शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2021

कर्म-यज्ञ... प्रकृति अभियान... अनन्त यात्रा की जिम्मेदारी में आहुतियां:::अशोकबिन्दु


 तमाम ग्रंथों का उद्देश्य है आत्म प्रबंधन  एवं  समाज प्रबंधन  ।

इस हेतु  शिक्षा भी है । हम शिक्षा को क्रांति मानते रहे हैं। लेकिन आजकल के शिक्षकों ,शिक्षित, विद्यार्थियों को देखकर हम कहना चाहेंगे कि आजकल शिक्षा सबसे बड़ा भ्रष्टाचार बन चुका है ।

 गीता के एक भाष्यकार ने लिखा है- कर्म क्या है?कर्म है -यज्ञ।

यज्ञ है प्रकृति अभियान, जो कि स्वतः है निरन्तर है।अनन्त यात्रा की जिम्मेदारी है।उसी में जीना, आहुति जीवन है।जीवन जीना है।हमारा जीवन व तथाकथित कर्म तो चेष्टाएं मात्र हैं-हमारे इंद्रियों के प्रभाव का। हमारे व जगत के अंदर स्वतः निरन्तर है ,वही सनातन है।वही यज्ञ है। यज्ञ जो अग्नि कुंड तक सीमित है वह तो मात्र प्रतीक है, बनाबटी है। पारसी संस्कृति में कुंड की अग्नि जिसके चारों ओर बैठ कर विधाता की याद में आचरण किए जाते हैं, वह अग्नि #इहराम है। हजयात्रा के दौरान यह #इहराम भौतिक रूप बदल लेता है लेकिन सूक्ष्म जगत में वह  सर्वव्याप्त है।रमा है सर्वत्र..!!

बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

आज का सहजमार्ग ......!?


 Courtesy - Brother Urvesh Jain (Jodhpur Center Rajasthan India) 


Translation of Daaji today Morning & Evening Speech (Hindi) 16/02/21


1. आज के सहज मार्ग को देखकर क्या लालाजी खुश होंगे?


रात मैंने स्वप्न में देखा,किसी ने मालिक के मोजे चुरा लिए,मालिक खुश थे।किसी ने मालिक का बिस्तर चुरा लिया,मालिक खुश थे।

दूसरा दृश्य:अंतिम समय में बीमारी से पहले का जिसमें no stealing only stillness.

अहमदाबाद की कुछ बहिनें मिलने आयीं, चारी जी को बहुत याद कर रही थी।कहने लगी,एक दिन चारी जी ने हमें जीन्स पहन कर आने को कहा हम जीन्स पहन कर आई और डांस हुआ।क्या आप भी डांस पसंद करेंगे?

चारी जी समय की जरूरत के अनुसार आपके स्तर तक आये।अब आप परिपक्व हैं।

आप किस चीज से खुश हैं? लोग बाबूजी के चप्पल चूरा कर खुश होते थे।


2.क्या आप उनको संतुष्ट करने में लगे हैं?-मैंने इतने कार्यक्रम करवा दिए।

मौन,पूज्य भाव,शांत हृदय, कोई मांग नहीं हो। यहां तक कि आंनद का भी त्याग - मैं का त्याग m ness,I ness का त्याग। जब मैं अनुपस्थित हो गया तो इन सब चीजों का अर्थ ही क्या? यह प्रप्पन की स्थिति है।परबम्हाण्ड मंडल पार कर,हृदय क्षेत्र पार कर अद्वैत में।प्रगति का ख्याल भी न रहे। जब आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा शून्य हो जाये,तब मालिक खुश होते हैं, चिंतित होते हैं।


3. जिस दर्द या बैचनी की बात बाबूजी करते हैं, वह तो शुरुआत है। जब 'मैं' ही अनुपस्थित हो गया तो दर्द  का क्या अर्थ?


