बुधवार, 29 जनवरी 2020

अंदर बाहर एक::सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!!

हमारे ,जगत व ब्रह्मांड के अंदर'कुछ'है ,जो निरन्तर, स्वतः, स्वाभाविक है!वही हमें असल से जोड़ता है।
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कटरा ,बलवंत सिंह इंटर कॉलेज! कोई कहता है हमारे यहां यह होता है हम यही कर सकते हैं। कोई कहता है हम कोई मुसलमान थोड़ी ,क्यों हमेशा करें ।कोई कहता है हम कोई हिंदू थोड़ी हैं जो हम ऐसा करें ।तुम्हारे यहां ऐसा होता होगा वैसा होता होगा लेकिन हमारे यहां तो ऐसा नहीं होता ।हम ऐसा नहीं कर सकते। हम तो ऐसा ही कर सकते हैं, आदि आदि शब्द हमें सुनने को मिलते हैं। इससे हटकर हम असल की ओर जाना नहीं चाहते। विकास क्या है? विकास है भविष्य यात्रा ।विकास का मतलब यह नहीं है हम अभी तक जो करते आए हैं हमारे यहां अभी तक जो होता आया है वही करते रहे ।स्तर दर स्तर आगे और भी कुछ है। जिस स्तर पर हम जी रहे हैं उस स्तर से ऊपर भी अन्य स्तर हैं ।हर स्तर पर चाहे हमारा स्थूल हो ,चाहे हमारा सूक्ष्म, अनेक स्तर हैं। उन स्तरों से गुजरते हुए ऊपर जाना ही विकास है भविष्य यात्रा है। जो बदलाव को स्वीकार नहीं करता या अनंत यात्रा की ओर जाते हुए साक्षी नहीं हो सकता। कोई विचार कोई भावना यदि हम संस्कृत भाषा में व्यक्त करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं हो जाता कि हम सनातनी हो गए ??
यदि उसी विचार भाव को यदि दूसरी भाषा में उर्दू में फारसी में व्यक्त करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि हम सनातनी नहीं है?? हम उससे नहीं जुड़ रहे हैं जो सर्व व्याप्त है ,सनातन है, निरंतर है, स्वतः है ,स्वचालित है आदि आदि।
 हमें आत्मसाक्षात्कार करने की जरूरत है। हम को कुदरत के स्तर पर पूरी कायनात के स्तर पर विचार करने की जरूरत है ।हम कौन हैं? हार्टफुलनेस कार्यक्रम  में इस पर चर्चा हुई व इसके अनुभव के लिए प्रयोग हुए कि हमारे अंदर जो दिव्यता जो प्रकाश है,उसके लिए हम वक्त नहीं देते । जब हमारे खास के शरीर से या हमारे शरीर से वह निकल जाता है तो ये शरीर लाश बन जाता है!तब वक्त निकल आता है।जब तक वह अंदर है, उसके लिए वक्त नहीं।आधा घण्टा एक घण्टा बैठ उसके लिए वक्त नहीं। हमारा जो नजरिया, भाव, विचार होता ,जिसके लिए हम समय देते है उसी आधार पर हमारा भविष्य तय होता है।

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