक्सरसाइज करने का मतलब क्या है?अभ्यास में रहने का मतलब क्या है?हम अभ्यासी बनें।हम अभी न इंसान न धार्मिक हैं,न आध्यात्मिक।धार्मिक होना आध्यात्मिक होना काफी दूर की बात है अभी।इसलिए हम अभ्यासी है अभी।


धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः । 

धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् । ।


 पहला लक्षण – सदा धैर्य रखना, दूसरा – (क्षमा) जो कि निन्दा – स्तुति मान – अपमान, हानि – लाभ आदि दुःखों में भी सहनशील रहना; तीसरा – (दम) मन को सदा धर्म में प्रवृत्त कर अधर्म से रोक देना अर्थात् अधर्म करने की इच्छा भी न उठे, चैथा – चोरीत्याग अर्थात् बिना आज्ञा वा छल – कपट, विश्वास – घात वा किसी व्यवहार तथा वेदविरूद्ध उपदेश से पर – पदार्थ का ग्रहण करना, चोरी और इसको छोड देना साहुकारी कहाती है, पांचवां – राग – द्वेष पक्षपात छोड़ के भीतर और जल, मृत्तिका, मार्जन आदि से बाहर की पवित्रता रखनी, छठा – अधर्माचरणों से रोक के इन्द्रियों को धर्म ही में सदा चलाना, सातवां – मादकद्रव्य बुद्धिनाशक अन्य पदार्थ, दुष्टों का संग, आलस्य, प्रमाद आदि को छोड़ के श्रेष्ठ पदार्थों का सेवन, सत्पुरूषों का संग, योगाभ्यास से बुद्धि बढाना; आठवां – (विद्या) पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त यथार्थ ज्ञान और उनसे यथायोग्य उपकार लेना; सत्य जैसा आत्मा में वैसा मन में, जैसा वाणी में वैसा कर्म में वर्तना इससे विपरीत अविद्या है, नववां – (सत्य) जो पदार्थ जैसा हो उसको वैसा ही समझना, वैसा ही बोलना, वैसा ही करना भी; तथा दशवां – (अक्रोध) क्रोधादि दोषों को छोड़ के शान्त्यादि गुणों का ग्रहण करना धर्म का लक्षण है ।


धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः । 

धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् । ।


धर्म से हम दूर हैं।हमारे धर्म तो हमारी असलियत है,हमारी आत्मा है।स्व(आत्मा)तन्त्रता है।


हम किससे जुड़े हैं ये महत्वपूर्ण नहीं है।महत्वपूर्ण है-हम हो क्या रहे हैं?समाज की नजर में नहीं वरन कुदरत की नजर में-परम् की नजर में।चरित्र समाज की नजर में जीना नहीं है वरन परम् की नजर में जीना है।इस बहस से इस कथा से हमारा भला होने वाला नहीं है कि हम समझ लें कि अमुख अमुख बड़ा है।महत्पूर्ण है अपनी यात्रा।अपने सूक्ष्म की यात्रा।खुद से हम किधर गए है?स्व से हम किधर गए है?कोई बड़ा है,इसे मानने से ही हम बड़े नहीं हो जाते।सहज मार्ग राज योग में हेतु है आत्मा को परम्आत्मा होना।


भेद!

''''"""""""""""'

सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!

भेद कैसा?अध्यात्म है - मानसिक रूप से कोई भेद न होना।अपने आत्मा की ओर बढ़ना हमें अनन्त से जोड़ता है। परम की ओर की यात्रा आत्मा से शुरू होती है।परम् आत्मा हो कर। सन्त परम्परा हमें जीवन पथ का असल देता है।।लोग नजर ही निम्न रखते हैं-सभी को किसी न किसी जाति/मजहब/समूह आदि या लोभ लालच, अमीरी गरीबी ,क्षेत्रीय-बाहरी आदि के रूप में देखते हैं।उनमें भक्ति, अध्यात्म, मानवता,नागरिकता, प्रकृति, ब्रह्म आदि की नजर से नहीं देखते।ब्रह्मांड, अनन्त, विज्ञान ज्ञान, संविधान, मानवता आदि जो नजर सबसे रखवाना चाहता है,वह नहीं रखते।भेद ही भेद।तब ज्यादा ज्यादती हो जाती है-जब अपने गुट/जाति/मजहब/क्षेत्र/चापलूसी/हाँहजुरी/आदि में किसी के अपराध/ग़ैरक़ानून का समर्थ व किसी का असमर्थन।धन्य!!धन्य!!!!


