मंगलवार, 20 जुलाई 2021

गुरु - शिष्य परम्परा में जीना सीखिए!!उसी से मानवता का उद्धार!!#अशोकबिन्दु हम सब जीवन के यथार्थ से काफी गिर गए हैं कि जीवन जीने की असलियत ही खो चुके हैं।जीवन नहीं है धन दौलत, इच्छाऐं आदि।साधन, साध्य, लक्ष्य में अंतर समझने की जरूरत है।जीवन जीने का मतलब है-सिर्फ जीना।हर हाल में जीना।हर स्थिति में जीना।जीवन कोई बनाबटी, कृत्रिम, हमारी इच्छाओं का मोहताज नहीं है। वह प्राकृतिक, नैसर्गिक, प्रकृति अभियान(यज्ञ),अनन्त यात्रा आदि से है।वह हमारे कारण नहीं है। जीवन के क्रमिक विकास में हम अवरोध तो हैं लेकिन हम कारण नहीं है।जगत व प्रकृति में कोई समस्या नहीं है, जीवन में कोई समस्या नहीं है।समस्या तो स्वयं मनुष्य व मनुष्य समाज है लेकिन वह प्रकृति अभियान, अनन्त यात्रा में, ब्रह्मांड में रेत के एक कण का हजारवां हिस्सा भी नहीं है यदि वह समझ रहा है कि जीवन उसके कारण ही चल रहा है। यह उसका भ्रम है कि जमीन जायदाद, गाड़ी बंगला आदि के लिए हम सबकुछ कर ,मेहनत कर स्वयं ही अपने जीवन को बेहतर स्थिति में पहुंचा सकते हैं।कृत्रिम चीजें इकठ्ठी कर लेने से हमें लगता है कि हम बेहतर स्तर हैं।लेकिन ऐसा है नहीं।हम जीवन के यथार्थ व उसके रहस्य, चमत्कारों से काफी दूर होते हैं।जीवन के असली आनन्द से काफी दूर होते हैं। जीवन न किसी का बेकार न उच्च होता है।किसी का जीवन न महान न निम्न होता है।एक भिखारी, टेंट में जीवन काटने वाला जीवन में बेहतर ढंग से हो सकता है।दुनिया की सारे ऐश्वर्य भोग इकट्ठा कर लेने वाला भी जीवन में बेहतर ढंग से नहीं ही सकता।संसार के भोग विलास समाज में अन्य लोगों से बेहतर जीना हमारे नैसर्गिक जीवन, चेतनात्मक स्तर के उच्च स्तर में पहुंचने की ओर इंगीत नहीं करता।स्वतः, निरतंर, जैविक घड़ी आदि के हिसाब से बेहतर होने की ओर संकेत नहीं करता।ऐसे में गुरु व शिष्य परम्परा को समझना भी अति आवश्यक है। गुरु और सन्त हम सिर्फ आत्मा, आत्माओं को ही मानते है। ब्राह्मण हम सिर्फ आत्मा, आत्माओं के गुणों में जीने वालों को मानते हैं।ऐसे दशा में जीने वाला ही गुरु होता है।शिष्य होता है।सन्त होता है।गुरु शिष्य में ज्यादा फर्क नहीं होता।बस, स्तर की बात है।गुरु शिष्य में वही अंतर है जो मेडिकल कालेज में एक डॉक्टर व एक ट्रेनिग लेने बाले में होता है।आम आदमी के लिए दोनों डॉक्टर से कम नहीं होते। गुरु व शिष्य हमारे अंदर की दशा है।तत्व है।ये हाड़ मास शरीर की दशा तो वही है जो सबकी है।गुरु - शिष्य परम्परा तो हमें हमारे पूर्णत्व की ओर यात्रा है। ऐसे में यह भी समझने की जरूरत है कि वेद क्या है?व्यास क्या है?ये भी एक दशा है।हम कहते रहे है।हमें हर चीज को उसके सूक्ष्म व कारण स्तर पर समझने की भी पहुंच बनानी चाहिए।हम सब तो तथ्यों की यथार्थता तक स्थूलता की असलियत तक ही ठीक ढंग से नहीं पहुंच पाते हैं। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर। गुरु:साक्षात् परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः। । गुरु पूर्णिमा अर्थात् महर्षि वेदव्यास जी की जयंती इस वर्ष 24 जुलाई को आ रही है। आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, क्योंकि इनका जन्म गंगा के बीच में बने एक द्वीप पर हुआ था। इसलिए इन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहते हैं। महर्षि वेदव्यास असाधारण संत थे। उन्होंने वेदों को ज्ञान, कर्म, भक्ति व उपासना के आधार पर चार भागों में बांटा था। महाभारत महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ही थे। महर्षि वेदव्यास महाभारत काल के प्रत्यक्षदर्शी रहे थे। इसी कारण गुरुओं में सबसे श्रेष्ठ नाम इन्हीं का आता है और इन्हीं की जन्म जयंती पर गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन गुरु पूजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है। जिन व्यक्तियों ने गुरुओं को माना हुआ है। उस दिन गुरु दर्शन करके उन्हें गुरु दक्षिणा देते हैं। इसके बाद भोजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती। लेकिन शर्त यह है कि गुरू निष्काम एवं निष्पक्ष होना चाहिए। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को प्रातः 8:07 तक ही है। अर्थात उदय काल में पूर्णिमा विराजमान है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का पर्व सारे दिन मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा शनिवार को है। शनिवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दोपहर 12:39 तक है जो राक्षस योग का निर्माण करता है। ऐसे में गुरु पूजन करना श्रेष्ठ नहीं होता है। गुरु पूजन का शुभ मुहूर्त 12:40 से 16:39 तक उत्तम रहेगा। गुरुओं से आशीर्वाद लेना,उनका पूजन करना, सम्मान करना, उपहार देना यह सब गुरु पूजन के अंतर्गत आते हैं और गुरु के बताए हुए नियमों पर चलना ही मानव का कर्तव्य है। इस दिन पूर्णिमा प्रातः 8:07 बजे तक ही है इसलिए इस दिन पूर्णिमा स्नान का महत्व है। पूर्णिमा का व्रत एवं दान आदि एक दिन पूर्व अर्थात 23 जुलाई को करेंगे। बहुत से हिंदू परिवारों में इस दिन व्रत रखा जाता है और सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। यह एक दिन पूर्व 23 तारीख को संपन्न होगी। व्रत समापन (परायण) के समय शाम को पूर्णिमा होनी चाहिए तभी चंद्रमा को अर्घ्य दे कर व्रत खोल लेना चाहिए । इस बार 24 जुलाई कक गुरुपूर्णिमा है।इस दिन ही पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी का जन्म दिन है। जो दक्षिण के एक ब्राह्मण परिवार से थे और सहजमार्ग राजयोग में सन्त आत्मा थे। समस्त गुरुओं, सन्तों, सन्त व ब्राह्मण आत्माओं को नमन!! #अशोकबिन्दु #चारीजी #चारीजीजन्मदिन #जुलाई24 #राजयोग

 गुरु - शिष्य परम्परा में जीना सीखिए!!उसी से मानवता का उद्धार!!#अशोकबिन्दु हम सब जीवन के यथार्थ से काफी गिर गए हैं कि जीवन जीने की असलियत ही खो चुके हैं।जीवन नहीं है धन दौलत, इच्छाऐं आदि।साधन, साध्य, लक्ष्य में अंतर समझने की जरूरत है।जीवन जीने का मतलब है-सिर्फ जीना।हर हाल में जीना।हर स्थिति में जीना।जीवन कोई बनाबटी, कृत्रिम, हमारी इच्छाओं का मोहताज नहीं है। वह प्राकृतिक, नैसर्गिक, प्रकृति अभियान(यज्ञ),अनन्त यात्रा आदि से है।वह हमारे कारण नहीं है। जीवन के क्रमिक विकास में हम अवरोध तो हैं लेकिन हम कारण नहीं है।जगत व प्रकृति में कोई समस्या नहीं है, जीवन में कोई समस्या नहीं है।समस्या तो स्वयं मनुष्य व मनुष्य समाज है लेकिन वह प्रकृति अभियान, अनन्त यात्रा में, ब्रह्मांड में रेत के एक कण का हजारवां हिस्सा भी नहीं है यदि वह समझ रहा है कि जीवन उसके कारण ही चल रहा है। यह उसका भ्रम है कि जमीन जायदाद, गाड़ी बंगला आदि के लिए हम सबकुछ कर ,मेहनत कर स्वयं ही अपने जीवन को बेहतर स्थिति में पहुंचा सकते हैं।कृत्रिम चीजें इकठ्ठी कर लेने से हमें लगता है कि हम बेहतर स्तर हैं।लेकिन ऐसा है नहीं।हम जीवन के यथार्थ व उसके रहस्य, चमत्कारों से काफी दूर होते हैं।जीवन के असली आनन्द से काफी दूर होते हैं। जीवन न किसी का बेकार न उच्च होता है।किसी का जीवन न महान न निम्न होता है।एक भिखारी, टेंट में जीवन काटने वाला जीवन में बेहतर ढंग से हो सकता है।दुनिया की सारे ऐश्वर्य भोग इकट्ठा कर लेने वाला भी जीवन में बेहतर ढंग से नहीं ही सकता।संसार के भोग विलास समाज में अन्य लोगों से बेहतर जीना हमारे नैसर्गिक जीवन, चेतनात्मक स्तर के उच्च स्तर में पहुंचने की ओर इंगीत नहीं करता।स्वतः, निरतंर, जैविक घड़ी आदि के हिसाब से बेहतर होने की ओर संकेत नहीं करता।