मंगलवार, 1 सितंबर 2020

बाबूजी ने कहा है कि विज्ञान में धर्म से अधिक अंधविश्वास हैं:: पार्थसारथी राजगोपालाचारीजी

 

एट पुस्तक है -'वे, हुक्का और मैं'।

" जिसमें श्री पार्थ सारथी राजगोपालाचारी द्वारा दिए गए भाषण संकलित हैं । जिसके पृष्ठ 45 पर कहा गया है बाबूजी महाराज के साथ हुई मेरी शुरू की वार्ताओं में से एक में उन्होंने इसका खंडन किया था उन्होंने कहा विज्ञान में धर्म से अधिक अंधविश्वास है।"


हम (अशोकबिन्दु) किशोरावस्था से ही जितना पढ़े है न उससे ज्यादा चिंतन मनन किए है। किसी ने कहा है विद्यार्थी वही है जिसकी समझ, नजरिया शिक्षा व पाठ्यक्रम के विषयों पर चिंतन मनन की ओर अग्रसर होती है न कि सिर्फ रटना। हम इन दिनों 'वे, हुक्का और मैं' का दूसरी बार अध्ययन कर रहे हैं।


 पृष्ठ 45-46 पर का जो है, उसे अपने हिसाब से हम लिख रहे हैं।

फ्रायड जिसने विज्ञान को आधार बनाया और कहा धर्म बहुत सारी बातों की व्याख्या उस प्रकार नहीं कर सकता जिस प्रकार विज्ञान कर सकता है एक प्रसिद्ध कहावत है जिसके अनुसार विज्ञान केवल यह बता सकता है चीजें कैसे घटित होती हैं परंतु इस प्रश्न क्यों का उत्तर वह नहीं दे सकता क्लोरो क्लोरोफिल हरा होता है क्लोरोफिल हरा क्यों होता है विज्ञान इसका उत्तर नहीं दे सकता तीन टांगे क्यों नहीं तीन टांगों वाली किसी चीज से हमारा सामना नहीं हुआ है शिवाय स्टूल के दो टांगे चार टांगे खेता में 1000 टांगों वाला जिओ कनखजूरा लेकिन तीन टांगे नहीं शिवाय वैज्ञानिक काल्पनिक उपन्यासों के तो देखिए हम तो यह कहेंगे यह धारणा रखना अपने आप में एक प्रकार का अंधविश्वास है विज्ञान सारे प्रश्नों के उत्तर दे दे देगा मुझे याद है एक बार डॉ वरदाचारी अंधविश्वास की व्याख्या कर रहे थे जो दो शब्द सूपर और स्टीशिया से बना है:कोई चीज जो किसी अन्य चीज के आधार पर खड़ी है,और जिस आधार पर खड़ी है, उसी पर अपना प्रभुत्व प्रदर्शित कर रही है। तो हम विज्ञान का आधार ले कर खड़े हैं और दावा करते हैं कि विज्ञान में कोई अंधविश्वास नहीं हैं।बाबू जी के साथ हुई मेरी शुरू की वार्ताओं में से एक में उन्होंने इसका खंडन किया था,उन्होंने कहा, " विज्ञान में धर्म से अधिक अंधविश्वास है।"



धर्म में जो अंधविश्वास है बे कम से कम न्याय संगत तो हैं जो हमारी सहायता करते हैं जैसे आप ईश्वर से प्रार्थना करते हैं आपको कुछ राहत मिलती है लेकिन विज्ञान में कभी कोई राहत नहीं है कोई आदमी पागल हो जाता है और वहां कोई राहत नहीं है विज्ञान बताता है वह पागल कैसे हो गया मेरा मतलब है विज्ञान स्पष्ट करने का प्रश्न करता है वह सदमे में था वह उस सदमे में था लेकिन उससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकता तो हमें बहुत सतर्क रहना होगा हम विज्ञान का उपयोग किस प्रकार करते हैं और इसीलिए बाबू जी ने एकदम शुरू से ही कहां है अगर तुम आध्यात्मिक बनना चाहते हो तो बुद्धि को दरकिनार कर दो अभ्यासी कि जीवन में बुद्धि का कोई स्थान नहीं है आपकी सांसारिक जरूरतों के लिए क्या मैं आलू खरीदो या पनीर क्या मैं इस लड़की से शादी करूं या उस लड़की से क्या नौकरी के लिए मैं जर्मनी जाऊं या टोक्यो इन सब के लिए जहां तक संभव हो सके आपको अपनी मानसिक शक्ति का उपयोग करना चाहिए क्योंकि वहां भी भाग्य कहां जाने वाला घटक आड़े आता है और वह उनकी योजना होती है जो आप की योजना के विरुद्ध हो सकती है या शायद आप की योजना के अनुरूप हो सकती है इसलिए बाबूजी महाराज में एक बार मुझसे कहा था सारी अप्रत्याशित घटनाएं ईश्वरी योजनाओं के अनुरूप होती हैं जबकि हमारी हर योजना दुर्घटना बन सकती है ।



