शनिवार, 27 जून 2020

हमारा भविष्य और भावी विश्व सरकार: भाग 01

त्रिकाल दर्शी!

अतीत,वर्तमान व भविष्य;तीनों काल का दर्शी!

जीवन एक यात्रा है।

याद कर रहे हैं -एक ट्रेन सफर।
खिड़की से हर दृश्य बदला दिखता है।
हम  अपने रुचि के हिसाब से दॄश्य नहीं देख सकते।

सफर में खिड़की से अनेक दृश्य दिखते हैं।
हम ये उम्मीद नहीं रख सकते कि जो बेहतर दृश्य या आकर्षक दृश्य है, हमें फिर से दिखाई दे।
ऐसा ही जीवन का सफर है।

किसी ने कहा है,जो वर्तमान में संतुष्ट नहीं है या वर्तमान में तटस्थ नहीं है वह भविष्य में संतुष्ट हो सुकून को प्राप्त हो आवश्यक नहीं
है।
 त्रिकालदर्शी वह जो अतीत वर्तमान भविष्य को देखता है जीता है सोचता नहीं ।
जो है सो है ।
राजा दशरथ ,ऋषि विशिष्ट आदि सब जानते थे कि भविष्य में क्या होने वाला है? लेकिन उसके हिसाब से सुप्रबंधन न  कर पाए।

 सन 2011 से 25 तक का समय विश्व के इतिहास में महत्वपूर्ण समय होने जा रहा है। जिस के संबंध में 100 साल पहले 500 वर्ष पहले लिखा जा चुका है ,संतो ने भविष्य के बारे में लिख दिया है ।क्या होगा वास्तव में? जीवन प्राकृतिक है जीवन की आवश्यकता है भी प्राकृतिक हैं ।लेकिन हमने उस पर बनावटी ,कृत्रिम स्थितियां डाल दी है ।
शुद्धोधन को भी पता था कि हमारा बेटा संत सम्राट बनेगा लेकिन उसका प्रबंधन उसे सन्त सम्राट बनने से रोक नहीं पाया ।
साधना करके हम अपनी चेतना और समझ को इतना विस्तृत कर लेते हैं या कर सकते हैं कि अतीत व वर्तमान के आधार पर भविष्य का भी दर्शन कर सकते हैं। ये दर्शन सभी प्राणियों में उपस्थित है ।आत्मा को हम ज्ञान भी कह सकते हैं ,ज्योतिष भी कह सकते हैं।


22जून-29जून 2020!
गुप्त नव रात्रि पर्व!

अंतहीन प्रसार ही प्रेम है!

 अर्द्ध निद्रा में हम महसूस कर रहे थे। हमने महसूस किया अंतहीन प्रसार ही प्रेम है।वक्त सुबह 3:00 का था ।उठने के बाद मोबाइल को हम देख रहे थे। इस वक्त मोबाइल में अति व्यस्तता हमारे स्वास्थ्य को बिगाड़ रही है।
जहर !
बुद्ध ने कहा है - अति ही जहर है।

 24 - 24 घंटे में एक एक बार हम 48 घंटे में दो बार अपने दाएं हाथ से एक 2 सेकंड के लिए गर्मी निकलते महसूस कर रहे थे ।

आंख बंद कर बैठ हम इन 5 वर्षों में आंतरिक दशा को बेहतर होने की ओर देखने लगते हैं। लेकिन स्थूल शरीर से हम अपने को परेशानी में बढ़ते महसूस कर रहे ।

 हमें ध्यान आया ,
अरविंद घोष की पत्नी, उनको लोग माता जी कहकर पुकारते थे ।
एक साध्वी बोली थी ,हमारा मन निर्मल एवं पवित्र कर दो ।
माताजी टालती रही ।
साध्वी जब अड़ी रही, तो माता जी ने उनका मन रख लिया।समय गुजरा, उस साध्वी का मन निर्मल व पवित्र होने लगा लेकिन हाड़ मास शरीर में विकृतियां आने लगीं।


पुराने कर्मों , जटिलताओं आदि को एकदम एक साथ निकलना क्या कष्टकारी हो सकता है ।कोशिश करो। धीरे-धीरे अनियमितता से वर्तमान में साधना का ईमानदारी से पालन करो।
 जो हो गया वह हो गया। उसको तो झेलना ही होगा ।
वक्त गुजर ही जाता है ।


वर्तमान में जो धर्म नेता ,तांत्रिकों ,संतों का सहारा सिर्फ शारीरिक कष्टों को दूर करने ,अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए करते।
 जरूरी नहीं कि उनका सूक्ष्म शरीर, आत्मा के माध्यम से जगत मूल में बैठ सके?


