रविवार, 6 सितंबर 2020

विज्ञान और आध्यात्मिकता::अशोकबिन्दु

 


पृष्ठ 139,

विज्ञान और आध्यात्मिकता,

पुस्तक-वे, हुक्का और मैं

बाबूजी महाराज!


" आज आधुनिक विश्व में या कहें कि विश्व मंच पर विज्ञान और आध्यात्मिकता पर बहस होती रहती है। क्या विज्ञान ऐसी कोई चीज है। मुझे ठीक से पता नहीं पर शायद शताब्दियों से पुनर्जागरण के समय से विज्ञान पूरी तरह से स्वीकृत हो चुका है। आरंभ में अंधविश्वास माना जाता था। उन दिनों मेरे विचार में विज्ञान और अंधविश्वास दोनों थे। क्या ये सच है कि बारूद से ...!?हां, परीक्षण द्वारा सिद्ध है ।जिस चीज का भी आप परीक्षण कर सकते हैं ।वह प्रमाणित हो जाती थी ।और विज्ञान की मांग यह है कि उसे सिद्ध किया जाए ।एक बार नहीं बार-बार ।चाहे जो भी उस परीक्षण को करें ।विज्ञान की समस्या यही है। मैं ईश्वर को अनुभव करता हूं ।मगर मुझे वह दिखाई नहीं देता । अरे,वह कुर्सी पर बैठे हैं लेकिन मुझे दिखाई नहीं देते ।जबकि विज्ञान में परीक्षा और परिणाम किसी के भी द्वारा और हर एक के द्वारा बार-बार दोहराने लायक होने चाहिए ।  "


पुस्तक'वे, हुक्का और मैं' के इस अध्याय -'विज्ञान और आध्यत्मिकता' की कुछ पंक्तियां हम ये लिख रहे है। ये पुस्तक हम अनेक केंद्रों, आश्रम व यहाँ तक कान्हा में भी तलाश कर चुके हैं लेकिन प्राप्त हुई है।जब हमें ऐसे पढ़ना होता है तो नगर में ही एक अभ्यासी श्री ब्रह्माधार मिश्रा के यहां से पढ़ने के लिए ले आते हैं। हां, तो-

