गुरुवार, 19 मार्च 2020

आदि काल से सन्त परम्परा रही है, जिसको हमने जीना पसंद नहीं किया::अब तो सँभलो!!आकस्मिक योग के मैसेज को पकड़ो!१

कभी आकस्मिक योग को समझा है। कुदरत हमें मैसेज दे रही है, क्या समझ रहे हो?हम कहते रहे हैं-वर्तमान तन्त्र,बनाबटों, पूर्वग्रहो आदि के रहते बदलाव नहीं हो रहे हैं, सुधार नहीं हो रहे हैं।हमारे वर्तमान तन्त्र कुदरत, जीवन को उसके ही भांति नहीं देख रहे हैं।वर्तमान में हम जिस व्यवस्था व नजरिया में यदि सन्तुष्ट, शांत नहीं हो रहे हैं और तब भी बदल नहीं रहे हैं तो इसका मतलब क्या है?हम कुदरत को कब तक असन्तुलित करेंगे? वर्तमान से जो कुदरत मैसेज देना चाह रही है,वह क्यों नहीं पकड़ते?कुदरत जब सन्तुलन करने चली तो तो तुम असन्तुलित होंगे ही।सन्त, महापुरुष को आचरण में कितना उतरते हो?अपनी आत्मा के गुण(धर्म) को कब पकड़ते हो...एक  कोरो-ना से आपकी व्यवस्थाएं चौपट हो रही हैं,मैसेज मिल रहा है---पकड़ो।हम जो नजरिया, आस्था, विचार, भाव आदि में जीते हैं......हम कहते रहे है:तुम्हारे ये जिस स्तर पर हैं उस स्तर से ऊपर भी अनेक स्तर हैं... अनन्त.... तुम्हारी बुद्धि सिर्फ चतुर्मुखी है, चतुरप्रवृति है...आत्मा अनन्त प्रवृति है.... अब भी समय है, सम्भल लो।जाति मजहब, धर्म स्थलों की राजनीति, सोच से ऊपर उठो..... हम देख रहे हैं आकस्मिक योग!!हम तीस साल
पहले भी वही थे जो आज थे।आप अपने को नहीं जानते ,हमें क्या जानोगे? हम मालिक को धन्यवाद देते हैं ,कुछ लोग कहने लगे है अब हमें आपकी कुछ कुछ समझ आ रही है..... विश्व बंधुत्व, विश्व सरकार...कुम्भ में सागर सागर में कुम्भ..... आदि आदि!!सदियों से संत परम्परा रही है।जिनका आपके पैगम्बरों/अवतारों/भगवानों ने भी सम्मान किया है।इतना न गिरो की जो सही है उसका हम सम्मान ही न कर पाएं.... उठो, अब भी वक्त है.....
#अशोकबिन्दु भैया

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