रविवार, 26 जून 2022

समस्या क्या है?समस्याएं क्या हैं?#अशोकबिन्दु

 

किसी ने कहा है -'समस्या है तो समाधान भी है।समस्या के ही साथ समाधान भी चलता है ।"

सहज मार्ग में साधना के तीन स्तर हैं -प्रार्थना ,ध्यान और सफाई !



साल में दो बार गुप्त नवरात्रि होते हैं- आषाढ़ मास ,माघ मास में दोनों माह अमावस्या के बाद ।

हम कहते रहे हैं -जो

हमारे जगत के अंदर गुप्त रूप में है वह के लिए गुप्ता  में उतरना आवश्यक है ।हमारे अंदर व जगत के अंदर स्वत:, निरंतर ,शाश्वत आदि है ।जो हमें या हमारे चेतना व समझ को अनंत प्रवृत्तियों के का द्वार खोलता है ।स्थूल ,सूक्ष्म व कारण ; इन तीन से हम सदा सम्बद्ध हैं ।जिसे हमें सिर्फ महसूस करना है ,अनुभव में उतारना है ।इसके लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम नास्तिक हैं या आस्तिक यह हमारा वर्तमान व यथार्थ है ।हमारी चेतना व समझ के अनंत बिन्दु या स्तर हैं ।



समस्या क्या है ?समस्याएं क्या है ?पक्षी जिस डाल पर घोसला में पैदा हुआ उस डाल से हटता ही नहीं ।उड़ने की कोशिश नहीं करता है ।उड़ने की कोशिश भी करता है तो फिर फिर डाल पर आकर ही बैठ जाता है ।

सन 2016 ई0 फरवरी का पहला सप्ताह !मौनी अमावस्या !!

15 दिन के लिए अल्पाहार के साथ हम संकल्प शक्ति के साथ अंतर साधना में उतर आए ।

धर्म अंतर्मुखी है !अध्यात्म अंतर्मुखी है! हर पग हर पल धर्म अध्यात्म जीता है !

लेकिन हम नहीं !वह ही जीवन है जीवन का अस्तित्व ही वह है !



धर्म के चरमोत्कर्ष के बाद अध्यात्म ,अध्यात्म के चरमोत्कर्ष के बाद अनंत यात्रा का साक्षी पन!!

 समस्या क्या है ?

पुराने संस्कार ,आदतें ,पूर्वाग्रह, छाप ,जटिलताएं ,बनावट आदि !

ये सब हटकर कैसे मन निर्मली करण हो ?

सहज मार्ग में मन के निर्मली करने की व्यवस्था है !

हम अभ्यासी कहे जाते हैं सहज मार्ग में साधना में।

साधना कभी पूर्ण नहीं होती। जहां निरंतरता है वहां विकसित क्या ?निरंतर विकासशील है !



अपने को झकझोर कर असहाय दयनीय मानकर ,समर्पण कर दिया ।

"सफाई !सफाई!! सफाई!! हूं ...मालिक ,तू ही जाने! हम सिर्फ कोशिश करते हैं मन को निर्मली करण के लिए ..हमसे यह सब नहीं बनता !तू जाने !हम तो बस बताएं रास्ते पर चलने की कोशिश कर सकते हैं !"

इन 15 दिन हमने महसूस किया कोई अज्ञात शक्ति सारथी बनने को तैयार है।

 श्री मदभागवत गीता में महापुरुष के अनेक गुण दिए गए हैं -तटस्थता, शरणागति ,समर्पण ,निष्काम कर्म ,स्वीकार्य.... आदि आदि !

बाबूजी महाराज ने कहां है कि अपने को जिंदा लाश बना लो !अनंत से पहले प्रलय है!

 किसी ने कहा है- आचार्य है मृत्यु! योग का एक अंग -यम है -मृत्यु!

 इन 15 दिन हमने अपने को असहाय कर लिया !

बस ,मालिक !बस ,आत्मा.... परम आत्मा !अंतर दिव्य शक्तियां हैं... उनका इंतजार !...उनका सिर्फ इंतजार!



