शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

हां, एलियन्स हैं::अशोकबिन्दु

 अंतरिक्ष की अन्य धरती पर एलियन्स हैं।इसके प्रमाण हैं।पुरातत्व विभाग भी इस ओर संकेत करता है। विश्व के कुछ वन्य समाज भी स्पष्ठ करते है,जैसे कि भूमध्य सागरीय क्षेत्र के कबीले अब भी मानते हैं कि हमारे पूर्वज दूसरी धरती से आये थे।जो मत्स्य मानव थे। पुरात्व विभाग उन्हें मातृ देवी भी मानता है।अनेक खण्डहरों में इसके अवशेष मिले हैं।सिंधु सभ्यता, जापान, साइबेरिया आदि में जो मूर्तिया मिली है या गुफाओं आदि में चित्र मिले हैं वे एक ही वेश भूषा व अद्भुत हेलमेट पहने हुए हैं।मध्य अमेरिका में मय/माया सभ्यता, पेरू सभ्यता में ऐसे अवशेष मिले है। अब तो कुछ पुरात्व विद यहां तक कहने लगे हैं कि माया सभ्यता की जड़ें दक्षिण भारत में मायासुर व उसके लिखित एक पुस्तक से सम्वन्धित मिलती है।इस पुस्तक में इमारतों के निर्माण की जानकारिया मिलती है। भारतीय पुराणों में यानों के प्रकरण दक्षिण भारत से ही सम्वन्धित है। हम एक लेख में लिख चुके है, हर क्षेत्र स्थूल इतिहास में बदलाव होते रहते हैं लेकिन सूक्ष्म जगत में इतने जल्दी बदलाव नहीं होते।दक्षिण गोलार्ध को हम एक ही सूक्ष्म इतिहास से आदि इतिहास से जोड़ते हैं।दक्षिण अमेरिका हो या दक्षिण अफ्रीका या दक्षिण भारत ,जावा सुमात्रा आदि का आदि इतिहास की जड़ एक ही है।दक्षिण भारत के पठार काफी पुराने है।एक स्थान पर तो डायनासोर के भी अबशेष मिले हैं।हम तो दक्षिण पठार को हिमालय से भी पुराना मानते है।#प्रवीणमोहन पुरातत्वविद जिनका काम सिर्फ विश्व के प्राचीन खण्डहरों आदि पर शोध करना ही है , का कहना है कि दक्षिण पठार के आदिबासी का एलयन्स से सम्बन्ध थे। दक्षिण पठार का काफी महत्व रहा है ।गुजरात से लेकर श्री लंका तक अब भी ऐसे आदिबासी है जो अपना पूर्वज हनुमान व मतंग ऋषि को मानते हैं।पवन देव अर्थात हवा तत्व की स्थितियों में भी यौगिक प्रशिक्षण व सूक्ष्म व चेतनात्मक सम्बन्ध रखने वाले योगी व ऋषि आदि दक्षिण से ही सम्बन्ध रखते हैं। भविष्य में भी दक्षिण पठार का बड़ा महत्व होगा।वहाँ काम जारी है।हर युग में जारी रहा।किसी को दिखाई न दे, यह अलग बात। आधुनिक विज्ञान के अनुसार हिन्द महाद्वीप एक केंद्र है।इसरो, चांदी पुर प्रक्षेपास्त्र, उच्च तकनीकी का गढ़ बंगलौर आदि वहीं से आते है। कुछ सन्तों का तो कहना है कि आने वाले प्रलय में दक्षिण का पठार एक टापू के रूप में बदल जायेगा।अनेक समुद्री तट व शहर डूब जाएंगे।उत्तर भारत व दिल्ली,दिल्ली से पश्चिम की स्थिति बड़ी भयावह हो जाएगी।बिहार, बंगाल जल प्रलय से पहले से ही परेशान रहता है। वर्तमान सृष्टि में अब भी सूक्ष्म अभियानों का उत्तरी ध्रुब है हिमालय व दक्षिणी ध्रुब है दक्षिण का पठार। श्रीरामचन्द्र मिशन शाहजहांपुर का वैश्विक केंद्र कान्हा शांति वनम बन चुका है।जहां विश्व का सबसे बड़ा मेडिटेशन हाल भी बन चुका है।जहां बाबा रामदेव ने कहा कि भबिष्य में जो बदलाव की आध्यत्मिक बयार बहेगी यहीं से बहेगी।जो दुनिया के हर देश में खामोशी से कार्य कर रहा है। #अशोकबिन्दु #भविष्यकथांश www.akvashokbindu.blogspot.com


