गुरुवार, 10 जून 2021

भारत, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व शांति की भावी सम्भावनाएं!:::अशोकबिन्दु

 भारत, अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र संघ एवं विश्व शांति की भावी सम्भावनाएं! ---------------------------------------


------------------------------------ सन2020ई0में संयुक्त राष्ट्र संघ अपने स्थापना की 75 वीं वर्षगांठ माना रहा था। संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य है युद्ध और हिंसा रहित विश्व की स्थापना और विश्व शांति हम श्री रामचंद्र मिशन की भी 85 वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं हजरत की ब्लॉक मौलवी फजल अहमद खान साहब रायपुरी के शिष्य श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ की याद में स्थापित श्री रामचंद्र मिशन का उद्देश्य विश्व बंधुत्व के साथ-साथ योग का प्रचार प्रसार है अनुसंधान है वैश्विक चुनौतियों पर हम ध्यान नहीं चाहते हैं हम संत गुरु नानक की याद करते हुए बड़ी लकीर पेश कर देना चाहते हैं जिसे जिस लकीर को हमें छोटा करना है उस लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच देना है।हमें महानताओं को चुनना है। हमें अपने कर्तव्यों को ले आगे बढ़ते रहना है इसके लिए जो बाधाएं हैं चुनौतियां हैं उन्हें नजरअंदाज करना है भारत का शासन जनकल्याण करते-करते विश्व कल्याण की ओर बढ़ना है। ehsan qazi, institute of peace! हमें प्रकृति अभियान को समझना होगा हमें जातीय मजे भी खुराफात ओं से निकलना होगा हमारा शरीर और यह दुनिया और खुदा ना हिंदू है ना मुसलमान यह हम क्यों नहीं समझते आज विश्व के सामने समस्याएं हैं आज समाज अनेक समस्याओं से ग्रस्त है इसका कारण है इंसान सिर्फ इंसान । जब तक वह अपनी नजरिया को बदलने की कोशिश नहीं करेगा समाज में शांति सूत्र बंधन अहिंसा का वातावरण नहीं बनेगा जब इंसान अनेक जातियों में बंट कर अन्य इंसानों के साथ पेश होता रहेगा।समाज में अमनचैन नहीं आ सकता। विश्व शांति की भावी संभावनाएं दिल खुलने के साथ ही संभव है ।हृदय क्षेत्र में दिव्य प्रकाश का फैलाव ही तो।अशान्ति, हिंसा मुक्त वातावरण कब खड़ा हो सकता है?हृदय क्षेत्र में दिव्य प्रकाश के अनुभव के साथ साथ रात्रि नौ बजे की साधना हमें विश्वबन्धुत्व, विश्व शांति, विश्व सरकार आदि के भाव से भरती है। पहले राष्ट्रसंघ फिर उसकी असफलता के बाद सन 1945 ई0 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का उद्देश्य था-विश्व को युद्ध के होड़ से बचना।