शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

23जनवरी:पराक्रम दिवस !! नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के मुस्लिम मददगारों की स्मृति के साथ:::अशोकबिन्दु

 पराक्रम दिवस:23 जनवरी पर खास -'सर जी'की कृपा से!!


मिशन का हिस्सा प्रिय की कुर्बानी!!

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ईसा पूर्व 2000! अल्लाह ने संदेश दिया -'प्रिय की कुर्बानी'!

ईसा से 5000 वर्ष पूर्व भी यही संदेश!!गीता में भी यही संदेश!!!

हजरत हुसैन व गुरु गोविंद से भी यही संदेश......

अपना व दूसरे का हाड़ मास शरीर से ज्यादा प्रिय और क्या हो सकता है?!


प्रकृति अभियान उस स्थूलता, उस हाड़मांस शरीर को महान कार्यों के लिए कुर्बान हो जाने को कहता है।

हम आत्मा की ओर यात्रा पर कब बढ़ेंगे?जब हम आत्मा की ओर की यात्रा तय नहीं कर सकते तो परम् आत्मा की ओर की ओर की यात्रा क्या खाक तय करेंगे?

मानव समाज व उसके नजर में जीने वाले मानव की सबसे बड़ी बुराई है जो से परे हो जाना ही प्रकृति व परम् आत्मा का सम्मान है, उसी में हम लीन है ,वही मानव को प्रिय है।


'प्रिय की कुर्बानी'- को समझिए।


कुरआन की शुरुआती सात आयतें भी क्या कहती हैं?

'प्रशंसा'- सिर्फ खुदा के लिए है!

'प्रशंसा'- सिर्फ खुदा की करना है। 


इसकी यात्रा कहाँ से शुरू होती है? स्थूलताओं, पूर्वाग्रहों, अशुद्धियों, छापों, संस्कारों को त्याग से। 


बाबू जी महाराज ने कहा है-इस शरीर के मरने से पूर्व ही इस शरीर को मार लो।ये जिंदा लाश बन जाये। विद्यार्थी जीवन इस लिए ब्रह्मचर्य जीवन है कि अंतर्मुखी होकर, बाह्य जगत में न खोते हुए अन्तरदीप/अंतर्ज्ञान को जगा लें।


योग के आठ अंग हैं-

यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि!

राजयोग की शुरुआत होती है-प्रत्याहार से।

आज पराक्रम दिवस पर हम आज याद करते है उस शख्सियत की जो हर हाल में नेता जी के साथ रहा।वह मुस्लिम था।नेता जी का ड्राइवर भी एक मुस्लिम था। 

उन दोनों का कहना था-अपने मिशन के लिए हमें इस हाड़ मास शरीर को दांव पर लगा देना चाहिए।

आखिर पराक्रम क्या है?!

प्राण जाएं पर वचन न जाए।


जब आत्मा गर्भ धारण करती है तो -आत्मा के पास अपनी एक योजना होती है, वचन होता है।


फिर कहता-'प्रिय की कुर्बानी'-को समझो।

हाड़ मास शरीर, हाड़ मास शरीरों, हाड़ मास शरीरों के समूहों, जतियों, मजहबों से ऊपर उठ कर किसी बड़े मिशन के लिए जिओ।


आज कल हमारे लिए प्रिय क्या है?

जब कोई कहता है कि हमें सामने कुछ नहीं दिखाई देता, सिवा चिड़िया के आंख के। हम आप भी उसकी मजाक उड़ाएं गे। जिसे संसार का कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है, जाति, मजहब, धर्मस्थलवाद आदि भी.... हम आप आज भी उसकी मजाक उड़ाने को तैयार खड़े हैं। 

हम अब वहां तक नहीं हैं कि हमें आत्मा....परम् आत्मा के सन्देश सुनाई  दें, हमारे अंदर से ही हमारा धर्म जगे।बाहर से नहीं। हम इतना खो चुके है स्वनिर्मित धारणाओं में, जिसे हमने अपना प्रिय मान लिया है।ये भ्रम है।


सहज भी है जिसके अंदर से ज्ञान, धर्म, आचरण पैदा होता है।बाहर से नहीं।मुल्ला मौलबी, पंडित, पादरी आदि की ओर से नहीं।

'सर जी'- ठीक कहते हैं-"शिक्षा क्रांति है'।

'शिक्षा'- को मतलब नहीं अभिवावक क्या कहते हैं?

समाज क्या कहता है?

#सहजमार्ग


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