 दुनिया की नजर में हम वैसे ही थे जैसे पहले थे लेकिन मन ही मन सब चल रहा था!



 शीतलहर के दिन थे!



11.30pm,21फरबरी2016ई0!

12.01am,22 फरबरी2016ई0!

12.30pm,22फरबरी2016ई!!



11.00pm,20फरबरी 2016ई0 से 12.30pm,22फरबरी2016ई0.......... ये 36 घण्टे हमारे सूक्ष्म प्रबन्धन/जगत के लिए चिरस्मरणीय हैं।







इन तीन चरणों में हम अज्ञात से आती क्रमशः इन 3 ध्वनियों के साथ दिव्यता में थे -अमोघ प्रिय आनंदम !अमोघ प्रिय दर्शनम् !अमोघ प्रिय अनंतम!!!

 इसके साथ इसमें छिपी स्थिति को- दशा को हम साक्षी !



अब हम आज आप सब भाइयों को बहनों को ये प्रकट क्यों कर रहे हैं ?



अभी तक इसे प्रकट करने का विचार नहीं आया था ।

वर्तमान में कोरो ना संक्रमण की वैश्विक महामारी के दौरान लॉकडाउन में सहज मार्ग श्री रामचंद्र मिशन ,हार्टफुलनेस, श्री कमलेश डी पटेल दा जी.... के साधना नियमों निर्देशों के अतिरिक्त 24 घंटे सतत स्मरण में रहने के अभ्यास में रहे हैं ।

जिसे हमने नाम दिया है - 'पूर्णता के साथ ध्यान'।

 हमने देखा है- पूर्णता की कल्पना ,भाव ,विचार ....के साथ बैठने पर नेगेटिव विचार आते ही नहीं !मन निर्मली करण में हम!



 हम आंख बंद कर बैठ जाते हैं!



आंख बंद कर हम सांस प्रक्रिया को ध्यान देते हुए पूरे शरीर का एहसास करते हैं और कल्पना करते हैं -

रोम रोम दिव्यता से भर गया है ।

जिसके प्रभाव में सभी रोग और सभी विकार खत्म हो गए हैं ।

इसके बाद हम अपना ध्यान गले पर ले जाते हैं और मन ही मन कहते हैं -अमोघ प्रिय आनंदम !इसे हम पांच बार कहते हैं और कल्पना करते हैं सागर में कुंभ कुंभ में सागर ।



इसके बाद हम अपना ध्यान माथे पर ले जाते हैं और कहते हैं -अमोघ प्रिय दर्शनम् !ऐसा 5 बार कहते हैं ।

इसके बाद पुनः कल्पना करते हैं -सागर में कुंभ कुंभ में सागर !



इसके बाद हम अपना ध्यान सिर पर शिखा के स्थान पर ले जाते हैं। और कहते हैं- अमोघ प्रिय अनंतम !इसे भी हम पांच बार

कहते हैं और कल्पना करते हैं -सागर में कुंभ कुंभ में सागर !

चारों ओर अंदर और बाहर प्रकाश ही प्रकाश !



प्रकाश की लहरें हमारे अंदर भी और बाहर भी !

हमारा रोम रोम संसार के सभी प्राणी सभी वस्तुएं सभी वनस्पति जीव जंतु सारा ब्रह्मांड प्रकाश ही प्रकाश प्रकाश में ।

हम प्रकाश में डूबे हुए। हम प्रकाश में प्रकाश हमारे अंदर ।

सागर में कुंभ कुंभ में सागर... ऐसे में हमारे सभी रोग सभी विकार खत्म हो चुके हैं ....हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है... हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है !



अब हम अपना ध्यान ह्रदय पर ले आते हैं ।



हमारा हृदय दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है -इस भाव में आकर हम 20:30 मिनट बैठते हैं ।

इसके बाद पुनः - हमारा रोम रोम दिव्य प्रकाश से भरा हुआ है .।अंदर-बाहर सब जगह प्रकाश ही प्रकाश !

