सोमवार, 15 फ़रवरी 2021

अनेक मामले ऐसे भी हैं जब हम सब एक साथ खड़े हो सकते हैं:::अशोकबिन्दु

 अनेक मामले ऐसे हैं जब हम एक साथ खड़े हो सकते हैं। भक्ति, आध्यत्म, मानवता, प्रकृति अभियान में हम एक साथ खड़े हैं। जगत व ब्रह्मांड में कुछ है जो स्वतः है निरन्तर है जो हमारे अंदर भी है जो हमें एक प्रकार के कार्यात्मक संरचना से जोड़ता है। जो हमें उस दशा से जोड़ता है-"सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर।"




बसन्त पर्व!!


पुराना साहित्य/पौराणिक साहित्य व हमारे अनुभव/अहसास स्पष्ट करता है कि प्रकृति हमें मुफ्त में जीवन के स्वतः/निरन्तर के आनन्द का अवसर देता है। 

हम व जगत प्रकृति अभियान का स्वतः प्रेरित अनन्त जिम्मेदारी हैं।प्रकृति अभियान/यज्ञ का हिस्सा हैं।


हमारी लघुता में विराट छिपा है। अपने को छिपा कर उसे उजागर करने से ही जीवन का सत्य हम जीते हैं। जो सर्वव्याप्त है।

'जो है'-वह क्या है? 'है'-क्या है?जो है सो है!वर्तमान!!जो ही जीवन है।उस वर्तमान में डूबना ही जीवन है।जिसके लिए अतीत से मुक्ति को विनिर्माण आवश्यक है।पूर्वाग्रह मुक्त होना आवश्यक है।


सभी प्रबन्धन, शासन उस वर्तमान के सामने असफल हैं। अतीत से मुक्ति के विनिर्माण स्तर दर स्तर हमें उस वर्तमान की ओर ले जाते हैं।जो हमें अनन्त यात्रा की जिम्मेदारियों से जोड़ता है।हम वसु तन्त्र ,ध्रुव तंत्र से जुड़ते हुए विश्व मित्र तन्त्र से जुड़ते हैं। विश्व सरकार के साक्षी होने से पूर्व विश्व सरकार की संभावनाओं से जुड़ते है ।


प्रकृति के बीच में मानव व मानव समाज को उन सम्भावनाओं के अवसर के बिना आनंद असम्भव है जो हमें बसुधैब कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व ,एक विश्व नागरिकता, एक विश्व राज्य की संभावना से जोड़ता है।यह आध्यत्म व मानवता से ही सम्भव है।

हम अतीत को पकड़े बैठे हैं।भूत को पकड़े बैठे हैं।ऐसे में हम क्यों भूत की संभावनाओं के अवसर पर बैठे हुए हैं?

#अशोकबिन्दु





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