सोमवार, 29 जून 2020

आखिर सम्मान क्या है:::अशोकबिन्दु

 कमलेश डी पटेल 'दाजी' ने बाबा रामदेव की उपस्थिति में कहा था-व्यक्ति का सम्मान जिंदा रहते होना चाहिए।ऐसे में हम बाबा रामदेव के नाम से  एक सड़क बनवाने जा रहे है।

 बता दे कि  हैदराबाद स्थित कान्हा शांति वनम हजारों हेक्टर जमीन पर फैला हैम जिसे सरकार ने ग्राम पंचायत की भी मान्यता दी है। वहां पर सभी सड़कें किसी ना किसी महापुरुष के नाम से बनाई गई हैं। अब एक सड़क दाजी बाबा रामदेव के नाम से भी बनवा रहे हैं।


 यह सत्य है कि आखिर हमें क्यों नहीं किसी व्यक्ति का जिंदा रहते सम्मान क्यों नहीं करना चाहिए? हम बचपन से ही देखते हैं कैसे एक अंकुरित महानता अपने परिवार अपने स्कूल अपने कार्य क्षेत्र में ही दमित होकर रह जाती है? चारों माफियाओं का राज होता है ।सच्चाई को कोई स्वीकार नहीं करना चाहता ।मानवता अध्यात्म यथार्थवाद को कोई स्वीकार नहीं करना चाहता। लोग ईश्वर की बात करते हैं , धर्म की बात करते हैं ।धर्म के नाम पर ,धर्म स्थलों के नाम पर सड़क पर, औरों के घरों के सामने उन्माद फैलाते हैं ।हिंसा फैलाते हैं। कृत्रिम ता ओ के लिए, बनावट के लिए कुदरती चीजों को छिन्न भिन्न करते हैं। समस्याएं तो मानव के जीवन में कुदरत के सामने कोई समस्या नहीं है।

 हमारा शरीर भी आपका शरीर भी कुदरत है। एक औरत का शरीर भी कुदरत है। एक बच्चे का शरीर भी कुदरत है ।एक असहाय भिखारी दुश्मन का भी शरीर कुदरत है ।कुदरत का अपमान करना क्यों ?हम कौन होते हैं कुदरत का अपमान करने वाले ?अभी वक्त है संभल जाओ। कुदरत हिसाब किताब करना जानती है। तुम कितने बड़े भी शेर खा हो? तीरंदाज हो? तुम जिन पर फलते फूलते हो अहंकार दिखाते हो उनकी भी कुदरत के सामने कोई औकात नहीं।



इस दुनिया में अल्पसंख्यक का कभी भी सम्मान नहीं किया। आखिर अल्पसंख्यक कौन है ?हमारे लिए अल्पसंख्यक वह है जो समाज में घर में संस्थाओं में अकेला खड़ा है? कुदरत को साथ लिए, संविधान को साथ ले, मानवता को साथ लिए, उदारवाद को साथ ले, अध्यात्म बाद को साथ ले वह...? लोग लालच जातिवाद मजहब बाद धर्म स्थल बाद आदि के खिलाफ खड़ा है हमारा तंत्र। तब ही सम्माननीय है ।जब भीड़ के अंदर एक अकेला व्यक्ति भी सम्मानित है प्रतिष्ठित है जनतंत्र में ..?हर व्यक्ति जब तक सम्मानित नहीं है तब तक वह तंत्र जनतंत्र नहीं है ।

हम देखते हैं समाज के ठेकेदार संस्थाओं के ठेकेदार सांसद एमएलए वार्ड मेंबर आदि जनप्रतिनिधि सब के सब किसके सम्मान में खड़े हैं?
 मोहल्ले गांव बाढ़ के दबंग माफिया मनमानी करने वाले सब के सब किसी ना किसी नेता किसी ना किसी राजनीतिक दल के सहारे अपना जीवन जी रहे हैं थाने की राजनीति नगर के माफिया को कौन सहारा दे रहा है लोकतंत्र में जब तक हर व्यक्ति सम्मानित नहीं जब तक हर व्यक्ति सीना तान कर जिंदगी जीने के लिए स्वतंत्र नहीं तब तक वह तंत्र जनतंत्र नहीं लोकतंत्र नहीं


सम्मान कैसा सम्मान सम्मान ....!!हमारा सम्मान हमारी भावना है! हमारा सम्मान हमारी आत्मा है !हमारा सम्मान हमारी विचारधारा है! हमारा सम्मान हमारी मानवता, आध्यत्म को अवसर है। हमारा सम्मान सामाजिकता नहीं मानवता है।हमारा सम्मान वह चरित्र है जो समाज ,संस्था, समाज व संस्थाओं के ठेकेदारों की नजर में जीना नहीं, महापुरुषों की नजर में जीना है।