4. एक बंसन्त उत्सव के बाद जब लोग लौट रहे थे,तब बाबूजी ने कहा "उजड़ी हुई बस्ती,टूटा हुआ पैमाना"

शुरू में प्रेम,बैचनी ठीक है,परन्तु परब्रह्मण्ड मंडल में-प्रपन्न में शरणागति मालिक का प्रेम चुराने के लिए हो न कि चप्पल।


5.सच्चे समर्पण में यह भी न हो " मालिक आपकी कृपा"। गुरु ऐसे शिष्य का इंतजार करता है,समय से पूर्व भेजने के लिए।


6. बाबूजी ने कहा" शीश दिए हरी मिले, तो भी सस्ता जान"

100 अभ्यासी केंद्रीय क्षेत्र में जाने के लिए इंतजार कर रहे हैं,उन्हें क्या रोक रहा है- शरणागति की परिपक्वता। आपको पता भी न लगे,आप शरणागति में आ गए हैं। यह प्राकृतिक रूप से हो।


7.जनक ने अस्थावक्र से पूछा- वैराग्य कैसे,उच्च ज्ञान कैसे,मोक्ष कैसे?

उत्तर मिला "विषय का त्याग करें।" विषय अर्थात इच्छा। मालिक सभी संस्कार हटा दें,तब भी  इच्छा बनी रही तो क्या होगा?संस्कार बनते ही रहेंगें। मालिक ने इतनी मेहनत की है आप पर,ईश्वर भी हसेंगे।

एक बहुत ही devoted लड़की को शादी के लिये कहा गया तो उसने कहा मिशन को आश्रम बनाने के लिए धन की आवश्यकता है,तो मुझे शेख से शादी करना है।


8.स्वयं विश्लेषण करें- मैं सत्य खोज रहा हूँ या इच्छा पूरी कर रहा हूँ?मेरा पति शराब पीता है- क्या मेरी इच्छा नहीं कि वह छोड़ दे?कारण खोजें, उसने ऐसा क्यों किया,ऐसे ही नहीं कह दें।


9.आप यह कह सकते हैं, बाबूजी सब कुछ कर सकते हैं।हाँ वे भी कहते हैं, "मैं दुनिया को लट्टू की तरह घुमा सकता हूँ।पर वह भी कुछ चीजें नही कर सकेजैसे -पुत्र की आत्महत्या,सही वक्त पर functionary का चुनाव कर पाना। उन्होंने हममें विश्वास किया-एक पद दिया, घमंड आ गया। इसीलिए उन्होंने कहा,"जिसको मिला हल्दी का गाँठिया, वही अपने को पंसारी समझ बैठा"

मालिक ने कुछ काम दिया-हमें घमंड आ गया।यह परीक्षा है।

प्रशिक्षक बनाया- घमंड आ गया- गया काम से। किसी काम के लिए शक्ति दी-आपने काम नहीं किया,यह उनकी असफलता नहीं है।


10.हर क्षण आत्मचिंतन करें-हमें क्या रोक रहा है?पहिली सिटींग को याद करें, देखें तब से क्या हुआ?


11.बाबूजी अस्तावक्र की तरह गुण विकसित करने को नहीं कहते, वे कहते हैं: ध्यान,सफाई,प्रार्थना।

ध्यान एक कर्मकांड होकर रह गया है।

लक्ष्य रखें,पर उसके लिए क्रेजी न हों। केवल प्रेम करें-सब प्राकृतिक तरीके से हो जाएगा।


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आज शाम 5 बजे ध्यान के बाद की वार्ता का अनुवादित अंश।लाइव अनुवाद के कारण त्रुटियों के लिए क्षमा 🙏🏻🙏🏻


"आध्यात्मिक यात्रा को जल्दी पूरा होना क्यों जरूरी है ?पिंड प्रदेश पार करते ही मुक्ति महसूस होती है। सातवें बिंदु के बाद दो उप बिंदु है।1.आवेग 2.सरस्वती।

 इस दिन (बसंत पंचमी) को हम देवी सरस्वती की पूजा करते हैं। यह दोनों बिंदु superimposed हैं।हम ज्ञान बिंदु पर काम करते हैं तो आवेग से दूर नहीं रह सकते,यह एक connected influence है.।जब तक पूर्ण इच्छा समाप्त नहीं करेंगे, तब तक सरस्वती बिंदु को महसूस नहीं कर सकते। बिंदु बी सभी तरह की sensual senses से संबंधित है,न कि केवल काम से।

