गुरुवार, 10 जून 2021

ब्रह्मचर्य आश्रम व सन्यास आश्रम के बीच के बवाल से उबर::अशोकबिन्दु

 (सम्पादकीय) 25वें साल पर 75वां वर्ष! 

@आशांक बाबू गुप्ता 



 धरती पर मानव एक ऐसा प्राणी है जिसे शिक्षा व विद्यालय शिक्षा के बाद भी निरंतर सीखने की आवश्यकता होती है। हमने कुछ बुजुर्ग देखे हैं ,उनको देखकर लगता है बे जीवन में क्या हुए उन्होंने जीवन में क्या प्राप्त किया आदि। जीवन को हमसे दूर करती हैं सहजजीवन से हमें दूर करती हैं? 12 जून 2017 को गुरुजी अशोक कुमार वर्मा बिन्दु की प्रेरणा से हम प्रशिक्षक श्री कैलाश चंद अग्रवाल पंजाबी कॉलोनी तिलहर शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश से प्रथम प्रणाहूति लेकर श्री राम चंद्र मिशन एवं हार्टफुलनेस से संबंध हुए ।जिसके बाद हमने महसूस किया आदतें हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण हो जाती हैं । महापुरुषों के बताए संदेशों , संदेश, मनन ,अभ्यास नियमित साधना ,स्वाध्याय, सत्संग आदि जीवन में हर पल आवश्यकता होती है ।इस सब के बावजूद मन ,वचन व कर्म से हम प्राकृतिक, संसार ,इंद्रियों आदि से प्रभावित होकर कुछ ऐसा करते जाते हैं जो हमारे जीवन में बड़े गहराई तक घुस जाता है। जिससे हम अंदर ही अंदर संघर्ष करते रह जाते हैं सिर्फ ।जो जटिलताओं को उत्पन्न करता है । हमको सूर्यास्त के समय बस समय-समय पर मन सफाई , निर्मली करण प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है । जिसके बावजूद अंदर गहराई में कुछ ऐसा होता है जो हमारे व्यक्तित्व में भी हावी होता है । हम कोशिश करते ही रह जाते हैं ।बाबूजी महाराज ने इस लिए हमें अभ्यासी शब्द दिया है । शिष्य- गुरु तो दो शरीर एक मन हो ते हैं। 75 वा वर्ष जीवन का सनातन संस्कृति आधार पर सन्यास में प्रवेश का है। संन्यास पर भारतीय ग्रंथों में काफी कुछ कहा गया है  । निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सन्यास आश्रम अर्थात 75 वर्ष के साथ हमें मृत्यु के साक्षात्कार से परे निकलकर अनंत यात्रा का साथी हो ही जाना चाहिए।  हमने कुछ बुजुर्ग देखे हैं हम तो उनके पास इसलिए जाते हैं ताकि हम उनसे प्रेरणा लें उनके अनुभवों से कुछ सीखे लेकिन हमें मायूसी मिलती है ।जीवन जीने का मतलब अतीत में ही जीते रहना नहीं है। हमारे वर्तमान का आधार अतीत अवश्य है । लेकिन हमारा जीवन जीने का लक्ष्य भविष्य है ।पहला कदम हमारे अगले कदम की तैयारी है। हर कदम अगले कदम की तैयारी है। सहज मार्ग में अभी हमारी छोटी समझ यही है कि हमें असल को जीना अति आवश्यक है। क्रांतिकारी भगत सिंह 23 वर्ष की अवस्था में फांसी पर झूल गए । आखरी वक्त समाज की आवश्यकता को अस्वीकार कर यथार्थवाद व सहज ज्ञान को स्वीकार कर चले गए। फांसी पर चलना है तो चलना है ।यह स्थूल यथार्थ है सिर्फ। यह  शरीर मरना ही है इससे आगे भी अर्थात मरना है ही लेकिन इस सोच के साथ। भविष्य के साथ या अतीत के साथ या वर्तमान की स्थितियों , शरीर की परेशानियों , हाड़ मास शरीर की मृत्यु या फांसी पर चिंता करके अनेक बुजुर्ग मिलते हैं ।वे अपने हाल में शरीर की परेशानियां, हाड मास शरीर की मृत्यु के चिंता में उलझे हैं ।वे हमें क्या प्रेरणा देंगे ?