चन्द्र भूषण पांडेय कहते हैं-जन तन्त्र में कोई v i p होना ही नहीं  चाहिए।

हम अभी किसी भी प्रकार के जनतंत्र को वास्तव में स्थापित नहीं कर पाए हैं। लोकतंत्र का मतलब सिर्फ यही नहीं है कि जाति, मजहब में प्रत्याशियों, मतदाताओं को बांट कर मत पा जाना।अभी हम सामाजिक व आर्थिक  लोकतंत्र से तो काफ़ी दूर हैं।



देश के अंदर  निरपेक्ष व्यक्ति, जाति मुक्त, मजहब मुक्त नागरिकों आदि के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।


ऐसे में हम?हम अकेले खड़े हैं। भीड़ में भी, ठेकेदारों ने तो दुश्मन मान रखा है। जो भी हमारे सम्मान में खड़े है, सब झूठे हैं। कुछ अपवाद को छोड़ कर।










हम आखिर कब सुधरंगे :: अशोकबिन्दु

अभी न सुधरे तो कब सुधरोगे?
 नई सोच नए बदलाव के साथ चलना होगा!
 पुरानी धारणाओं को छोड़ना होगा!
 कोई भी विकसित नहीं है!
 विकासशील रहना है तो आगे बढ़ना है !
अतीत को छोड़ना है! एशिया में इस वक्त अनेक संभावनाएं हैं!

 हमें तय करना है ,हमें किधर जाना है!

 जो देश सोच समझकर कदम नहीं रखेगा ,विश्व बंधुत्व वसुधैव कुटुंबकम मानवता अध्यात्म आदि को लेकर नहीं चलेगा ।जातिवाद, धर्म वाद, देश बाद आदि में उलझा रहेगा । उसका पतन आवश्यक है।

 आओ हम सब लोग मिलकर कुदरत की आवाज बने।

 मानवता की आवाज बने ।
देशवाद को छोड़कर विश्व सरकार की बात करें ।

दलाई लामा भी कहते हैं -सभी समस्याओं का हल है विश्व सरकार!

चीन, कोरिया, पाकिस्तान, अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, ईरान, इराक आदि देशों को इस पर विचार करना होगा। अभी नहीं तो आगे लेकिन तब काफी देर हो चुकी होगी।
आध्यात्मिक दुनिया भारत और कमलेश डी पटेल दाजी की ओर, राजनैतिक दुनिया भारत और नरेंद्र मोदी की ओर देखने लगी है।

खुदा ख़ुदा, ईमान ईमान, हिंदुत्व हिंदुत्व ..... आदि चीख चीख कर सड़क पर कितना भी उन्माद फैलाए हों।अनेक चीजें कोरोना के माध्यम से व आगे कर अनेक माध्यम से कुदरत हिसाब किताब बराबर कर देगा। बचा खुचा हिसाब तृतीय विश्व युद्ध, वर्ग संघर्ष, साम्प्रदायिक दंगे, भूकम्प, भुखमरी, बेरोजगारी आदि गृहयुद्ध से होगा। लेकिन दुनिया के दिलों पर राज करने वाला कोई और ही होगा।लोग मजबूरी में विश्व बंधुत्व, बसुधैब कुटुम्बकम, आध्यत्म, मानवता को स्वीकारेंगे।लेकिन जातिवादियों, मज़हबीयों, देशवादियों का कोई नाम लेने वाला नहीं मिलेगा।
कबीरा पुण्य सदन

#अशोकबिन्दु






शनिवार, 27 जून 2020

हमारा भविष्य और भावी विश्व सरकार: भाग 01

त्रिकाल दर्शी!

अतीत,वर्तमान व भविष्य;तीनों काल का दर्शी!

जीवन एक यात्रा है।

याद कर रहे हैं -एक ट्रेन सफर।
खिड़की से हर दृश्य बदला दिखता है।
हम  अपने रुचि के हिसाब से दॄश्य नहीं देख सकते।

सफर में खिड़की से अनेक दृश्य दिखते हैं।
हम ये उम्मीद नहीं रख सकते कि जो बेहतर दृश्य या आकर्षक दृश्य है, हमें फिर से दिखाई दे।
ऐसा ही जीवन का सफर है।