रामकृष्ण परमहंस को खाने का अत्यधिक शौक था।शारदा देवी नाराज थी इतना ध्यान करते हो खाने के पीछे पड़ जाते हो उन्होंने कहा जिस दिन खाना बंद कर दिया सात दिन से ज्यादा जीवित नहीं रह पाऊंगा।  संत को भी अपने आप को भूमि से जुड़े रहने के लिए कुछ आदतों से बंधे रहना पड़ता है। sensuality किसी भी रूप में आ सकती है। आवेग केवल काम से ही संबंधित नहीं होता यह किसी भी चीज से संबंधित हो सकता है।इसे नियंत्रित किया जाए तभी सरस्वती चक्र से दिव्य ज्ञान प्राप्त हो सकता है। 

Passion point is clouding sarasvati point"


आज सत्संग 7 बजे पश्चात की वार्ता का लाइव अनुवाद किया है।त्रुटियों के लिए क्षमा के साथ।🙏🏻🙏🏻

21 अक्टूबर 1943 बनाम 15 अगस्त 1947 ई0:::अशोकबिन्दु

 फरबरी - अप्रैल 1946ई0!!

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यह अंग्रेज ही जानते हैं कि उन्होंने 1947 में भारत क्यों छोंड़ देना पड़ा? द्वितीय विश्व युध्द में दक्षिण एशिया विशेष कर दक्षिण पूर्व एशिया के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस व उनकी आजाद हिंद फौज जीत पर जीत हासिल कर आगे बढ़ रही थी,उनकी आजाद हिंद सरकार को 11 देशों की मान्यता थी। जापान को जिसे सहयोग था।झुंझला कर ब्रिटेन के सहयोगी अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम से आक्रमण कर दिया।जापान व अन्य सहयोगी देशों ने वापसी व नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को सुरक्षित स्थान पर जाने की बात की। आल इंडिया रेडियो ने तक उस वक्त मजाक उड़ाई-दिल्ली चलो का नारा लगाने वाले नङ्गे पांव वापस लौटे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा- फरबरी का इंतजार कीजिए।

इसके बाद देश के अंदर फरबरी से क्या हुआ?इतिहास कार जानते हैं।


नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का 47 वां वर्ष!!


(23 जनवरी 1943ई0 से 23 जनवरी 1944ई0)


सीमांत गांधी और बादशाह खान के नाम से विख्यात अब्दुल गफ्फार खान ने भारत के विभाजन का कड़ा विरोध किया था उन्होंने सिर्फ इस मकसद से एक स्वतंत्र पठान प्रांत की मां की ताकि उस प्रांत को पाकिस्तान में शामिल करने की मुस्लिम लीग की मंशा पर पानी फेरा जा सके। वह विभाजन के विरोधी थे। इसी कारण 1943 में जिन्ना ने गफ्फार खान को पठानों के हिंदूकरण तथा उन्हें नपुंसक बनाने के कार्यवाहक की संज्ञा दी थी।


 जापान सरकार ने अंडमान तथा निकोबार दीप पर विजय प्राप्त कर इसका शासन आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया। जिसके प्राइम मिनिस्टर तथा सेना के सुप्रीम कमांडर नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। वे दिसंबर  1943 को वहां गए तथा वहां पर उन्होंने तिरंगा झंडा फहराया। रंगून को अपनी राजधानी एवं फौज का कमांड बनाकर वर्मा में अंग्रेजो के खिलाफ जंग लड़ी गई ।अरकान मोर्चे पर विजय प्राप्त कर आजाद हिंद फौज भारत की सीमा में प्रवेश कर गई ।उन्होंने कोहिमा पर भी अधिकार कर लिया ।


