तमाम ग्रंथों का उद्देश्य है आत्म प्रबंधन एवं समाज प्रबंधन ।
इस हेतु शिक्षा भी है । हम शिक्षा को क्रांति मानते रहे हैं। लेकिन आजकल के शिक्षकों ,शिक्षित, विद्यार्थियों को देखकर हम कहना चाहेंगे कि आजकल शिक्षा सबसे बड़ा भ्रष्टाचार बन चुका है ।
गीता के एक भाष्यकार ने लिखा है- कर्म क्या है?कर्म है -यज्ञ।
यज्ञ है प्रकृति अभियान, जो कि स्वतः है निरन्तर है।अनन्त यात्रा की जिम्मेदारी है।उसी में जीना, आहुति जीवन है।जीवन जीना है।हमारा जीवन व तथाकथित कर्म तो चेष्टाएं मात्र हैं-हमारे इंद्रियों के प्रभाव का। हमारे व जगत के अंदर स्वतः निरन्तर है ,वही सनातन है।वही यज्ञ है। यज्ञ जो अग्नि कुंड तक सीमित है वह तो मात्र प्रतीक है, बनाबटी है। पारसी संस्कृति में कुंड की अग्नि जिसके चारों ओर बैठ कर विधाता की याद में आचरण किए जाते हैं, वह अग्नि #इहराम है। हजयात्रा के दौरान यह #इहराम भौतिक रूप बदल लेता है लेकिन सूक्ष्म जगत में वह सर्वव्याप्त है।रमा है सर्वत्र..!!
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