किसी ने कहा है,जो वर्तमान में संतुष्ट नहीं है या वर्तमान में तटस्थ नहीं है वह भविष्य में संतुष्ट हो सुकून को प्राप्त हो आवश्यक नहीं
है।
 त्रिकालदर्शी वह जो अतीत वर्तमान भविष्य को देखता है जीता है सोचता नहीं ।
जो है सो है ।
राजा दशरथ ,ऋषि विशिष्ट आदि सब जानते थे कि भविष्य में क्या होने वाला है? लेकिन उसके हिसाब से सुप्रबंधन न  कर पाए।

 सन 2011 से 25 तक का समय विश्व के इतिहास में महत्वपूर्ण समय होने जा रहा है। जिस के संबंध में 100 साल पहले 500 वर्ष पहले लिखा जा चुका है ,संतो ने भविष्य के बारे में लिख दिया है ।क्या होगा वास्तव में? जीवन प्राकृतिक है जीवन की आवश्यकता है भी प्राकृतिक हैं ।लेकिन हमने उस पर बनावटी ,कृत्रिम स्थितियां डाल दी है ।
शुद्धोधन को भी पता था कि हमारा बेटा संत सम्राट बनेगा लेकिन उसका प्रबंधन उसे सन्त सम्राट बनने से रोक नहीं पाया ।
साधना करके हम अपनी चेतना और समझ को इतना विस्तृत कर लेते हैं या कर सकते हैं कि अतीत व वर्तमान के आधार पर भविष्य का भी दर्शन कर सकते हैं। ये दर्शन सभी प्राणियों में उपस्थित है ।आत्मा को हम ज्ञान भी कह सकते हैं ,ज्योतिष भी कह सकते हैं।


22जून-29जून 2020!
गुप्त नव रात्रि पर्व!

अंतहीन प्रसार ही प्रेम है!

 अर्द्ध निद्रा में हम महसूस कर रहे थे। हमने महसूस किया अंतहीन प्रसार ही प्रेम है।वक्त सुबह 3:00 का था ।उठने के बाद मोबाइल को हम देख रहे थे। इस वक्त मोबाइल में अति व्यस्तता हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ रही है।
जहर !
बुद्ध ने कहा है - अति ही जहर है।

 24 - 24 घंटे में एक एक बार हम 48 घंटे में दो बार अपने दाएं हाथ से एक 2 सेकंड के लिए गर्मी निकलते महसूस कर रहे थे ।

आंख बंद कर बैठ हम इन 5 वर्षों में आंतरिक दशा को बेहतर होने की ओर देखने लगते हैं। लेकिन स्थूल शरीर से हम अपने को परेशानी में बढ़ते महसूस कर रहे ।

 हमें ध्यान आया ,
अरविंद घोष की पत्नी, उनको लोग माता जी कहकर पुकारते थे ।
एक साध्वी बोली थी ,हमारा मन निर्मल एवं पवित्र कर दो ।
माताजी टालती रही ।
साध्वी जब अड़ी रही, तो माता जी ने उनका मन रख लिया।समय गुजरा, उस साध्वी का मन निर्मल व पवित्र होने लगा लेकिन हाड़ मास शरीर में विकृतियां आने लगीं।


पुराने कर्मों , जटिलताओं आदि को एकदम एक साथ निकलना क्या कष्टकारी हो सकता है ।कोशिश करो। धीरे-धीरे अनियमितता से वर्तमान में साधना का ईमानदारी से पालन करो।
 जो हो गया वह हो गया। उसको तो झेलना ही होगा ।
वक्त गुजर ही जाता है ।


वर्तमान में जो धर्म नेता ,तांत्रिकों ,संतों का सहारा सिर्फ शारीरिक कष्टों को दूर करने ,अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए करते।
 जरूरी नहीं कि उनका सूक्ष्म शरीर, आत्मा के माध्यम से जगत मूल में बैठ सके?


राम कृष्ण परमहंस, विवेकानंद आदि  सफल साधकों को भी अपनी स्थूल शरीर से कष्टों को झेलना पड़ा था ।कुछ संतों का तो मानना है-- कष्ट ,परेशानियां आए तो झेल लो।

 परमात्मा को मत भूलो

बाबू जी महाराज कहते हैं  - "चिंताए और तकलीफें तभी उत्पन्न होती हैं जब हमारी मर्जी और ईश्वर की मर्जी में द्वंद होता है। द्वंद का होना इस बात का प्रभाव है कि सच्ची भक्ति की कमी है।
 हमें किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए अपने सही और निष्पक्ष निर्णय द्वारा चीजों को सही तरीके से समझते और परखते हुए अपने साहस और सत्य का उपयोग करना चाहिए।
 हमें किसी भी हालत में अपने पूर्वाग्रह ,पसंद और आकर्षण को हॉबी नहीं होने देना चाहिए।
 किसी भी वस्तु को उसकी गुणवत्ता के आधार पर लेना चाहिए कि क्या सही है और उचित है? इसमें हमारी पसंदगी का कोई स्थान नहीं है।......... दुख और चिंताएं जैसा कि हम समझते हैं तभी आती हैं जब हम कर्म के वास्तविक कर्ता स्वयं को समझते हैं ।लेकिन सोच ,वास्तविक भक्ति के लिए काफी कम है समर्पण की तो बात ही छोड़ दीजिए। चिंताएं और तकलीफें तभी उत्पन्न होती हैं............।"




