गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

सन्यास आश्रम नहीं वरन परेशान बुढापा?!:::अशोकबिन्दु


 महानगरों में बुढापा!?

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लगभग 45 प्रतिशत बुढापा अकेलापन,तन्हा आदि में जीता है।जिसका कारण उनकी भौतिकवादी सोंच है।

बुढापा से पहले वे अधेड़ थे, जवान थे।उन्होंने अपने बच्चों को क्या सन्देश दिया था? अब उनके बच्चे उनके महानगर से काफी दूर दूसरे महानगर में आमदनी व तरक्की के झंडे जमा रहे है लेकिन उनके बुजुर्ग माता पिता अकेले तन्हा का जीवन या नौकर चाकर के बीच सिर्फ असहज जीवन ही जी रहे हैं।

परिवार से बच्चे क्या सीखते हैं?यह बड़ा महत्वपूर्ण है।किसी ने कहा है कि बच्चे अपने परिवार के दर्पण होते हैं?बच्चों को अपने माता पिता से क्या सीखते है, यह जीवन का आधार होता है। परिवार के मुखिया का बड़ा रोल होता है।वे बच्चों को किस दिशा की ओर ले जा रहे हैं?हमने महसूस किया है कि जमाने में जो अभिवावक सीधे साधे, विचारवान, शालीन, सज्जन नजर आते हैं।उनके बच्चे आसपड़ोस, समाज व स्कूल में उधम मचाए फिरते हैं। वहां भी जड़ मातापिता या परिवार ही होता है।जिसे हमने पारिवारिक मनोविज्ञान के अंतर्गत रखा है।स्थूल, सूक्ष्म व कारण..... लोग ईमानदारी से स्थूल प्रबन्धन में ही नहीं जीते, सूक्ष्म प्रबन्धन तो काफी दूर है।90 प्रतिशत लोग कृत्रिमताओं, बनावटों, इंद्रिक लालसाओं आदि में केंद्रित सूक्ष्म, नजरिया आदि रखते हैं।परिवार के सूक्ष्म का असर बच्चों पर पड़ता है।

#अशोकबिन्दु

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