सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

धर्म पथ बनाम अधर्म पथ::अशोकबिन्दु

 धर्म पथ बनाम अधर्म पथ!!

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आप लोगों के धर्म /मजहब /जाति /आस्था /श्रद्धा आदि हमारी समझ में नहीं आते ?

मार्टिन लूथर की तरह हम पढ़े लिखे हैं !

हमने जो जाना है जो जान रहे हैं वह महत्वपूर्ण है !

आत्म प्रबंधन व समाज प्रबंधन ग्रंथों महापुरुषों का हेतु रहा है ।

जिस की समस्याओं का हल मानवता व अध्यात्म से ही संभव है। मनुष्य निर्मित प्रबंधन से भी बढ़कर है प्राकृतिक व सार्वभौमिक प्रबंधन। हाड़ मास शरीर, दिल दिमाग आदि का प्रबंधन ही हमारा धर्म है ।जो आवश्यकता है इच्छा नहीं।

मार्टिन लूथर ने कहा था - "मैं शिक्षित हूं हमें तुम्हारी बातों से कोई मतलब नहीं हम स्वयं पढ़ सकते हैं ग्रंथों में क्या लिखा है? हम स्वयं महसूस कर सकते हैं ईश्वर को विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से। हमें दलालों की जरूरत नहीं है।"


 धर्म के पथ पर अपना कोई नहीं होता ।अधर्म के पथ पर अपना कोई नहीं होता ।

जो पथ पर हमारे साथ है वही अपना है और न ही कोई अपना दुश्मन होता है। हम ही स्वयं अपने दुश्मन होते हैं और अपने मित्र होते हैं ।

हमें किन विचारों किन भावनाओं किन नियमों के आधार पर चलना है ?हमें ये स्वयं तय करना है ।लोग क्या कहते हैं -हमें इस से मतलब नहीं ।

हमारा चरित्र है जो , वह सिर्फ हमारे पास है उसे और कोई नहीं जान सकता ।समाज की नजर में हम चरित्र नहीं खड़ा कर सकते ।समाज में उन लोगों की नजर में जो जाति मजहब ,लोभ लालच, झूठ ,अज्ञानता, अंधविश्वास ,मनमानी आदि के आधार पर अपना जीवन जी रहे हैं ।हमें अपना चरित्र अपनी क्षमता ,अपनी प्रतिभा, अपने अंदर की दिव्य शक्तियों के आधार पर खड़ा करना है । हमारा चरित्र है -महापुरुषों के संदेशों से प्रेरणा लेकर चलने की कोशिश करना।हमारा चरित्र है मानवता के संदेशों को स्वीकार कर आगे बढ़ने की कोशिश करना। सारी कायनात का हम हिस्सा हैं ।

हम हाड़ मांस शरीर हैं। हम आत्मा हैं। हम बुद्धि हैं। हम दिल हैं ।हम  जो स्वयं अपनी आवश्यकताएं रखता है जो स्वयं अपना एक प्रबंधन रखता है उसको जाति मजहब से मतलब नहीं उसे देश विदेश से मतलब नहीं ।उसे उन नियमों से मतलब है जिनसे वह जुड़ा है ।जो प्रकृति अभियान का हिस्सा है। जो ईश्वरी अभियान का हिस्सा है। जो हमें अनंत - शाश्वत से जोड़ता है। हमें आपके धर्मों से कोई मतलब नहीं। हमारे अंदर वह है जो निरंतर है। हमरा वही धर्म है। 


 हिन्दुओ की मनुस्मृति कहती है-


धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः ।

धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् । ।


 पहला लक्षण – सदा धैर्य रखना, दूसरा – (क्षमा) जो कि निन्दा – स्तुति मान – अपमान, हानि – लाभ आदि दुःखों में भी सहनशील रहना; तीसरा – (दम) मन को सदा धर्म में प्रवृत्त कर अधर्म से रोक देना अर्थात् अधर्म करने की इच्छा भी न उठे, चैथा – चोरीत्याग अर्थात् बिना आज्ञा वा छल – कपट, विश्वास – घात वा किसी व्यवहार तथा वेदविरूद्ध उपदेश से पर – पदार्थ का ग्रहण करना, चोरी और इसको छोड देना साहुकारी कहाती है, पांचवां – राग – द्वेष पक्षपात छोड़ के भीतर और जल, मृत्तिका, मार्जन आदि से बाहर की पवित्रता रखनी, छठा – अधर्माचरणों से रोक के इन्द्रियों को धर्म ही में सदा चलाना, सातवां – मादकद्रव्य बुद्धिनाशक अन्य पदार्थ, दुष्टों का संग, आलस्य, प्रमाद आदि को छोड़ के श्रेष्ठ पदार्थों का सेवन, सत्पुरूषों का संग, योगाभ्यास से बुद्धि बढाना; आठवां – (विद्या) पृथिवी से लेके परमेश्वर पर्यन्त यथार्थ ज्ञान और उनसे यथायोग्य उपकार लेना; सत्य जैसा आत्मा में वैसा मन में, जैसा वाणी में वैसा कर्म में वर्तना इससे विपरीत अविद्या है, नववां – (सत्य) जो पदार्थ जैसा हो उसको वैसा ही समझना, वैसा ही बोलना, वैसा ही करना भी; तथा दशवां – (अक्रोध) क्रोधादि दोषों को छोड़ के शान्त्यादि गुणों का ग्रहण करना धर्म का लक्षण है ।


धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः । 

धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् । ।


हम तो इतना ही जानते हैं कि दिल, दिमाग, शरीर की कोई जाति, कोई मजहब नहीं।उसका एक सिस्टम है,उसकी आवश्यकताएं हैं।उसके प्रति कर्तव्य हैं। चारो ओर सामने प्रकृति है।सारी कायनात है।प्रबन्धन - कुप्रबन्धन है। हमारे लिए दुनिया में आचरण से दो ही तरह के लोग हैं-सुर व असुर।हमें जीवन को समझना है।मृत्यु से पूर्व जीवन(शाश्वत) से जुड़ना है। जहां जाति, मजहब आदि मायने नहीं रखते।हमारे पथ पर हमारे साथ कौन है, ये महत्वपूर्ण है।


हम अभ्यासी/शिष्य/सिक्ख हैं। हमें अभ्यास ही शिष्यत्व ही निरन्तर बनाए रख सकता है।हमारा विकास विकास नहीं है।विकासशील है।सनातन निरन्तर है...अनन्त है....सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर.....


#अशोकबिन्दु


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