सोमवार, 14 जून 2021

महाभारत युद्ध के प्रभाव से विश्व अब भी नहीं उबर पाया है.....और तुर्क और मंगोल !?::#अशोकबिन्दु

 महाभारत युद्ध के प्रभाव से विश्व अब भी नहीं उबर पाया है.....और तुर्क और मंगोल !?::#अशोकबिन्दु


---------------------------------------------------- महाभारत युद्ध के बाद विश्व में अवन/यवन और मंगोलों ने विश्व को प्रभावित किया है। ईसा पूर्व 2000 हजरत इब्राहिम में धर्म उत्पन्न हुआ, आकाशवाणी,कुर्बानी, (कुल)वाणी,कुर वाणी पैदा हुई । जिस पर उन्होंने अपनी पकड़ बनाई। लेकिन उन्हें इस संसार में काफी कुछ झेलना पड़ा । 


 कृष्ण सागर इधर कृष्णा नदी के तट, भूमध्य सागर के क्षेत्र यवनों के लिए महत्वपूर्ण थे। मंगोलों के लिए उत्तर में बैकाल झील का क्षेत्र महत्वपूर्ण हुआ। यह भी पराए न थे। हालात ऐसे बन गए कि पराए हो गए । सभी के पिता कश्यप ऋषि ही हैं।


 ' आना तो लिया '-का इतिहास क्या है? जिसे आजकल तुर्किस्तान कहा जाता है। लगभग 1700 पूर्व में एशिया माइनर ( तुर्किस्तान) से आय हिट-आ-इटस नामक आक्रमणकारियों ने बाबुल साम्राज्य अर्थात इराक मेसोपोटामिया सभ्यता नष्ट भ्रष्ट कर दी थी। हिट-आ-इट्स के साथ-साथ उस वक्त हाइकसोस खानाबदोश आक्रमणकारी हिट- आ-इटस तो तुर्की थे लेकिन हाइकसोस...?! हाइकसोस खानाबदोशों ने मिस्र सभ्यता को नष्ट करने की कोशिश की थी। लगभग 1200 ई0पु0 में आना तो लिया क्षेत्र में यवनों का प्रभाव हुआ । कृष्ण एवन अर्थात काल यवन जिनका प्रसिद्ध ब्राह्मण शासक था। तुर्वस पुत्र 'भोज यवन'-के वंशज थे-यवन।तुर्वसु ययाति का पुत्र था। इस समय भी पश्चिम में तुर्क महत्वपूर्ण हैं।


कट्टरता कहाँ नहीं है? नगेटिव पॉजीटिव कहाँ नहीं है? लेकिन तब भी संघर्षों के बीच,जमाने के अंधेरों के बीच एक रोशनी होती रही है।'पवित्र रोमन साम्राज्य'-की जड़ में भारतीय आर्यत्व की सिंचाई हैं।दुनिया को तमाम सभ्यताओं को ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि पर चाहें अलग अलग कर देखा जाता हो लेकिन हम अलग अलग कर उसे नहीं देखते।


                   सन 1388ई0...?!
                   सन 1388ई0! 
                  बुखारा नगर, तुर्किस्तान!! 
                 ख्वाजा बहा-अलाद्दीन ने जब अपनी देह छोंड़ दी तो अनेक अंतर्मुखी, उदार/नम्र, शन्ति प्रिय व्यक्ति इकट्ठे हो गए। वह कौन था? जब वह अपने हाड मास शरीर सहित इस जगत में था तो कट्टरपंथी उसके खिलाफ थे । आज जगत की नजर में ही वह अपना शरीर छोड़ चुका था लेकिन वह तो इससे 30 साल पहले ही अपने शरीर को लाश की भांति बना चुका था । इस शरीर के मोह से मुक्त होकर अंदरूनी रूहानी शरीर का गवाह हो चुका था। उसके बाबा के समय में अर्थात पिता के पिता के समय में ' पाक पाटन के आश्रम'- में एक फकीर से खानदान का संपर्क हुआ था।हजरत ख्वाजा फरीदुद्दीन गंजशंकर के वाणीयों को जाना था। 


       'पाक पटन का आश्रम'-हजरत ख्वाजा फरीददुद्दीन गंज शंकर ने स्थापित किया था।सुना जाता है जिन्होंने अपनी देह सन 1265 या 1266ई0 में त्याग दी थी।जिनका वंशज सम्बंध काबुल के बादशाह फर्रुख शाह से था। वे 18वर्ष की अवस्था में मुल्तान आकर के ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी से मिले।और 'चिश्ती सिलसिला'- में उनसे दीक्षा प्राप्त की। जब गुरु नानक देव जी दीपाल पुर से 'पाक पाटन'-पहुंचे थे.... 