सागर में कुंभ कुंभ में सागर.।।। इसी भाव में हम 24 घंटा रहने की कोशिश करते हैं ।हमारे अंदर ,सब के अंदर ,पूरे ब्रह्मांड में प्रकाश ही प्रकाश। हम सब एक हैं। जगत में जो भी स्त्री पुरुष हैं ,हमारा परिवार है.... हमारा मकान है.... हमारा पास पड़ोस है ....हमारा शहर ...हमारा गांव.... पूरी पृथ्वी ...पूरा ब्रह्मांड..... हम सब प्रकाश में लबालब हैं ....सागर में कुंभ कुंभ में सागर....!!!





इस तरह रहने से हमको अनेक विविध विचारों नेगेटिव एनर्जी का ख्याल नहीं आता! सुबह शाम रात्रि में हम सहज मार्ग के साधना पद्धति को समय देते हैं !

शेष समय हम इसी ख्याल में रहते हैं !इसी ध्यान में रहते हैं ...सागर में कुंभ कुंभ में सागर !पूर्णता के साथ ध्यान !

आखिर पूर्णता है क्या? ऑल !ए डबल एल .।।ऑल .।अल .।संपूर्णता ...!!अल्लाह शब्द भी इसी से बना है !

भाषा विज्ञान में अल्लाह शब्द अल : ही रूप है!!

रविवार, 19 जून 2022

हमारी नजर में योग/सम्पूर्णता/आल/अल....#अशोकबिन्दु

 21 जून :: विश्व योगा दिवस!?हमारी नजर में योग::अशोकबिन्दु



हमारी नजर में योग /आल/अल/सम्पूर्णता है वह स्थिति जो यथार्थ है।सामने जो है सो है।वह का पैमाना हमारा भ्रम, पूर्वाग्रह, जटिलताएं आदि नहीं है। योग की शुरुआत सत्य/यथार्थ से होती है। 


सत्य/यथार्थ

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 यम/महाव्रत का पहला चरण

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यम/महाव्रत

(सत्य,अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य) 

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योग के आठ अंग

(यम, नियम, आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार,धारणा, ध्यान व समाधि)



ऐसे में अपना व जगत का सत्य उजागर करने के लिए या महसूस करने के लिए भ्रम, पूर्वाग्रह, जटिलताओं आदि से मुक्ति आवश्यक है। इसके लिए हम सब सफाई करते हैं।प्रतिदिन  दिन भर के सभी दैनिक सांसारिक कार्य निपटा कर।


https://youtu.be/L2Ie7-00Qv4


जो है सो है।हम व यह जगत क्या है?उसे हम मौन में जाकर ही जान सकते हैं।अंतर्मुखी होकर ही जान सकते हैं।हमारे व जगत के अंदर जो स्वतः, निरतंर, अनन्त, सावभौमिक है ।उसे हम मौन रह कर ही जान सकते है।एक विशेष प्रकार का विचार व भाव लेकर।



https://youtu.be/hf8_OPWGPtg


अपने लिए जिओ, खूब जियो। अपनी आवश्यकताओं के लिए जीना चाहिए।व्यवस्थाप्रियता हममें होनी चाहिए लेकिन व्यवस्था भी तीन प्रकार ही होती है-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।लेकिन हम तो इससे हट कर कृत्रिमताओं में जीते हैं। हम ठीक से अपनी आवश्यकताओं के लिए भी नहीं जीते, अपूर्णता में जीते है।आवश्यकताएं भी तीन प्रकार की हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।लेकिन यहां भी हम कृत्रिमताओं के लिए जीते हैं। हम अपने हाड़ मास, भौतिक वस्तुओं तक सीमित रह जाते हैं। हम अपने सूक्ष्म व कारण के लिए नहीं जीते।


