बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

शिक्षा और जीवन ::अशोकबिन्दु

 शिक्षा और जीवन!!

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प्रथम दृष्टि जीवन बिन माता पिता असम्भव है।यह हमारी प्राकृतिक सच्चाई है।स्थूल सच्चाई है। सूक्ष्म व सूक्ष्मतर सच्चाई कुछ औऱ है।जो अनन्त से है, निरंतर है।

मातापिता से हम जो सीखते हैं, वे हमारे संस्कार बन जाते हैं।माता पिता का सूक्ष्म प्रभाव भी रहता है। माता पिता या परिवार की शिक्षा के साथ साथ पास पड़ोस का असर भी पड़ता है। स्कूल जाने से पहले एक जमीन तैयार हो जाती है जिस पर हमारा व्यक्तित्व खड़ा होता है। हमारे व्यक्तित्व तीन तरह के होते हैं-मन, वचन व कर्म या स्थूल, सूक्ष्म व कारण। हमारी सीख/शिक्षा के भी तीन स्तर होते हैं। ये सीख/शिक्षा निरन्तर चलती रहती है।परिवार शिक्षा, पास पड़ोस शिक्षा, स्कूल शिक्षा, इसके बाद हमारे कार्य क्षेत्र शिक्षा, यातायात शिक्षा, सामाजिक शिक्षा, कानून व प्रशासनिक शिक्षा, राजनीति शिक्षा आदि।


हमें विद्यार्थी/शिक्षक होने के नाते पुस्तकों के अध्ययन के सम्पर्क में आना होता है। किसी ने कहा है हमें जीवन मे कृषि, पशुपालन, प्रकृति, पुस्तकें, बच्चे, ध्यान योग ,आयुर्वेद आदि से निरन्तर जुड़े ही रहना चाहिए वरन खाना पीना आदि की तरह इन्हें भी दिनचर्या में शामिल कर लेना चाहिए। कालेज जीवन या स्कूली शिक्षा के बाद हम चाहें किसी क्षेत्र में कार्य करें लेकिन हमें  उपर्युक्त बातों का सदैव दिनचर्या में शामिल रखना चाहिए। 



हमें जीवित महापुरूषों अर्थात जो व्यक्ति हमें अच्छी बातें बतातें हैं, उनका सम्मान हर हालत में करना चाहिए।माता पिता, अधयापकों, गुरुओं ,बड़ों, बच्चों, स्त्रियों ,पुस्तकों आदि का सम्मान करना चाहिए।


कहने के लिए तो हम विद्यार्थी/शिक्षक/शिक्षित हैं लेकिन सिर्फ ऐसा मान लेने से काम नहीं चलता।हम आचरण से विद्यार्थी/शिक्षित, शिक्षक दिखना चाहिए। हमारे विचार, मन, कर्म शैक्षिक होना ही चाहिए हर हालत में। ये कब कब होगा?जब हम दिल से होंगे।heartfulness होंगे।सिर्फ बुद्धि से होने से आप कब तक रहेंगे?दिल से होने से हम नजरिया, आदत से होंगे।अभ्यास में रहने का उद्देश्य यही है।हम हर वक्त तैयार रहें।तत्पर रहें।

#अशोकबिन्दु


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