 ** सतनाम श्री वाहेगुरु जी ** 


     मेरे सच्चे पातशाह .... हम पर मेहर तू कर दे, 
     अपने बच्चों पर तू अपनी दया भरी नज़र यु कर दे, 
     हम नादान और अनजान हैं इस ज़िन्दगी के सफ़र से, 
    बस तू अपनी रेहमत की हम पर बौछार कर दे ।। 

      ।सतनाम श्री वाहेगुरु। 


         शेख़ ब्रह्मजी ••••• 


      श्री गुरू नानक देव जी दीपालपुर से पाकपटन पहुँचे। वहाँ पर सूफी फ़कीर बाबा फ़रीद जी, जो बारहवीं शताब्दी में हुए हैं, उनका आश्रम था। उन दिनों उनकी गद्दी पर उनके ग्यारहवें उत्तराधिकारी शेख़-ब्रह्म जी बिराजमान थे। गुरुदेव ने नगर की चौपाल में भाई मरदाना जी को कीर्तन प्रारम्भ करने को कहा। कीर्तन की मधुरता के कारण बहुत से श्रोतागण इकट्ठे हो गए। गुरुदेव ने शब्द उच्चारण किया: 


      आपे पटी कलम आपि उपरि लेखु भि तूं ।। 
      एको कहीए नानका दूजा काहे कूं ।। राग मलार, अंग 1291

 अर्थ: हे प्रभू तूँ आप ही पट्टी है, आप ही कलम है, पट्टी के ऊपर सिफत-सलाह का लेख भी तूँ ही है। हे नानक सिफत-सलाह करने, करवाने वाला तो केवल परमात्मा ही है और कोई कैसे हो सकता है (सिफत-सलाह यानि परमात्मा की तारीफ के शब्द या बाणी) 


     भीड़ को देखकर शेख ब्रह्म जी का एक मुरीद भी वहाँ पहुँच गया। उसने गुरुदेव के कलाम को सुनकर, समझने और विचारने लगा कि यह महापुरुष कोई अनुभवी ज्ञानी है। इनकी बाणी का भी तत्वसार उनके प्रथम मुरशद फ़रीद जी की बाणी से मिलता है, कि प्रभु केवल एक है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। जहां-तहां सब कुछ उसीका प्रसार है। जब वह वापिस आश्रम में पहुँचा तो उसने यह बात शेख-ब्रह्म जी को बताई कि उनके नगर में कोई पूर्ण-पुरुष आए हुए हैं जो कि गाकर अपना कलाम पढ़ते हैं, जिसका भावार्थ अपने मुरशद फरीद जी के कलाम से मेल खाता है। यह जानकारी पाते ही शेख बह्म जी रह नहीं पाए, वह स्वयँ दीदार करने की इच्छा लेकर आश्रम से नगर में पहुँचे। गुरुदेव द्वारा गायन किया गया कलाम उन्होंने बहुत ध्यान से सुना और बहुत प्रसन्न हुए तथा गुरुदेव से अपनी शँकाओं का समाधन पाने के लिए कुछ प्रश्न करने लगे।

     प्रश्न: इस मानव समाज में बुद्धिजीवी कौन-कौन हैं ? 
    गुरुदेव जी ने उत्तर दिया: जो व्यक्ति मन से त्यागी हो परन्तु आवश्यकता अनुसार वस्तुओं का भोग करे।
      दूसरा प्रश्न था: सबसे बडा व्यक्ति कौन है ? 
      गुरुदेव ने उत्तर दिया: जो सुख-दुख में एक सम रहे कभी भी विचलित न हो।
      उन का अगला प्रश्न था: सबसे समृद्धि प्राप्त कौन व्यक्ति है ?
      इस के उत्तर में गुरुदेव ने कहा: कि वह व्यक्ति जो तृष्णाओं पर विजय प्राप्त करके सन्तोषी जीवन व्यतीत करे। 
      उनका अन्तिम प्रश्न था: ‘दीन-दुखी कौन है ?’ 
      इसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा: जो आशा और तृष्णा की पूर्ति के लिए दर-दर भटके। 



        तत्पश्चात् गुरुदेव से शेख ब्रह्म जी के अनुयायी कमाल ने प्रश्न किया: कि हमें सम्मान किस युक्ति से मिल सकता है ? 

       तो गुरुदेव ने उत्तर दिया: दीन-दुखियों की निष्काम सेवा करने से आदर मान प्राप्त होगा। 

       उन का दूसरा प्रश्न था: हम सबके मित्र किस प्रकार बन सकते है ?