हमारे व जगत के अंदर है,जो निरन्तर है,शाश्वत है,अनन्त प्रवृतियां रखता है!!शिक्षा, सुधार,सुप्रबन्धन, अनुशासन ,विकास आदि विकासशील है विकसित नहीं।ठहराव इसलिए ठीक नहीं

निरन्तर अभ्यास व जागरूकता जरूरी:::बुद्धत्व!!!

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जगत में कोई महान पद है तो गुरु!!जो हमें अंधेरे से उजाले की ओर ले जाए, अस्वच्छता से स्वछता की ओर ले जाए- स्थूल व मानसिक दोनों रूप से। आज कल देखा जाए तो दशा व स्वभाव से कोई गुरु नहीं न शिष्य, न कोई शिक्षक न विद्यार्थी।इस लिए हम नाम देते है-अभ्यासी का। सभी अभ्यासी हैं।बुद्ध ने कहा है-निरन्तर अभ्यास व  जागरुकता की जरूरत है।जो परिवर्तन को स्वीकार किए बिना सम्भव नहीं है।ठहराव को भविष्ययात्रा या विकास शीलता नहीं कहा जा सकता। इसके लिए निरन्तर विभिन्न शिविर व प्रशिक्षण भी आवश्यक है।सामूहिक चर्चा व सेमिनार के साथ साथ आत्मा चेतना जगाने वाले सामूहिक कार्य भी आवश्यक हैं।


आत्म/आत्मियता/निजीपन व जगत/विश्व/जगत मूल को समझना जरूरी है।आत्मा व परम् आत्मा या अंतर दिव्य शक्तियों को महसूस करना अपने को महसूस करना भी जरूरी है। इसके लिए सन2002 ई0 में ही यूनेस्को, संयुक्त राष्ट्र संघ मूल्य आधारित शिक्षा, अधयापकों के प्रशिक्षण की भी वकालत कर चुकी है। जिस आधार पर हार्टफुलनेस एजुकेशन  WWW.heartfullness.org/education  व अन्य संस्थाए सरकार के सहयोग से कार्य कर रही हैं।


आज हम विभिन्न संस्थाओं में कैमरे लगे देखते है।जिस पर हमारा चिंतन जाग्रत हो जाता है।कैमरों की जरूरत पड़ गयी।ये हमारे कमजोरी का प्रतीक है।विकास नहीं है।



सनातनी की सोंच---सावधान!ईश्वर देख रहा है।

विकास की सोंच---सावधान! कैमरा देख रहा है।

व्यक्तित्व की सोंच-सावधान!साहब की चापलूसी में रहो।


कौन सी सोंच --


नास्तिकता की ओर कि आस्तिकता की ओर..?!

भगत सिंह क्रांतिकारी का यथार्थवाद नास्तिकता व आस्तिकता से परे.....

     यथार्थ/सत्य

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स्थूल       सूक्ष्म         कारण

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प्राकृतिक।                                  बनाबटी/कृत्रिम

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!                                               धर्म स्थल आदि

स्थूल, सूक्ष्म व कारण

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   सत्य/यथार्थ

        !

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      पहला यम

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      यम/महाव्रत

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       सत्य, अहिँसा, अस्तेय, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य

       !

योग के लिए पहली आवश्यकता सत्य...


हम  अतीत में इतना भी न खो जाएं कि भविष्य ओझल होजाए। वर्तमान में सत्य/यथार्थ के आधार पर ऐसे चलें कि हमारा भविष्य वर्तमान से बेहतर हो।

जीवित महापुरुषों का सम्मान अति आवश्यक है।वर्तमान में दिव्य का सम्मान आवश्यक है।वर्तमान का आचरण व प्रबन्धन सुशासित होना आवश्यक है।


भूतकाल तो गया, उसको लेकर न बैठे रहो। जागो, उठो चलते रहो।जीवन निरन्तर है।विकास शील होवो, विकसित होने की लालसा निरन्तर नहीं है।बदलाव शाश्वत  है।हर स्तर पर,हर कदम बाद आगे भी रास्ता है, रुको मत। अभ्यास में रहो।।

#युवादिवस

अंतर्चेतना का निरन्तर युवा दिवस पहचानो। सदाशिव युवा पन पहचानो। युवाओं शान से जिओ।और माताओं व पिताओं आप अपने को बुजुर्ग मत समझो। ये हाड़ मास शरीर परिवर्तन शील है, इस सत्य को स्वीकारो।इस के कष्टों ,रोगों में उलझ कर अपने अंदर की दिव्य ता को भूल मत जाओ। और नन्हें मुन्ने बच्चों ब्रह्मचर्य आश्रम / विद्यार्थी जीवन का मतलब समझो। अपने अंदर के दिव्य को प्रकाशित होने का यह अवसर है।ये प्रयत्न व प्रयास का समय है।