बुधवार, 21 जुलाई 2021

विश्व हिंदी आध्यत्म साझा प्रचारक की ओर... #अशोकबिन्दु

 इस ग्रुप की मंशा?!#अशोकबिन्दु जीवन हम सबके अति करीब होकर भी काफी दूर है।हम बनाबटी, कृत्रिम चीजों में ही उलझे रहते हैं। हमारे लिखने के पीछे भी अनेक रहस्य छिपे हैं।यह जो ग्रुप है उसके पीछे भी अनेक रहस्य है। हम सब में व जगत में स्वतः, निरन्तर, जैविकघड़ी उपस्थित है। हम कहते रहे हैं ऋषियों के श्लोकों में धर्म क्या है?सनातन क्या है?हमारा अंतर ज्ञान क्या है? एक शिक्षित,एक प्रशिक्षक को इस पर नजर की जरूरत है। बचपन से ही हमें अपने अन्तर से मैसेज मिलने शुरू हो जाते हैं लेकिन हम उनको पकड़ नहीं पाते या पकड़ कर उसका ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाते। कुछ वर्ष पहले... इस ग्रुप के निर्माण से पूर्व एक रात क्या होता है?! हमें बाबूजीमहाराज निर्देशित करते हैं कि आप अपना कार्य शुरू कीजिए।हम सब आपके साथ है।हम तब कमलेश डी पटेल #दाजी को देख कर कहते हैं कि आप है तो।तो हमें निर्देश मिलता है कि आप अपना कर्म कीजिए।वे अपना कर्म कर रहे है। इसके बाद हमने इस ग्रुप का निर्माण किया। हम अपने इंटर क्लासेज के दौरान से ही #गुरुग्रन्थसाहिब #विश्वसरकार #लोहियाकीविश्वसंसद #मानवतावादीव्यवहारिकअंडरवर्ल्ड अर्थात सूक्ष्म जगत ,आत्माओं आदि के लिए कार्य करने लगा था। बाबू जी महाराज ने भी एक स्थान पर #चारीजी से कहा है-आत्माओं से काम लेना शुरू कीजिए।आत्माओं के लिए काम करना शुरू कीजिए। इस पर कभी हम आगे विस्तार से कहेंगे। जब हमने श्रीरामचन्द्र मिशन में पहली सिटिंग/प्राण प्रतिष्ठा/ प्राणाहुति प्राप्त की तो हमें उस दिन से ही अपने में पूर्व से ज्यादा अन्तर्दशा बेहतर दिखी। मेडिटेशन की विभिन्न विधियों पर हम प्रयोग पहले (किशोरावस्था)से ही करते आये थे।इस पर विस्तार से हम कहीं पर लिख भी चुके है। पहली सिटिंग के साथ ही अंदर ही अंदर #विश्वसरकारग्रन्थसाहिब व #विश्वसरकार पर विभिन्न आत्माओं, प्रार्थनाओं,सूक्ष्म जगत में कार्य शुरू कर चुका था। #हिमालय #दक्षिणभारत #गुजरात #पंजाब #पश्चिम व अन्यत्र अनेक आत्माएं सूक्ष्म स्तर पर कार्य कर रही हैं।समय आने पर सब उजागर होगा। हम किशोरावस्था से ही महसूस करते रहे हैं कि भूख, प्यास, काम, प्रेम,धर्म, आध्यत्म, मानवता, भाईचारा, विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटम्बकम, सेवा, परोपकार आदि अलग अलग नहीं होता।हम सब का स्तर, हमारी चेतना व समझ का स्तर अलग अलग होता है।ऐसे में इस सब का ध्रुवीकरण होना चाहिए।यह सब दो तरह का हो जाता है-असुर व सुर।हमें अपने अंदर की सुर शक्तियों को अवसर देने के अभ्यास में रहना है।