सोमवार, 28 जून 2021

दक्षिण गोलार्ध का अतीत एक ही ::अशोकबिन्दु

 एक तथ्य!!#पुरातत्व दक्षिण अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण भारत, जावा, सुमित्रा, इंडोनेशिया आदि की धरती कभी करीब करीब थी ,जिसके मूल निवासी एक ही थे। हम आप से कहते रहे हैं कि हम विश्व की तमाम सभ्यताओं को अलग अलग नजर नहीं देखते।यदि भाषा, रीतिरिवाज, खानपान को नजरअंदाज कर दें। आत्म केंद्रित स्थिति में अध्ययन से हमें इन क्षेत्रों के कबीलों, चरवाहों, पुरातत्विक तथ्यों की सूक्ष्मता की जड़ एक ही दिखती है। इसके लिए संगम साहित्य का अध्ययन काफी मददगार है। दक्षिण अमेरिका में मिले अवशेषों में भारतीयता के लक्षण मिलते है। अमेरिका में सूर्य मंदिर के अवशेष मिलना, एक जंगल के नीचे तहखाने में हनुमान जी जैसी आकृति व मूर्ति मिलना, मूलनिवासियों में समानताएं, संगम साहित्य में माया सुर, मायन का जिक्र जो व उसके वंशज अमेरिका चले गए थे। रावण(र-अवन) की मृत्यु के बाद कुछ वर्ष लंका में शासन करने के बाद विभीषण भी अपने कबीले के साथ पश्चिम में चला गया था। दक्षिण अफ्रीका में सोमाली, पम्पा, पम्पाज आदि भारतिय मुलता के अवशेष मिलते हैं। जहां एक ओर दक्षिणी गोलार्ध में दैत्य, असुर, राक्षस, रावण(रा अवन/ रा यवन) वंशज आदि के अबशेष मिलते हैं।डी एन ए ,आनुवंशिकी जांचों में भी चौकाने वाले रहस्य उजागर होते हैं जो भारतीय नस्लों को उजागर करते हैं। 20 साल पहले से ही हम कश्मीर के मूल निवासी व युरोशलम के मूल निबसियों के महीन, सूक्ष्म अध्ययन में एकरूपता का आभास होता है।जब आगे और अध्ययन किया तो पता चला कि ईसा मसीह के समय भी कश्मीर व युरोशलम के लोग यहां वहां आते जाते थे।कश्मीर में इसके पुरातत्विक तथ्य भी मिले हैं। कश्मीर का पहले नाम था-कश्यप मीर। गुजरात राजस्थान में कुछ यवन,अरब (ओर्ब) के अबशेष मिले हैं।बतातें हैं ओर्ब वहां के एक प्रतापी राजा थे जो आचार्य शुक्र के पौत्र थे।उनका एक नाम काव्य(काबा) भी मिलता है। #शेष


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