मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

वेद मत सर्वत्र लेकिन अंतर व अनन्त प्रवृत्ति::अशोक


 ये सब ठीक है लेकिन वर्तमान जो आस्तिक भी है वे भी भ्रम में है। जिनको देख कर अनेक को कहना पड़ा कि हम आपके ईश्वरों को नहीं मानते।ईश्वर को मानने के नाम पर भी क्या है? पास पड़ोस में लगभग सभी ईश्वर के नाम पर भ्रम में हैं।उन्हें इसका भी अहसास नहीं कि ब्रह्मा, विष्णु व महेश से ऊपर भी कोई है?उन्हें ये भी नहीं पता कि अपने अंदर की आत्मा के माध्यम से ही हम परम्आत्मा की ओर जा सकते हैं?और फिर एक बात ये भी  कि जो आस्तिक है वे अपने जीवन में चाहते क्या हैं?एक आस्तिक होने के नाते उनकी चाहते नहीं दिखती। इस क्षेत्र में भी अनेक शब्द प्रचलित कर दिए गए हैं;योग,भक्ति, आस्तिक, यथार्थ आदि लेकिन सबकी जड़ एक ही है-अनन्त यात्रा व प्रकृति अभियान(यज्ञ)।यथार्थ ये है कि जो भी दिख रहा है, वह प्रकृति है।उस बीच वह भी जो निरन्तर है, सनातन है, स्वतः है, अनन्त है।दूसरा बनाबटी, कृत्रिम आदि।जो के तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।वह नजर पैदा हो जाना ही योग/आल/अल/all/आदि है जब हमें अनेकता में एकता, विविधता में एकता, अनेक में एक, वसुधैव कुटुम्बकम, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर....आदि दिखाने लगे।हमारी नजर में आर्य है वह व्यक्ति सभी प्राणियों में एक ईश्वर की रोशनी देखे और सिर्फ आत्मरक्षा के लिए हिंसा ऊपरी मन से करे। वेद?वेद सिर्फ पुस्तक ही नहीं है, एक वह दशा भी है जो प्रकृति, ब्रह्मांड, जीव जंतुओं  आदि पर सार्वभौमिक नजर दे जो कि स्वतः वेद स्वरूप जो जाएगा क्यों न उसे वेद का कोई श्लोक याद न हो।हर शब्द, हर वाक्य, हर श्लोक, हर आयत, हर पुस्तक के पीछे भी स्थूल, सूक्ष्म व कारण स्थितियां छिपी हैं।हमने कुछ सन्त देखे हैं जो  जमाने के ग्रन्थ नहीं पढ़े लेकिन वह भावना से ,नजरिया से,व्याख्या से वैदिकता व सनातन में ही है। कुछ शोध कह रहे हैं कि जहाँ जमाने के ग्रन्थ, धर्मस्थल,धर्म नहीं  पहुंचे वहाँ भी कुछ लोग जिस भाव, विचार, आस्था, नजरिया आदि में जीते थे वह सनातन, वैदिकता, मानवता आदि के समकक्ष ही थी।



अंतर जगत में अब भी सर्वव्याप्त मत है-वेद मत, जहां से सनातन की शुरुआत होती है लेकिन 98.8 प्रतिशत अभी इससे नीचे के मत/स्तर/क्लास में ही हैं। चेतना के अनन्त बिंदु अनन्त स्तर हैं।आत्मा अनन्त मुखी है। 

www.heartfulness.org/education


www.ashokbindu.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें