रविवार, 6 जून 2021

भेद में जीना हमारी नास्तिकता ही::अशोकबिन्दु

 हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, देशी, विदेशी आदि की भावना में रहकर समाज व कुदरत को अनेक खेमों में मत बांटों।सदियों पुराना ये विभाजन अब भी बर्दाश्त कर रहे हो,अन्यथा इसे आगे भी बर्दाश्त करोगे।इसकी सजा कुदरत देगी। हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खां साहब रायपुरी ने कहा है-कुदरत हर वक्त हम पर मेहरबान है।हम उसके बन्दे हैं।लेकिन जब बन्दों से खिलबाड़ होने लगता है तब कुदरत चुप नहीं बैठती। वेदों में 'हमें मनुष्य होने', मनुष्य होने के बाद'श्रेष्ठ' होने की बात कही गयी है।इसका मतलब है-हम अभी 'मनुष्य' नहीं हुए हैं।हम अपनी 'श्रेष्ठता' किसकी नजर में साबित करना चाहते हैं?अपने'स्व' को समझो।अपने आत्मीयता, आत्मा को समझो।अपने आत्म सम्मान, आत्मविश्वास को समझो।पाकिस्तान में कोई वह व्यक्ति शोषित होता है, उसकी बेटियों के संग दुराचार होता है तो उसके प्रति आत्मीयता क्यों नहीं जगती?आपके समाज में'कम आबादी वाला'-या -'अकेला व्यक्ति'-परेशान होता है, तो उसके प्रति आत्मीयता क्यों नहीं उठती?कैसी आस्था?कैसी आत्मीयता?आस्था को समझो, आत्मीयता को समझो। जगदीश चंद्र बोस क्या कहते हैं ?पेड़ पौधों में स्थूल दिल नहीं होता लेकिन संवेदना होती है ।हम अपने को महसूस नहीं करते, अपनी चेतना को महसूस नहीं करते ,हम अपनी आत्मा को महसूस नहीं करते, हम अपना अस्तित्व महसूस नहीं करते हम जगत मूल, परम आत्मा को क्या महसूस करेंगे? अन्य प्राणियों और वनस्पतियों की चेतना और संवेदना को क्या महसूस करेंगे ?यह महसूस करना ही हमें सार्वभौमिक ज्ञान की ओर ले जाता है, सनातन स्थिति की ओर ले जाता है, वेद की स्थिति की ओर ले जाता है। वेदों का जब बुद्ध ने विरोध किया और जनता को 'स्व' को महसूस करने का रास्ता दिया तो आपके पूर्वजों ने उन्हें अनीश्वरवादी कह डाला। आज आप सनातन की बात कितना भी करते हो आपके आचरण, सोच ,कथन क्या वैदिक हैं?


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