उस समय अरविंद घोष सांप्रदायिकता के विरोध में थे ही द्वितीय विश्व युद्ध की स्थिति में ब्रिटेन का पक्ष लिया बे क्रिप्स मिशन के समर्थन मे थे। हताशा और निराशा के वातावरण में ब्रिटेन भारत का सक्रिय सहयोग पाने के लिए परेशान था ताकि न केवल जापान को आगे बढ़ने से रोका जा सके बल्कि युद्ध की तैयारी में उसे भरपूर मदद मिल सके। इसके अलावा चीन और अमेरिका भी ब्रिटेन पर दबाव डाल रहे थे कि वह भारत को राजनीतिक समस्या का उचित समाधान करें। जिसके लिए क्रिप्स मिशन तैयार किया गया था। इसकी असफलता ने भारतीयों को कटुता से भर दिया था। गांधी जी पर अनेक झूठे आरोप लगाए गए थे। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद ब्रिटिश सरकार ने अगस्त क्रांति अर्थात भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हिंसक घटनाओं का दोषारोपण गांधी जी और काग्रेस पर कर दिया था।


21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार का गठन किया गया जिस के प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस बनाए गए आजाद हिंद सरकार के साथ-साथ आजाद हिंद फौज आजाद हिंद बैंक की भी स्थापना की गई।


21 अक्टूबर 1943ई0 बनाम 15 अगस्त 1947ई0!!



लोहिया ने लिखा है गांधी जी अकेले पड़ चुके थे। तमाम कांग्रेसी दिल्ली दौड़ चले थे।सब के सब लार्ड माउंटबेटन के तलबे चाट रहे थे, कुछ अपवाद छोंड़ कर। नेहरू का क्या कहना?नेहरू व बेटन के चर्चे तो जग जाहिर हैं और सम्बन्धित मसले पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। गांधी हिंसा इलाकों में भ्रमण कर रहे थे। उनका काम खत्म नहीं हुआ था। कुछ सूत्र कह रहे हैं वे अब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को भारत आने का अब इंतजार कर रहे थे।देश के अंदर कांग्रेस व मुस्लिम लीग से कोई उम्मीद राष्ट्रव्यापी न रह गयी थी।सब कुछ सुभाषचंद्र की लहर मय था। कांग्रेस भी मजबूरी में आजाद हिंद फौज के सैनकों की वकालत करने लगी थी।गांधी तो कांग्रेस को भंग ही कर देना चाहते थे। एक पुस्तक लिखती है 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर तिरंगा फहराने का समय गांधी जी कहने पर परिवर्तित कर दिया गया था।

इसका कारण नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के आने का इंतजार था। 


#अशोकबिन्दु


#47वांवर्ष


#आजादहिंदसरकार


सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

अनेक मामले ऐसे भी हैं जब हम सब एक साथ खड़े हो सकते हैं:::अशोकबिन्दु

 अनेक मामले ऐसे हैं जब हम एक साथ खड़े हो सकते हैं। भक्ति, आध्यत्म, मानवता, प्रकृति अभियान में हम एक साथ खड़े हैं। जगत व ब्रह्मांड में कुछ है जो स्वतः है निरन्तर है जो हमारे अंदर भी है जो हमें एक प्रकार के कार्यात्मक संरचना से जोड़ता है। जो हमें उस दशा से जोड़ता है-"सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर।"




बसन्त पर्व!!


पुराना साहित्य/पौराणिक साहित्य व हमारे अनुभव/अहसास स्पष्ट करता है कि प्रकृति हमें मुफ्त में जीवन के स्वतः/निरन्तर के आनन्द का अवसर देता है। 

हम व जगत प्रकृति अभियान का स्वतः प्रेरित अनन्त जिम्मेदारी हैं।प्रकृति अभियान/यज्ञ का हिस्सा हैं।


हमारी लघुता में विराट छिपा है। अपने को छिपा कर उसे उजागर करने से ही जीवन का सत्य हम जीते हैं। जो सर्वव्याप्त है।

'जो है'-वह क्या है? 'है'-क्या है?जो है सो है!वर्तमान!!जो ही जीवन है।उस वर्तमान में डूबना ही जीवन है।जिसके लिए अतीत से मुक्ति को विनिर्माण आवश्यक है।पूर्वाग्रह मुक्त होना आवश्यक है।


