यथार्थ गीता!! पुस्तक के साथ हमारी आध्यत्मिकता!!
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12.14pm!शनिवार!!
रोहिणी व्रत!
23मई2020ई0!
कुंडलिनी जागरण व सात शरीर,श्री अर्द्ध नारीश्वर अवधारणा, अनन्त की ओर पुस्तकों को पढ़ते पढ़ते ही हमने एक दशा प्राप्त की थी जो आध्यत्म के लिए आवश्यक है। लेकिन यथार्थ गीता के प्रति तो अलग ही कुछ है। कुछ साल पहले जब ये #यथार्थगीता पुस्तक हाथ आयी थी तो हाथ आते आते हम रोमांचित हो उठे थे।बिना कुछ पढ़े, बिना खोले।पूरे शरीर के रोएं खड़े हो गए थे। तब हम इसे पढ़ कर सुनील वाजपेयी को वापस करना पड़ा था। लेकिन तभी से हमें इसकी तलाश थी।हालांकि कक्षा 5 से श्रीमद्भगवतगीता के अनेक भाष्य हम पढ़ चुके हैं।#ओशो के गीता भाष्य, #विनोवाभावे के गीता भाष्य के बाद सबसे अधिक हमें प्रभावित करने वाला भाष्य #यथार्थगीता के रूप में हममें बेहतरी लाया।
आज अभी हम फिर रोमांचित हो उठे। जब डाकिया हमें पैकिंग में ये पुस्तक दे गया।पैकिंग को खोले बिना ही हम अभी फिर रोमांचित हो गए।सब प्रभु मर्जी।
उप्र, इलाहाबाद के बिगहना, सिरसा से हमारे एक शुभेच्छु ने इसे हमें भेजा।उनको बहुत बहुत धन्यवाद!!!
अब से लगभग 13 वर्ष पूर्व जब हम मोहल्ला कायस्थान में थे।
एक छोटा सा भूखण्ड हम अब भी वहां रखते हैं।उन दिनों हमें महसूस होता था कि चित्रकूट से हमें कोई सन्त निर्देशित कर रहे हैं और हमें बुला रहे हैं। अब हमारी दृष्टि से धूल हट चुकी है।
"परमहंस आश्रम अनुसुइया, चित्रकूट"- !!!सत सत नमन!!! स्वेत वस्त्रों में वह सन्त ......
आज 23 मई......
हम कुछ देर याद में रहकर आंख बंद कर बैठ गए।
अमोघ प्रिय अंनतम!! सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!!
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12.14pm!शनिवार!!
रोहिणी व्रत!
23मई2020ई0!
कुंडलिनी जागरण व सात शरीर,श्री अर्द्ध नारीश्वर अवधारणा, अनन्त की ओर पुस्तकों को पढ़ते पढ़ते ही हमने एक दशा प्राप्त की थी जो आध्यत्म के लिए आवश्यक है। लेकिन यथार्थ गीता के प्रति तो अलग ही कुछ है। कुछ साल पहले जब ये #यथार्थगीता पुस्तक हाथ आयी थी तो हाथ आते आते हम रोमांचित हो उठे थे।बिना कुछ पढ़े, बिना खोले।पूरे शरीर के रोएं खड़े हो गए थे। तब हम इसे पढ़ कर सुनील वाजपेयी को वापस करना पड़ा था। लेकिन तभी से हमें इसकी तलाश थी।हालांकि कक्षा 5 से श्रीमद्भगवतगीता के अनेक भाष्य हम पढ़ चुके हैं।#ओशो के गीता भाष्य, #विनोवाभावे के गीता भाष्य के बाद सबसे अधिक हमें प्रभावित करने वाला भाष्य #यथार्थगीता के रूप में हममें बेहतरी लाया।
आज अभी हम फिर रोमांचित हो उठे। जब डाकिया हमें पैकिंग में ये पुस्तक दे गया।पैकिंग को खोले बिना ही हम अभी फिर रोमांचित हो गए।सब प्रभु मर्जी।
उप्र, इलाहाबाद के बिगहना, सिरसा से हमारे एक शुभेच्छु ने इसे हमें भेजा।उनको बहुत बहुत धन्यवाद!!!
अब से लगभग 13 वर्ष पूर्व जब हम मोहल्ला कायस्थान में थे।
एक छोटा सा भूखण्ड हम अब भी वहां रखते हैं।उन दिनों हमें महसूस होता था कि चित्रकूट से हमें कोई सन्त निर्देशित कर रहे हैं और हमें बुला रहे हैं। अब हमारी दृष्टि से धूल हट चुकी है।
"परमहंस आश्रम अनुसुइया, चित्रकूट"- !!!सत सत नमन!!! स्वेत वस्त्रों में वह सन्त ......
आज 23 मई......
हम कुछ देर याद में रहकर आंख बंद कर बैठ गए।
अमोघ प्रिय अंनतम!! सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!!
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