"   और विज्ञान का दावा है कि वैज्ञानिक सब कुछ जानते हैं ।दार्शनिक अपने अंदाज में दावा करते हैं कि वह बहुत कुछ जानते हैं ।रहस्यवादी कभी-कभी भिखारी जैसे प्रतीत होते हैं ।तभी वे मौजूद होते हैं। कभी गायक ।और अपने बारे में बहुत कम बताते हैं। उनमें से बहुत  से संकोची और गंभीर स्वभाव के होते हैं। लेकिन उनमें असाधारण शक्तियां होती हैं । इससे सवाल उठता है कि क्या ज्ञान और शक्ति दो भिन्न चीजें हैं या जैसा हम समझते हैं या जैसा कि पाश्चात्य विज्ञान कहता है ।विज्ञान से ज्ञान प्राप्त होता है । यदि यह सच है तो फिर रहस्यवाद न होता न संत होते न ही ऋषि। तो फिर वही पुराना सवाल आता है - पहले अंडा हुआ या मुर्गी ? पहले बीज हुआ या वृक्ष? किसी ने मजाक में बाबू जी से पूछा इस बारे में आपका क्या ख्याल है पहले बीज निर्मित हुआ था या पहले वृक्ष बनाया गया था पहले बाबू जी ने कहा ईश्वर मूर्ख नहीं है कि अपने साथ में लेकर चले सैकड़ों हजारों पेड़ । और फिर जहां चाहा वहां लगा दिया। जबकि वह अत्यंत छोटे-छोटे बीज बना सकता था । और वह अपनी जेब में लाखों बीज लेकर चल सकता था । अतः जब हम ईश्वर को बुद्धिमान   मानते हैं जैसा कि पश्चिम के लोग कहते हैं, ईसाई धर्म कहता है। हमें मान लेना चाहिए था कि उन्हें इस सवाल का जवाब मालूम होगा। वास्तव में यह बात सच है । स्पष्ट है स्वत: ही प्रमाणित है कि ऐसे सवाल कभी पूछो ही नहीं जाने चाहिए थे। पर उन्होंने पूछा और मेरे बाबूजी महाराज ने इसका जवाब दिया ईश्वर मूर्ख नहीं है कि वह पेड़ बनाए और उन्हें साथ लिए लिए फिरता रहे। यह तो फ्रांसीसी चित्र कथा एस्ट्रिक्स की तरह है। जिसमें वह पीठ पर भारी भारी पत्थर लेकर चलता है। जो तय करता है कि वह गाल अर्थात फ्रांस देश का प्राचीन नाम को ढूंढ निकालेगा। और गाल को ढूंढ निकालता है । किस किस्म की समझदारी है ।उन्हें पता होता है कि वे क्या खोजने जा रहे हैं जो निहायत बेवकूफी की बात है ।क्योंकि हम किसी चीज के बारे में उसकी खोज ही जाने के बाद ही जानते हैं। फिर एस्ट्रिक्स    की खूब बिक्री होती है। कुछ लोग इसे कला मानते हैं ।कुछ ऐसे साहित्य मानते हैं ।इत्यादि इत्यादि। माइटी माउस , माइटी मैन इस सब चित्र कथाएं.... किसी न किसी प्रकार मानव को अपने पर्यावरण का अधिकार प्राप्त करने की इच्छा दर्शाती हैं। देखिए जब एस्ट्रिक्स के उस आदमी की बात करते हैं जो अपनी पीठ पर क्या कहते हैं उसे ?ओबेलिस्क?  हां - 'मेंहिर' - हम मान लेते हैं कि कुछ ऐसे लोग रहे होंगे जो अपनी पीठ पर 200 टन का बोझ लेकर चल सकते हो तो महान बनने की शक्तिशाली और ताकतवर बनने की मानवी आकांक्षा है। हमारे पुराणों की, शास्त्रों की सारी कहानियां, जो गधे के जबड़े की हड्डी की कहानी या वह गुलेल जिससे डेविड ने गोलियथ को मार डाला। इन सभी में या तो मानवी शक्ति मानवी कल्याण मानवीय श्रेष्ठता प्रदर्शित होती है। या फिर वे दिखाती हैं कि वह एक नरम स्वभाव वाला आदमी है दब्बू किस्म का आदमी है छोटा सा साधारण आदमी है जिसमें स्वयं   परमात्मा की शक्ति मौजूद है  जैसी डेबिट मे थी और जब गोलियथ आया उसने उसके ललाट पर इस तरह चोट की और गोलियां जैसा विशालकाय राक्षस मर गया । यही बात गधों के जबड़े की हड्डी की या फिर शेर की कहानी में है अतः या तो हमें शारीरिक श्रेष्ठता है या फिर मनुष्य में ईश्वर का वास होने के कारण उसे श्रेष्ठता प्रदान की गई है । उसे ईश्वरी सामर्थ्य का वरदान दिया गया है । बाइबिल में बे बार-बार कहते हैं-😢 हे इजराइल के ईश्वर ...! 