इस स्थूल शरीर से बाहर निकलते हैं तो इससे पहले ही ये स्थूल शरीर भी संकेत करने लगता है।
 30 -40 वर्ष की बाद शरीर क्षय या कमजोर होने लगता है ।जो शरीर नाशवान है ,नष्ट हो जाना है उसके लिए हम अपना पूरा जीवन खफा देते हैं। और जो नाशवान नहीं है हमारी आत्मा या आत्मा की जगह कुछ और.... उसके साथ हम कब खड़े होते हैं ?
प्राण निकलते भी हमारी क्या तैयारी होती है भविष्य की?



एक बच्चा शिक्षा ग्रहण कर रहा है इसलिए सिर्फ स्थूल शरीर के प्रबंधन के लिए। लेकिन सूक्ष्मप्रबंधन ,कारण प्रबंधन ...?
हमरे स्तर 3 हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण ....लेकिन जीवन किस में खफा दे ते हैं? हम तुम्हारी सोंच ,विचार, आचरण को प्रेरणा स्रोत माने या तुम्हारे ग्रंथों एवं महापुरुषों  को ?
वर्तमान में हमें सहारा चाहिए सारथी चाहिए ।
वर्तमान में अनेक महापुरुष हैं, हर स्तर पर है। हम तुम उनके विरोध में खड़े हो इससे काम नहीं चलता।
 तुम्हारे ग्रंथ और तुम्हारे महापुरुषों की वाणियों के आधार पर जो चल रहा है तुम्हारे अपेक्षा वह हमारा प्रेरणा स्रोत क्यों ना हो ?

तुम्हारे द्वारा यह कहने से काम नहीं चलता कि वह वर्तमान महापुरुष कुछ नया क्या कहे रहा है ?
कुछ नया क्या कर रहा है ये तो हमारे ग्रंथों में है ।इससे क्या ?चलो ठीक है तुम्हारे ग्रंथ हैं तुम्हारे महापुरुष थे जिन पर वर्तमान महापुरुष चल रहा है ।लेकिन तब भी तुम हमारे और हमारे वर्तमान महापुरुष के विरोध में आखिर क्यों खड़े हो ?तुम इस बात को स्वीकार क्यों नहीं करते हम रोज मर्रे के जीवन में जो सोचते हैं कहते हैं करते हैं उसका विरोध तुम्हारे ग्रंथ ही करते हैं तुम्हारे महापुरुष की बानिया करती हैं?
 आखिर तुम चाहते क्या हो ?
चलो ठीक है तुम कृष्ण को राम को सम्मान देते हो लेकिन ऐसा सम्मान क्या कि तुम उनके विचारों के विरोध में खड़े हो? दरअसल तुम पुरोहितवाद, जातिवाद आदि के साथ खड़े हो ।

ग्रंथों का, महापुरुषों के साथ जीवन नहीं जी रहे हो।

 तरक्की क्या है?
 हमारा विचार नजरिया का स्तर यदि ऊर्ध्वाधर नहीं है वह उर्द्धगामी नहीं है ,भूत से भविष्य की ओर नहीं है तो क्या तरक्की क्या तैयारी ?

 मन ,वचन और कर्म तीनों स्तर पर हमारी स्थिति क्या है?

 मन,मन की क्या स्थिति है?
 मन किधर भाग रहा है?
 साधना, शिक्षा, संविधान आदि के बावजूद मन किधर भाग रहा है?
 गुरु ,शिक्षकों ,पुलिस तंत्र के बावजूद मन किधर भाग रहा है ?
गुरु की कृपा ,शिक्षकों के संदेशों ,पुलिस के कार्यवाहियों के बावजूद भी मन किधर भाग रहा है ?ये मानसिक गुलामी क्या है?
 हमारा मन किसका गुलाम है ?हम सुरत्व में  हैं या असुर तत्व मे हैं?




वचन व कर्म की अभी यहाँ बात ही नहीं हो रही है।


उन बलात्कारियों की फांसी पर चढ़ा दिया गया?

अब सब पुरूष ,सब लड़के सुधर  गये?

मन क्या ग्रहण कर रहा है?


चेतन  व अचेतन का क्या हाल है?

शिक्षा कैसी?  शिक्षित कैसा?

मन के तल पर कहीं असुरत्व साज सज्जा के साथ बैठा मौका तलाश रहा है।


धन्य, मानव की शिक्षा व मानव का शिक्षा जगत?!









शनिवार, 13 जून 2020

सनातन यात्रा का नाम-भारत::अशोकबिन्दु

हमें जीवन जीने से मतलब है।
जीवन जीना ही जीवन है। जन्म मृत्यु जीवन की शुरुआत नहीं है अंत नहीं है ।एक बीज होता है,धरती पर पड़ा रहता है।वक्त पर अंकुरित हो उठता है। ये वक्त बड़ा महत्वपूर्ण है।इच्छाएं महत्वपूर्ण नहीं हैं। वक्त महत्वपूर्ण है।वह बीच इच्छा में नहीं जीता।वह वक्त का पाबंद है।वह प्रकृति अभियान में है। हमारे अंदर, जगत में व ब्रह्मांड में प्रकृति अभियान निरन्तर है।इसका मतलब ही है-उसकी मर्जी  के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता।प्रकृति में मनुष्य ही है जो उसकी मर्जी के बिना हिलता है,हिलता ही नहीं चलता है।वह अपनी इच्छाओं के लिए छोंढ़ो अपनी या अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित कृत्रिमताओं में लिप्त
होकर प्रकृति को कुचलता भी है। प्रकृति अभियान का साक्षी होना अलग को बात। ऐसे में वह सनातन यात्रा से भटक जाता है।

'पुरुष:च अधिदैवतं '- प्रकृति  से परे जो परम पुरूष है,वही अधिदैव अर्थात सम्पूर्ण देवों का अधिष्ठाता है। उस तक अपनी चेतना व समझ के स्तर को ले जाना  दूर की बात फिर क्यों है? मतलब हम भारत में नहीं हैं।भारत के विपरीत खड़े हैं।भारत सनातन यात्रा है। 'अक्षरम ब्रह्म परमं'-जो अक्षय है ,जिसका क्षय नहीं होता, वही परम ब्रह्म है।प्रकृति उसकी दासी है।सहचर्य है।भोग को नहीं। ब्रह्म विस्तार है जो अनन्त यात्रा में डूबा है।जीव उसका शुरुआती बिंदु है।वह बिंदु जहां से वह संकुचित हो नरकीय
स्थिति, भूतगामी स्थिति तक पहुंच सकता है।98.80 प्रतिशत का हाल यही है।इंद्रियों, हाड़ मांस शरीर की आवश्यकताओं ,कृत्रिमताओं आदि में डूब जाना।अतीत में पहुंच जाना, भूत में पहुंच जाना। क्षर हो जाना, वह असुर हो जाना जो सुर से नीचे है।
अग्नि कुंड में आहुतियां दिए जा रहे हैं, धर्म स्थलों का रोज चक्कर लगा रहे हैं, मूर्तियों-तस्बीरों के सामने घण्टों बैठे रहते हैं ,ग्रन्थों को रट लिए हैं लेकिन......?!समझ का स्तर?!सामने वाला में आत्मा भाव होना दूर की बात मानव भाव ही नहीं।मानव भाव आना तो दूर की बात,हर कोई की पहचान के लिए जातियां, मजहब खड़े कर दिए हैं।जो क्षर है उसके लिए जिए जा रहे हैं।
श्री मद्भगवद्गीता,अष्टम अध्याय, श्लोक-चार में क्या कहा गया है?उससे मतलब नहीं। रोज चीखेंगे-कृष्णा कृष्णा, आरती बगैरा करेंगे लेकिन श्रीकृष्ण के आदेशों पे चलने वाला पागल, धर्म विरोधी।


हम कक्षा 05-06 से श्रीमद्भागवद्गीता का अध्ययन करते रहे हैं, लेकिन अपने लिए नहीं।आपके लिए।हमें तो अपने हाड़ मास शरीर, आत्मा की आवश्यकताओं में जीना है सिर्फ। अपने तीनों स्तरों-स्थूल, सूक्ष्म व कारण के लिए जीना।इसके लिए हमें आपके जातिवाद, पुरोहितबाद, मजहब वाद, सामन्तवाद, पूंजीवाद आदि की आवश्यकता नहीं है। हमने महसूस किया है ,आत्मा ही सनातन है।आत्मा का प्रकाश ही सनातन है।अंतर दिव्यता ही सनातन है। भारत है भा+रत अर्थात प्रकाश में रत।