स्पष्ट रूप से ईमानदारी से समीक्षा करने का अवसर किसके पास है? हम ये नहीं कहते हैं कि कोई अपने परिजनों के बीच अपने जातिगत अंतर्गत कर्मकांड रीति-रिवाज आज को छोड़ दें लेकिन यह किसी की व्यक्तिगत घरेलू व्यवस्था हो सकती है लेकिन की बाध्यता जबरदस्ती बंधक मजदूरी आदि के रूप में व घर से बाहर सड़क एवं सार्वजनिक स्थलों पर नहीं मानवता अध्यात्म संविधान हमारी सामाजिकता सार्वजनिक कार्य क्षेत्र आदमी हमारा आचरण और व्यवहार होना आवश्यक है इस हेतु ही संयुक्त राष्ट्र संघ की सब को सक्रिय होना आवश्यक है सन 1947 में भारत को अपना संविधान और शासन हित अवसर मिला 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। अहिंसा ही परम धर्म है ऐसा भारतीय दर्शन में कहा गया है दया सेवा पर उपकार ,नम्रता, मानवता, ज्ञान आदि हमारा व्यवहारिक धर्म है।आचरणात्मक धर्म है।सनातन हमारा सार्वभौमिक व अन्तर्यामी धर्म है।संघवाद व पंथवाद को अपने में समेटने की इसमें कला है।'अनेकता में एकता'- इसकी प्रमुख विशेषता है। संविधान द्वारा सरकार के विभिन्न भागों के कर्तव्य और अधिकार निश्चित किए जाते है।यह शासकों व शासितों के पारस्परिक सम्बन्धों को सुनिश्चित करता है।भारत में जिसके लिए भारतीय संविधान सभा की मांग एक प्रकार से ' राष्ट्र की स्वाधीनता' की मांग थी।संविधान सभा के सिद्धांत का दर्शन सर्वप्रथम सन 1895 के स्वराज विधेयक में होता है। एक बेहद बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार हुआ था सन 1924 ईस्वी में पंडित मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के सम्मुख संविधान सभा के गठन की मांग प्रस्तुत की थी सन 1936 ईस्वी तक सन 1938 के कांग्रेस अधिवेशन में संविधान सभा के गठन की मांग को दोहराया गया था अंत में सन 1946 की कैबिनेट मिशन योजना के अंतर्गत भारतीय संविधान सभा के प्रस्ताव को स्वीकार कर इसे व्यावहारिक रूप प्रदान किया गया अब हम आगे इतिहास पर नहीं जाना चाहेंगे इस वक्त हम भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मूल पाठ पर चिंतन कर रहे हैं। हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26नवम्बर 1949 ई0( मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, सम्वत दो हजार छह विक्रमी)को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। @ @ @ @ @ @ अरविंद घोष ने कहा था-'आत्मा ही स्वतंत्रता है। इसपर पहुंचे बिना हम अपूर्ण हैं। आत्मा अपने में अनंत प्रवृत्तियों का द्वार छुपाए हुए हैं स्वामी विवेकानंद के अनुसार अंतर शक्तियों का विकास उसको अवसर सभी देशवासियों को ही नहीं वरन विश्व के सभी मनुष्यों को मिलना चाहिए मनुष्य स्वयं अपना भाग विधाता है उसे वह बताना मिलना ही चाहिए जिससे वह अपना आत्मसम्मान आत्मविश्वास ,स्वाभिमान आत्म गुण आदि जगा सके।श्री मद्भागवत गीता का स्वधर्म है-अंतरस्थित दिव्यता को सम्मान व जगाना।शांति हमारे अंदर स्थित है।बाहर नहीं।जहां अहिंसा ही अहिंसा है अर्थात किसी से कोई भेद न करना।वहां तो अनन्त यात्रा व प्रेम की शाश्वतता है।'सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर'- की दशा है।वहां हिंसा अर्थात भेद,द्वेष, घृणा आदि को कोई स्थान नहीं है। विश्व व जगत में शांति का मतलब जानते हो? शांति तो मनुष्य को अपने अंदर तलाश में होगी इस धरती से यदि मनुष्य को उठाकर अंतरिक्ष की किसी अन्य धरती पर धकेलना संभव हो यदि तो इस पर सभी समस्याएं खत्म समस्या विश्व में नहीं है मनु मनुष्य और उसके समाज में है जिस दिन मनुष्य अपने को पहचान जाएगा उस दिन वह समझेगा हमारे जीवन में तो कोई समस्या ही नहीं । हमारी मनुष्यता, आध्यात्मिकता, हृदयता में सभी समस्याओं, अशांति, दुखों का हल है। हजरत क़िब्ला मौलबी फ़ज़्ल अहमद खां साहब रायपुरी के शिष्य श्रीरामचन्द्र महाराज फतेहगढ़ वाले की याद में श्रीरामचन्द्र मिशन की स्थापना करने वाले शाहजहांपुर के बाबुजी महाराज कहा करते थे-" चिंताएं व तकलीफें तभी उत्तपन्न होती हैं जब हमारी मर्जी और ईश्वर की मर्जी में द्वंद होता है।द्वंद होना इसबात का प्रमाण है कि सच्ची भक्ति की कमी है।" विनोवा भावे की पुस्तक ' टाक्स आन गीता'में कहा गया है-"यदि जमीन पथरीली एवं ऊबड़ खाबड़ होगी तो जीवन की नैया को खींचना अत्यंत कठिन होगा।पानी की तरह ही भक्ति तत्व हमारे जीवन की यात्रा को सुलभ बना देता है।" हमारा रुझान,नजरिया,ऋद्धा, संकल्प, कर्म, प्रयत्न(अभ्यास या शिष्य) पन्थ आदि हमें शांति में ले जाता है। मीरा बाई की भक्ति लोकमर्यादा व कुलमर्यादा को भी भूल जाती है। ईसा मसीह की शांति उन्हें 'सूली की कीलों की चुभन' का अहसास नहीं करती। जरूरत है हर व्यक्ति के बुद्धत्व को जगाने की अंगुली वालों की गलियों में समाज और धर्म के ठेकेदार दबंग सेनापति राजा आज भी जाने से घबराते हैं और भेद रखते हैं यह भी हिंसा है अहिंसा है मन से किसी प्रति द्वेष ना होना भेजना होना समाज और विश्व में अभी अंगुली मानो की कमी नहीं है अंगुली मानव के गलियों की कमी नहीं है लेकिन बुद्ध अंगुलिमाल को बदल सकता है बुद्ध तो ही अंगुली मानो की गलियों में रौनक ला सकता है उपदेश आदेश तो चोर उचक्के माफिया आज भी देना जानते हैं परिवार कुल लोक संस्थाओं के तंत्र को कौन जगह बैठे हैं किसी ने कहा है सरकारें गलत हाथों में रही हैं सताए गलत हाथों में रही हैं सत्ता बाद पूंजीवाद जन्म बाद पुरोहित बाद जन्मजात उच्च बाद जन्मजात निम्न बाद में ईमान को सामने नहीं रखा है गांव और बाढ़ के माफिया दबंग धनबल जाति बल्ला आदि सब किसी नेता के खास दिखे हैं किसी दल के खास देखे हैं सीधे-साधे कानूनी व्यवस्था मानवता आदमी जीने वालों को किस का समर्थन मिलता है उन्हें स्वयं अपने से ही गुजर ना होता है उन्हें कोई पंथ नहीं मिलता आश्रय को किसी ने कहा है भीड़ का धर्म नहीं होता पंथ होते हैं सब प्रकार होते हैं उन्माद होता है जात पात भेदभाव होता है संत परंपरा ही ऋषि मुनियों के संदेश ही ऐसे में हमें विकसित करते हैं कमलेश डी पटेल दास जी कहते हैं वैश्या को भी इंसान समझो कौन क्या कर रहा है कौन क्या कह रहा है यह ना देखकर स्वयं को देखो कि हमें क्या करना है हम क्या कर रहे हैं आचार्य बनो आचार्य बनने से मतलब है जो होना चाहिए वह स्वयं व हम बने सभी के अंतर अंदर ईश्वर की रोशनी महसूस कर सभी उसे प्रेम उदारता नम्रता सेवा भाव के साथ पेश हो । उपदेश आदेश सिर्फ महत्वपूर्ण नहीं ।