विज्ञान और धर्म के अनुसार हम इनमें से कोई एक  चुन सकते हैं या तो आप धार्मिक हो सकते हैं । पर इससे भी आपको ऐसा व्यक्ति होना पड़ेगा जिसने अपने को भुला दिया हो जो आप अपने लिए नहीं जीता जिसने स्वयं को सर्वशक्तिमान परमात्मा के प्रति समर्पित कर दिया हो और सब परमात्मा एक प्रकार से उस में प्रवेश कर जाता है । वह आवेशित हो जाता है किसी दुष्ट आत्मा से नहीं बल्कि स्वयं परमात्मा से । तब हम आध्यात्मिक व्यक्ति की सामर्थय देखते हैं। जो अपने समय  के महानतम शासकों से भी विरुद्ध खड़े हुए चाहे वह हिरोद हो या फिर सीजर हो। यही बात हम अपनी हिंदू परंपरा हिंदू धर्म में भी देखते हैं नन्हा प्रहलाद और उसका पिता राक्षस सम्राट । एक और दो सामान्य मनुष्य राम और लक्ष्मण दूसरी ओर रावण एक राजा । अपनी पूरी ताकत के साथ जिसमें तपस्या से प्राप्त किए गए , ऐसे वरदान की शक्तियां भी शामिल थी जिन्हें उनकी तपस्या के फलस्वरूप प्रसन्न होकर भगवान ने स्वयं प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा और उन्होंने जो भी वरदान माला उसके लिए कह दिया - तथास्तु । लेकिन जब उन्होंने मागा तो वे भूल गए तो वे भूल कर गए। प्रहलाद के पिता हिरण्य कश्यप ने कहा , न मैं घर के के अंदर मरूं न  बाहर ना जमीन पर न आसमान में न ठोस वस्तु से न तरल वस्तु से, न दिन में न रात में , न आदमी से और न ही जानवर से मारा जाऊं ," इत्यादि । और परमात्मा ने स्वयं नरसिंह रूप धारण कर यह संभव कर दिखाया । न आदमी न जानवर , उन्होंने उसे संध्या के समय मारा। जब न दिन था न रात । उन्होंने उसे देहरी पर मारा न । घर के अंदर न बाहर । उन्होंने उसे अपनी गोद में मारा न जमीन पर न आसमान में । अतः ईश्वर क्या कर सकता है ? हम सोच भी नहीं सकते । इसी प्रकार रावण ने भी कहा था- मैं न देवता से मारा जाऊं न असुर से, लेकिन नर और वानर जो इतनी मामूली और कमजोर थे कि उनके विषय में सोचना भी उसकी शान के खिलाफ था इसलिए मैं उसने उसे शामिल नहीं किया मैं नया वानर द्वारा ना मारा जाऊं और बे ही उसकी मृत्यु का कारण बने अतः यह परंपराएं रही हैं वह ताकतवर रावण वेदांती वेदों का ज्ञाता फिर भी ज्ञान उसके काम नहीं आया एक प्रकार से आप यहां ज्ञान और भक्ति साथ-साथ पाते हैं ज्ञान व्रत है उसे संपूर्ण ज्ञान था उसके पास भक्ति नहीं थी हालांकि उसके पास पृथ्वी की बड़ी से बड़ी शक्ति थी परंतु वह भी उसे अपने स्वयं के बिना से नहीं बचा सके दूसरी ओर हरियाणा कश्यप आप जो कुछ चाहा सकते हैं वे सारी शक्तियां उसके पास ही मगर जब उसके पुत्र ने कहा आपको नारायण से प्रार्थना करनी चाहिए उनकी शरण में जाइए तो उसने अपने पुत्र को अनेक बार मारने की चेष्टा की किंतु असफल ही रहा उसने उसे पहाड़ की चोटी से समुद्र में टिकवा दिया परमात्मा ने उसे अपने हाथों में आमलिया उसे महल के एक दुष्ट हाथों से कुछ अल्वा ने की कोशिश की गई अपनी सूंड उठाकर हाथी चिंघाड़ा और चला गया। तो,ऐसा विश्वास रक्षा करता है।"