समाज, राज्य,देश व विश्व के लिए खतरा कौन हैं?जो  अपने जाति - मजहब के लिए  गैरजाति- गैरमजहब 

के व्यक्तियों, स्त्रियों, बच्चों को गैरकानूनी, अमानवीय, जबदस्ती,भीड़ हिंसा, उन्माद मेँ ढकेल देते हैं। अफसोस शिक्षित भी जातीय-मजहबी सोंच से ऊपर उठकर अपने को इंसान,देश का नागरिक होने के नाते न स्वयं जीते हैं न दूसरे को जीने देते हैं। विचारों-भावनाओं, इंसान की आवश्यकताओं का भी मजहबीकरण कर देते हैं,कुदरती चीजों का मजहबीकरण कर देते हैं। उनमें इंसानियत, सेक्युलर के प्रति कोई आकर्षण नहीं होता। लेकिन कुदरत व खुदा जातियों व मजहबों,जातीय मजहबी खुराफातों से कोई मतलब नहीं रखता। हमें विचारों भावनाओं में इतना भी नहीं उलझना चाहिए कि हम उनकी सहजता व मूल को न समझ अपने अपने ग्रंथ,पुरोहित के षडयन्त्रों,मजहबीकरण में फंस जाएं।


हमें तो इतना ही पता है कि जगत में जो भी दिख रहा है-वह कुदरत है या बनाबटी है। जीवन की असलियत कुदरत में है।


  यथार्थ

    !

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!                                      !

दृश्य                             अदृश्य

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प्राकृतिक      बनाबटी    सूक्ष्म           कारण

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स्थूल      सूक्ष्म         कारण

#सन1893 कन्याकुमारी रायपुर(फर्रुखाबाद) से आये कुछ सन्यासियों के साथ जनता के कुछ लोगों के बीच !! अमेरिका जाने से पूर्व...?!


हम जनतंत्र के माध्यम से भी असल की ओर जा सकते हैं, सत्य की ओर जा सकते हैं। जनतंत्र आध्यत्म का स्थूल है जो हमें एक विश्व नागरिकता, विश्व राज्य, विश्व सरकार, महाद्वीपीय सरकारों की ओर ले जा सकता है।बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर .....की ओर ले जा सकता है।


वर्तमान में जनतंत्र से बेहतर कोई प्रणाली नहीं है।जिस तरह समाज की इकाई है परिवार उसी तरह ही तन्त्र की पहली इकाई परिवार, स्कूल व वार्ड/गांव में भावी सर्वउद्देशीय सहकारी संस्था होनी चाहिए।अनेक विभागों की आवश्यकता नहीं है। सामाजिक लोकतंत्र व आर्थिक लोकतंत्र के बिना लोकतंत्र सदैव  खतरे में है। तन्त्र से पूंजीवाद, सामन्त वाद, पुरोहितवाद, जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद, माफिया वाद, नशा व्यापार,खाद्य मिलावट आदि को खत्म करने की जरूरत है। प्रत्येक क्षेत्र से कुछ परिवारों, जातियों की मनमानी के प्रभाव को खत्म करने की जरूरत है। लोकतंत्र का मतलब है-जनता का शासन। #लोहिया , #दीनदयाल #अटल #अम्बेडकर  आदि का सपना वर्तमान तन्त्र के रहते पूरा होना असंभव है। #राजीवदीक्षित

सत्य

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सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य

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            यम/महाव्रत

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           स्व प्रलय /त्याग/वैराग्य

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                  लयता/प्रेम/भक्ति

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  सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर/बसुधैव कुटुम्बकम/

 जगत का कल्याण हो! सभी आर्य होवें....


जीवन यात्रा है, रास्ता है।मंजिल नहीं।जिस पर अनेक पड़ाव स्तर दर स्तर मंजिले होती हैं। सत्य के लिए, संश्लेषण के लिए, बुध्दत्व के लिए, अंगुलिमाल की गलियों को रोशन करने के लिए, बसुधैव कुटुम्बकम के लिए भटकना भी अच्छा है। हमारा अस्तित्व ईसा की तरह सूली, मीरा सुकरात की तरह जहर भी बुन सकता है,जब  हमारे वर्तमान का नायक का अस्तित्व शनै शनै भविष्य के आईने में गुम हो जाता है।

शब्दों के साथ भी षड्यंत्र!!

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तुमने व तुम्हारे आकाओं ने शब्दों के साथ भी राजनीति की।

इंसान के खिलाफ राजनीति की ही, जीव जंतु, वनस्पति के खिलाफ राजनीति की ही, चाँद सूरज, धरती के खिलाफ राजनीति की ही।शब्दों के खिलाफ भी राजनीति की।


एक शब्द है - स्वार्थ!

अनेक शब्द हैं जो समाज में प्रचलित हैं, लेकिन बदनाम है, अनर्थ में हैं।


स्वार्थ ! हमारे लिए #स्वार्थ भी पवित्र है जितना कि #राम !


स्वार्थ = स्व+अर्थ अर्थात अपने लिए।


जिसकी जैसी भावना वैसी उसकी दुनिया व दुनिया के तथ्यों व वस्तुओं पर नजर। गीता में भी श्रीकृष्ण कहते हैं-हमारे को पाने के लिए सिर्फ नजरिया व आस्था महत्वपूर्ण है।


स्व

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स्थूल।   सूक्ष्म।     कारण


हर शब्द के पीछे एक स्थिति भी है।


इसी तरह अन्य शब्द हैं-लव, जिहाद, लव जिहाद आदि।

सन्त परम्परा में, ऋषिपरम्परा में इन शब्दों के क्या मायने हैं?

आखिर एक यूनिवर्सटी में स्नातक स्तर में लव विषय पर एक पेपर अनिवार्य करने की क्या जरूरत पड़ी?


हमारे लिए भारत का मतलब है-भा+रत,प्रकाश में रत। जिसकी चकाचौंध में कभी पूरा विश्व था।


 

आज के शिक्षक का सम्मान क्या हो गया है?


वर्तमान में हमारे नजर में सबसे बड़ा भृष्टाचार - विद्यार्थियों, शिक्षकों,शिक्षितों के द्वारा हो रहा है।

आखिर ऐसा क्यों?


सवर्ण(ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य).....हूँ!शेष सब 85 प्रतिशत शूद्र..?! देश व समाज में बेहतरी चाहते हो तो जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद, समाज में जाति आधारित समझौता का दबाव, जातिवादी चुनाव प्रक्रिया आदि के खिलाफ समाज व देश के ठेकेदारों को चलना होगा । आरक्षण के विरोधियों को प्राइवेट व व्यक्तिगत जीवन में अप्रत्यक्ष आरक्षण/जातिवादी नजरिया व फैसलों, समझौतो को नजरअंदाज करना होगा।


हम सभी भारत वासियों को देश के संविधान के दर्शन, प्रस्तावना, इंसानियत, आध्यत्म को स्वीकार करना होगा और जो जाति मजहब ,खुदा के नाम पर देश व देश की सड़कों को उन्माद, हिंसा में धकेलना चाहते हैं उनके खिलाफ एक जुट होना होगा। विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम को जीवन का जो आधार बनाने के लिए तैयार न होकर अपने जाति मजहब को लेकर समाज में अशांति  व दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप करने वालों को अपने आचरण व जीवन में उपेक्षित करना होगा। जो मानवता ,भारतीयता, संविधान प्रस्तावना को स्वीकार करने को तैयार नहीं उनसे दूरी जरूरी है सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक दृष्टि से। अध्यात्म व सत्संग में सभी का तब स्वागत है जो शांति से हमे सुनना चाहता है और हमारे कार्यक्रमों में सहयोग करना चाहता है।


देशबासियों !


क्या आप नहीं चाहते कि किसान स्वतंत्र हो अपनी उपज की कीमत निर्धारित करने को ? क्या आप नहीं चाहते कि देश के हर नागरिक को सिस्टम से कोई समस्या न हो ? वह भक्ति बेकार है जो देश के नागरिकों, किसानों, बेरोजगारों की समस्याओं से देश को मुक्त करना नहीं चाहते । यदि हम देशभक्त हैं,आज याद करो देश के संविधान के प्रस्तावना को । शपथ लो हम प्रतिदिन संविधान की प्रस्तावना को स्मरण करेंगे ।


 हम कैसे भूल जाएं- जनतंत्र का मतलब है जनता का शासन ? हम कैसे भूल जाएं जनतंत्र का मतलब नहीं है पूजी पतियों,सामन्तवादियों , माफियाओं का शासन, धनबल जातिबलों का शासन । 

जनतंत्र का मतलब है जनता का शासन।


 हम देखते हैं प्रत्येक क्षेत्र में एक दो जाति  के लोगों की मनमानी चलती है या फिर एक दो परिवार की। यह क्या जनतंत्र है ? आज फिर हम कह रहे हैं की देशभक्ति का मतलब क्या है? हमारी देशभक्ति है देश के अंदर के सभी जीव जंतु वनस्पतियों मनुष्य का संरक्षण उनकी समस्याओं का निदान । हमें अफसोस है 70 साल के बाद भी अभी तक उन नागरिकों को संरक्षण नहीं मिल पाया है जो इंसानियत के आधार पर और संविधान के आधार पर चलना चाहते हैं।












नोट:यदि इस विचार को चाहते हो तो आओ हमारे संग।


















#heartfulness


Abhyasi Srcm Heartfulness


www.heartfulness.org/education

शनिवार, 9 जनवरी 2021

10जनवरी ::: विश्व हिंदी दिवस पर अशोकबिन्दु

 10जनवरी ::: विश्व हिंदी दिवस!!!

