शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

श्रीमद्भावद्गीता ::म्यूजिक आफ खामोशी:::अशोकबिन्दु

 जो सर्वव्याप्त है, जो गुप्त भी है, जो अंतर्यामी भी है वह कैसे प्राप्त किया जा सकता है?



साल में हर साल आषाढ़ व माघ में गुप्त नव रात्रि पर्व भी होता है।इसके काफी मतलब हैं।

कुछ लोग आषाढ़ व माघ में कायाकल्प व्रत में भी रहते हैं।

आध्यत्म में हर व्रत/दिवस/भंडारा/कुम्भ का मतलब है जो सर्वव्याप्त है उस उस के प्रभाव में रहना, प्राणाहुति में रहना। लेकिन ऐसा कब सम्भव है?महाव्रत है-यम।यम मृत्यु को भी हम मानते हैं।

मृत्यु को महानींद भी कहा जाता है।हम उसे शिवरात्रि भी कहते हैं। ध्यान क्या है?मेडिटेशन क्या है?जाग्रत/ध्यान की अवस्था में ही नींद में पहुंचना।जिससे अभ्यास शुरू होता है-महानींद/ मृत्यु में पहुंचने का। हम इससे दूर हैं ही,भोजन ग्रहण करते, जलपान ग्रहण करते हम भाव से नजरिया से किसमें होते हैं?


खामोशी के रहस्यों से हम अन्जान हैं।मौन के रहस्यों व चमत्कारों से हम अन्जान हैं।हमें भरोसा ही नहीं।खामोशी पर,मौन पर। और ऊपर से कहते हैं-माँ भी दूध नहीं पिलाती जब तक बच्चा नहीं रोता। हम कितने भटक गए हैं प्रकृति अभियान ,यज्ञ से?


"मां भी दूध नहीं पिलाती जब तक बच्चा नहीं रोता"- - हम आज इस पर विश्वास कर रहे हैं?आज हमारी ये आस्था हो गयी है?आज हमारा ये नजरिया हो गया है।अफसोस जो आस्तिक हैं, जो ईश्वर व धर्म के नाम पर क्या क्या करने को तैयार हैं लेकिन विश्वास, आस्था, नजरिया कहाँ पर टिका है?

हम अपनी आत्मा से दूर हैं, हम अपनी ही चेतना के अहसास से दूर हैं।हम आसपड़ोस की आत्माओं, चेतनाओं के अहसास से दूर हैं?उसके अभियान/यज्ञ से अनजान हैं।हम सर्वव्यापकता से अनजान हैं, तभी तो हम हम धर्मस्थलवाद, पंथवाद आदि में असीम को ,अनन्त को बांध देना चाहते हैं। लेकिन अभी हम आत्माओं, चेतनाओं के अहसास से ही दूर हैं।

शिव तत्व या तो कैलाश पर या श्मशान में डेरा जमाते हैं। अभी बहुत कुछ कहना बाकी है। लेकिन यहां पर मौन पर के रहस्य, खामोशी के रहस्य पर बात करना चाहते है।ये लेख मात्र शब्द का समूह है।लेकिन इसे लिखते वक्त जो दशा है, वह आप शायद ही समझ सकें।


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