ऐसे में योग है - संतुलन।अपने व जगत के सम्पूर्णता के अहसास में जीना।



हमारे वैश्विक मार्गदर्शक श्री कमलेश डी पटेल #दाजी ठीक कहते हैं कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हम आस्तिक हैं या नास्तिक ,महत्वपूर्ण यह है कि हम महसूस क्या करते हैं?अनुभव क्या करते है?आभास क्या करते हैं? ......शिक्षा व प्रशिक्षण कमजोर दिल वालों के लिए नहीं है। जो हम वास्तव में दिल, आस्था ,नजरिया से होते हैं वही हमारी वर्तमान में असलियत है।जिससे हमें ऊपर उठने की जरूरत है।


#अशोकबिन्दु #हार्टफुलनेस



https://youtu.be/wqfMSc3HNoY





गुरुवार, 2 जून 2022

एक कदम आगे और..?!#अशोकबिन्दु

 02 जून 2022 ई0!!

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विश्व हिंदी अध्यात्म साझा प्रचारक! 


विश्व सम्विधान विश्व सरकार  


एक कदम और हम चले...... 


कान्हां शान्ति वनम हैदराबाद में दो साल पहले रामदेव बाबा घोषणा कर चुके हैं कि आगामी जो आध्यात्मिक क्रांति होगी वह यहीं से होगी, कान्हा शांति वनम से। 


उसी रूहानी आंदोलन के तहत एक कदम आज!! 


हम अपने मन-भूमि पर खेले गये 1990 से खेल को पृथु-भूमि/महि पर अब विस्तार लेते देख रहे हैं। 


हम महसूस कर रहे हैं कि कैसे विश्व स्तर की सूक्ष्म शक्तियां  अब वह माहौल बनाने में सहयोग कर रहीं है जो विश्व को विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम ,विश्व सरकार/लोहिया के विश्व संसद, नई संसद आदि की ओर प्रेरित कर रहीं हैं।


वैचारिक क्रांति, मानसिक क्रांति के परिणाम तुरंत नहीं घटित होते लेकिन होते हैं। हमारे पोस्टस से आप सब महसूस करते रहते होंगे।लेकिन कौन महसूस कर सकते हैं?


आज का दिन इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन घटित हो चुका है।


हम फिर कहना चाहेंगे कि विश्व में कौन है जो विश्व बंधुत्व, बसुधैवकुटुम्बकम की बात करता है?!दुनिया जानती है।लोभी, मजहबी, जातिवादी की कब तक चलेगी?


#अशोकबिन्दु


मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

मजहबी - जातिवादी हवा के बीचविश्व बंधुत्व, बसुधैवकुटुम्बकम ,विविधता में एकता आदि ?!

 विविधता में एकता महसूस करने वाले कितने हैं?

सब के सब अपनी जाति, अपने मजहब पर गर्व करते फिर रहे हैं।

उनको कितना फॉलो किया जा रहा है कि पहले हम इंसान है बाद में कुछ और?!


सन 2041ई0!!

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मुसलमान+यादव+जाटव+आदिबासी+खानाबदोश+पिछड़ा+जनजाति+दलित =??



सवर्ण सेना जिंदाबाद!!जिंदाबाद!जिंदाबाद!!


ब्राह्मण सेना जिंदाबाद!!जिंदाबाद!!!


वैश्य समाज !!!जिंदाबाद!! जिंदाबाद!!



जय परसुराम !!जय जय परसु राम!!


गर्व से कहो हम हम ब्राह्मण हैं!!


गर्व से कहो हम ठाकुर हैं!!



साथियों! जो दलितों, आदिबासियों आदि के लिए अवसर न दे सके उस तन्त्र को उखाड़ फेंको।



फ्रांस की क्रांति में तृतीय एस्टेट अर्थात जन साधरण के प्रतिनिधियों  की सभा ने मिराब्यो  आदि के नेतृत्व में खुद को राष्ट्रीय सभा घोषित कर सिस्टम में कमियों के खिलाफ मुहिम छेन्ड़ दी थी। अब फिर ऐसा करने की आवश्यकता है। जो सिस्टम हमें अवसर न दे सके वह सिस्टम उखाड़ फेंको। जनतन्त्र में जनता शासक होना चाहिए।जन तन्त्र का मतलब जातीय समीकरण नहीं है।जनता के हित में कार्य करने वालों का समर्थन है।किसी जाति मजहब को बढ़ावा देना नहीं है।


