गुरुवार, 3 सितंबर 2020

बाबू जी महाराज ,क्रमिक विकास व पल्ला झड़ना :अशोकबिन्दु


 पृष्ठ - 295-296,

रामचन्द्र की आत्मकथा भाग-2,

रामचन्द्र की सम्पूर्ण कृतियाँ!

" अपने को इस तरह प्रदर्शित करो कि लोग तुम्हारा आदर करने लगे । तुम्हारे अनादर का अर्थ सारे संतो और मुक्त आत्माओं का अनादर है। तुम्हारी अवज्ञा करने वालों को प्रकृति दंड दे सकती है। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम्हारी ऊंची उपलब्धियां लोगों के सामने उजागर रहे ।तुम्हारे अंदर दिव्य शक्तियों की भीड़ लगनी शुरू हो गई है ।खुश रहो।"



पृष्ठ 295 - 296 पर जो दिया गया है, वह यहाँ कह रहे हैं।

"08जून1945: पूज्य लालाजी ने जनसाधारण को आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने की विधि बताइए हिंदुओं के धार्मिक इतिहास के अंधकार कोण युग में विधि विस्मृत हो गई थी ऐसा कहा जाता है जी भगवान श्री कृष्ण इस विधि के आविष्कारक हैं बी है दूसरे के फूट शरीर का विचार उसके शरीर के कणों को बरकरार रखते हुए धारण करना चाहिए तब जिन्हें नैतिक गुणों की किसी भी व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है उनको उस शरीर के अंदर प्रणाहूति से ठेल देना चाहिए परंतु पहली पूजा में ही ऐसा ना करके कुछ समय बाद जब अंदर से प्रकाश का संकेत मिलने लगे तब करना चाहिए। भगवान श्री कृष्ण द्वारा एक आदेश दिया गया जो स्पष्ट नहीं था। लालाजी: " अब तुम्हारे अपने रुतबे के हिसाब से अपने को थोड़ा बदल लेना चाहिए। अपने को इस तरह प्रदर्शित करो कि लोग तुम्हारा आदर करने लगें ।तुम्हारे अनादर का अर्थ सारे संतो और मुक्त आत्माओं का अनादर है । तुम्हारी अवज्ञा करने वालों को प्रकृति दंड दे सकती है । इसलिए मैं चाहता हूं की तुम्हारी ऊंची उपलब्धियां लोगों के सामने उजागर रहे । तुम्हारे अंदर दिव्य शक्तियों की भीड़ लगनी हो गई है ।खुश रहो ।" इसके बाद स्वामी विवेकानंद:.........!"



अब हम(अशोकबिन्दु) कुछ वर्षों से हम कुछ घटनाएँ महसूस कर रहे हैं। जिसके लिए हमने ऊपर की पंक्तियों को लिखा है ताकि समाज में अपनी बात को मजबूती दिला सकें।हमारा एक स्तर होता है।दुनिया हमारे को जिस स्तर से आंकती है, उससे हट कर हमारा स्तर होता है।कोई ये भी कहता है-"हो कौन?क्या कोई अधिकारी, विधायक बगैरा हो?उच्च जाति से हो? " यदि ऐसा नहीं है तो भी क्या बड़े पूंजीपति हो,हमारा काम निकलने वाले हो?जमाने में जो जितना ऊंची हांकने वाला,अपनी उल्लू सीधा करने वाला, हां में हां मिलने वाला, हमारी बिरादरी, सम्प्रदाय, सोच, आचरण आदि में साथ खड़ा होने वाला। यदि ये सब नहीं तो ,मतलब ओर अरे, गधे को भी बाप बना लिया जाता है। ये सब सिर्फ हाड़ मास शरीर,हाड़ मास शरीरों ,बोलचाल तक,आवश्यकताओं तक। हम इससे आगे भी हैं?सामने वाला इससे भी आगे है... सच्ची नियति, सच्चा सौदा,पारदर्शीता, स्प्ष्ट छवि....आदि आदि ,इससे मतलब नहीं।अरे, चूतिया है।.....इससे आगे भी एके विचार धारा, भावना.... इससे भी आगे,और भी।लेकिन इससे मतलब नहीं। स्थूल, सूक्ष्म व कारण...... इसमें भी अनेक स्तर।स्तर में भी अनेक स्तर।चेतना व समझ के अग्रिम अनेक अनन्त स्तर ।अरे, उसकी कोई बात नहीं।टिकाऊ नहीं।स्थूल जगत में भी अनेक स्तर हैं।ऊर्जा या चेतना कभी इस बिंदु पर तो कभी उस बिंदु पर,कभी इस स्तर पर कभी उस स्तर पर, कभी उस चक्र पर,कभी उस चक्र पर। भीड़ में,अन्य के बीच अकेला खड़ा,कोई साथ नहीं।अकेले में लाड़ दिखते फिरते हैं?समाज में समाज की हां में हां, तब अकेला छोड़ दिया।चाहे उस अकेला व्यक्ति के साथ मानवता का, ईमानदारी का स्तर कितना भी उच्च हो? 



कुछ वर्ष पहले हम स्वप्न देख रहे थे, "वह लड़का कुछ ब्राह्मणों के खिलाफ खड़ा था, कुछ सच्चों के खिलाफ खड़ा था। हम अलग खड़े थे, एक समूह और था जो अलग खड़ा था।हम उस समूह द्वारा उस लड़के को कहीं लेजाते देख रहे थे।आगे जाकर उस लड़के का एक्सीडेंट हो जाता है।" इस स्वप्न को देखने के दूसरे दिन ही पता चलता है कि रेलवे लाइन पार करते वक्त वह एक ट्रेन से कट कर मर जाता है। 

इस घटना के एक साल बाद उन्हीं दिनों हम फिर स्वप्न देखते हैं, "गब्बरसिंह के मकान के पीछे दो यम दूत आते हैं और हमसे कहते हैं, चलो आओ। एक बालक हमें दूसरी जगह चलने को कहता है लेकिन हम उन दोनों यमदूतों के साथ चल देते हैं।एक यमदूत का फरसा हम अपने हाथ में ले लेते है।(www.ashokbindu.blogspot.com/अशोकबिन्दु भईया:दैट इज...?!पार्ट10/...) हम पश्चिम-पूरब की ओर कालोनी मध्य चल देते हैं।एक गली में पहुंच कर एक लड़के को पुकारते हैं।वह लड़का जब अपने घर से बाहर निकलता है तो हम उसे फरसा से काट डालते हैं।" इसी तरह के अन्य स्वप्न भी... पॉजीटिव स्वप्न भी।अभी कल भी एक स्वप्न्न। .....ये सब क्या है?

जो हम देखते हैं, सोंचतेहै, करते हैं.... वही सिर्फ दुनिया नहीं है। एक बार एक अखण्ड ज्योति पत्रिका में लिखा था, व्यक्ति अकेला नहीं होता, उसके साथ पूरा एक ग्रुप होता है। पन्द्रह साल पहले एक बार हम सुमित त्रिपाठी के साथ स्टेशन रोड पर निकले थे,फटकीया तक गए थे।हम सुमित से दूर, लोगों से दूर चलने लगे थे।हमें अपने साथ अतिरिक्त शक्ति नजर आ रही थी।हमने मालिक को धन्यवाद दिया।एक दुकान पर पहुंचे तो भी हम लोगों से दूर ही थे। "पास आ जाओ।"ठीक है।इसी क्षण हम कहीं पर बोले थे, व्यक्ति अकेला नहीं होता। एक साधक ने लिखा है कि साधना में सफलता के साथ जीवन यात्रा का मतलब है- सूक्ष्म यात्रा,सूक्ष्मतर से सूक्ष्म तर यात्रा की ओर बढ़ना... आगे बढ़ना।आत्मा जब गर्भ धारण करती है, तो उसके पास उस वक्त, उससे पूर्व व बाद की उसके पास योजना होती है। लेकिन शरीर धारण करने के बाद उन योजनाओं के साथ नहीं, उन योजनाओं के नीचे के स्तर की योजनाओं रूपी चादर से अपने/आत्मा को ढकते जाते हैं। गीता में-कर्म क्या है? कर्म है-यज्ञ।हर स्तर पर यज्ञ अलग अलग है।