137 देशों में अपनी पहुंच बनाने वाली हिंदी पर हमें नाज है। हिंदी ही नहीं हम हार्टफुलनेस कटरा विधानसभा क्षेत्र  , विश्व हिंदी अध्यात्म साझा प्रचारक! , विश्व सम्विधान विश्व सरकार  के साथ हार्टफुलनेस #heartfulness को आज की तारीख तक अपनी पहुंच 200 देशों में पहुंचा चुके हैं। 


हमें खुशी है कि वर्तमान में हमारे वैश्विक मार्गदर्शक हैं- श्री  कमलेश डी पटेल 'दाजी' ।


हम जो सपना सन 1990 में देखे थे उसे हम सन 2011- 2014ई0 से बड़ी तेजी के साथ साकार होते देख रहे हैं। अनेक देशों के विश्व विद्यालय तक हिंदी ,हार्टफुलनेस, आयुर्वेद, योग पहुंच चुका है।


दुनिया की निगाहें भारत की ओर हैं।


सिर्फ भारत ही ऐसा देश है जहां  धार्मिक धार्मिक अनुष्ठानों में अब भी जयघोष लगते हैं-जगत का कल्याण हो। भारत ही वह देश है जहां अनेक व्यक्ति ऐसे हैं जो बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर की कल्पना रखते हैं। दुनिया में कुछ लोग ईश्वर व मजहब के नाम पर चल तो रहे हैं लेकिन  उनके शिक्षित भी, विद्वान भी सारी मानवता, विश्व शांति, पन्थ निरपेक्षता के बारे में सोंच तक नहीं सकते। आधुनिक भारत में हमें एक सूफी संत हुए- हजरत क़िब्ला मौलबी फ़जल अहमद खान साहब रायपुरी बार बार याद आते हैं, जिनके शिष्य गैर मुश्लिम थे।जिन पर उन्होंने कभी मुस्लिम पन्थ का दबाव नहीं डाला।जो जहां था, वहीं से उसने  आध्यत्म की अलख जगाई।जो आज की तारीख में खामोश रूहानी आंदोलन बन चुका है। #रामाश्रम #रामसमाधि #रामचन्द्र आदि के नाम पर हजारों आश्रम/केंद्र दुनिया में उपस्थित हो चुके हैं। जिसका जमाने को आभास तक नहीं होता और हर आध्यत्म प्रेमी जिसकी आभा को महसूस करता है।भविष्य में इसे सारी दुनियामहसूस करेंगी।हमें फतेहगढ़ (फर्रुखाबाद) से श्रीरामचन्द्र जी महाराज पर नाज है जो #कायस्थ  परिवार से थे और हजरत क़िब्ला मौलबी फ़जल अहमद खां साहब रायपुरी के शिष्य थे। जिनके नाम पर ही 1945 में शाहजहांपुर की धरती पर श्री राम चंद्र मिशन की स्थापना की गयी।जिसका वर्तमान में वैश्विक मुख्यालय कान्हा शान्ति वनम, हैदराबाद है।


कुछ वर्षों पहले हमें कुछ संकेत मिले, हम विश्व हिंदी अध्यात्म साझा प्रचारक की पहुंच तक पहुंचे।


इसके साथ ही----


विश्व हिन्दी रचनाकार मंच 


विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा 


विश्व शांति;करुणामयी बुद्ध Group 


विश्व हिंदी साहित्य सृजन मंच 


विश्व हिंदी लेखक परिवार..📖🖋️ 


विश्व हिंदी शोधार्थी 


विश्व हिंदी साहित्य सम्मेलन 


हिंदी विश्व 


विश्व कुर्मी महासंघ 


सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका 


अंतर्राष्ट्रीय साहित्य-साधना मंच 


सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका 


Heartfulness Africa 


Heartfulness Montréal 


Heartfulness Nederland 


Heartfulness Meditation South Florida 


Heartfulness Hyderabad 


आदि आदि......