जैसे फ्रांस की क्रांति के समय  शासक, पूंजीपति, सामंतवादी, सरकारी कर्मचारी ,पुरोहित आदि मौज में थे लेकिन 94 प्रतिशत जनता परेशान, उस पर टैक्स पर टैक्स!?आज कल भी क्या हो रहा है? मंहगी शिक्षा, मंहगा इलाज, मंहगा न्याय, समाज व राजनीति में ,धर्म।के।क्षेत्र में कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते कि हम से ऊपर कोई आगे बढे। ऐसे सिस्टम को उखाड़ फेंकने की आवश्यकता है।

सबका साथ सबका विकास सबकी भागीदारी!!

कम आबादी वालों को भी अवसर की जरूरत!!



हर सीट पर जो कम आबादी के लोग हैं, समाज के लिए बेहतर सोंच रखते है-जनतंत्र का मतलब यह नहीं है कि उनको समर्थन न मिले?और उनको समर्थन मिलते हुए  भी उनको महत्व न मिल सके तो ऐसे तन्त्र को उखाड़ फेंको।


जय हो  सम्विधान प्रस्तावना!!जय हो भारतीयता!!



शनिवार, 26 मार्च 2022

पदार्थवान से ऊर्जावान ?! हमारा वैदिक ज्ञान सुप्रीम साइंस::अशोकबिन्दु

   जब भी हम रामचरितमानस उठाते हैं, तो उत्तर कांड को खोलते हैं।जिसमें स्पष्ट है कि रोग व दुःख का कारण क्या है?सगुण व निर्गुण कोई न भेदा..... ?!


      एक समय वह भी था जब विज्ञान पदार्थवाद  पर केंद्रित था। अब विज्ञान काफी आगे निकल चुका है और सुप्रीम साइंस आत्मा विज्ञान की ओर आ गया है, आध्यत्म की ओर आ गया है। एक वैज्ञानिक तो कहता है कि हमें तो ईंट पत्थर में भी रोशनी दिखाई देती है। कोई कहता है कि जो दिख रहा है वह ही सच नहीं है।सारा जगत, ब्रह्मण्ड प्रकाश, ऊर्जा, कम्पन, स्पंदन आदि में है। सहज मार्ग में जो रहस्य उजागर किया गया था, वह की ओर अब साइंस भी बढ़ चला है।



   हमारा वैदिक ज्ञान सुप्रीम साइंस है।वेद मात्र पुस्तक नहीं हैं। श्री रामचन्द्र जी महाराज कहते हैं कि वेद एक वह शाश्वत व अनन्त व्यवस्था है जो ऋषियों -नबियों में पहले उतरी।जिन्होंने देखा कि सृष्टि व प्रलय, वर्तमान में हमारे अंदर व जगत- ब्रह्मण्ड के अंदर क्या दशा है?जो स्वतः है, निरन्तर है, अनन्त है।जिसका केंद्र हमारा हृदय है।जहां स्पंदन, कम्पन है, अनन्तता है।





 जगत में जो भी दिख रहा है,वह अनन्त यात्रा का हिस्सा है। गीता का विराट रूप भी यही सन्देश देता है।कुंडलिनी जागरण व सात शरीर का अध्ययन या कल्पना भी हमें यही संदेश देता है। अनन्त यात्रा का अध्ययन, सहज मार्ग का दिग्दर्शन का अध्ययन ,कल्पना भी हमें यही सन्देश देता है। हम किशोरावस्था से ही कुछ अद्भुत सन्देश प्राप्त होते रहे हैं।हमारे अंदर जो आकाश तत्व है, वहां हमें निरन्तर सन्देश प्राप्त होते रहते हैं।लेकिन हम उसे जगत व बनावटों की चकाचौंध में नजरअंदाज कर दें ,यह अलग बात।


हमारे वर्तमान वैश्विक मार्गदर्शक कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं कि महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हम आस्तिक हैं कि नास्तिक, महत्वपूर्ण यह है कि हम महसूस क्या करते हैं?अहसास क्या करते हैं? अमेरिका में सहज मार्ग में एक अभ्यासी कहते हैं कि साधना में सफलता का मतलब है कि हमें अपने आस पास सूक्ष्म शक्तियां, चेतना का आभास होने लगे।मूर्ति पूजा का मतलब यह भी है कि हमें सिर्फ पदार्थ, शक्ल सूरत, व्यक्ति की स्थूल क्रियाएं ही हमें सिर्फ दिखती हैं।



हम बचपन से ही बाला जी की मढ़ी आदि पर आखँ बंद कर,ब्रह्म नाद करते वक्त अपने अंदर व आस पास अतिरिक्त ऊर्जा,कम्पन, स्पंदन आदि महसूस करते रहे हैं। 



वास्तव में प्रेम भी क्या है?सर्वव्यापकता।।

सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर......


(अपूर्ण)

शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

जय दक्षेस!!

 दक्षिण एशियाई देशों को गिले सीकबे भुला कर एक जुट होने की जरूरत है।


चीन व पाकिस्तान को शांति सुकून से काम चलाने की जरूरत है।


हम तो कहेंगे कि भविष्य में अर्थात तृतीय विश्व युद्ध के अंत में भारत  , चीन व रूस एक साथ होंगे लेकिन तब तक काफी बर्बादी हो  चुकी होगी।  



यदि हम सब मानवता का भला चाहते हैं तो निजी स्वार्थों का त्याग करना होगा

किस किस से प्यार करूँ?किस किस से नफरत?..#अशोकबिन्दु

 जब बसुधैब कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर तो किससे नफरत?किससे मोहब्बत?


न काहू से दोस्ती न काहू से बैर!!



दुनिया व ब्रह्मण्ड में वह प्राणी खतरनाक है जो इंसान माना जाता है लेकिन इंसानियत नहीं रखता।


हमारे आस पास, नगर गांव में, प्रदेश व विश्व में कुछ लोग ऐसे हैं जो मानव समाज के लिए खतरा हैं। वे अपने मजहब व जाति के लिए मानवता व रूहानी आंदोलन को ताख पर रख देते हैं। उनमें ऐसा कोई नेता व उनका कोई देश(उनकी आबादी वाला क्षेत्र) है जिसमें इंसानियत व रूहानी आंदोलन फलता फूलता है?गैर मजहबी अकेला इंसान मौज से रह रहा हो?जो सबके भलाई के लिए सोचता हो?



ऐसे में दुनिया की निगाहें किधर होंगी?😢


हम सब को समझना चाहिए कि हमारा हाड़ मास, दिल दिमाग, आत्मा, हवा, पानी आदि का कोई न मजहब है न कोई जाति।

भारत ही एक ऐसा देश है जो सबके हित की बात सोंच सकता है।विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व कल्याण की बात सोंच सकता है।दुनिया में अधिकतर देश अपने हित में किसी को भी तोड़ सकते हैं।

लोग अधर्म करते करते इतना गिर जाते हैं कि वे किसी को अपना नहीं मानते न ही सबका हित साधना चाहते हैं।भारत ही ऐसा देश है जो सबका हित साधते हुए अपना हित साधना चाहता है। 


मुस्लिम देश हो यूरोपीय देश अधिकांश ऐसे हैं जो विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण की बात नहीं सोंच सकते ।न ही उनका कोई ऐसा नेता है जो सबका कल्याण की बात सोंचे। अब वक्त आ गया है कि एशिया के देश एक जुट हों।व7शेष कर पाकिस्तान, भारत, चीन, बांग्लादेश ,श्री लंका आदि एक मंच पर आये।यदि वे अपने अपने जनता व क्षेत्र का भला चाहते हैं। #अशोकबिन्दु


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