मेरा मालिक मेरी रक्षा करेगा"-क्या हममे वह विश्वास है? या की यह केवल एक मानसिक विचार भर है जो मौका आने पर अपना विश्वास सिद्ध करेगा लेकिन हम उसे मौका नहीं देना चाहते मैं एक व्यक्ति को जानता हूं जो यहां मद्रास में था जिसे दिल की कोई बीमारी हो गई थी और जिसने सेटिंग देना बंद कर दिया उसने बताया की उसके डॉक्टर ने कहा है तुम्हें दिल की बीमारी है तुम्हें सेटिंग नहीं देनी चाहिए तुम्हें ध्यान नहीं करना चाहिए और बाबू जी ने कहा देखो उसे पता है कि उसकी रक्षा करने के लिए मैं हूं मगर उसे विश्वास नहीं है मान लो मैदान के दौरान मर भी जाए तो इंसान के लिए क्या इससे बेहतर और कोई मृत्यु हो सकती है लोग मरने के लिए समाधि लगाते हैं ,और  वह ध्यान करने से डरता है कहीं मर ना जाए जबकि यदि वह ध्यान के दौरान मरता तो सीधे लक्ष्य पर पहुंचता देखिए व्यक्ति के ऐसे डर भी होते हैं हमें विश्वास होना चाहिए हम मुंह से बोलते तो हैं कि हमें विश्वास है मजा हमारे दिल में जरा भी विश्वास नहीं होता हमारे पास ताकत है मगर हम इसे इस्तेमाल नहीं कर पाते क्योंकि हम डरते हैं इस सामने वाले के पास हमसे ज्यादा ताकत है जबकि ईश्वर के सामने तो कुछ भी ठहर नहीं सकता अतः हम सब एक प्रकार से'सी-सॉ' की दुनिया में रह रहे हैं, जहां पर ना यह सच है ना वह कभी कभी वह और हम एक प्रकार से विज्ञान और अध्यात्म के बीच उलझे हैं आज आधुनिक विश्व में या कहें की विश्व मंच पर विज्ञान और आध्यात्मिकता पर बहस होती रहती है क्या विज्ञान जैसी कोई चीज है मुझे ठीक से पता नहीं पर शायद शताब्दियों से पुनर्जागरण के समय से विज्ञान पूरी तरह से स्वीकृत हो चुका है आरंभ में अंधविश्वास माना जाता था उन दिनों मेरे विचार से विज्ञान और अंधविश्वास दोनों थे क्या यह सच है बारूद से हां परीक्षण द्वारा सिद्ध है जिस चीज का भी आप परीक्षा कर सकते हैं वह प्रमाणित हो जाती थी और विज्ञान की मांग यह है कि उसे सिद्ध किया जाए एक बार नहीं बार-बार चाहे जो भी उस परीक्षण को करें विज्ञान की समस्या यही है मैं ईश्वर को अनुभव करता हूं मगर मुझे वह दिखाई नहीं देता अरे देवा कुर्सी पर बैठे हैं लेकिन मुझे दिखाई नहीं देते जबकि विज्ञान में परीक्षण और परिणाम  किसी के द्वारा भी और हर एक के द्वारा बार-बार दोहराने लायक होने चाहिए तो इस तरह की लड़ाई चलती आ रही है लेकिन अब ऐसे कहीं अधिक प्रमाण सुलभ हैं तथाकथित वैज्ञानिकों के द्वारा भी काफी हद तक स्वीकार किए जाते हैं और फिल्म  -"व्हाट द ब्लिप डू वी नो?' जिसमें क्वांटम विश्व, क्वांटम भौतिक विज्ञान की चर्चा की गयी है, उन्हीं सबके बारे में  है। उसमें कुछ बहुत सुंदर घटनाएं हैं; कैसे कोई चीज दो स्थानों पर या कई स्थानों पर हो सकती है आप देखते हैं एक लड़का फर्श पर एक बड़ी गेम को टप्पा मार्कर उछलता है और जब यह सब देखने वाली महिला ने निघा घुमाई तो देखा चारों ओर असंख्य में उछल रही हैं और बे कहते हैं की क्वांटम जगत है और वह क्वांटम वास्तविकता है यह कहीं भी हो सकता है हर जगह हो सकता है लेकिन जब हम गौर करते हैं हम गौर करने से उस वस्तु को एक जगह पर स्थिर कर देते हैं अब जैसे कि आज सुबह मैं अपने कुछ साथियों से बात कर रहा था इस विषय पर मैंने एक बात गौर की क्वांटम के क्षेत्र में चीजें हर जगह मौजूद मालूम पड़ती है हर जगह हो सकती हैं मगर ध्यान से एक जगह पर स्थिर कर देता है मुझे एक विचार आया ईश्वर भी हर जगह है सभी जगह है जब मैं उस पर गौर करता हूं तो मैं उसे वहीं पर स्थिर कर देता हूं जहां मैं उनकी मौजूदगी चाहता हूं लेकिन तब क्वांटम क्षेत्र भंग हो जाता है और दिखाई देने वाली वास्तविकता का क्षेत्र बन जाता है और सब कुछ मिलकर वही बन जाता है जो हम देखना चाहते हैं जबकि ईश्वर तो हर समय हर जगह मौजूद है बात सिर्फ इतनी है कि यदि मुझ में विश्वास हो और उसे वहां स्थित करने की क्षमता हो तो मैं उसे वही देख सकता हूं वही देख सकता हूं जहां मैं देखना चाहता हूं।"



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