गुरुवार, 26 मार्च 2020

अपने को बचाने का अवसर धरती पर मानव का भविष्य बचाने का अवसर!!

हम कहते रहे हैं सन2011 से 2025 तक का समय काफी महत्वपूर्ण है।जय गुरुदेव /सन्त तुलसी दास ने इस समय के शुरुआत के साथ कहा था-दयाल का कार्य समाप्त हो गया है अब महाकाल का समय शुरू हो गया है। इस समय में फूंक फूंक कर कदम रखने की जरूरत है। अपने को बचाना होगा।अपने को बचाने का मतलब क्या है? हमारा हाड़ मास शरीर में तो बैसे भी गिरावट होना है।बात है स्वस्थ जीवन, मानव जीवन को बचाने की।
हम अपनी पूर्णता को समझें -स्थूल, सूक्ष्म व कारण।हम सिर्फ हाड़ मास शरीर  नहीं है।
            अभी तक अधिकतर व्यकित स्थूल समाधान व व्यवस्था में रहे हैं। हमारी शिक्षा भी स्थूल प्रबन्धन तक ही सीमित रही है।अब वक्त आ गया है कि हम सूक्ष्म प्रबन्धन की ओर भी बढ़ें।सूक्ष्म विज्ञान की ओर बढ़ें। विज्ञान की माने तो स्थूल जगत के सूक्ष्म प्रति प्रबन्धन के सम्बंध में ही हम अनजान हैं।विज्ञान कहता है-विषाणु व जीवाणु इतने छोटे होते हैं कि एक सुई की नोक पर तीन लाख संख्या आ जाती है। हम अनजान हैं कि हम जहां पर हैं वहां करोड़ो ये सूक्ष्म कण होते हैं।  जो सूक्ष्म ऋणात्मकता है उससे हम सूक्ष्म प्रबन्धन से ही निपट सकते हैं। स्थूल उपाय तो करने ही हैं।अस्वस्थता क्या है?असन्तुलन।हमारे अंदर असन्तुलन खड़ा होना। बुद्ध ने कहा है-अति ही विष है।असन्तुलन या अस्वस्थता का मतलब है-किसी की अति और किसी की न्यूनता। अभी तो हम अपनी सम्पूर्णता से ही जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

               कमलेश डी पटेल कहते है - अपने सूक्ष्म जगत के प्रबन्धन के लिए हमें प्रशिक्षित होना है। वर्तमान शिक्षा मानव को सूक्ष्म प्रबन्धन की योग्यता नहीं सिखाती। हार्टफुलनेस एजुकेशन हमें स्थूल, सूक्ष्म व कारण तीनों के योग/ सम्पूर्णता को सिखाती ही नहीं उस दशा में ले जाती है जो धीरे धीरे हमारा व्यक्तित्व बदलने में सहायक होती है।वह हमारे चेतना व समझ को चेतना के अग्रिम बिंदु की ओर निरन्तर रखती है। आत्मा अनन्त प्रवृतियां रखती है है।ऐसे में गिनती लायक प्रवृतियां रखने वाले घटकों से हम उबरते हैं।सूक्ष्म से सूक्ष्म, सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतर से सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतर से और सूक्ष्मतर में जाने की ओर बढ़ते हैं।जहां विकासशीलता है विकसितता नहीं, निरन्तरता है। ऐसे में हम स्थूल समस्याओ से ऊपर उठते है।स्थूल की जो प्रकृति है ,उसे हमे स्वीकार करना ही होगा।कोई बीज अंकुरित हो पौधा बनेगा ही, पेंड बनेगा ही,बूढा होगा ही।लेकिन उसकी चेतना यात्रा आगे तक जाती है।


                  जहां पवित्रता है वहां आत्मा का प्रकाश है, मौन में उसका साक्षात्कार है। जगत मूल से जुड़ने के बाद हम स्वयं अपने शरीर प्रकृति के ही नहीं जगत प्रकृति के राजा होने की संभावनाएं तैयार कर सकते हैं। बाबू जी महाराज में कहा था-आध्यत्म व्यक्ति को शेर बनाता है।गीता में श्रीकृष्णमध्यम महाकाल सन्देश क्या हैं?
हे अर्जुन(अनुरागी) उठ।दुनिया के धर्मो को छोंड़ मेरी शरण आ जा।तू भूतों को भजेगा तो भूतों को प्राप्त होगा, पितरों को भजेगा तो पितरों को प्राप्त होगा, देवों को भजेगा तो देवों को प्राप्त होगा, मुझे भजेगा तो मुझे प्राप्त होगा। हमें अपने अंदर ही परम् आत्मा को पाना है।आत्मा को परम् आत्मा होना है।यही अनुशासन है।अपने प्रकृति पर नियंत्रण, यात्रा जारी रहना चाहिए.... सब ठीक होगा।

  हमें अपनी निजता/आत्मा के लिए अवसर देना ही होगा। अपने को अहसास करने को वक्त देना होगा।

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