शुक्रवार, 4 जून 2021

05जून :: विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष::अशोकबिन्दु

 05जून::विश्व पर्यावरण दिवस!! . . #अशोकबिंदु " ऋषि परम्परा के बाद आचार्य परम्परा महत्वपूर्ण है।आचार्य का मतलब है-ऋषियों की परंपरा के आधार पर आचरण करने वाला।कहने को तो सभी ऋषियों की संतानें हैं लेकिन तब भी कोई असुर हुआ कोई सुर.....आखिर क्यों?!" आज 05 जून, अनेक संस्थाएं विश्व पर्यावरण दिवस मना रही हैं। हमें चारों और जो भी दिखाई दे रहा है सब प्रकृति है हमारा इस शरीर शरीर के लिए आवश्यक तत्व हमें प्रकृति से ही प्राप्त होते हैं प्रकृति और ब्रह्मांड में सब कुछ नियम से बंधा हुआ है मानव मानव के समाज ही सरल सहज नैसर्गिक ता प्रकृति अभियान यज्ञ से हटकर भौतिक बनावट में उलझ गए है। अपने इस शरीर में अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रकृति से दिव्य संबंध भाव ही आचरण ही मंगलकारी हैं। मैं हूं क्योंकि हम सब हैं यह प्रकृति है मानवता है सहकारिता है आदि आदि बेहतर वातावरण के लिए आवश्यक है कि हम हमारा मनुष्य जीव जंतुओं पेड़ पौधों धरती के प्रति सद्भावना हो सम्मान हो इसके लिए अध्यात्म को स्वीकार करना आवश्यक है हमें सार्वभौमिक ज्ञान को हर वक्त चिंतन मनन कल्पना स्वप्न में रखना आवश्यक है यही हमारी हमारे लिए बेहतर उप आसना है उप आसन है हमारे लिए उप आसन है मन को दिव्यता सार्वभौमिक ज्ञान और सार्वभौमिक प्रार्थना में रखना । हम इन विचारों को हर वक्त अपने चिंतन मनन कल्पनाओं सतत स्मरण में रखकर ही महानता दिव्यता इस भक्ति को सिद्ध कर सकते हैं कि- " हम सब में ईश्वर की रोशनी मौजूद है अल्लाह का नूर मौजूद है हम सब आत्माओं के रूप में अनंत यात्रा में परस्पर साहचर्य हैं जैसे सागर में परस्पर लहरें हम सब एक प्रकार से अनंत व्यवस्था प्रकृति अभियान यज्ञ का परिणाम है जगत में जो भी स्त्री पुरुष हैं सब भाई बहन है सब एक ही मिशन से जुड़ रहे हैं सभी के दिल में धर्म दया सेवा प्रेम वसुधैव कुटुंबकम विश्व बंधुत्व परस्पर सहयोग की भावना मौजूद है । " सारा जगत और ब्राह्मण एक तंत्र का हिस्सा है जिसकी एक इकाई हम भी हैं जिससे हम हम से प्रभावित होता है बीमारी क्या है बी अर्थात प्रकृति में असंतुलन हमारा शरीर भी प्रकृति है जिसमें असंतुलन ही बीमारी है स्वास्थ्य है संतुलन। प्रकृति, अपने शरीर, अन्य शरीर शरीरों से सम्मानजनक व्यवहार रखकर ही हम अपने में स्व में स्थित रह सकते हैं स्वस्थ रह सकते हैं प्रकृति जगत की हो या अपनी यदि हम उससे लोग लालच भोग विलास के लिए संबंध रखें रखेंगे तो हम वास्तव में असुर संस्कृति बेड संस्कृति को ही प्रतिष्ठित कर रहे हैं हमारी और जगत की प्रकृति जब तक संतुलित है संरक्षित है तब तक ही हम स्वस्थ हैं हम जीवित हैं हम जीवंत हैं ऐसे में हमें ऋषभदेव जड़ भरत आदि ही याद आते हैं जिन्होंने सत्य अहिंसा अस्तेय अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य को ही सिर्फ महाव्रत बताया है जिसके माध्यम से ही हम अपनी और जगत की प्रकृति को सुरक्षित रख सकते हैं हमें रक्ष संस्कृति को भी समझने की जरूरत है दुर्ग संस्कृति को भी समझने की जरूरत है। वर्तमान विकास विकास नहीं है बरन विनाश है मन आत्मा और अनंत वैभव तो निरंतर हैं गतिशील है बाहर का वक्त नहीं विकसित नहीं बरन विकास शीलता है निरंतर अभ्यास है निरंतर गतिशीलता है जीवन भर रोटी कपड़ा मकान जातिवाद मजहब बाद धर्म स्थल बाद आदमी लगे रहना प्रकृति की नजर में प्रकृति अभियान की नजर में रुकावट है जहां रुकावट है वहां निरंतरता नहीं है सनातन नहीं है। हाड़ मास शरीर, शरीरों की प्रकृति बदलती रहती है। लेकिन हमारे और जगत की प्रकृति के अंदर कुछ है जो स्वतः है, निरन्तर है, जैविक घड़ी है।वह हमें अनन्त, शाश्वत व सनातन से जोड़ता है।इसके लिए हमे सबका सम्मान आवश्यक है।सबका साथ सबका विकास आवश्यक है।सभी के अंदर दिव्य सम्भावनाएं है, उनको अवसर आवश्यक है। "यथा राजा तथा प्रजा!" सहज मार्ग राजयोग में हमारा मन ही राजा है जैसा मन होगा जैसा हमारा नजरिया होगा जैसा हमारा अचेतन मन होगा जैसा हमारा चिंतन मनन स्वप्न होगा वैसा ही हमारा भविष्य होगा। इस कोरोना संक्रमण काल ने हमें एक प्रमाण पत्र दे दिया है अब उसे हम ना समझ पाए तो अलग बात। लगभग 1 साल पहले 22- 25 मार्च 2020 को यदि आप प्रकृति में शांति सुकून नहीं किए हैं तो समझो अभी आप की समझ और चेतना का स्तर क्या है आपका आपकी और जगत की प्रकृति से कैसा और क्या संबंध है? श्री अर्धनारीश्वर शक्ति पीठ, बरेली के संस्थापक श्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह भैया जी कहते हैं- " हम सबका धर्म सिर्फ संबंध है प्रकृति से संबंध जीव-जंतुओं वनस्पतियों से संबंध अध्यात्म है सभी के अंदर ईश्वर के प्रकाश को देखना। मानवता है सभी मनुष्यों के बीच परस्पर प्रेम भाव सहकारिता सहयोग भाव आदि यह सब मिलकर ही हम सनातन होते हैं।" हम तो कहेंगे अन्यथा यह सीखने से कोई फायदा नहीं कि हम सनातनी हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में चीखने से काम नहीं होगा सिर्फ,..... जगत का कल्याण हो .....सर्वे भवंतू सुखिना.... वसुधैव कुटुंबकम .....आदि आदि। ऋषि परंपरा के बाद आचार्य परंपरा ही महान है। आचार्य का मतलब है -ऋषि यों की परंपरा के आधार पर आचरण। कहने को सभी ऋषियों की संताने हैं लेकिन तब भी कोई असुर हुआ कोई सुर..... आखिर क्यों? 22- 25 मार्च 2020 को प्रथम बार लॉक डाउन ने हमें प्रेरणा दी कि हम सब चाहे तो धरती को सुंदर बना सकते हैं। 22- 25 मार्च 2020 को हमने प्रकृति की ओर से महसूस किया कि प्रकृति कितनी प्रसन्न है? हम तो यही कहेंगे कि सप्ताह में 2 दिन लॉक डाउन हमेशा के लिए सरकारों के द्वारा तय हो ही जाना चाहिए । प्रकृत में कोई समस्या नहीं है। समस्या स्वयं मानव और मानव समाज की विभिन्न आदतों के कारण है।किसी ने कहा है कि यदि कुछ वर्षों के लिए धरती के सभी मानवों को आकाश की अन्य धरती पर भेज दिया जाए तो इस धरती की सभी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। इस धरती के लिए सबसे बड़ा खतरा अब मानव सत्ता ही है । इस धरती के लिए ही नहीं वरन ऐसा ही रहा तो पूरी आकाशगंगा के लिए । इजरायल के प्रधानमंत्री ने अभी जल्द महीनों ही कहा है कि अमेरिका का संबंध एलियन से हो चुका है, हम तो 10 साल पहले से ही ताल ठोक कर यह कहते आए हैं। एक देश के विदेश मंत्री का यहां तक कहना है कि भविष्य में एलियंस इस धरती पर आकार आक्रमण कर सकते हैं। कारण यह है कि इस धरती की मानव सत्ता ने अंतरिक्ष की प्रकृति को भी प्रभावित कर दिया है। "बड़े भाग्य मानुष तन पावा??" हम समझते हैं कि हम से बढ़कर कोई नहीं लेकिन ऐसा नहीं है। हम भी प्रकृति का हिस्सा है । इन शरीरों के रूप में प्रकृति की मार में हमारे यह शरीर कब तक धरती पर विचरण कर पाएंगे? पूंजीवाद ,सत्ता वाद, अब एलोपैथी चिकित्सा प्रकृति और प्राकृतिक चिकित्सा के खिलाफ ही खड़ी है। कोरोना संक्रमण प्रकृति में हमारी प्रकृति का प्रमाण पत्र है 1 साल में ऐसे अनेक प्रमाण मिले हैं जो आयुर्वेद,योगा ,प्राकृतिक जीवन से जुड़े हैं कोरोना उन्हें छू कर आगे निकल गया है। हमें प्रसन्नता है इन दिनों योगा ,ध्यान , आयुर्वेद का प्रसार और तेज हुआ है । जब जागो तभी सवेरा! हम प्राकृतिक सहजता के संरक्षण में आगे आए।प्रकृति को बचाएं। जय प्रकृति!! #अशोकबिन्दु #अशोकबिन्दु


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