हमें एक बात अवश्य समझ लेनी चाहिए हमारी हर गतिविधि नियंत्रित होती है चाहे हम समर्पण करें या ना करें इस प्रकार के जीवन के अनुरूप सबसे बढ़िया उदाहरण अंतरिक्ष यात्री का जीवन है।




 हम भारतीय ईश्वरी आदेश का पालन करने के लिए मानव आदेश पर संदेह करने के आदि होते हैं क्योंकि मानवी आदेश निश्चित रूप से मानवीय सोच मानवी अभिलाषा ओं मानवी उत्कंठा ओं और अधिकार करने की मानवी इच्छाओं पर साथ ही लूटने की चुराने की जन्मजात मानवीय प्रवृत्ति पर भी आधारित होते हैं।



पृष्ठ 334 पर कहा गया है--" हम यहां भौतिक संसार की बात नहीं कर रहे हैं । हम यहां आध्यात्मिक क्षेत्र के बात कर रहे हैं ।ईश्वर का क्षेत्र - जो आकाश और काल के परे होता है ,जहां आइंस्टीन का असीमितता का सिद्धांत लागू होता है। ठीक है , और आत्माओं को ले आओ ,आत्माएं दूसरे अनगिनत स्थानों पर चली जाएंगी और आपके पास असंख्य आत्माओं के लिए फिर भी स्थान उपलब्ध रहेगा। "


आध्यात्मिकता कहती है," आपका कुछ नहीं है । आपकी कोई इच्छाएं नहीं है। आपसे इच्छाएं रखने की अपेक्षा नहीं की जाती । आपसे अभिलाषा रखने की अपेक्षा की जाती है।" इच्छा संग्रह के लिए होती है जबकि अभिलाषा विकास के लिए होती है । आप विकास करते हैं, नियम इसकी अनुमति देता है।" जैसा  पोर्शिया ने कहा," कानून इसकी इजाजत देता है , अदालत इसे प्रदान करती है।"और ईश्वरी अदालत कहती है, " हां, मेरे पुत्र, विकास करो, तुम्हें इस का हक है । हर सीमा से आगे विकास करो क्योंकि विकास की कोई सीमा नहीं होती।" अर्थशास्त्र में एक पुस्तक है,जिसका नाम है ' विकास की सीमाएं '। परंतु इसलिए कानून के अंतर्गत ऐसा नहीं है। वहां विकास की कोई सीमा नहीं होती। जितना भी विकास कर सकते हो,करो।" " लेकिन, क्या वह इसके लिए स्थान होगा?" मेरे पुत्र, पृथ्वी पर अगर 40 लाख आबादी और बढ़ जाए तो आप एक दूसरे को समुद्र में धकेलने लगेंगे,हम यहां भौतिक संसार की बात नहीं कर रहे हैं यहां हम आध्यात्मिक क्षेत्र की बात कर रहे हैं। यहाँ हम आध्यत्मिक क्षेत्र की बात कर रहे हैं,ईश्वर का क्षेत्र - जो आकाश और काल के परे होता है, जहां आइंस्टीन का असीमितता का सिद्धांत लागू होता है । ठीक है ,और असंख्य आत्माओं को ले आओ , अन्य आत्माएं दूसरे अनगिनत स्थानों पर चली जाएंगी और आपके पास असंख्य आत्माओं के लिए फिर भी स्थान उपलब्ध रहेगा ।" तो आज सुबह मुझे बस इतना ही कहना है।




श्री पार्थसारथी राजगोपालाचारी
















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