शनिवार, 20 मार्च 2021

यम में न होना नास्तिकता:: अशोकबिन्दु

 अहिंसा को कौन समझ सकता है!?


हमारा अनुभव तो यही कहता है कि 90 प्रतिशत  नरक योनि की संभावनाओं व भूत योनि की संभावनाओं में जीते हैं।व्यक्ति के साथ हर स्तर पर हर बिंदु पर दो सम्भावनाएं छिपी होती हैं। सभी हार्ड वेयर में पारंगत होना चाहते हैं लेकिन साफ्टवेयर पर कोई नया कुछ करने की क्षमता नहीं रखता। अब विज्ञान भी कहने लगा है कि प्राणियों व जगत की प्रकृति में परिवर्तन के कारण,अवस्थाएं के पीछे कारण भौतिक ही नहीं हैं, हार्डवेयर ही नहीं हैं सूक्ष्म व कारण भी हैं, साफ्टवेयर भी हैं।

यदि किसी क्षेत्र आदि के प्रकृति, नदियों, पहाड़ आदि को प्रभावित किया जाता, नष्ट किया जाता है तो इसका कारण प्रभावित करने वाले,नष्ट करने वाले का सूक्ष्म ,नजरिया, विश्वास आदि होता है।जिसमें हम भूल जाते हैं कि जिसे हम नष्ट कर रहे रहे हैं प्रभावित कर रहे हैं उसका भी सूक्ष्म व कारण है। जगत में जो कुछ भी है वह एक व्यवस्था के तहत है जिसे एक ऋषि एक नबी ही महसूस कर सकता है, आचार्य ही महसूस कर सकता है। अपनी व जगत की सम्पूर्णता के अहसास / ज्ञान में जीने के लिए योग के प्रथम अंग- यम से गुजरना आवश्यक  है। जिसे ऋषभ देव, जड़ भारत ने अपने  आचरण में स्वीकार किया-सत्य, अहिंसा,अस्तेय अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य । जिसे जिन(जैन) ने महाव्रत कहा।जिन या जैन का मतलब है-विजेता।आदि योगी कौन था? सद्गुरु कहते हैं- जो आदि योगी सप्त ऋषियों के द्वारा कहलाया वह अनाम था, उसके माता पिता से हर कोई अंजान था।वह सिर्फ मौन में रहा। यम में होना हमारा विश्वास है,यम में न होना अविश्वास है,नास्तिकता है। हमारे व जगत के अंदर जो है स्वतः व निरन्तर है उस ओर किसकी निगाह है। उसकी व्यवस्था पर निगाह किसकी है? ऐसे में अहिंसा की क्या भूमिका है? हिंसा भी उस पर क्या अविश्वास नहीं है जो स्वतः व निरन्तर  है?

ऐसे में मौन रह कर कर्म या कर्तव्य का क्या महत्व है?9

हम देखते हैं विभिन्न संस्थाओं में क्या हो रहा है?






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