विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य आश्रम इसलिए कहा गया.......अब भी हम देख रहे हैं-जाट व सिक्खों में, मराठों में धरना, आंदोलन आदि में पूरे के पूरे परिवार आकर बैठ जाते हैं?ये क्या है?हम?!अरे,हमें तो परिवार पालने से ही फुर्सत नहीं,हमें तो परिवार को देखने से ही फुर्सत नहीं,हम समाज व राज्य का देखें?जो नेता बने बैठे हैं, समाज हित विभिन्न सस्थाओं के पदाधिकारी बने बैठे हैं वे स्वयं समाज व राज्य के प्रति कितना समर्पित हैं?!और कहते हैं हमें अपना घर देखना है।ऐसे लोग ही पूंजीवाद, सत्तावाद, सामन्तवाद, जन्मजात उच्चवाद, जातिगत पुरोहितवाद आदि के समर्थन में खड़े हैं। ये नहीं चाहते-आम आदमी जाग्रत हो।उसकी अंदुरुनी दिव्यता व शक्तियां जगे।वे हां में हां मिलाने वाले नौकर चाहते हैं।सभी में ब्राह्मणत्व, क्षत्रियत्व जगाना नहीं चाहते।
#अशोकबिन्दु
विश्वसरकार ग्रन्थ साहिब:: भूमिका!
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सिकंदर ने अरस्तु को आत्मसात नहीं किया ।
उपनयन संस्कार में कौन है? उपनिषद संस्कार में कौन है ?गुरु का सम्मान वास्तव में क्या है? शालीनता ,सौम्यता, नम्रता, अंतरमुखिता आदि आवश्यक है। जैसे हम मंदिर में किसी मूर्ति के सामने शांत होते हैं ।उसी तरह जैसे हम मस्जिद में होते हैं एक अज्ञात प्रभाव में ।
गुरु एक तत्व है और अभ्यासी या साधक एक प्रयत्न है ।
जीवित गुरु के माध्यम से सांसारिक गुरु के माध्यम से अंतर्निहित तत्व में हो जाना।
गुरु हो या शिष्य दोनों मन से एक ही हैं। किसी ने कहा है - दो शरीर एक प्राण ।वह प्राण सर्व व्याप्त है। सागर में कुंभ कुंभ में सागर..!!
सिकंदर ने अरस्तु की उसके जिंदा रहते ही उसकी मूर्तियां खड़ी कर दी लेकिन उससे क्या? लेकिन वास्तव में उसने गुरु का सम्मान किया ?
जब हम गुरु के समीप उपनयन नहीं, उपनिषद में नहीं, शांति, नम्रता और शालीनता में नहीं।
आज क्लास का मतलब क्या है? कक्षा का मतलब क्या है ? "अरे, हम क्या फीस नहीं देते? हम यहां क्यों न बैठे ?-ऐसा कहते हुए कुछ लोग , कुछ विद्यार्थी कहते हैं?!
आश्रम ,धर्म स्थलों में भी अधिक धन संपत्ति आदि दान करने वालों की सोच नजरिया क्या होता है? बे उपनयन में नहीं है, बे उपनिषद में नहीं है ,उपआसन में नहीं है, श्रद्धा नहीं है ,शालीनता नहीं है, नम्रता नहीं है, शांत भाव नहीं है..... काहे का शिष्य ?काहे का विद्यार्थी? काहे का उपासक? साधक ?अभ्यासी आदि ....अब काहे का शिष्य ?काहे का विद्यार्थी?
विद्यालय में आए हो ?क्लास में बैठे हो? गुरु या शिष्य के पास बैठे हो?.... लेकिन किस भाव किस नजरिया से बैठे हो? उपनयन है क्या ?उपनिषद है क्या?उप आसन है क्या ?
विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य आश्रम क्यों कहा गया ?आज इससे आज के गुरु ही ,आज के शिक्षक ही अपरिचित हैं ?शिक्षा व्यवस्था जटिलता ,दुर्गमता, जोखिम में हो, प्रकृति के बीच हो, वह अरण्यक हो ,जंगल समाज, पशुपालन समाज ,कृषि के बीच हो... जो जीवन का आधार है, प्राथमिकता है ,बुनियाद है वहां से हो।
राज्य और समाज का प्रत्येक नागरिक ब्राह्मणत्व क्षत्रियतत्व से भर जाए शिक्षा ऐसी हो ।
सेवा ,व्यापार तो सभी के लिए जीवन यापन, मानवता ,परिवार और समाज प्रबंधन के लिए आवश्यक है ही लेकिन ऐसा नहीं कि- " अरे, हमें तो परिवार पालने से ही फुर्सत नहीं। हमें तो परिवार को देखने से ही फुर्सत नहीं। हम समाज और देश ,राज्य का क्या देखें ? बड़ी निकृष्ट है, नीच, गिरी नीच की है ।
अभी हम देख रहे हैं - जाट और सिखों में , मराठों में धरना, आंदोलन आदि में पूरे के पूरे परिवार आ कर बैठ जाते हैं?!
क्या है !?
हमने पढ़ा है - वैदिक सभ्यता को? वहां भी सभी का क्षत्रियत्व और ब्राह्मणत्व जगाने की कोशिश के साथ सेवा, सहकारिता, सामूहिकता आदि को जिंदा रखा जाता था।
आज की तारीख में सत्ता वाद, पूंजीवाद ,सामंतवाद, जन्मजात उच्चवाद आदि यह नहीं चाहता। वह प्रत्येक नागरिक की दिव्यता, आंतरिक शक्तियों को जगाने का अवसर नहीं देना चाहता। वह तो हां में हां मिलाने वाला , नौकर आदि की फौज खड़ी करना चाहता है ।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा था-" हम चाहते हैं देश का प्रत्येक नागरिक ही परमाणु बंब की तरह हो जाए।" लेकिन ऐसा पूंजीवादी, सत्तावादी, सामन्तवादी लोग क्यों चाहेंगे? जन्मजात उच्चवाद ऐसा क्यों चाहेगा?
विद्यार्थी जीवन को कभी ब्रह्मचर्य आश्रम इसलिए ही कहा जाता था हर व्यक्ति के अंतर्निहित शक्तियां जागे अंदर की दिव्यता जागे हर व्यक्ति के अंदर का दीपक जले।
#अशोकबिन्दु
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