राम कृष्ण परमहंस, विवेकानंद आदि  सफल साधकों को भी अपनी स्थूल शरीर से कष्टों को झेलना पड़ा था ।कुछ संतों का तो मानना है-- कष्ट ,परेशानियां आए तो झेल लो।

 परमात्मा को मत भूलो

बाबू जी महाराज कहते हैं  - "चिंताए और तकलीफें तभी उत्पन्न होती हैं जब हमारी मर्जी और ईश्वर की मर्जी में द्वंद होता है। द्वंद का होना इस बात का प्रभाव है कि सच्ची भक्ति की कमी है।
 हमें किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए अपने सही और निष्पक्ष निर्णय द्वारा चीजों को सही तरीके से समझते और परखते हुए अपने साहस और सत्य का उपयोग करना चाहिए।
 हमें किसी भी हालत में अपने पूर्वाग्रह ,पसंद और आकर्षण को हॉबी नहीं होने देना चाहिए।
 किसी भी वस्तु को उसकी गुणवत्ता के आधार पर लेना चाहिए कि क्या सही है और उचित है? इसमें हमारी पसंदगी का कोई स्थान नहीं है।......... दुख और चिंताएं जैसा कि हम समझते हैं तभी आती हैं जब हम कर्म के वास्तविक कर्ता स्वयं को समझते हैं ।लेकिन सोच ,वास्तविक भक्ति के लिए काफी कम है समर्पण की तो बात ही छोड़ दीजिए। चिंताएं और तकलीफें तभी उत्पन्न होती हैं............।"




इस स्थूल शरीर से बाहर निकलते हैं तो इससे पहले ही ये स्थूल शरीर भी संकेत करने लगता है।
 30 -40 वर्ष की बाद शरीर क्षय या कमजोर होने लगता है ।जो शरीर नाशवान है ,नष्ट हो जाना है उसके लिए हम अपना पूरा जीवन खफा देते हैं। और जो नाशवान नहीं है हमारी आत्मा या आत्मा की जगह कुछ और.... उसके साथ हम कब खड़े होते हैं ?
प्राण निकलते भी हमारी क्या तैयारी होती है भविष्य की?



एक बच्चा शिक्षा ग्रहण कर रहा है इसलिए सिर्फ स्थूल शरीर के प्रबंधन के लिए। लेकिन सूक्ष्मप्रबंधन ,कारण प्रबंधन ...?
हमरे स्तर 3 हैं- स्थूल, सूक्ष्म और कारण ....लेकिन जीवन किस में खफा दे ते हैं? हम तुम्हारी सोंच ,विचार, आचरण को प्रेरणा स्रोत माने या तुम्हारे ग्रंथों एवं महापुरुषों  को ?
वर्तमान में हमें सहारा चाहिए सारथी चाहिए ।
वर्तमान में अनेक महापुरुष हैं, हर स्तर पर है। हम तुम उनके विरोध में खड़े हो इससे काम नहीं चलता।
 तुम्हारे ग्रंथ और तुम्हारे महापुरुषों की वाणियों के आधार पर जो चल रहा है तुम्हारे अपेक्षा वह हमारा प्रेरणा स्रोत क्यों ना हो ?

तुम्हारे द्वारा यह कहने से काम नहीं चलता कि वह वर्तमान महापुरुष कुछ नया क्या कहे रहा है ?
कुछ नया क्या कर रहा है ये तो हमारे ग्रंथों में है ।इससे क्या ?चलो ठीक है तुम्हारे ग्रंथ हैं तुम्हारे महापुरुष थे जिन पर वर्तमान महापुरुष चल रहा है ।लेकिन तब भी तुम हमारे और हमारे वर्तमान महापुरुष के विरोध में आखिर क्यों खड़े हो ?तुम इस बात को स्वीकार क्यों नहीं करते हम रोज मर्रे के जीवन में जो सोचते हैं कहते हैं करते हैं उसका विरोध तुम्हारे ग्रंथ ही करते हैं तुम्हारे महापुरुष की बानिया करती हैं?
 आखिर तुम चाहते क्या हो ?
चलो ठीक है तुम कृष्ण को राम को सम्मान देते हो लेकिन ऐसा सम्मान क्या कि तुम उनके विचारों के विरोध में खड़े हो? दरअसल तुम पुरोहितवाद, जातिवाद आदि के साथ खड़े हो ।

ग्रंथों का, महापुरुषों के साथ जीवन नहीं जी रहे हो।

 तरक्की क्या है?
 हमारा विचार नजरिया का स्तर यदि ऊर्ध्वाधर नहीं है वह उर्द्धगामी नहीं है ,भूत से भविष्य की ओर नहीं है तो क्या तरक्की क्या तैयारी ?

 मन ,वचन और कर्म तीनों स्तर पर हमारी स्थिति क्या है?

 मन,मन की क्या स्थिति है?
 मन किधर भाग रहा है?
 साधना, शिक्षा, संविधान आदि के बावजूद मन किधर भाग रहा है?
 गुरु ,शिक्षकों ,पुलिस तंत्र के बावजूद मन किधर भाग रहा है ?
गुरु की कृपा ,शिक्षकों के संदेशों ,पुलिस के कार्यवाहियों के बावजूद भी मन किधर भाग रहा है ?ये मानसिक गुलामी क्या है?
 हमारा मन किसका गुलाम है ?हम सुरत्व में  हैं या असुर तत्व मे हैं?




वचन व कर्म की अभी यहाँ बात ही नहीं हो रही है।


उन बलात्कारियों की फांसी पर चढ़ा दिया गया?

अब सब पुरूष ,सब लड़के सुधर  गये?

मन क्या ग्रहण कर रहा है?


चेतन  व अचेतन का क्या हाल है?

शिक्षा कैसी?  शिक्षित कैसा?

मन के तल पर कहीं असुरत्व साज सज्जा के साथ बैठा मौका तलाश रहा है।


धन्य, मानव की शिक्षा व मानव का शिक्षा जगत?!









कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें