रविवार, 7 जून 2020

धर्म से ही दूर मानव लेकिन जीवन भेद से अभेद की यात्रा:अशोकबिन्दु


[6/8, 5:56 AM] Akv bindu/कबीरा पुण्य सदन:

 प्रश्न:धर्म क्या है?
उत्तर:धर्म ( पालि : धम्म ) भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में किसी समतुल्य शब्द का पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य'सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिये'। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।



प्रश्न:धर्म व रिलीजन में क्या अंतर है?

उत्तर:
क्या रिलिजन (Religion), धर्म (Dharma) के समान है ?
अक्सर यह देखने और सुनने को मिलता है, की लोग रिलिजन (Religion) और धर्म (Dharma) की चर्चा मैं उलझे हुऐं हैं, ऐसे मैं जब हम रिलिजन और धर्म में कोई अंतर नहीं कर पाते।




रिलिजन एक अंग्रेज़ी शब्द है, जिसको जानने के लिए हमें पश्चिमी सामाजिक दर्शन के संदर्भ को भी समझना होगा । रिलिजन का अर्थ वह सभी धार्मिक रीति रिवाज जो हमें उस रिलिजन की सुप्रीम शक्ति से जोड़ता है । रिलिजन एक संस्था की तरह काम करता है, जिसके भीतर अनेकों विभाग होते हैं । अगर आप गौर से देखें तो, आपको, हिन्दू धर्म, इस्लाम, सिख, ईसाई, जैन, आदि को आप अलग अलग विभाग समझ सकतें है, जिस मैं हर एक रिलीजियस ग्रुप ने  धर्म और रिलिजन को अपने अपने तरीके से परिभाषित किया है, और इस सभी को हम पश्चिमी या भारतीय रिलीजियस सन्दर्भ मैं समझ सकतें हैं  ।




रिलिजन और धर्म के बीच एक बहुत गहरा अंतर है और दोनों एक दूसरे से भिंन हैं । रिलिजन एक सोशल कंस्ट्रक्शन है, जिसकी हम जांच पड़ताल करने पर यह पता लगा सकतें हैं  की किस ने इसे जन्म दिया है या किसके द्वारा यह स्थापित किया गया है । रिलिजन मैं बहुत सारे लोग एक ईश्वर की पूजा करते हैं । जब उनको लगता है की उन्हें दूसरा रिलिजन अपनाना है तो वह चेंज भी करते हैं । रिलिजन की स्थापना एक धार्मिक आंदोलन से भी हो सकती है । सरल शब्दों मैं रिलिजन विश्वासो और अनुष्ठानों का एक सेट है ।





दूसरी और धर्म जिंदगी जीने का एक तरीका है । सभ्यता के शुरुवात से ही धर्म एक तरह की शिक्षा है, जो हमें जीवन जीने के तरीकों से परिचय करवाती है । धर्म हमें सिखाता है किस तरह से समाज मैं रहना है, एक दूसरे से व्यवहार करना है, आदि । उदहारण के लिए धर्म विभिन्न चरणों पर आधारित है जो एक व्यक्ति अपने जीवनकाल, यानी जन्म, बचपन, युवा, वृद्धावस्था और मृत्यु में गुज़रता है। धर्म सत्य है या धर्म धार्मिकता है। अगर कर्म धार्मिक कार्य है, तो धर्म धार्मिक निर्णय है। धर्म का प्रचार नहीं किया जाता है। हम किस रिलिजन मैं जन्म लेते हैं, यह शायद हमारे हाथ मैं नहीं होता, लेकिन हमारा जीवन कैसा हो, यह हमें धर्म सिखाता है ।





वर्तमान मैं लोग रिलिजन को ही धर्म समझ लेते है और इसपर तरह तरह की टिप्पणियां करने लग जाते है । प्राचीन काल में प्रचलित धर्म और वर्तमान समय में प्रचलित अभ्यास की तुलना में बहुत अंतर है। अब रिलिजन धर्म के साथ समानार्थी बन गया है। लेकिन यह रिलिजन धर्म नहीं है।





प्रश्न:भारतीय साहित्य में धर्म क्या है?उसके लक्षण भी बताओ।

उत्तर:
 धर्म ( पालि : धम्म ) भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन की प्रमुख संकल्पना है। 'धर्म' शब्द का पश्चिमी भाषाओं में किसी समतुल्य शब्द का पाना बहुत कठिन है। साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य'सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिये'। हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, जैन या बौद्ध आदि धर्म न होकर सम्प्रदाय या समुदाय मात्र हैं। “सम्प्रदाय” एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।





मनुस्मृति  6 /92 में धर्म के दस लक्षण बताये गए हैं ।

धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥

1 – धृति ( धैर्य रखना, संतोष, )

2 – क्षमा ( दया , उदारता )

3 – दम ( अपनी इच्छाओं को काबू करना , निग्रह )

4 -अस्तेय ( चोरी न करना , छल से किसी चीज को हासिल न करना )

5 -शौच ( सफाई रखना , पवित्रता रखना )

6 -इन्द्रिय निग्रह ( इन्द्रियों पर काबू रखना)

7 -धी ( बुद्धि )

8 – विद्या (ज्ञान)

9 – सत्य ( सत्य का पालन करना , सत्य बोलना )

10- अक्रोध ( क्रोध न करना )


@अशोकबिन्दु



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