#गुरु नानक ने कहा है कि बड़ी लकीर को छोटा करना है तो उसके सामने एक बड़ी लकीर खींच देना है, उसके लिए जीना है। आध्यत्म व मानवता को लेकर रूहानी आंदोलन को लेकर विश्व भर में अनेक संस्थाएं ,सन्त आत्माएं लगी हुई हैं।यहाँ तक कि साइबेरिया, उत्तरी ध्रुब पर भी अनेक सूक्ष्म शक्तियां कार्य कर रही हैं।हिमालय तो एक चेतना कुम्भ ही बना हुआ है। वर्तमान में इन संस्थाओं के बीच आपको दूरियां लग सकती हैं।उन से जुड़ी सन्त आत्माओं में आपको विकृतियां दिख सकती है।लेकिन विधाता ,कुदरत के दरबार में कुछ और ही तय हो चुका है। #अशोकबिन्दु


मंगलवार, 20 जुलाई 2021

गुरु - शिष्य परम्परा में जीना सीखिए!!उसी से मानवता का उद्धार!!#अशोकबिन्दु हम सब जीवन के यथार्थ से काफी गिर गए हैं कि जीवन जीने की असलियत ही खो चुके हैं।जीवन नहीं है धन दौलत, इच्छाऐं आदि।साधन, साध्य, लक्ष्य में अंतर समझने की जरूरत है।जीवन जीने का मतलब है-सिर्फ जीना।हर हाल में जीना।हर स्थिति में जीना।जीवन कोई बनाबटी, कृत्रिम, हमारी इच्छाओं का मोहताज नहीं है। वह प्राकृतिक, नैसर्गिक, प्रकृति अभियान(यज्ञ),अनन्त यात्रा आदि से है।वह हमारे कारण नहीं है। जीवन के क्रमिक विकास में हम अवरोध तो हैं लेकिन हम कारण नहीं है।जगत व प्रकृति में कोई समस्या नहीं है, जीवन में कोई समस्या नहीं है।समस्या तो स्वयं मनुष्य व मनुष्य समाज है लेकिन वह प्रकृति अभियान, अनन्त यात्रा में, ब्रह्मांड में रेत के एक कण का हजारवां हिस्सा भी नहीं है यदि वह समझ रहा है कि जीवन उसके कारण ही चल रहा है। यह उसका भ्रम है कि जमीन जायदाद, गाड़ी बंगला आदि के लिए हम सबकुछ कर ,मेहनत कर स्वयं ही अपने जीवन को बेहतर स्थिति में पहुंचा सकते हैं।कृत्रिम चीजें इकठ्ठी कर लेने से हमें लगता है कि हम बेहतर स्तर हैं।लेकिन ऐसा है नहीं।हम जीवन के यथार्थ व उसके रहस्य, चमत्कारों से काफी दूर होते हैं।जीवन के असली आनन्द से काफी दूर होते हैं। जीवन न किसी का बेकार न उच्च होता है।किसी का जीवन न महान न निम्न होता है।एक भिखारी, टेंट में जीवन काटने वाला जीवन में बेहतर ढंग से हो सकता है।दुनिया की सारे ऐश्वर्य भोग इकट्ठा कर लेने वाला भी जीवन में बेहतर ढंग से नहीं ही सकता।संसार के भोग विलास समाज में अन्य लोगों से बेहतर जीना हमारे नैसर्गिक जीवन, चेतनात्मक स्तर के उच्च स्तर में पहुंचने की ओर इंगीत नहीं करता।स्वतः, निरतंर, जैविक घड़ी आदि के हिसाब से बेहतर होने की ओर संकेत नहीं करता।ऐसे में गुरु व शिष्य परम्परा को समझना भी अति आवश्यक है। गुरु और सन्त हम सिर्फ आत्मा, आत्माओं को ही मानते है। ब्राह्मण हम सिर्फ आत्मा, आत्माओं के गुणों में जीने वालों को मानते हैं।ऐसे दशा में जीने वाला ही गुरु होता है।शिष्य होता है।सन्त होता है।गुरु शिष्य में ज्यादा फर्क नहीं होता।बस, स्तर की बात है।गुरु शिष्य में वही अंतर है जो मेडिकल कालेज में एक डॉक्टर व एक ट्रेनिग लेने बाले में होता है।आम आदमी के लिए दोनों डॉक्टर से कम नहीं होते। गुरु व शिष्य हमारे अंदर की दशा है।तत्व है।ये हाड़ मास शरीर की दशा तो वही है जो सबकी है।