गुरुवार, 11 जून 2020

अल्पसंख्यक ,समाज व तन्त्र::अशोकबिन्दु

एक शब्द - अल्पसंख्यक!
इस मामले में हम तन्त्र व समाज के आचरण से परेशान हैं।
हमारे लिए अल्पसंख्यक वह है जो परिवार, पास पड़ोस, गांव, शहर में अलग थलग है।
 कणाद अलग थलग थे, गनीमत राज्य उनका सम्मान करते थे।उनकी विद्वता को पूजते थे।
अपने समय में ईसा मसीह अलग थलग थे।
हम तो  मो0 साहब को भी उनके समय में  उनको भी इस समाज में अलग थलग मानते हैं।
हमें अब भी पास पड़ोस, समाज में लोग अलग थलग लोग मिल जाते है।
दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था- समाज में अकेला खड़ा व्यक्ति भी तंत्र का हिस्सा होना चाहिए।
लोहिया ने कहा था- कि तन्त्र ऐसा होना चाहिए कि बहुसंख्यकों के बीच अकेला व्यक्ति भी सीना तान कर चल सके।अपने विकास को स्वतंत्र अवसर में सहयोगी हो।

कुमार विस्वास कहते हैं-हमारा सँघर्ष तो कुपढ़ों व अनपढ़ों से है।

देश के अंदर 100 व्यक्तियों /एक मजहब एक जाति के लोगों के बीच एक अकेला व्यक्ति /एक गैर जात गैर मजहब का व्यक्ति भी स सम्मान जीवन व्यतीत कर सके, तभी लोकतन्त्र है।


भीम राव अम्बेडकर कहते हैं -सामाजिक लोकतंत्र, आर्थिक लोकतंत्र अति आवश्यक है।


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