सभी प्रबन्धन, शासन उस वर्तमान के सामने असफल हैं। अतीत से मुक्ति के विनिर्माण स्तर दर स्तर हमें उस वर्तमान की ओर ले जाते हैं।जो हमें अनन्त यात्रा की जिम्मेदारियों से जोड़ता है।हम वसु तन्त्र ,ध्रुव तंत्र से जुड़ते हुए विश्व मित्र तन्त्र से जुड़ते हैं। विश्व सरकार के साक्षी होने से पूर्व विश्व सरकार की संभावनाओं से जुड़ते है ।


प्रकृति के बीच में मानव व मानव समाज को उन सम्भावनाओं के अवसर के बिना आनंद असम्भव है जो हमें बसुधैब कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व ,एक विश्व नागरिकता, एक विश्व राज्य की संभावना से जोड़ता है।यह आध्यत्म व मानवता से ही सम्भव है।

हम अतीत को पकड़े बैठे हैं।भूत को पकड़े बैठे हैं।ऐसे में हम क्यों भूत की संभावनाओं के अवसर पर बैठे हुए हैं?

#अशोकबिन्दु





शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

श्रीमद्भावद्गीता ::म्यूजिक आफ खामोशी:::अशोकबिन्दु

 जो सर्वव्याप्त है, जो गुप्त भी है, जो अंतर्यामी भी है वह कैसे प्राप्त किया जा सकता है?



साल में हर साल आषाढ़ व माघ में गुप्त नव रात्रि पर्व भी होता है।इसके काफी मतलब हैं।

कुछ लोग आषाढ़ व माघ में कायाकल्प व्रत में भी रहते हैं।

आध्यत्म में हर व्रत/दिवस/भंडारा/कुम्भ का मतलब है जो सर्वव्याप्त है उस उस के प्रभाव में रहना, प्राणाहुति में रहना। लेकिन ऐसा कब सम्भव है?महाव्रत है-यम।यम मृत्यु को भी हम मानते हैं।

मृत्यु को महानींद भी कहा जाता है।हम उसे शिवरात्रि भी कहते हैं। ध्यान क्या है?मेडिटेशन क्या है?जाग्रत/ध्यान की अवस्था में ही नींद में पहुंचना।जिससे अभ्यास शुरू होता है-महानींद/ मृत्यु में पहुंचने का। हम इससे दूर हैं ही,भोजन ग्रहण करते, जलपान ग्रहण करते हम भाव से नजरिया से किसमें होते हैं?


खामोशी के रहस्यों से हम अन्जान हैं।मौन के रहस्यों व चमत्कारों से हम अन्जान हैं।हमें भरोसा ही नहीं।खामोशी पर,मौन पर। और ऊपर से कहते हैं-माँ भी दूध नहीं पिलाती जब तक बच्चा नहीं रोता। हम कितने भटक गए हैं प्रकृति अभियान ,यज्ञ से?


"मां भी दूध नहीं पिलाती जब तक बच्चा नहीं रोता"- - हम आज इस पर विश्वास कर रहे हैं?आज हमारी ये आस्था हो गयी है?आज हमारा ये नजरिया हो गया है।अफसोस जो आस्तिक हैं, जो ईश्वर व धर्म के नाम पर क्या क्या करने को तैयार हैं लेकिन विश्वास, आस्था, नजरिया कहाँ पर टिका है?

हम अपनी आत्मा से दूर हैं, हम अपनी ही चेतना के अहसास से दूर हैं।हम आसपड़ोस की आत्माओं, चेतनाओं के अहसास से दूर हैं?उसके अभियान/यज्ञ से अनजान हैं।हम सर्वव्यापकता से अनजान हैं, तभी तो हम हम धर्मस्थलवाद, पंथवाद आदि में असीम को ,अनन्त को बांध देना चाहते हैं। लेकिन अभी हम आत्माओं, चेतनाओं के अहसास से ही दूर हैं।

शिव तत्व या तो कैलाश पर या श्मशान में डेरा जमाते हैं। अभी बहुत कुछ कहना बाकी है। लेकिन यहां पर मौन पर के रहस्य, खामोशी के रहस्य पर बात करना चाहते है।ये लेख मात्र शब्द का समूह है।लेकिन इसे लिखते वक्त जो दशा है, वह आप शायद ही समझ सकें।


गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

सन्यास आश्रम नहीं वरन परेशान बुढापा?!:::अशोकबिन्दु


 महानगरों में बुढापा!?