गुरु - शिष्य परम्परा तो हमें हमारे पूर्णत्व की ओर यात्रा है। ऐसे में यह भी समझने की जरूरत है कि वेद क्या है?व्यास क्या है?ये भी एक दशा है।हम कहते रहे है।हमें हर चीज को उसके सूक्ष्म व कारण स्तर पर समझने की भी पहुंच बनानी चाहिए।हम सब तो तथ्यों की यथार्थता तक स्थूलता की असलियत तक ही ठीक ढंग से नहीं पहुंच पाते हैं। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर। गुरु:साक्षात् परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः। । गुरु पूर्णिमा अर्थात् महर्षि वेदव्यास जी की जयंती इस वर्ष 24 जुलाई को आ रही है। आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, क्योंकि इनका जन्म गंगा के बीच में बने एक द्वीप पर हुआ था। इसलिए इन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहते हैं। महर्षि वेदव्यास असाधारण संत थे। उन्होंने वेदों को ज्ञान, कर्म, भक्ति व उपासना के आधार पर चार भागों में बांटा था। महाभारत महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ही थे। महर्षि वेदव्यास महाभारत काल के प्रत्यक्षदर्शी रहे थे। इसी कारण गुरुओं में सबसे श्रेष्ठ नाम इन्हीं का आता है और इन्हीं की जन्म जयंती पर गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन गुरु पूजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है। जिन व्यक्तियों ने गुरुओं को माना हुआ है। उस दिन गुरु दर्शन करके उन्हें गुरु दक्षिणा देते हैं। इसके बाद भोजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती। लेकिन शर्त यह है कि गुरू निष्काम एवं निष्पक्ष होना चाहिए। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को प्रातः 8:07 तक ही है। अर्थात उदय काल में पूर्णिमा विराजमान है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का पर्व सारे दिन मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा शनिवार को है। शनिवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दोपहर 12:39 तक है जो राक्षस योग का निर्माण करता है। ऐसे में गुरु पूजन करना श्रेष्ठ नहीं होता है। गुरु पूजन का शुभ मुहूर्त 12:40 से 16:39 तक उत्तम रहेगा। गुरुओं से आशीर्वाद लेना,उनका पूजन करना, सम्मान करना, उपहार देना यह सब गुरु पूजन के अंतर्गत आते हैं और गुरु के बताए हुए नियमों पर चलना ही मानव का कर्तव्य है। इस दिन पूर्णिमा प्रातः 8:07 बजे तक ही है इसलिए इस दिन पूर्णिमा स्नान का महत्व है। पूर्णिमा का व्रत एवं दान आदि एक दिन पूर्व अर्थात 23 जुलाई को करेंगे। बहुत से हिंदू परिवारों में इस दिन व्रत रखा जाता है और सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। यह एक दिन पूर्व 23 तारीख को संपन्न होगी। व्रत समापन (परायण) के समय शाम को पूर्णिमा होनी चाहिए तभी चंद्रमा को अर्घ्य दे कर व्रत खोल लेना चाहिए । इस बार 24 जुलाई कक गुरुपूर्णिमा है।इस दिन ही पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी का जन्म दिन है। जो दक्षिण के एक ब्राह्मण परिवार से थे और सहजमार्ग राजयोग में सन्त आत्मा थे। समस्त गुरुओं, सन्तों, सन्त व ब्राह्मण आत्माओं को नमन!! #अशोकबिन्दु #चारीजी #चारीजीजन्मदिन #जुलाई24 #राजयोग