"अजगर करे न चाकरी......!" एक कर्म ऐसा भी है, जो कर्म है भी नहीं।कर्म हो कर भी कर्म नहीं है।एक नेटवर्क है-आत्माओं का।आगे और.... अनन्त यात्रा का साक्षी...!! दुःख, सुख कब है?जब हम इंद्रियों में हैं, इच्छाओं में हैं।चेतना के सागर में...अनन्त यात्रा में तो हम सिर्फ कठपुतली है।"हमारा एक शुभेछु... हमारा लाडला... एक कोचिंग खोलता है, हम उद्घाटन में पहुंचते हैं.... हमारा मन फीका हो जाता है।पता चलता है कि वे चेयरमैन से उदघाटन करने को हैं?हम नेताओं के ज्यादा पीछे पड़ने के खिलाफ रहे हैं।अनेक सन्तों ने राजनीतिज्ञों से,राजनीति से अलग रहने को कहा है।हमें वहां रुकना चाहिए था, ये भी अभी आबश्यक है लेकिन हम नहीं रुके वहां।


पल्ला झाड़ना?!.....अरे, उससे पल्ला झाड़ लिया ठीक रहा।उसने उससे तलाक ले लिया, अरे ठीक रहा।उसे संस्था से आफिस से निकल दिया या ट्रान्सफर करवा दिया ठीक रहा।अरे, वह करता भी क्या?कब तक बर्दाश्त करता?मजबूरी थी उसकी उसका मर्डर करना।....लेकिन क्या ठीक रहा?!जीवन किस काल खंड तक ठीक?कब तक ठीक? भविष्य में इसका परिणाम?सूक्ष्म जगत, कारण जगत अभी शेष बचा है।

02अक्टूबर सन1869 ई0 को जन्मे मोहन दास बैरिस्टरी पास करने के लिए इंग्लैंड गए।और वहां माता के बताए हुए आदर्शों और निर्दशों का पालन किया।उनमें धार्मिक आस्था व सादगी का गहरा प्रभाव था। सन 1857 की क्रांति व अंग्रेजी, सामंती, जातीय अत्याचार एवं 1931 तक का समय....!? वर्तमान में जो है वह अतीत का परिणाम है।भविष्य में जो होगा वह हमारे वर्तमान का परिणाम होगा। वर्तमान में जो है वैसा भविष्य नहीं होगा।



ईसामसीह को सूली पर लटका दिया गया, सुकरात को जहर देकर मार डाला गया, गांव के उस ईमानदार ,सज्जन व्यक्ति को मार दिया गया........ आदि आदि?!क्या पल्ला झाड़ लिया?सुकून मिल गया?चैन मिल गया क्या? अमुख अमुख इंजीनियर, ठेकेदार, पत्रकार आदि मार दिया गया, आप समझते हो कि सुकून मिल गया?चैन मिल गया?पल्ला झड़ गया?जनता हितैषी डीएम ,एस डी एम,तहसीलदार आदि का ट्रांसफर करा दिया गया?बस, हो गया काम?जीवन कोई विशेष काल खंड तक ही सीमित नहीं है।जिससे हमारी सांसारिक इच्छाएं पूरी होती हैं,आवश्यक नहीं कि वही जगत, व्यवस्था, समूह के अलावा कुछ भी हमें प्रभावित करने वाला नहीं? आत्मा जब गर्भ धारण करती है तो उस वक्त व उससे पहले व बाद में उसकी अपनी योजना होती है।हम दुनिया की चकाचौंध में उस योजना को भूल जाते हैं।