       उत्तर में गुरुदेव ने कहा: अभिमान त्यागकर, मीठी बाणी बोलो। 


       गुरुदेव कुछ दिन शेख ब्रह्म जी के अनुरोध पर उनके पास पाकपटन में रहे। गुरुदेव वहाँ प्रतिदिन सुबह-शाम कीर्तन करते, अपनी बाणी उनको सुनाते तथा शेख फरीद जी की बाणी उनसे सुनते। गुरुदेव ने इस प्रकार बाणी का आदान-प्रदान किया तथा वहाँ से शेख़ फ़रीद जी की बाणी सँग्रह करके अपनी पोथी में सँकलित की। 

   विदा करते समय शेख़ ब्रह्म जी ने गुरुदेव से प्रार्थना की, कि मुझे ऐसी कैंची प्रदान करें जिससे मेरा आवागमन का रस्सा कट जाए। 

    इस के उत्तर में गुरुदेव ने कहा सच की कैंची सारे बन्धन काट देती है।


            सच की काती सचु सभ सारु ।। 
            घाड़त तिस की उपर अपार ।। राग रामकली, अंग 956

 अर्थ: अगर प्रभू के नाम की कैंची या छूरी हो और प्रभू का नाम का ही उसमें सारा का सारा लोहा हो तो उस छूरी या कैंची की बनावट बहुत सुन्दर होती है।



       ......आखिर हमारी उन्नति क्या है?जगत को अमीरी...?!जाति, मजहब, कर्मकांड, रीतिरिवाज आदि में अमीरी...?!औऱ उस अमीरी में क्या फर्क है?एक फकीर की अमीरी में क्या फर्क है?