गुरुवार, 11 जून 2020

अल्पसंख्यक ,समाज व तन्त्र::अशोकबिन्दु

एक शब्द - अल्पसंख्यक!
इस मामले में हम तन्त्र व समाज के आचरण से परेशान हैं।
हमारे लिए अल्पसंख्यक वह है जो परिवार, पास पड़ोस, गांव, शहर में अलग थलग है।
 कणाद अलग थलग थे, गनीमत राज्य उनका सम्मान करते थे।उनकी विद्वता को पूजते थे।
अपने समय में ईसा मसीह अलग थलग थे।
हम तो  मो0 साहब को भी उनके समय में  उनको भी इस समाज में अलग थलग मानते हैं।
हमें अब भी पास पड़ोस, समाज में लोग अलग थलग लोग मिल जाते है।
दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था- समाज में अकेला खड़ा व्यक्ति भी तंत्र का हिस्सा होना चाहिए।
लोहिया ने कहा था- कि तन्त्र ऐसा होना चाहिए कि बहुसंख्यकों के बीच अकेला व्यक्ति भी सीना तान कर चल सके।अपने विकास को स्वतंत्र अवसर में सहयोगी हो।

कुमार विस्वास कहते हैं-हमारा सँघर्ष तो कुपढ़ों व अनपढ़ों से है।

देश के अंदर 100 व्यक्तियों /एक मजहब एक जाति के लोगों के बीच एक अकेला व्यक्ति /एक गैर जात गैर मजहब का व्यक्ति भी स सम्मान जीवन व्यतीत कर सके, तभी लोकतन्त्र है।


भीम राव अम्बेडकर कहते हैं -सामाजिक लोकतंत्र, आर्थिक लोकतंत्र अति आवश्यक है।


जीवन का यथार्थ क्या है?जो है उस तक कौन::अशोकबिंदु

 क्रांतिकारी भगतसिंह ने यथार्थवाद को स्वीकार किया।

यथार्थ क्या है?


हर स्तर पर भटकाव है। हर स्तर पर यथार्थ है।

एक व्यक्ति ट्रक ड्राइबर का एक्सीडेंट हो जाता है।
उसे अपना बायां हाथ कटवाना पड़ता है।
उस एक्सीडेंट के लिए दोषी कौन?
समाज, अदालत, पुलिस, वर्तमान में मौके पर स्थिति की नजर में दोषी कौन?दोषी कौन नहीं?


रूस में एक तकनीकी आयी है कि उस तकनीकी से हम किसी व्यक्ति के आभामंडल/आंतरिक प्रकाश की स्थिति जान सकते हैं।

बात ये महत्वपूर्ण नहीं है कि कोई आस्तिक है या नास्तिक।
महत्वपूर्ण है कि किसी की समझ व चेतना का स्तर  क्या है?
हमारा जीवन मतभेद, भेद, निंदा ,खिन्नता, पक्ष विपक्ष आदि में ही गुजर जाता है।हम अपने स्तर में हीं फंस के रह जाते हैं।हम यहां तक महसूस नहीं कर पाते हैं कि हम जिस स्तर पर हैं, जिस नजरिया, सोंच, भावना, समझ आदि स्तर पर है उस स्तर से भी ऊपर हैं अपनी चेतना व समझ के स्तर व बिंदु।



उस एक्सीडेंट के लिए जिसका समझ का स्तर वैसा ही स्तर का विचार, मूल्यांकन, निरीक्षण आदि। अब वह मूर्ख है उन लोगों के लिए ही जो इस पर विश्वास (वास्तव में अविश्वास) करते  है कि  दुनिया को ईश्वर चलता है, उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता,जो कहता है सब मालिक की मर्जी।

 रूस में वह तकनीक प्राणी के आभा मंडल की स्थिति या वास्तिवकता स्पष्ट करती है।यथार्थ स्पष्ट करती है।हमारे,वस्तुओं व जगत के तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण। हर स्तर पर भी अनेक स्तर बिंदु। कोई तो जब कहे कि हमें ईंट में भी रोशनी सिखाई देती है ,तो हमे वह मूर्ख भी नजर आ सकता है।और उसकी दुनिया देखने की नजर आपकी नजर से भिन्न होगी।वहां न जातिवाद, मजहबवाद,राष्ट्रबाद आदि होगा।वहां तो सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर जैसी भी भी स्थिति होगी।सन्त कबीर, गुरु नानक, रैदास आदि पर पी एच डी किया व्यक्ति भी, इनकी तश्वीरों पर पुष्प अर्चन करने  वाला व्यक्ति भी उसको मूर्ख कह सकता है। गुरु नानक तो वह कहते है-"सब चुंग जा सब राम का"।पैगम्बर साहब अपने ऊपर कूड़ा फेंकने  वाली का भी हालचाल लेते है।लेकिन... लेकिन उनके भक्त।वे खून खच्चर करने को भी तैयार।भक्ति तो यथार्थ को देखने में है। स्थूल, सूक्ष्म व कारण तीनों स्तरों का यथार्थ कब दिखे?