 गुरु - शिष्य परम्परा में जीना सीखिए!!उसी से मानवता का उद्धार!!#अशोकबिन्दु हम सब जीवन के यथार्थ से काफी गिर गए हैं कि जीवन जीने की असलियत ही खो चुके हैं।जीवन नहीं है धन दौलत, इच्छाऐं आदि।साधन, साध्य, लक्ष्य में अंतर समझने की जरूरत है।जीवन जीने का मतलब है-सिर्फ जीना।हर हाल में जीना।हर स्थिति में जीना।जीवन कोई बनाबटी, कृत्रिम, हमारी इच्छाओं का मोहताज नहीं है। वह प्राकृतिक, नैसर्गिक, प्रकृति अभियान(यज्ञ),अनन्त यात्रा आदि से है।वह हमारे कारण नहीं है। जीवन के क्रमिक विकास में हम अवरोध तो हैं लेकिन हम कारण नहीं है।जगत व प्रकृति में कोई समस्या नहीं है, जीवन में कोई समस्या नहीं है।समस्या तो स्वयं मनुष्य व मनुष्य समाज है लेकिन वह प्रकृति अभियान, अनन्त यात्रा में, ब्रह्मांड में रेत के एक कण का हजारवां हिस्सा भी नहीं है यदि वह समझ रहा है कि जीवन उसके कारण ही चल रहा है। यह उसका भ्रम है कि जमीन जायदाद, गाड़ी बंगला आदि के लिए हम सबकुछ कर ,मेहनत कर स्वयं ही अपने जीवन को बेहतर स्थिति में पहुंचा सकते हैं।कृत्रिम चीजें इकठ्ठी कर लेने से हमें लगता है कि हम बेहतर स्तर हैं।लेकिन ऐसा है नहीं।हम जीवन के यथार्थ व उसके रहस्य, चमत्कारों से काफी दूर होते हैं।जीवन के असली आनन्द से काफी दूर होते हैं। जीवन न किसी का बेकार न उच्च होता है।किसी का जीवन न महान न निम्न होता है।एक भिखारी, टेंट में जीवन काटने वाला जीवन में बेहतर ढंग से हो सकता है।दुनिया की सारे ऐश्वर्य भोग इकट्ठा कर लेने वाला भी जीवन में बेहतर ढंग से नहीं ही सकता।संसार के भोग विलास समाज में अन्य लोगों से बेहतर जीना हमारे नैसर्गिक जीवन, चेतनात्मक स्तर के उच्च स्तर में पहुंचने की ओर इंगीत नहीं करता।स्वतः, निरतंर, जैविक घड़ी आदि के हिसाब से बेहतर होने की ओर संकेत नहीं करता।ऐसे में गुरु व शिष्य परम्परा को समझना भी अति आवश्यक है। गुरु और सन्त हम सिर्फ आत्मा, आत्माओं को ही मानते है। ब्राह्मण हम सिर्फ आत्मा, आत्माओं के गुणों में जीने वालों को मानते हैं।ऐसे दशा में जीने वाला ही गुरु होता है।शिष्य होता है।सन्त होता है।गुरु शिष्य में ज्यादा फर्क नहीं होता।बस, स्तर की बात है।गुरु शिष्य में वही अंतर है जो मेडिकल कालेज में एक डॉक्टर व एक ट्रेनिग लेने बाले में होता है।आम आदमी के लिए दोनों डॉक्टर से कम नहीं होते। गुरु व शिष्य हमारे अंदर की दशा है।तत्व है।ये हाड़ मास शरीर की दशा तो वही है जो सबकी है।गुरु - शिष्य परम्परा तो हमें हमारे पूर्णत्व की ओर यात्रा है। ऐसे में यह भी समझने की जरूरत है कि वेद क्या है?व्यास क्या है?ये भी एक दशा है।हम कहते रहे है।हमें हर चीज को उसके सूक्ष्म व कारण स्तर पर समझने की भी पहुंच बनानी चाहिए।