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लगभग 45 प्रतिशत बुढापा अकेलापन,तन्हा आदि में जीता है।जिसका कारण उनकी भौतिकवादी सोंच है।

बुढापा से पहले वे अधेड़ थे, जवान थे।उन्होंने अपने बच्चों को क्या सन्देश दिया था? अब उनके बच्चे उनके महानगर से काफी दूर दूसरे महानगर में आमदनी व तरक्की के झंडे जमा रहे है लेकिन उनके बुजुर्ग माता पिता अकेले तन्हा का जीवन या नौकर चाकर के बीच सिर्फ असहज जीवन ही जी रहे हैं।

परिवार से बच्चे क्या सीखते हैं?यह बड़ा महत्वपूर्ण है।किसी ने कहा है कि बच्चे अपने परिवार के दर्पण होते हैं?बच्चों को अपने माता पिता से क्या सीखते है, यह जीवन का आधार होता है। परिवार के मुखिया का बड़ा रोल होता है।वे बच्चों को किस दिशा की ओर ले जा रहे हैं?हमने महसूस किया है कि जमाने में जो अभिवावक सीधे साधे, विचारवान, शालीन, सज्जन नजर आते हैं।उनके बच्चे आसपड़ोस, समाज व स्कूल में उधम मचाए फिरते हैं। वहां भी जड़ मातापिता या परिवार ही होता है।जिसे हमने पारिवारिक मनोविज्ञान के अंतर्गत रखा है।स्थूल, सूक्ष्म व कारण..... लोग ईमानदारी से स्थूल प्रबन्धन में ही नहीं जीते, सूक्ष्म प्रबन्धन तो काफी दूर है।90 प्रतिशत लोग कृत्रिमताओं, बनावटों, इंद्रिक लालसाओं आदि में केंद्रित सूक्ष्म, नजरिया आदि रखते हैं।परिवार के सूक्ष्म का असर बच्चों पर पड़ता है।

#अशोकबिन्दु

हर जीवित महापुरुष का सम्मान होना चाहिए अन्यथा कुदरत उसकी सजा देगा।अपनी निगाह बनाबटों के पार सूक्ष्म पर भी लेजाने की जरूरत::अशोकबिन्दु

 आध्यत्म में निंदा वर्जित है क्यों?हमारे अनुभव कहते हैं कि जगत में खमोशी ही हमें प्रकृति अभियान, यज्ञ, परम् आत्मा से जोड़ती है।जो खामोश है, अपने काम से काम रखता है।वह कोई प्रतिक्रिया नहीं देता, उसकी मदद ही कुदरत करती है।इस लिए हमारी 'सहज प्रार्थना' में दो पंक्ति आयी है-

"हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं

जो हमारे जीवन में बाधक है।"


जब 'उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता' तो खामोशी से अपना काम करते रहना ही उचित है।ऐसे में परम्आत्मा की जिम्मेदारी बन जाती है।


बस, हर कदम हमारा बेहतर हो ,यह कोशिस हो।


एक मनोवैज्ञानिक जानता है कि यह सरासर गलत है कि भय बिन होय न प्रीति!

जहां भय है वहां प्रीति नहीं, जहां प्रीति है वहां भय नहीं।जहां प्रीति होती है वहाँ समर्पण है,शरणागति है,तटस्थता है।


इस लिए एक भाष्य कार ने अर्जुन को अनुराग भी कहा है।जहां अनुराग है उसके साथ ही श्री कृष्ण हैं। दुर्योधन तो संसार के संसाधन चाहता है। 

हर महाभारत के बाद विदुर ही भक्ति में होता है,जो पहले भी भक्ति में था। अर्जुन सिर्फ इस्तेमाल होता है।श्रीकृष्ण जाते है तो अर्जुन शिथिल हो जाते हैं।

हमारी पूर्णता में हमारा जीना ही योग है।जो सत्य(योग के पहले अंग यम के पहले चरण सत्य) से शुरू होता है।


