हम क्या हो रहे हैं?!
अच्छे दिन आ गए?किसके ?!
किसके अच्छे दिन?!
हो क्या रहा है?!
जातिवाद बढ़ रहा है..
सम्प्रदायिकता बढ़ रही है,
बेरोजगारी बढ़ रही है,
नशा व्यापार बढ़ रहा है,
सेक्स व्यापार बढ़ रहा है,
बाबा जी की सरकार है-
मंदिर बन रहा है?!
मोदी की सरकार है-
विदेश नीति बेहतर कर रहा है?!
सब, अच्छा हो रहा है?!
कोशिस है-
मत देखो आधा गिलास खाली है,
देखो-
आधा गिलास भरा है।
किसी के लिए हिन्दू खतरे में है,
किसी के लिए मुसलमान खतरे में है;
कुदरत से पूछो-
इंसानियत से पूछो-
आध्यत्म से पूछो-
कौन खतरे में है?
कुदरत में कोई समस्या नहीं,
समस्या स्वयं मानव समाज में है;
हजार वर्ष बाद-
बची खुची मानवता तुम पर थूकेंगी,
तुम्हारे द्वारा खड़ी की गई मूर्तियों -धर्म स्थलों पर,
बैठने को पक्षी भी न होंगे,
कुदरत तुम पर हंसेगी।
महाभारत बाद-
द्रोपदी, गांधारी, धृतराष्ट्र की आत्माएं-
अब भी रो रही हैं,
मगर
नये नये किरदार द्रोपदी, गांधारी, धृतराष्ट्र के सजे खड़े हैं,
विदुर पहले जैसा था आज भी बैसा है।
दुनिया का सबसे बड़ा भृष्टाचार है-शिक्षा,
संबसे बड़ी है समस्या-
आज का इंसान इंसान नहीं है,
इंसानों की भीड़ में-
इंसानियत ढूढ़ती पहचान है।
#अशोकबिन्दु
इंसान बनो इंसानियत स्वीकारो!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें