बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

21 अक्टूबर 1943 बनाम 15 अगस्त 1947 ई0:::अशोकबिन्दु

 फरबरी - अप्रैल 1946ई0!!

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यह अंग्रेज ही जानते हैं कि उन्होंने 1947 में भारत क्यों छोंड़ देना पड़ा? द्वितीय विश्व युध्द में दक्षिण एशिया विशेष कर दक्षिण पूर्व एशिया के महानायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस व उनकी आजाद हिंद फौज जीत पर जीत हासिल कर आगे बढ़ रही थी,उनकी आजाद हिंद सरकार को 11 देशों की मान्यता थी। जापान को जिसे सहयोग था।झुंझला कर ब्रिटेन के सहयोगी अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम से आक्रमण कर दिया।जापान व अन्य सहयोगी देशों ने वापसी व नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को सुरक्षित स्थान पर जाने की बात की। आल इंडिया रेडियो ने तक उस वक्त मजाक उड़ाई-दिल्ली चलो का नारा लगाने वाले नङ्गे पांव वापस लौटे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा- फरबरी का इंतजार कीजिए।

इसके बाद देश के अंदर फरबरी से क्या हुआ?इतिहास कार जानते हैं।


नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का 47 वां वर्ष!!


(23 जनवरी 1943ई0 से 23 जनवरी 1944ई0)


सीमांत गांधी और बादशाह खान के नाम से विख्यात अब्दुल गफ्फार खान ने भारत के विभाजन का कड़ा विरोध किया था उन्होंने सिर्फ इस मकसद से एक स्वतंत्र पठान प्रांत की मां की ताकि उस प्रांत को पाकिस्तान में शामिल करने की मुस्लिम लीग की मंशा पर पानी फेरा जा सके। वह विभाजन के विरोधी थे। इसी कारण 1943 में जिन्ना ने गफ्फार खान को पठानों के हिंदूकरण तथा उन्हें नपुंसक बनाने के कार्यवाहक की संज्ञा दी थी।


 जापान सरकार ने अंडमान तथा निकोबार दीप पर विजय प्राप्त कर इसका शासन आजाद हिंद सरकार को सौंप दिया। जिसके प्राइम मिनिस्टर तथा सेना के सुप्रीम कमांडर नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। वे दिसंबर  1943 को वहां गए तथा वहां पर उन्होंने तिरंगा झंडा फहराया। रंगून को अपनी राजधानी एवं फौज का कमांड बनाकर वर्मा में अंग्रेजो के खिलाफ जंग लड़ी गई ।अरकान मोर्चे पर विजय प्राप्त कर आजाद हिंद फौज भारत की सीमा में प्रवेश कर गई ।उन्होंने कोहिमा पर भी अधिकार कर लिया ।


उस समय अरविंद घोष सांप्रदायिकता के विरोध में थे ही द्वितीय विश्व युद्ध की स्थिति में ब्रिटेन का पक्ष लिया बे क्रिप्स मिशन के समर्थन मे थे। हताशा और निराशा के वातावरण में ब्रिटेन भारत का सक्रिय सहयोग पाने के लिए परेशान था ताकि न केवल जापान को आगे बढ़ने से रोका जा सके बल्कि युद्ध की तैयारी में उसे भरपूर मदद मिल सके। इसके अलावा चीन और अमेरिका भी ब्रिटेन पर दबाव डाल रहे थे कि वह भारत को राजनीतिक समस्या का उचित समाधान करें। जिसके लिए क्रिप्स मिशन तैयार किया गया था। इसकी असफलता ने भारतीयों को कटुता से भर दिया था। गांधी जी पर अनेक झूठे आरोप लगाए गए थे। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद ब्रिटिश सरकार ने अगस्त क्रांति अर्थात भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हिंसक घटनाओं का दोषारोपण गांधी जी और काग्रेस पर कर दिया था।


21 अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार का गठन किया गया जिस के प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस बनाए गए आजाद हिंद सरकार के साथ-साथ आजाद हिंद फौज आजाद हिंद बैंक की भी स्थापना की गई।


21 अक्टूबर 1943ई0 बनाम 15 अगस्त 1947ई0!!



लोहिया ने लिखा है गांधी जी अकेले पड़ चुके थे। तमाम कांग्रेसी दिल्ली दौड़ चले थे।सब के सब लार्ड माउंटबेटन के तलबे चाट रहे थे, कुछ अपवाद छोंड़ कर। नेहरू का क्या कहना?नेहरू व बेटन के चर्चे तो जग जाहिर हैं और सम्बन्धित मसले पर अनेक पुस्तकें लिखी जा चुकी हैं। गांधी हिंसा इलाकों में भ्रमण कर रहे थे। उनका काम खत्म नहीं हुआ था। कुछ सूत्र कह रहे हैं वे अब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को भारत आने का अब इंतजार कर रहे थे।देश के अंदर कांग्रेस व मुस्लिम लीग से कोई उम्मीद राष्ट्रव्यापी न रह गयी थी।सब कुछ सुभाषचंद्र की लहर मय था। कांग्रेस भी मजबूरी में आजाद हिंद फौज के सैनकों की वकालत करने लगी थी।गांधी तो कांग्रेस को भंग ही कर देना चाहते थे। एक पुस्तक लिखती है 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर तिरंगा फहराने का समय गांधी जी कहने पर परिवर्तित कर दिया गया था।

इसका कारण नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के आने का इंतजार था। 


#अशोकबिन्दु


#47वांवर्ष


#आजादहिंदसरकार


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