आयुर्वेद कहता है कि व्यक्ति अपने साथ का छह महीने पहले भी जान सकता है। ज्योतिष कोई चमत्कार नहीं है।ज्योति+ईष अर्थात ज्योति चिन्ह... हमारे अंदर, सबके अंदर, जगत के अंदर  आदि भी  कुछ है जो स्वतः है निरन्तर है। उसका वर्तमान अतीत व भविष्य  से सम्बन्ध है।जीवन वह वर्तमान है जो स्वयं त्रिकाल दर्शी है। किसी ने कहा है आत्मा ही ज्ञान है, आत्मा ही है वेद, आत्मा ही है -ज्योतिष।


उस रूस की तकनीकी ने छह महीने पहले ही उजागर कर दिया था कि उस बांया हाथ  में प्रकाश नहीं है।उस तकनीकी रिपोर्ट के बाद छह माह बाद अब उस एक्सीडेंट के बाद वह बांया हाथ कटवाना पड़ा।


ऐसे में यथार्थ क्या है?एक्सीडेंट को जो दोषी वे दोषी क्यों?हमारा कर्तव्य है-सुप्रबन्धन की कोशिस!!



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रविवार, 7 जून 2020

धर्म से ही दूर मानव लेकिन जीवन भेद से अभेद की यात्रा:अशोकबिन्दु


[6/8, 5:56 AM] Akv bindu/कबीरा पुण्य सदन:

 प्रश्न:धर्म क्या है?
उत्तर:धर्म ( पालि : धम्म ) भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में किसी समतुल्य शब्द का पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य'सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिये'। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।



प्रश्न:धर्म व रिलीजन में क्या अंतर है?

उत्तर:
क्या रिलिजन (Religion), धर्म (Dharma) के समान है ?
अक्सर यह देखने और सुनने को मिलता है, की लोग रिलिजन (Religion) और धर्म (Dharma) की चर्चा मैं उलझे हुऐं हैं, ऐसे मैं जब हम रिलिजन और धर्म में कोई अंतर नहीं कर पाते।




रिलिजन एक अंग्रेज़ी शब्द है, जिसको जानने के लिए हमें पश्चिमी सामाजिक दर्शन के संदर्भ को भी समझना होगा । रिलिजन का अर्थ वह सभी धार्मिक रीति रिवाज जो हमें उस रिलिजन की सुप्रीम शक्ति से जोड़ता है । रिलिजन एक संस्था की तरह काम करता है, जिसके भीतर अनेकों विभाग होते हैं । अगर आप गौर से देखें तो, आपको, हिन्दू धर्म, इस्लाम, सिख, ईसाई, जैन, आदि को आप अलग अलग विभाग समझ सकतें है, जिस मैं हर एक रिलीजियस ग्रुप ने  धर्म और रिलिजन को अपने अपने तरीके से परिभाषित किया है, और इस सभी को हम पश्चिमी या भारतीय रिलीजियस सन्दर्भ मैं समझ सकतें हैं  ।




रिलिजन और धर्म के बीच एक बहुत गहरा अंतर है और दोनों एक दूसरे से भिंन हैं । रिलिजन एक सोशल कंस्ट्रक्शन है, जिसकी हम जांच पड़ताल करने पर यह पता लगा सकतें हैं  की किस ने इसे जन्म दिया है या किसके द्वारा यह स्थापित किया गया है । रिलिजन मैं बहुत सारे लोग एक ईश्वर की पूजा करते हैं । जब उनको लगता है की उन्हें दूसरा रिलिजन अपनाना है तो वह चेंज भी करते हैं । रिलिजन की स्थापना एक धार्मिक आंदोलन से भी हो सकती है । सरल शब्दों मैं रिलिजन विश्वासो और अनुष्ठानों का एक सेट है ।





दूसरी और धर्म जिंदगी जीने का एक तरीका है । सभ्यता के शुरुवात से ही धर्म एक तरह की शिक्षा है, जो हमें जीवन जीने के तरीकों से परिचय करवाती है । धर्म हमें सिखाता है किस तरह से समाज मैं रहना है, एक दूसरे से व्यवहार करना है, आदि । उदहारण के लिए धर्म विभिन्न चरणों पर आधारित है जो एक व्यक्ति अपने जीवनकाल, यानी जन्म, बचपन, युवा, वृद्धावस्था और मृत्यु में गुज़रता है। धर्म सत्य है या धर्म धार्मिकता है। अगर कर्म धार्मिक कार्य है, तो धर्म धार्मिक निर्णय है। धर्म का प्रचार नहीं किया जाता है। हम किस रिलिजन मैं जन्म लेते हैं, यह शायद हमारे हाथ मैं नहीं होता, लेकिन हमारा जीवन कैसा हो, यह हमें धर्म सिखाता है ।





वर्तमान मैं लोग रिलिजन को ही धर्म समझ लेते है और इसपर तरह तरह की टिप्पणियां करने लग जाते है । प्राचीन काल में प्रचलित धर्म और वर्तमान समय में प्रचलित अभ्यास की तुलना में बहुत अंतर है। अब रिलिजन धर्म के साथ समानार्थी बन गया है। लेकिन यह रिलिजन धर्म नहीं है।





प्रश्न:भारतीय साहित्य में धर्म क्या है?उसके लक्षण भी बताओ।

उत्तर:
 धर्म ( पालि : धम्म ) भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में किसी समतुल्य शब्द का पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य'सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिये'। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।





मनुस्मृति  6 /92 में धर्म के दस लक्षण बताये गए हैं ।

धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥

1 – धृति ( धैर्य रखना, संतोष, )

2 – क्षमा ( दया , उदारता )

3 – दम ( अपनी इच्छाओं को काबू करना , निग्रह )

4 -अस्तेय ( चोरी न करना , छल से किसी चीज को हासिल न करना )

5 -शौच ( सफाई रखना , पवित्रता रखना )

6 -इन्द्रिय निग्रह ( इन्द्रियों पर काबू रखना)

7 -धी ( बुद्धि )

8 – विद्या (ज्ञान)

9 – सत्य ( सत्य का पालन करना , सत्य बोलना )

10- अक्रोध ( क्रोध न करना )


@अशोकबिन्दु



गुरुवार, 4 जून 2020

स्वयं व जगत को जाने बिना समस्याओं का हल नहीं::अशोक बिंदु

धरती पर सबसे खतरनाक प्राणी यदि कोई है तो सिर्फ मनुष्य मनुष्य ही सिर्फ ऐसा प्राणी है जो प्रकृति अभियान का हिस्सा होने के बावजूद उससे अलग-थलग है मनुष्य के अलावा सभी जीव जंतु प्रकृति में जी रहे हैं यदि जीव जंतुओं को कोई समस्या का सामना करना भी पड़ा है तो उसके लिए स्वयं मनुष्य ही दोषी है मनुष्य अपने को आखिर समझता क्या है वास्तव में मनुष्य अभी मनुष्य नहीं हुआ है यही सबसे बड़ा खतरा है और यही सबसे बड़ी समस्या है वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ हो अमेरिका हो कोई भी देश हो अपने को कुदरत का हिस्सा मानते हुए कुदरत की नजर से हिसाब किताब बराबर नहीं करना चाहता ऐसे में भारत है उम्मीदें बढ़ जाती हैं भारत स्वयं एक विश्व है भारत में अनेक जातियां अनेक मजहब अनेक भाषाएं अनेक रीत रिवाज कर्मकांड होने के बावजूद एक सूत्र में पुरैनी की क्षमता है यहां सब आपस में लड़ते भी हैं झगड़ते भी हैं लेकिन कुछ मुद्दों पर एक हैं यहां की संस्कृति जानती है वसुधैव कुटुंबकम सर्वे भवंतु सुखिनः आदि आदि देशभर विश्व के तंत्र को नेताओं को बदलने की जरूरत है उसे आप जाति मजहब देश की भावना से ऊपर उठकर जीवन मनुष्यता प्रकृति को बचाने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है दुनिया के अमीर देश बैठकर कितना भी चिंतन मनन कर लें तब तक कोई भला नहीं होगा जब तक जाति मजहब देश क्षेत्र भाषा आज से ऊपर उठकर बात नहीं होगी दलाई लामा ठीक कहते हैं विश्व सरकार है सभी समस्याओं का हल है सभी समस्याओं का हल वही कर सकता है जो किसी भी जाति मजहब देश से मुंह ना रख कर पूरे वैश्विक प्राकृतिक व्यवस्था को शांति रूप से चलाने की प्रक्रियाओं से नहीं जुड़ता