हम सब तो तथ्यों की यथार्थता तक स्थूलता की असलियत तक ही ठीक ढंग से नहीं पहुंच पाते हैं। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर। गुरु:साक्षात् परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः। । गुरु पूर्णिमा अर्थात् महर्षि वेदव्यास जी की जयंती इस वर्ष 24 जुलाई को आ रही है। आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, क्योंकि इनका जन्म गंगा के बीच में बने एक द्वीप पर हुआ था। इसलिए इन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहते हैं। महर्षि वेदव्यास असाधारण संत थे। उन्होंने वेदों को ज्ञान, कर्म, भक्ति व उपासना के आधार पर चार भागों में बांटा था। महाभारत महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ही थे। महर्षि वेदव्यास महाभारत काल के प्रत्यक्षदर्शी रहे थे। इसी कारण गुरुओं में सबसे श्रेष्ठ नाम इन्हीं का आता है और इन्हीं की जन्म जयंती पर गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन गुरु पूजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है। जिन व्यक्तियों ने गुरुओं को माना हुआ है। उस दिन गुरु दर्शन करके उन्हें गुरु दक्षिणा देते हैं। इसके बाद भोजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती। लेकिन शर्त यह है कि गुरू निष्काम एवं निष्पक्ष होना चाहिए। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को प्रातः 8:07 तक ही है। अर्थात उदय काल में पूर्णिमा विराजमान है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का पर्व सारे दिन मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा शनिवार को है। शनिवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दोपहर 12:39 तक है जो राक्षस योग का निर्माण करता है। ऐसे में गुरु पूजन करना श्रेष्ठ नहीं होता है। गुरु पूजन का शुभ मुहूर्त 12:40 से 16:39 तक उत्तम रहेगा। गुरुओं से आशीर्वाद लेना,उनका पूजन करना, सम्मान करना, उपहार देना यह सब गुरु पूजन के अंतर्गत आते हैं और गुरु के बताए हुए नियमों पर चलना ही मानव का कर्तव्य है। इस दिन पूर्णिमा प्रातः 8:07 बजे तक ही है इसलिए इस दिन पूर्णिमा स्नान का महत्व है। पूर्णिमा का व्रत एवं दान आदि एक दिन पूर्व अर्थात 23 जुलाई को करेंगे। बहुत से हिंदू परिवारों में इस दिन व्रत रखा जाता है और सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। यह एक दिन पूर्व 23 तारीख को संपन्न होगी। व्रत समापन (परायण) के समय शाम को पूर्णिमा होनी चाहिए तभी चंद्रमा को अर्घ्य दे कर व्रत खोल लेना चाहिए । इस बार 24 जुलाई कक गुरुपूर्णिमा है।इस दिन ही पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी का जन्म दिन है। जो दक्षिण के एक ब्राह्मण परिवार से थे और सहजमार्ग राजयोग में सन्त आत्मा थे। समस्त गुरुओं, सन्तों, सन्त व ब्राह्मण आत्माओं को नमन!! #अशोकबिन्दु #चारीजी #चारीजीजन्मदिन #जुलाई24 #राजयोग