ऐसे में गुरु व शिष्य परम्परा को समझना भी अति आवश्यक है। गुरु और सन्त हम सिर्फ आत्मा, आत्माओं को ही मानते है। ब्राह्मण हम सिर्फ आत्मा, आत्माओं के गुणों में जीने वालों को मानते हैं।ऐसे दशा में जीने वाला ही गुरु होता है।शिष्य होता है।सन्त होता है।गुरु शिष्य में ज्यादा फर्क नहीं होता।बस, स्तर की बात है।गुरु शिष्य में वही अंतर है जो मेडिकल कालेज में एक डॉक्टर व एक ट्रेनिग लेने बाले में होता है।आम आदमी के लिए दोनों डॉक्टर से कम नहीं होते। गुरु व शिष्य हमारे अंदर की दशा है।तत्व है।ये हाड़ मास शरीर की दशा तो वही है जो सबकी है।गुरु - शिष्य परम्परा तो हमें हमारे पूर्णत्व की ओर यात्रा है। ऐसे में यह भी समझने की जरूरत है कि वेद क्या है?व्यास क्या है?ये भी एक दशा है।हम कहते रहे है।हमें हर चीज को उसके सूक्ष्म व कारण स्तर पर समझने की भी पहुंच बनानी चाहिए।हम सब तो तथ्यों की यथार्थता तक स्थूलता की असलियत तक ही ठीक ढंग से नहीं पहुंच पाते हैं। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर। गुरु:साक्षात् परम ब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः। । गुरु पूर्णिमा अर्थात् महर्षि वेदव्यास जी की जयंती इस वर्ष 24 जुलाई को आ रही है। आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था, क्योंकि इनका जन्म गंगा के बीच में बने एक द्वीप पर हुआ था। इसलिए इन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहते हैं। महर्षि वेदव्यास असाधारण संत थे। उन्होंने वेदों को ज्ञान, कर्म, भक्ति व उपासना के आधार पर चार भागों में बांटा था। महाभारत महाकाव्य के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी ही थे। महर्षि वेदव्यास महाभारत काल के प्रत्यक्षदर्शी रहे थे। इसी कारण गुरुओं में सबसे श्रेष्ठ नाम इन्हीं का आता है और इन्हीं की जन्म जयंती पर गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। यह दिन गुरु पूजन के लिए श्रेष्ठ माना गया है। जिन व्यक्तियों ने गुरुओं को माना हुआ है। उस दिन गुरु दर्शन करके उन्हें गुरु दक्षिणा देते हैं। इसके बाद भोजन करते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुरु के बिना मुक्ति नहीं होती। लेकिन शर्त यह है कि गुरू निष्काम एवं निष्पक्ष होना चाहिए। इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई को प्रातः 8:07 तक ही है। अर्थात उदय काल में पूर्णिमा विराजमान है। इसलिए गुरु पूर्णिमा का पर्व सारे दिन मनाया जाएगा। गुरु पूर्णिमा शनिवार को है। शनिवार को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र दोपहर 12:39 तक है जो राक्षस योग का निर्माण करता है। ऐसे में गुरु पूजन करना श्रेष्ठ नहीं होता है। गुरु पूजन का शुभ मुहूर्त 12:40 से 16:39 तक उत्तम रहेगा। गुरुओं से आशीर्वाद लेना,उनका पूजन करना, सम्मान करना, उपहार देना यह सब गुरु पूजन के अंतर्गत आते हैं और गुरु के बताए हुए नियमों पर चलना ही मानव का कर्तव्य है। इस दिन पूर्णिमा प्रातः 8:07 बजे तक ही है इसलिए इस दिन पूर्णिमा स्नान का महत्व है। पूर्णिमा का व्रत एवं दान आदि एक दिन पूर्व अर्थात 23 जुलाई को करेंगे। बहुत से हिंदू परिवारों में इस दिन व्रत रखा जाता है और सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है। यह एक दिन पूर्व 23 तारीख को संपन्न होगी। व्रत समापन (परायण) के समय शाम को पूर्णिमा होनी चाहिए तभी चंद्रमा को अर्घ्य दे कर व्रत खोल लेना चाहिए । इस बार 24 जुलाई कक गुरुपूर्णिमा है।इस दिन ही पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी का जन्म दिन है। जो दक्षिण के एक ब्राह्मण परिवार से थे और सहजमार्ग राजयोग में सन्त आत्मा थे। समस्त गुरुओं, सन्तों, सन्त व ब्राह्मण आत्माओं को नमन!! #अशोकबिन्दु #चारीजी #चारीजीजन्मदिन #जुलाई24 #राजयोग


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