दस साल पहले पूर्व में एक युवक को फांसी दे दी गयी।उसकी अंतिम इच्छा थी कि अगला जन्म मैं भारत में न लूं।उसे निर्दोष फंसा दिया गया था, मर्डर व रेप में। वास्तविक अपराधी क्या मौज में होंगे? हमें ध्यान है पिता जी के चाचा जी की मृत्यु हो गयी।पिताजी #प्रेमराज ने कहा था- चाचा गांव के अमुख अमुख परिवार में जन्म लेंगे।अब वह परिवार तबाह हो जाएगा। उस परिवार में चाचा पैदा हुए.... हालात ऐसे बने, वह परिवार बर्बाद हुआ।वह परिवार ने चाचा को काफी परेशान किया था, प्रताड़ित किया था।गांव के अन्य लोग भी। पल्ला झड़ता नहीं।हमारे साथ जो होता है, हम जो अन्य संग करते हैं-असर बहुत दूर तक जाता है।हम जो सिर्फ सोंचते है उस तक का असर दूर तक जाता है।


योगांग में पहला अंग-यम दूसरा अंग -नियम।यम दूत-सत्य, अहिँसा,अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य। नियम- पवित्रता, सन्तुष्टि, तपस्या, अध्ययन, समर्पण। इसका असर भी दूर तक जाता है। हम जो कर रहे हैं, उसका भी असर दूर तक जाएगा। अतीत से हम जो अपना सूक्ष्म ढोह कर लाएं हैं उसका असर वर्तमान में और जो हम वर्तमान में सूक्ष्म बना रहे हैं, उसका असर भविष्य में जाएगा। सूक्ष्म व कारण वर्तमान में भी कार्य कर रहा होता है लेकिन हमें होश नहीं  शारीरिक,इंद्रिक लालसाओं की चकाचौंध में।

बाबू जी महाराज ने कहा है कि ये हमारी भूल है कि जैविक क्रमिक विकास की पराकाष्ठा मानव है।हम यहां पर मानव के स्थान पर मानव के वर्तमान स्थूल, हाड़ मास शरीर, उसके लिए ही सिर्फ व्यवस्था हमारी पराकाष्ठा नहीं है।




यहां पर....



 पृष्ठ - 295-296,

रामचन्द्र की आत्मकथा भाग-2,

रामचन्द्र की सम्पूर्ण कृतियाँ!

" अपने को इस तरह प्रदर्शित करो कि लोग तुम्हारा आदर करने लगे । तुम्हारे अनादर का अर्थ सारे संतो और मुक्त आत्माओं का अनादर है। तुम्हारी अवज्ञा करने वालों को प्रकृति दंड दे सकती है। इसलिए मैं चाहता हूं कि तुम्हारी ऊंची उपलब्धियां लोगों के सामने उजागर रहे ।तुम्हारे अंदर दिव्य शक्तियों की भीड़ लगनी शुरू हो गई है ।खुश रहो।"

यहां पर हमें क्या प्रेरणा मिलती है? हम स्वयं ऐसा कार्य करे जिससे हमारा सम्मान हो। 'हमारा'....?! ये हमारा क्या है?इसके साथ ही हम जो कर देख रहे हैं, कर रहे हैं,हमारी इंद्रियों की जहां तक पहुंच है, हाड़ मास शरीर की जहां तक पहुंच है.......उससे आगे की यात्रा का साक्षी हुए बिना हम अपनेपन/आत्मियता की ही अपूर्णता में हैं। हम ये भी न समझे कि सामने वाले की अमुख अमुख की हमारे सामने क्या औकात?आप हम अपनी औकात को किस पैमाने से नाप रहे हैं?जन्मजात तथाकथित उच्चता,कुल की सम्पन्नता, धन बल, दबंग बल, माफियागिरी, पद, जातिबल, सत्ताबल, जनबल...... आदि आदि?!



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