शुक्रवार, 29 मई 2020

बेईमान लोकतंत्र?अन्यथा फिर सरकारों की आड़ में पूंजीपति, जातिबल, मजहब बल, माफिया, ठेकेदार आदि क्यों खड़े:::अशोक बिंदु

लोकतन्त्र के घटक हैं-सामाजिक लोकतंत्र,आर्थिक लोकतंत्र,सभी समुदायों जातियों की सत्ता में भागीदारी, सभी समुदायों व जातियों की नौकरियों में भागीदारी, निरपेक्ष-सम्विधान प्रेमी व मानवता वादियों की सत्ता व नौकरियों में अलग से भागीदारी ! लोकतंत्र/जनतंत्र में नागरिक केंद्रित योजनाएं होनी चाहिए न कि पूंजीपतियों, विभिन्न विभागों, संस्थाओं केंद्रित।केन्द्रियों व राज्य सरकार की नीतियां प्रत्येक नागरिक व प्रत्येक परिवार से सीधे जुड़ी होनी चाहिए।विभिन्न विभागों, जन प्रतिनिधियों   ,संस्थाओं आदि का सम्बंध सिर्फ वार्ड, गांव, नगर, जनपद की सार्वजिनक व्यवस्थाओं के लिए होनी चाहिए।  जनहित के लिए केंद्र व राज्य सरकारों के द्वारा अरबों - खरबों रुपये आवंटित किए जाते हैं वे सरकारों से नागरिकों व परिवारों तक क्यों नहीं?नागरिकों व परिवारों की सेवाओं, व्यापार, कुटीर व लघु उद्योग,आर्थिक स्थितियों आदि को सीधे नागरिकों व परिवारों के द्वारा जनसेवा केंद्रों पर आवेदन के  साथ सरकार से सीधे नागरिकों व परिवारों को सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए।

वर्तमान में लॉक डाउन के समय अरबों रुपये सरकार के द्वारा आवंटित किए गए हैं लेकिन वह पूंजीपतियों, संस्थाओं, विभागों को दिए गए है।इससे आम आदमी आत्मनिर्भर, स्वाबलंबी होने को रहा। एक बार पूर्ब प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कहा था - परमाणु बम विस्फोटों से आम आदमी आत्मनिर्भर, स्वाबलम्बी नहीं हो जाता। व्यवस्थाएं व वातावरण ऐसा होना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक व परिवार आत्मनिर्भर व स्वबलम्बी हो।देश तव मजबूत होगा।सरकारों के पीछे जन प्रतिनिधियों के पीछे पूंजीपति नहीं, माफिया नहीं, ठेकेदार नहीं, जाति बल नहीं, मजहब बल नहीं, पुरोहित नहीं वरन नागरिक खड़ा होना चाहिए। परिवार खड़े होने चाहिए।तब देश में लोकतंत्र स्थापित होगा।



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