गांधी की आत्मकथा क्या कहे? गांधी की आत्मकथा और भगत सिंह के पत्रों में से आप किसे महत्व देना चाहेंगे? हम किसे महत्व दें? हमारे एक 'सर जी'- का कहना है जीवन के शुरुआती 25 वर्ष जीवन के क्रीम एज हैं। पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी कहते हैं -युवावस्था प्रयास की अवस्था कहा जाता है । शुरुआती 25 वर्ष ब्रह्मचारी जीवन है, ब्रह्मचारी आश्रम है  सनातन संस्कृति के अनुसार जीवन को चार भागों में बांटा गया है ।ब्रह्मचर्य आश्रम ,गृहस्थ आश्रम वानप्रस्थ आश्रम व सन्यास आश्रम । आजकल के दूषित वातावरण में कितना आसान है ? जीवन के शुरुआती 25 वर्ष,  ब्रह्मचारी जीवन है। हम सवरने, बस समझने की कोशिश करते करते भी क्या हो जाते हैं? ऐसे में निरंतर गुरु की शरण ,महापुरुषों के संदेशों ,वानियों के चिंतन मनन स्वाध्याय ने , साधना, नियमित सत्संग में रहना अति आवश्यक है  । अनेक बुजुर्गों के पास करीब जाने से कुछ का अंडरग्राउंड अर्थात अचेतन मन बड़ा जटिल महसूस होता है । वह अभी नींद में वही सपना देख रहे होते हैं जो किशोरावस्था और युवावस्था में देखते थे। कैसा विकास?  विकास यही कि जीवन भर रोटी कपड़ा मकान साहब की चापलूसी में लगे रहे ?अच्छी-अच्छी बातें करते रहे लेकिन अंदर ही अंदर हो क्या रहे थे?



 हमारे वैश्विक आध्यात्मिक मार्गदर्शन श्री कमलेश डी पटेल दा जी ठीक कहते हैं- हम हो क्या रहे हैं यह महत्वपूर्ण है। उम्र बढ़ते बढ़ते हम बौखलाहट, ईर्ष्यालु आदि होते जाएं, हाड़ मास शरीर की ही चिंता से सिर्फ परेशान रहे तो जीवन में क्या किया?


 # ये जो 25 वर्ष # 


' 25 वर्ष पर....' अर्थात विद्यार्थी जीवन पर पूरा जीवन टिका है यह इंसान ।


विद्यार्थी जीवन या 25 वर्ष तक का जीवन कैसा जिया है? इस पर शेष जीवन निर्भर है। किसी को यह महसूस न हो तो अलग बात। परिवार व समाज के वातावरण का प्रभाव, प्रभाव को ग्रहण करने की समझ का असर मानव के व्यक्तित्व पर पड़ता है। हमारे सोचने के तरीके का असर जीवन पर पड़ता है। हमारी असलियत सिर्फ हमारा हाड़ मास शरीर, वस्त्र, गाड़ी, बंगला आदि नहीं है। बोलचाल का ढंग नहीं है। यह हमारा बाहरी व्यक्तित्व है जो उम्र बढ़ने और पदच्युत होने के बाद, गरीबी आने पर या अस्वस्थ होने पर अपनी चमक खो सकता है। हमारे संस्कार, आदतें, समझ चेतना का स्तर ,नजरिया आदि मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते। अपने व्यक्तित्व को पहचानना अति आवश्यक है। पहचान कर उसे जीना।


 वैसे तो सीखने की प्रक्रिया निरंतर चलती है लेकिन किशोरावस्था और युवावस्था में हमारे प्रयास और प्रयत्न के स्तर अति महत्वपूर्ण है । मन, वचन और कर्म में विभिन्न प्रयास में अंतर निर्भर करता है हमारे भविष्य को । एक बात बचपन की हमें जीवन भर याद रहती है एक भूल जाते हैं। इसका कारण क्या है? हमारे रुचि रुझान नजरिया समझ आआदि का स्तर जीवन में महत्वपूर्ण हो जाता है। हमारा जज्बा उत्साह आदि कहां पर टिका होता है? यह विद्यार्थी जीवन में इन 25 वर्ष तक अति महत्वपूर्ण होता है।

 (गुरु जी अशोक कुमार वर्मा'बिंदु' की प्रेरणा से)


 नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के मृत्यु/लापता होने के रहस्य के 75 वर्ष पूर्ण!! 