वातावरण, सत्संग, समीपता आदि महत्वपूर्ण है। सरकारों, जनप्रतिनिधियों, समाजसुधारकों, सेवा समितियों आदि को ऐसा तन्त्र खड़ा करना चाहिए, ऐसे कार्यक्रम तय करने चाहिए ताकि हर जाति मजहब व देश के लोग समीप आना शुरू करें। उपदेशभावेश नहीं आदेश नहीं वरन कार्यक्रम है साथ ही सुकून के लिए विश्व बंधुत्व भाईचारा के लिए साथ साथ रहने के लिए मतभेद और देश के जो विषय हैं वे नजरअंदाज किए हैं। सकारा सकारात्मकता ही बाहर आए श्रीनाथ मुक्ता ही बाहर आए ऐसे कार्यक्रम हूं बड़ी लकीर के सामने सतह बड़ी लकीर खींच ली जाए पहले से मौजूद लकीर मतभेद देश की छोटी पड़ जाए हम प्राइमरी जूनियर क्लासेज में देखते हैं हर जाति मजहब के बच्चे साथ साथ खेलते हैं आचरण करते हैं यह एक अवसर है नई पीढ़ी को मानवता विश्व बंधुत्व की ओर ले जाने का लेकिन हमारे शिक्षक अभिभावक समाज के ठेकेदार इसे खो देते हैं जातिवाद सप्ताह बाद पुरोहित बाद पूंजीवाद माफिया बाद आज नई पीढ़ी की संभावनाओं को कुचल देते हैं। कमलेश डी पटेल 'दाजी' व कुछ अन्य महापुरुष जो समाज को मानवता व विश्व बंधुत्व, विश्व शांति व मानव कल्याण की ओर ले जाना चाहते हैं। बे अब स्कूल और विद्यार्थियों से संपर्क बढ़ा रहे हैं नई दिल्ली के लिए स्कूल ही ऐसे हैं जो मानवता विश्व बंधुत्व विश्व शांति की ओर जाने की संभावनाएं खड़ी कर सकते हैं नई पीढ़ी को हम कैसे कार्यक्रम जीवनशैली कार्यपद्धती आज उत्सव पर इसका निर्धारण अब 'वाद' को ना करने का कानून हर देश में संयुक्त राष्ट्र संघ के दबाव में आकर होना अति आवश्यक है। हम जिएं सब जिएं!! सबका साथ सबकी भागीदारी!! सबकी भागीदारी सबका विकास!! मैं नहीं हम सब!! जय मानवता!जय विश्व बंधुत्व!! जय प्रकृति! जय ब्रह्म!! इच्छाएं नहीं वरन आवश्यकताएं!! 'वाद' नहीं वरन वसुधैव कुटुम्बकम!! क्षेत्रवाद नहीं वरन विश्वबन्धुत्व!! हम और हम सबको अब प्रकृति अंश और ब्राह्मण के आधार पर विचार करना होगा। मानवता और विश्व बंधुत्व के आधार पर विचार करना होगा। अपने घर को सुरक्षित रखने के लिए पास पड़ोस ,पास पड़ोस के लिए वार्ड और गांव को,वार्ड और गांव के लिए जनपद को । जनपद के लिए राज्य को, राज्य के लिए देश या क्षेत्र को, देश या क्षेत्र के लिए विश्व को ध्यान में लाना ही होगा ।इस निमित्त हम सभी रात 9:00 बजे और अन्य समय भी वसुधैव कुटुंबकम, सर्वे भवंतु सुखिनः ,सागर में कुंभ कुंभ में सागर, सभी में ईश्वरीय प्रकाश आदि के भाव आ कर प्रार्थनामय रहते ही हैं इस आधार पर आचरण लाने का प्रयत्न भी करते रहते हैं । किसी ने कहा है भविष्य भारतीयों का ही होगा । विदेशी भी अब भारत की ओर देखने लगे हैं । भारत स्वयं एक विश्व है। भारत है -भा + रत अर्थात प्रकाश मे रत। अनेक जातियों ,पंथ्ओ, भाषाओं के बावजूद उसमें सब को एक साथ रखने की क्षमता है। जिन्हें भारत में डर लगता है वह भी भारत को खोना नहीं चाहते।

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