सत्य/यथार्थ

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स्थूल           सूक्ष्म            कारण


आत्मियता का सम्बंध आत्मा से है, आध्यत्म से है।प्रेम का सम्बंध आत्मा से है, आध्यत्म से है।हमारा रुझान, हमारा नजरिया, रुचि, चिंतन मनन ही हमारे दिशा को बताता है।


गीता में श्रीकृष्ण, महाभारत के बाद हजरत इब्राहीम (2000ई0पू0),गुरु गोविंद सिंह आदि के -'प्रिय की कुर्बानी' का मतलब क्या है?मतलब है जगत में जो भी प्रिय है वह का त्याग। तभी हम योगी हैं, तभी हम सन्यासी हैं।भूत योनि से पितर योनि, भूत व पितर योनि से पार....



बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

शिक्षा और जीवन ::अशोकबिन्दु

 शिक्षा और जीवन!!

.........................#अशोकबिन्दु

प्रथम दृष्टि जीवन बिन माता पिता असम्भव है।यह हमारी प्राकृतिक सच्चाई है।स्थूल सच्चाई है। सूक्ष्म व सूक्ष्मतर सच्चाई कुछ औऱ है।जो अनन्त से है, निरंतर है।

मातापिता से हम जो सीखते हैं, वे हमारे संस्कार बन जाते हैं।माता पिता का सूक्ष्म प्रभाव भी रहता है। माता पिता या परिवार की शिक्षा के साथ साथ पास पड़ोस का असर भी पड़ता है। स्कूल जाने से पहले एक जमीन तैयार हो जाती है जिस पर हमारा व्यक्तित्व खड़ा होता है। हमारे व्यक्तित्व तीन तरह के होते हैं-मन, वचन व कर्म या स्थूल, सूक्ष्म व कारण। हमारी सीख/शिक्षा के भी तीन स्तर होते हैं। ये सीख/शिक्षा निरन्तर चलती रहती है।परिवार शिक्षा, पास पड़ोस शिक्षा, स्कूल शिक्षा, इसके बाद हमारे कार्य क्षेत्र शिक्षा, यातायात शिक्षा, सामाजिक शिक्षा, कानून व प्रशासनिक शिक्षा, राजनीति शिक्षा आदि।


हमें विद्यार्थी/शिक्षक होने के नाते पुस्तकों के अध्ययन के सम्पर्क में आना होता है। किसी ने कहा है हमें जीवन मे कृषि, पशुपालन, प्रकृति, पुस्तकें, बच्चे, ध्यान योग ,आयुर्वेद आदि से निरन्तर जुड़े ही रहना चाहिए वरन खाना पीना आदि की तरह इन्हें भी दिनचर्या में शामिल कर लेना चाहिए। कालेज जीवन या स्कूली शिक्षा के बाद हम चाहें किसी क्षेत्र में कार्य करें लेकिन हमें  उपर्युक्त बातों का सदैव दिनचर्या में शामिल रखना चाहिए। 



हमें जीवित महापुरूषों अर्थात जो व्यक्ति हमें अच्छी बातें बतातें हैं, उनका सम्मान हर हालत में करना चाहिए।माता पिता, अधयापकों, गुरुओं ,बड़ों, बच्चों, स्त्रियों ,पुस्तकों आदि का सम्मान करना चाहिए।


कहने के लिए तो हम विद्यार्थी/शिक्षक/शिक्षित हैं लेकिन सिर्फ ऐसा मान लेने से काम नहीं चलता।हम आचरण से विद्यार्थी/शिक्षित, शिक्षक दिखना चाहिए। हमारे विचार, मन, कर्म शैक्षिक होना ही चाहिए हर हालत में। ये कब कब होगा?जब हम दिल से होंगे।heartfulness होंगे।सिर्फ बुद्धि से होने से आप कब तक रहेंगे?दिल से होने से हम नजरिया, आदत से होंगे।अभ्यास में रहने का उद्देश्य यही है।हम हर वक्त तैयार रहें।तत्पर रहें।

#अशोकबिन्दु