इस समय हम भूमध्य सागर, कृष्ण सागर, कश्यप सागर तटीय क्षेत्रों के कबीलों का अध्ययन कर रहे हैं। हम बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि के भाव में जब चिंतन शुरू किए तो पुराने तथ्यों के आधार पर हम एकत्व की भावना, मानवता में और भी पहुँचे हैं।वैसे भी अध्यात्म में एक दशा होती है जो हमें -सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर, विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम आदि भाव की दशा में ले जाती है।दिमागी, तर्क की दशा में नहीं वरन मानसिकता दशा,हालातों में,आभास में, अहसास में। एक वक्त था जब पूरा विश्व ही भारत था। तर्क में तर+क क्या है? पप्राचीन इतिहास में एक शब्द मिलता है, यवन या अवन।उस वक्त भी जब यहूदी, पारसी पन्थ भी नहीं थे, हिन्दू शब्द भी न था।अनेक मनुवंशी राजाओं के दरबार में भी यवन के होने का जिक्र मिलता है।सिंधु के उस पार के सभी मनुष्यों को यवन ही कहा गया।यूरोप हो या अरब(और्ब)....उनको यवन कहा गया।एक शब्द म्लेच्छ भी मिलता है।कश्यप ऋषि की तपस्या स्थली काकेकस पर्वत माना जाता है।कैस्पियन सागर को कश्यप सागर। ब्राह्मणों ने भारत में कहीं शासन नहीं किया है।कश्यप मीर(कश्मीर),सिंधु के उस पार ब्राह्मणों के शासन का जिक्र मिलता है।'पवित्र रोम राज्य'- के पीछे भी ब्राह्मण राज्य की अवधारणा मिलती है।प्रियव्रत का एक कबीला वहां जाकर बसा था।प्राचीन रोम भाषा, लेटिन भाषा और यहां कुमायूं (कूर्माचल का बिगड़ा रूप) भाषा मे अनेक शब्द एक ही हैं। वहां का पुरातत्व आर्यों के इतिहास की ओर इंगित करता है। ययाति के पुत्र थे तुर्बसु।जिससे ही बना तुर् +बसु.... बसु कौन होते थे?पैराणिक कथाओं में स्पष्ट होता है।उत्तानपाद पुत्र तपस्या में सफलता के बाद बसु हो गये थे।जो ब्रह्मांड में भी अपना नियंत्रण प्राप्त कर चुके थे।और उन्हें ध्रुव की पदवी मिली थी । योग का अंतिम आठवाँ अंग-#समाधि ,जिसमें प्रवेश के बाद व्यक्ति अपने क्षेत्र में होने वाली सूक्ष्म घटनाओं के मध्यम से स्थूल घटनाओं में भी नियंत्रण का विधाता से निर्देश व क्षमता पाता है लेकिन इसका आभास समाज सामान्य व सांसारिक व्यक्ति नहीं पाते। धमक शब्द में धम व क की क्या स्थिति है? चालक, पालक, पाठक आदि शब्दों में 'क'-का क्या मतलब है? अश्व में क जोड़ अश्वक हो जाता है।अश्वक का तब अर्थ हो जाता है-बुरा घोड़ा। कोई शब्द भी अनेक अर्थ व अनेक स्थितियां रखता है। स्थूल, सूक्ष्म व कारण भी...?!अनेक दशाएं भी हैं। हिंदी वर्णमाला का पहला व्यंजन, जो भाषा-विज्ञान और व्याकरणकी दृष्टि से कंठ्य, स्पर्शी, अल्पप्राण तथा अघोष माना गया है। तद्वित उपसर्ग के रूप में यह (क) कुछ संस्कृत क्रियाओं के अंत में लगकर उनके कर्ता कारक का सूचक होता है, जैसे—प्रबंध से प्रबंधक, व्यवस्थापन से व्यवस्थापक आदि। (ख) कुछ संस्कृतसंज्ञाओं के अंत में लगकर यह उनके छोटे या बुरे रूप का वाचकहोता है, जैसे—कूप से कूपक (छोटा कुआँ) अश्व से अश्वक (बुरा घोड़ा)। (ग) कहीं-कहीं यह ‘से युक्त’ या ‘वाला’ का भी बोधक होताहै, जैसे—रूपक (रूप से युक्त या रूपवाला)। विशेष—कुछ हिंदीशब्दों में प्रत्यय के रूप में लगकर यह (क) किसी भाव,स्थान,स्थिति आदि का सूचक होता है जैसे—बैठना से बैठक (बैठने की क्रिया, भाव या स्थान)। और (ख) किसी वस्तु के हलके रूप का भी सूचकहोता है, जैसे—ठंढ से ठंढक। हिंदी वर्णमाला का पहला व्यंजन, जो भाषा-विज्ञान और व्याकरणकी दृष्टि से कंठ्य, स्पर्शी, अल्पप्राण तथा अघोष माना गया है। तद्वित उपसर्ग के रूप में यह (क) कुछ संस्कृत क्रियाओं के अंत में लगकर उनके कर्ता कारक का सूचक होता है, जैसे—प्रबंध से प्रबंधक, व्यवस्थापन से व्यवस्थापक आदि। (ख) कुछ संस्कृतसंज्ञाओं के अंत में लगकर यह उनके छोटे या बुरे रूप का वाचकहोता है, जैसे—कूप से कूपक (छोटा कुआँ) अश्व से अश्वक (बुरा घोड़ा)। (ग) कहीं-कहीं यह ‘से युक्त’ या ‘वाला’ का भी बोधक होताहै, जैसे—रूपक (रूप से युक्त या रूपवाला)। विशेष—कुछ हिंदीशब्दों में प्रत्यय के रूप में लगकर यह (क) किसी भाव,स्थान,स्थिति आदि का सूचक होता है जैसे—बैठना से बैठक (बैठने की क्रिया, भाव या स्थान)। और (ख) किसी वस्तु के हलके रूप का भी सूचकहोता है, जैसे—ठंढ से ठंढक। हम आध्यत्मिक दशा में जाकर कट्टरपंथियों से कहते रहे हैं।कुटम्बी भावना में भेद, हिंसा का महत्व है।आखिर विजयनगर के अमात्य, पुरोहित व सेनापति और वेदों के पहले भाष्यकार #सायण को क्यों कहना पड़ा कि एक कूर्मि/कुटम्बी/कुनबी सर्वशक्तिमान होता है। बसुधैव कुटुम्बकम, विश्वबन्धुत्व की भावना।में हिंसा, भेद, द्वेष का क्या महत्व है? आध्यत्म से निकल हम अब जब हम राजनीति व इतिहास के अतीत में भी विश्वबन्धुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम की झलक पाते हैं तो हमें आश्चर्य होता है। कमलेश डी पटेल #दाजी कहते हैं कि हमारे व जगत, प्रत्येक वस्तु, शब्द के के तीन हालात होते हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।इन तीनों स्तरों में भी चेतना के,ऊर्जा के अनन्त बिंदु व स्तर होते है।जब हम स्थूल से सूक्ष्म, सूक्ष्म से सूक्ष्मतर, सूक्ष्मतर से अति सूक्ष्मतर होते जाते हैं तो हम एक खाली पड़े खेत का अतीत व भविष्य का अहसास कर सकते हैं। विद्यार्थी जीवन को ब्रह्मचर्य आश्रम मानने का मतलब भी क्या था?अन्तरदीप, अंतर्ज्ञान, अंतर स्वतः, निरन्तर के आभास में जीना,आत्मा.. परम् आत्मा के आभास में जीना, अंतर ऊर्जा के अहसास में जीना।इस लिए कमलेश डी पटेल दाजी ने कहा है कि महत्वपूर्ण ये नहीं है कि हम अपने को आस्तिक समझते हैं, ब्राह्मण समझते हैं, अपने को उच्च जाति का मान गर्व करते हैं।महत्वपूर्ण है कि हमारी चेतना,समझ का स्तर क्या है?आभास, अहसास, महसूस करने का स्तर क्या है?


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