@सुजाता देवी पटेल


 भारत देश अपना स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को प्रतिवर्ष बनाता है लेकिन अनेक लोग इस आजादी को सिर्फ सत्ता हस्तांतरण मानते हैं ।एक विचारक का तो मानना है कि अंग्रेजों ने भारत को छोड़ दिया इसका ठीक जवाब अंग्रेज ही जानते हैं। कोई तो यहां तक कहता है कि उनका भारत छोड़ने का कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद सरकार है । जिसकी स्थापना 21 अक्टूबर 1947 को हुई और जिसे विश्व के अनेक देशों ने मान्यता प्रदान की। नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वितीय विश्व युद्ध में दक्षिण पूर्व एशिया के महानायक बन के उभरे। उस समय वह और उनके समर्थक देश जीत पर जीत हासिल करते जा रहे थे। जिससे पश्चिम देश बौखला गए ।अमेरिका ने बौखला कर परमाणु बम का इस्तेमाल कर दिया। जिससे उनको और उनकी सेना को वापस लौटना पड़ा ।उनकी मजाक भी बनाई गई कि दिल्ली चलो का नारा लगाने वाले वापस लौटे। लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा कि फरवरी 1946 का इंतजार कीजिए। 


 विश्वयुद्ध की शुरुआत के साथ उन्होंने कहा था दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है। इस वक्त आजादी के लिए अच्छा अवसर है। ब्रिटिश सरकार में जो भारतीय कर्मचारी सैनिक आदि थे उन पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषणों का बड़ा प्रभाव पड़ा। जिससे भारत में ब्रिटिश शासन के स्तंभ कमजोर पड़ गए । फरवरी 1946 से नौसेना विद्रोह के साथ-साथ अन्य विभागों के कर्मचारी भी विद्रोह में आ गए । जो भारतीय सैनिक ब्रिटिश सरकार के लिए लड़ रहे थे। उनका झुकाव नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ओर हुआ। जापान पर परमाणु बम आक्रमण के बाद उनके समर्थकों व जापान आदि देश में उन को सुरक्षित स्थान पर पहुंचने का विचार दिया। तब वे रूस पहुंचे लेकिन पश्चिमी देशों को भ्रम में रखने के लिए फर्जी विमान दुर्घटना की योजना बनाई गई ऐसा सुना जाता है।


 10 जनवरी 1975!!पहला विश्व हिंदी सम्मेलन!! 


 10 जनवरी 1975 को पहला विश्व हिंदी सम्मेलन नागपुर में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के द्वारा आयोजित किया गया था। जो 4 वर्षीय था इसमें 30 देशों  122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। सन 2006 में 10 जनवरी को विश्व हिंदी सम्मेलन बनाने की घोषणा हुई ।हम सबको प्रसन्नता हुई हमने इसे पहले से ही अर्थात 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में स्वीकार कर चुके थे। वर्तमान में लगभग 137 देशों में हिंदीभाषी अथवा हिंदी प्रेमी लोग मौजूद हैं। सन 2011 -14 से हम सब इस क्षेत्र में काफी तेजी से आगे बढ़े हैं। अनेक देशों के विश्वविद्यालय तक हिंदी पहुंची है ।अब हिंदी ही नहीं हार्टफुलनेस, आयुर्वेद ,योग की पहुंच विश्व तक हुई है। विश्व की निगाहें भारत की ओर हैं । सिर्फ भारत ही ऐसा देश है -जहां धार्मिक अनुष्ठानों में अब भी जयघोष लगते हैं- जगत का कल्याण हो ।भारत ही वह देश है जहां लोग मिल जाते हैं जो वसुधैव कुटुंबकम, विश्व बंधुत्व ,सागर में कुंभ कुंभ में सागर आदि संकल्पना में जीते हैं। संभवतः यह सोच हमारी ठीक है।


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